एक हंसती खिलखिलाती हुई लड़की मुग्धा जिसका कत्ल हुए आज 1 साल हो चुका था मगर आज तक उसका कातिल पकड़ा नहीं गया था।किसी से ना कोई दुश्मनी, ना किसी से कोई झगड़ा।अपने सपनों की और उड़ान भर्ती हुए एक प्यारी सी लड़की.... आखिर किसने किया था उसका कत्ल और क्यों आज तक कोई इस बात को समझ नहीं पाया था....
ठंड का मौसम है सुधीर अपने हाथ में चाय का कप लेकर मुग्धा की यादो में खोया हुआ है। आज 2 साल हो चुके थे उसे गये हुए मगर फिर भी सुधीर उसे नहीं भूला।
"सर कल हमें जोधपुर के लिए निकालना है, वहां पर सेमिनार है हमारा! तो मैं टिकट बुक कर दूं?"- एक नर्स ने आकर सुधीर से कहा
आज सुधीर एक बहुत बड़ा डॉक्टर बन चुका था। उसने धीरे से हां कहा और दूसरे दिन जोधपुर के लिए निकल जाता है। वहां पहुंचकर व सीधे सेमिनार हॉल पर पहुंचता है, और अपने काम में लग जाता है कि तभी एक आवाज उसके कानों में गूंजती है। सुधीर चौक पड़ता है और जैसे ही वह पीछे मुड़कर देखता है उसकी धड़कन ही मानो वही रुक जाती है।वह दौड़ कर उस आवाज के पास जाता है और.....
मुग्धा.......
उसे गले लगा लेता है।
"तुम यहां? मैं समझ नहीं पा रहा कि ये तुम ही हो या मेरा वहम मुग्धा!!"- सुधीर कंपकंपाती आवाज से बोला
उस लड़की की आंखों से बहते हुए आंसू ने जवाब दे दिया।
हां वो मुग्धा ही थी.
सुधीर और मुग्धा एक दूसरे को बाहों में पूरी तरह से जकड़ लिया और वक्त वही थम गया ।दोनों की आंखों से बहते हुए आंसू उनके प्यार को बयां कर रहे थे।
मुग्धा की आंखों से बहते हुए आंसू ने सुधीर को बता दिया कि उस दिन उसके सवाल का जवाब जो वह जानना चाहता था उसका जवाब क्या क्या था।
मुग्धा तुम यहां?? तो उस दिन वो कौन?? यह सब क्या हो रहा है?? मुग्धा तुम 2 साल से कहां थी?? मुग्धा बस चुपचाप सब सुनती है। बिना कुछ कहे वह सुधीर का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ लेकर जाती है। थोड़ी देर में वह दोनों एक घर के पास जाकर रुकते हैं। जहां मुग्धा और उसकी मां दोनों रहते हैं।मां सुधीर को देखते ही गले लगा लेती है।
"यही सुधीर है ना बेटा?" मुझे पता था मेरी बच्ची की किस्मत इतनी बुरी नहीं हो सकती। मुझे पता था कि 1 दिन जरूर सब ठीक हो जाएगा।"- मां ने कहा
" यह सब क्या हो रहा है आंटी आप दोनों यहां पर? और कहां थे आप लोग इतने वक्त से मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा आप मुझे बताएं कि हो क्या रहा है???"- सुधीर परेशानी में एक साथी सब बोल देता है
मुग्धा सुधीर के पास जा कर बैठी है और -
"जिस दिन हम सेमिनार से आए थे उस रात मुझे एक कॉल आया और तुरंत ही में हॉस्पिटल के लिए निकल पड़ी। बहुत डरावनी थी वह रात.... तूफानी बारिश.... और ऊपर से रात का अंधेरा.... मगर वहां जाना जरूरी था। जैसे तैसे मैं जब हॉस्पिटल पहुंची तो वहां पर अंधेरा छाया हुआ था क्योंकि बारिश की वजह से पूरे शहर की बिजली चली गई थी। में जब हॉस्पिटल के अंदर जा रही थी तभी मुझे कॉटेज की तरफ से कुछ आवाज सुनाई दी मैं उस आवाज की तरफ बढ़ी कि तभी मैंने देखा - वहां दो लोगों के बीच में बहुत घमासान लड़ाई हो रही थी। बुरखा पहने हुए किसी इंसान ने फट से चाकू निकाला और और उस लड़की को मार दिया वह लगातार चाकू चलाया जा रहा था। मैं इतनी घबरा गई थी कि डर के मारे मेरे हलक से आवाज तक नहीं निकलीं। उसे बचाने के लिए जैसे ही मैं आगे बढ़ी एक जोरदार बिजली चमकी और उस चमक में मैंने देखा कि जिस पर जानलेवा हमला हो रहा है वह कोई और नहीं बल्कि मेरी ही जुड़वा बहन थी...... श्रद्धा। मैं कुछ भी सोच समझ पाती उससे पहले ही वह बुरखे वाला इंसान वहां से चला गया। मैं समझ गई थी कि वह खूनी वहां मेरे लिए आया था,मुझे मारना चाहता था लेकिन वहां गलती से श्रद्धा...."
