भाग – चतुर्थ
(क्या ध्यानसे मन के दुर्गुण दूर होंगे ?)
क्या ध्यान से मानसिक बुराइयां दूर होंगी ?
क्या ध्यान से मानसिक बुराइयां जैसे काम, क्रोध, ईर्ष्या, हिंसा आदि विकारों का शमन हो सकता है ?
यह गहन शोध का विषय है क्योंकि बहुत प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक बड़े बड़े साधू गण इन विकारों से ग्रस्त दिखाई दिए हैं ।
दुर्वासा ऋषि तो साक्षात क्रोध के अवतार थे तथा बात बात पर भक्तों को शाप दे बैठते थे । प्रसिद्ध विश्वामित्र मुनि मेनका नामक अप्सरा के प्यार में पागल हो चले थे । इतिहास ऐसे हजारों किस्सों से भरा पड़ा है ।
अतः यह गहन शोध का विषय है कि इन काम, क्रोध, इर्ष्या बुराइयों से निजात पाने के लिए किस प्रकार ध्यान सहायक है ? अथवा ये दुर्गुण मनुष्य की संकल्प शक्ति से ही दूर हो सकते हैं ?
मनोव्रत्तियों के निरीक्षण से मन के दुर्गुणों के दुर्बल होने की क्रिया को स्पष्ट देखा जा सकता है । रमण महर्षि, क्रष्णमूर्ति आदि महापुरूष किसी के क्रोध, अपमान, वादविवाद, उत्तेजना की परिस्थिति में भी पूर्ण शांत देखे गए हैं । अतः काम क्रोध से मुक्ति कठिन हो सकती है किन्तु यह असंभव नहीं है । हमारे समान साधारण स्तर के ध्यान करने वाले इन दुर्गुणों के तीव्र आवेग की गति को धीमी तो अवश्य कर सकते हैं ।
मानसिक तनाव
हमारे जीवन में आज भारी मानसिक तनाव है ।
मनुष्य समाज सीधा सादा जीवन छोड़कर प्रतिंद्वंदिता, लोभ, संचय, आडंबरयुक्त जीवन का आदि बन चुका है । इस प्रकार के जीवन से मानसिक तनाव उत्पन्न होना अवश्यंभावी है । ऐसे तनाव को जीवन का अनिवार्य अंग मानकर हम क्रत्रिम जीवन जीते हैं । इससे अनेक बीमारियां पैदा होती हैं ।
ध्यान क्रिया का मनुष्य के मानसिक तनाव पर प्रभाव का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाना चाहिऐ। ध्यान प्रारंभ करने के पूर्व आपसे यम नियम पालन करने की आशा की जाती है । आपके द्वारा आंशिक रूप से ही सत्य अहिंसा, अपरिग्रह, मन के मालिन्य के त्याग की चेष्टा करने से आप ऐक दिव्य व्यक्तित्व में परिवर्तित होना प्रारंभ कर देते हैं । आपके जीवन में आनंद व शांति का प्रवेश प्रारंभ हो जाता हे ।
जैसे जैसे ध्यान के द्वारा आप स्वयं का अवलोकन करते हैं आपके अंदर का मानसिक तनाव आप पर अपनी पकड़ ढीली कर देता हैं । इसके लिए आप अपने अंदर कार्यरत मानसिक तनाव का अवलोकन करते रहे । अवलोकन क्रिया से तनाव में कमी आती है ।
आपकी संकल्प शक्ति से भी एक हद तक मन के दुर्गुणों व तनाव में कमी की जा सकती है ।
मन में छिपे दुर्गुण
हमारी बाहृय चेतना के निचले स्तरों में आवेग, दुर्गुण व पूर्व संस्कार दबे पड़े है । ऐक आम आदमी को कभी उनका अहसास नहीं होता । वह उनके वश होकर झगड़े, झंझट, कलह व दुख की चक्की मे पिसता रहता है ।
