sindur - tere naam ka in Hindi Adventure Stories by Aman Mansuri books and stories PDF | सिंदूर - तेरे नाम का

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सिंदूर - तेरे नाम का

आज पूनम की रात में चांद भी खिल उठा था, क्योंकि आज करवा चौथ जो था,महल में भी चारो तरफ रोशनी छाई हुई थी!

सभी औरते चांद का इंतज़ार कर रही थी, जैसे ही चांद दिखा सब लोग खड़े होकर अपनी छन्नी से चांद को देखकर अपनी पति की उस छन्नी में शक्ल देख रहे थे, लेकिन एक जिशका था रिश्ता सब से अलग, एक जगह जा रही थी,जहाँ कोई न था,पाव में पहनी हुई पायल उसके चलने से छन...छन...करती हुई उस जगह पर गूंज रही थी।

न जाने चलते चलते वो एक किल्ले पर पहुच गयी, उसने भी अपनी पूजा की थाल में से अपनी छन्नी लेकर चांद को देखती है, फिर दूर खड़े चार लड़के को उस छन्नी से देखती है, थोड़ा मुस्कुरा कर , खुद ही दूर से पाव छू कर कलश में रखा हुआ पानी पी कर किल्ले से नीचे उतरने लगती है।

न जाने ये केसा रिश्ता बना है,
एक टूटे चांद के लिए,
चार तारे चुने है।

आ रही है , एक अनोखी कहानी " सिंदूर - तेरे नाम का"


अगले पार्ट में......

राजकोट
ठाकुर परिवार,

सुबह के दस बज रहे थे, ठाकुर परिवार के सारे लोग भगवान की आरती कर रहे थे,तभी एक गाड़ी ठाकुर मेंशन की तरफ ही बढ़ती हुई आ रही थी, जैसे ही गाड़ी वॉच मेंन को दिखी तो वो तुरंत ही दरवाजा खोलने के लिए भागकर दरवाजे के पास जाकर दरवाजा खोलकर गाड़ी की तरफ देखते हुए सर जुकाते है, लेकिन गाड़ी के शीशे खुले होने की वजह से एक वॉचमेन ने जो गाड़ी के अंदर का माहौल देखा वो हैरान हो गया।

" ये ..में कोई सपना तो नही देख रहा हु?" वॉचमेन को अभी भी विश्वास नही होता था।

घर के अंदर सब लोग आरती कर रहे होते है,,तभी एक ऊंचे कद और वजन थोड़ा ज्यादा, मुह पर हल्का सा मेकअप किया हुआ था, उस औरत की नजर आरती की थाली पर पड़ी।

" ये क्या है सुमित्रा ? आरती हों रही है और आरती की थाली में किसी ने प्रसाद नही रखा है ?" पार्वती ने अपनी भारी आवाज़ में कहा।


" मेने रश्मि को बोला था! लेकिन कोई बात नही पार्वती में अभी लेकर आती हु।" सुमित्रा इतना कहकर किचन की तरफ जाने लगी।

घर के बाहर वो ब्लेक कलर की गाड़ी दरवाजे के पास आकर रूक गई, उस गाड़ी का दरवाजा खुला तो उसमें से पार्वती का बड़ा बेटा कुनाल शादी के कपड़ो यानी शेरवानी पहने हुए गाड़ी से बाहर आता है, दुशरी तरफ से भी पार्वती का बेटा यानी ऋषि निकलता है, उसने भी शेरवानी पहनी हुई थी।

वो दोनों पहले घर की तरफ देखते है, उनके चेहरे पर डर साफ साफ दिख रहा था, गाड़ी के पिछले एक दरवाजे से पार्वती का तिषरा बेटा यानी अभी निकलता है उसने भी शेरवानी पहनी हुई होती है, गाड़ी के पीछे वाले दूसरे दरवाजे से सुमित्रा का बेटा देव निकल कर बाहर आता है। वो चारो भाई के चेहरे पर डर था,

तभी गाड़ी में से एक लड़की जो शादी के जोड़े में थी, वो सहमी हुई और काफी डरी हुई भी थी, वो जब जब उस चारो को देखती उसके आँखों मे से आँशु बहने लगते थे, उसको देखकर ही लगता था कि वो रास्ते मे रोई होंगी।

वो चारो हिम्मत करके घर के अंदर जाने लगते है, पीछे पीछे वो लड़की भी अंदर की तरफ जाती थी, वो चारो और वो लड़की घर के दरवाजे के पास जाकर रुक गए, किसी की भी हिम्मत नही हो रही थी अंदर जाने की, तभी सुमित्रा प्रसाद लेकर मंदिर की तरफ जा ही रही होती है कि उसकी नज़र उन चारों की तरफ जाती है, उसके हाथों में जो प्रसाद की थाली थी वो नीचे गिर गयी और सारा प्रसाद जमीन पर बिखर गया।