तुम्हारी जुड़वा बहन भी है? तो उसके बारे में किसी को कुछ पता क्यों नहीं? और वह अचानक से हॉस्पिटल में कैसे?? मतलब क्या....- सुधीर बहुत सारी कन्फ्यूजन के साथ बोल पड़ा।
" मैं तुम्हें बताती हूं बेटा" - मां ने कहा
"आज से 4 साल पहले श्रद्धा को डॉक्टर बनने के लिए उसके पापा ने लंदन भेजा था श्रद्धा पहले से ही मॉडल बनना चाहती थी डॉक्टर बनने की उसके कोई इच्छा नहीं थी मगर पापा की वजह से लंदन तो चली जाती है लेकिन वहां जाकर वह मॉडलिंग स्टार्ट कर देती है। उसका यह डिसीजन उसके और उसके पापा के बीच में दीवार बनकर रह जाता है। उसके पापा ने उसे सारे रिश्ते तोड़ दिए थे उसके बाद श्रद्धा भी कभी वापस लौट कर नहीं आई लेकिन एक दिन अचानक श्रद्धा का कॉल आता है और मुग्धा उससे मिलने जाती है। उसके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं थी तो अपने पापा से यह बात छुपाकर मैंने ही उसे मुग्धा के साथ रहने के लिए कहा।"
"श्रद्धा जब घर आइ तो वहां पर उसकी नजर पड़ी हम लोगों की एक तस्वीर पर जिसमें हमारे साथ थे डॉक्टर नितिन कश्यप...तब उसने मुझे बताया उसके और डॉक्टर नितिन के बारे में... कि अपने मॉडलिंग के ख्वाब की वजह से उसे डॉक्टर नितिन को भी खोना पड़ा। इसी वजह से उस दिन डॉ नितिन मुझे श्रद्धा समझ कर मुझ पर चिल्ला पड़े थे, यह बात समझने में मुझे बहुत देर हो गई। श्रद्धा डॉ नितिन से मिलना चाहती थी और इसीलिए वह उस रात हॉस्पिटल में गई लेकिन वहां किसी ने उसे मैं यानी कि मुग्धा समझ कर....."- कहते हुए मुग्धा चुप हो जाती है।
" तो इसका मतलब इतने दिनों से श्रद्धा और तुम साथ में रह रहे थे?"- सुधीर ने पूछा।
"हां पापा के डर की वजह से मैंने और मम्मा ने उसे मेरे साथ ही घर में छुपकर रहने के लिए कहा, यहां तक कि यह बात हमने गुलशन अंकल, गौरी आंटी या वीर किसी को नहीं बताई। जब सेमिनार से रात को लौट कर मैं घर पर पहुंची तब मैंने देखा कि श्रद्धा वहां पर नहीं थी। उसने मुझे कॉल करके बताया कि वह डोक्टर नितिन से मिलने के लिए हॉस्पिटल आई है। मैं तुरंत ही हॉस्पिटल पहुंची और वहां पहुंच कर मैंने यह सब देखा। मेरी बहन का क़त्ल मेरी आंखों के सामने हो रहा था.... और वह भी मेरी वजह से मैं.... उसी वक्त घर वापस आने के लिए निकल आई। जब घर पहुंची तो पता चला कि उस रात मैंने सिर्फ अपनी बहन ही नहीं अपने पापा और भाई को भी खो दिया था। मगर मम्मा... वह बिल्कुल सही सलामत थी। मैंने मम्मा को सारी बात बताई और हमने तय किया कि हम लोग वहां से चुपचाप बिना किसी को कुछ बताएं बस गायब हो जाएंगे। उसके बाद हम लोग यहां राजस्थान आ गए जहां पर मैंने अपना काम शुरू कर दिया और मैंने और मम्मा ने यही अपनी छोटी सी दुनिया बसाली। वह कातिल कौन था? क्यों मुझे मारना चाहता था? इस बात से अंजान हमने अपने आप को दुनिया से छुपा लिया था और आज अचानक से 1 साल बाद मुझे तुम मिल गए....."- मुग्धा ने कहा।