मनुष्य में अनेकों दुर्गुण जैसे काम, क्रोध, लोथ मोह व अहंकार आदि होते हैं । ये दुर्गुण हमारी चेतना के बहुत नीचे दबे होते हैं । जरा उद्दीपन से कोई व्यक्ति क्रोध में आकर किसी का खून कर देता है । कोई अन्य व्यक्ति किसी हसीना को देखकर पागल हो जाता है व कुछ भी हरकत कर बैठता है । किसी में कल्पना के परे अहंकार होता है । यदि आप गहराई से विचार करें तो इन दुर्गुणों के कारण मनुष्य के जीवन में भयानक दुख आते हैं ।
जब आप ध्यान करते हैं तो आप स्वयं से परिचित होते हैं । आप के दुर्गुण आप के समक्ष बार बार विचारों के अंधड़ कें रूप में प्रकट होते हैं । पहले आप उनके आवेग में बह जाते थे । अब आप रूककर उनका निरीक्षण करते हो ।
किन्तु जैसे ही आप मन का निरीक्षण आरंभ करते हो, ये छिपी दबी कुचली भावनाएं व आघात धीरे धीरे प्रकट होना शुरू कर देते हैं । ध्यान के द्वारा आप पर इनकी पकड़ ढीली हो जाती है व आपका रूपांतरण प्रारंभ होने की संभावना बढ़ जाती है । साथ ही आपमें दिव्यता के अवरोहण की भूमिका तैयार हो़ जाती हैं । आप संसार के सर्वश्रेष्ठ दिव्य मार्ग पर हैं । मनुष्य के दिव्य गुण यथा करूणा, प्रेम, क्षमा, सेवा, दान आदि ध्यान के सहउत्पाद हैं । आपको भगवान से इन सुंदर गुणों के लिए अंतर्मन से याचना करना चाहिए ।
आपको नित्य स्वनिरीक्षण से देखना चाहिए कि आप किस प्रकार बुराईयों यथा ईर्ष्या, द्वेष, कठोरता आदि से परिचालित हो रहे है । क्रपया हर दुर्गुण के प्रति सावधान रहकर करूणा, सेवा, सहयोग व प्रेम का जीवन जीने का प्रयास करें ।
इन सुंदर गुणों का उदय आपके जीवन में दिव्यता के प्रकट होने की आहट है ।
ध्यान के गहरे होने पर आप दुर्विचारों के मन मे प्रवेश करते ही उनसे सतर्क हो सकते हैं ।
आप देखेंगे कि आपके सजग होते ही दुर्गुणों का आवेग कम हो चुका है। आप बहुत शीघ्र संभल सकते हो ।
इस प्रकार आप के दुर्गुणो ने आप पर अपनी पकड़ ढीली कर दी है। आप अपनी संकल्प शक्ति के प्रयोग से खुद को रूपांतरित करने का प्रयास कर सकते हो ।
ध्यान व सेक्स
सेक्स को अध्यात्म जीवन में बड़ी बाधा माना जाता है ।
किन्तु हमारे अनुसार सेक्स समस्या नहीं है । इसके दुष्प्रभावों को बहुत अधिक बढ़ा चढ़ा कर बताया गया है । ऐक प्राक्रत क्रिया को रूढ़ियों व गलत प्रचार के कारण समस्या बनाया गया है । पुराणों में ऐसी अनेक कहानियां प्रचलित हैं कि प्राचीन काल में बड़े बड़े ऋषि इसका शिकार होकर पतित हो चुके हैं । हर वस्तु की अति खराब होती है । अतः सेक्स का अधिक विचार या उसे आवश्यकता से अधिक महत्व देना त्रुटिपूर्ण है। संतों से बहुत अधिक अप्राक्रतिक रूप से अपनी मनोभावनाओं व प्राक्रत आवेगों को रोकने की आशा करने की समाज की प्रचलित धारणाओं को ही दोषपूर्ण मानता हूं ।
किन्तु प्रश्न यह हैं कि ऐक प्राक्रत क्रिया से कोई कैसे पतित हो सकता है ? क्या पतित होने का कांसेप्ट ही त्रुटिपूर्ध तो नहीं है ? यदि सेक्स इतना ही खराब है तो हिन्दुओ के सभी भगवान विवाहित व बाल बच्चे वाले कैसे है ? अधिकांश प्राचीन वैदिक ऋषि ग्रहस्थ व संतान वाले थे । अतः सेक्स समस्या नहीं वरन इसके विषय में मानसिक व अपराध बोध की भावना असली समस्या है ।
ऐक बैल ब्रम्हचारी होता है I क्या वह बहुत श्रेष्ठ हो जाता है ?