" इतना सब हो गया और तुमने मुझे बताया तक नहीं? मुग्धा एक बार बता करके तो देखती हम इस मुसीबत से साथ में बाहर आते ना..."- सुधीर ने कहा
"मैं जानती हूं सुधीर। मैं भी तुम्हें बताना चाहती थी लेकिन नहीं बता पाइ। मैंने अपना सपना, अपना पूरा परिवार सब खो दिया था अब मेरे पास सिर्फ मम्मा थी, जिनेकी एक ही वजह.... उन्हें नहीं खोना चाहती थी। मैं नहीं जानती थी कि कौन था जो मुझे मरना चाहता था? क्यों? यह सब....मैं बस नहीं कर पाई.... मुझे माफ कर दो सुधीर...."-कहते हुए मुग्धा सुधीर को गले से लगा कर रोने लगती है।
सुधीर ने मन में ठान लिया था कि अब मुग्धा को वह इस तरह से छुप छुप कर नहीं रहने देगा। क्यों वह किसी से डर कर रहे? क्यों वह उस बात की सजा भुगते जब उसने कुछ किया ही नहीं है? और वह दोनों को लेकर मुंबई आ जाता है।
सुधीर मुग्धा और मां को लेकर अपने घर जाता है सुधीर की मम्मी पापा सब उनसे मिलकर बहुत खुश होते हैं। जैसे दिन बीतते हैं धीरे-धीरे सब नॉर्मल होने लगता है लेकिन आज भी सुधीर के मन में यह सवाल रह गया था कि कौन था जो मुग्धा को मारना चाहता था। वह मुक्ता को इस डर से आजाद करवाना चाहता था....
सुबह का वक्त है.... ठंडी ठंडी हवा चल रही है, पूरा परिवार आंगन में बैठकर चाय पी रहा था।
"मुग्धा तुम्हारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है ना? तुम्हें कुछ भी याद नहीं है उस रात के बारे में कि वह कौन था...? मतलब कोई तुम्हें क्यों मारना चाहेगा मुग्धा?"- सुधीर ने पूछा
"अंधेरा होने की वजह से वहां पर मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था सुधीर। लेकिन हां मुझे जब बिजली चमकी थी तब उस कातिल ने जिस हाथ में चाकू पकड़ रखा था उस हाथ में ब्रेसलेट एक था!"-मुग्धा ने याद करते हुए बताया।
" ब्रेसलेट! कैसा था वह ब्रेसलेट? क्या तुम उसकी ड्राइंग बना सकती हो ??"- सुधीर ने कहा।
"थोड़ी देर में मुग्धा ने ड्राइंग बनाकर सुधीर के हाथ में थमाया तो सुधीर और देखकर भौचक्का रह गया।बिना कुछ कहे वह तुरंत ही मुग्धा को अपनी गाड़ी में लेकर निकल पड़ा। थोड़ी देर बाद उसकी गाड़ी एक घर के सामने खड़ी कर दी...और सीधा ही घर के अंदर अंदर चला गया।
" नेहा..... कहां हो तुम? जल्दी बाहर आओ!" - सुधीर गुस्से में नेहा को आवाज देने लगा।
"क्या हुआ सुधीर? तुम अचानक मेरे घर पर काम से फुर्सत मिल गई तुम्हें...!"- नेहा ने मजाकिया आवाज में कहा।
" मैं मजाक के मूड में नहीं हूं नेहा मुझे जल्दी से यह बताओ कि वह ब्रेसलेट कहां है जो मैंने तुम्हें तुम्हारे जन्मदिन पर तोहफे में दिया था?"- सुधीर ने पूछा
" ब्रेसलेट.... हां वह लेकिन अचानक वो ब्रेसलेट क्यों??? क्या हुआ??"- नेहा के मन में कई सारे सवाल उमड़ पड़े।
"सवाल मत करो नेहा मुझे बस इतना बताओ वह ब्रेसलेट कहां पर है?"- सुधीर का गुस्सा बढ़ते ही जा रहा था।
"अरे... मगर वह मेरे पास नहीं है सुधीर वह तो मैंने वह तो मैंने.... किसी को दिया है...."- नेहा ने कहा
"किसे? मुझे अभी वहां ले चलो"- कहकर वह सीधा नेहा का हाथ पकड़ कर उसे गाड़ी में बिठा देता है।
गाड़ी में बैठी हुई मुग्धा को देखकर नेहा अपने कदम पीछे ले लेती है ।
" मुग्धा..... तुम जिंदा हो? नेहा खुशी के मारे तो मुग्धा को गले से लगा लेती है।
" यह सब क्या हो रहा है सुधीर मुझे कोई कुछ बताएगा? मुग्धा यहां पर कैसे??वह लाश किसकी थी ?और तुम आज 1 साल बाद वह ब्रेसलेट क्यों ढूंढ रहे हो?"- नेहा ने एक साथ सवालों की बौछार लगा दी।
"तुम मुझे बस वहां ले चलो जहां वह ब्रेसलेट है। बाकी सब तुम्हें अपने आप समझ में आ जाएगा।"- कहकर सुधीर गाड़ी चलाने लगता है।
"थोड़ी देर बाद गाड़ी एक और घर के सामने जाकर खड़ी रहती है । चारों तरफ बहुत भीड़ थी। सब लोग सफेद कपड़ों में वहां बाहर खड़े हुए थे। लोग वहां पर रो रहे थे। मुग्धा और नेहा कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि सुधीर यहां पर क्यों...? क्या हो रहा है ???वह बस उसके पीछे पीछे चल पड़ते हैं।
सामने का नजारा देखकर वह लोग वही ठहर जाते हैं क्योंकि उनके सामने थी एक और लाश......
अंजलि....
नेहा जोर से चिल्ला पड़ती है।
मुग्धा और नेहा दोनों रोने लगती है। सुधीर सीधा अंदर नेहा के कमरे की तरफ जाता है वह सब याद करता है जब इंटर्नशिप के दौरान सब लोग वहां पर कट्ठा होकर मस्ती किया करते थे....मन में ढेर सारे सवालों के साथ वह कमरे की तरफ आगे बढ़ता है.....
दरवाजा खुलते ही उसके सामने था स्टडी टेबल जिस पर रखी हुई थी एक डायरी और उस डायरी के ऊपर पड़ा था वही ब्रेसलेट.....
सुधीर ने डायरी का आखरी पन्ना खोला।
"बहुत प्यार करती थी मैं तुमसे सुधीर.... बहुत.... तुम्हारे प्यार का पागलपन मुझ पर कुछ इस तरह सवार था कि उसके चलते मैंने मुग्धा का खून कर दिया। सुधीर मुझे माफ कर देना तुम्हें खोने के डर से कभी बता ही नहीं पाई कि कितना प्यार करती थी मैं तुमसे.... मगर तुम तो मेरे कभी थे ही नहीं। मैं तुम्हें खोने से डरती रही मगर कभी यह नहीं सोचा कि मैंने तुम्हें कभी पाया ही नहीं था। मुग्धा के कत्ल का बोझ लेकर अब मैं और नहीं जी सकती.... मुझे माफ कर देना मम्मी पापा.... मुझे माफ कर देना सुधीर....."