Bade Lekhak in Hindi Short Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | बडे़ लेखक

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बडे़ लेखक

मूल तमिल लेखक डब्यू. गोपालकृष्णन

नोट - तमिल में उब्बासी को खोट्टावी कहते है

अनुवाद-एस.भाग्यम शर्मा

“पट्टाभी, कभी भी जी.एम. तुम्हें बुला सकते हैं। तैयार रह। तेरे बारे में लोगों ने कुछ कुछ कहा है, ऐसा लगता है। ’’अपने साथ पढे़ हुए इस समय जी.एम.के सेक्रेटरी कीच्चामी ने उसे चेताया। उसके जाने के बाद एकौउंटस में एक अधिकारी पट्टाभी के पेट में डर के मारे गुडगुडाहट होने लगी। 

अभी कुछ समय पहले ही उतर भारत से ट्रान्सफर होकर यहां दक्षिण भारत आए। ऐसा सुनने में आया कि नए जी.एम.बहुत ही स्ट्रिक्ट,किसी बात में न झुकने वाले स्ट्रेट फॅार्वड, आदमी हैं। वह अपने कर्Ÿाव्य के प्रति बहुत ही सर्तक हैं। ऐसी सभी बातें उनके बारे में होती हैं। 

पट्टाभी ने भीकोई बड़ी गलति की नहीं। इस एक ही महिने में अलग अलग चार पत्रिकाओं में उसकी कहानियां ’खोटावी ’ उप नाम से छपी है। वे जिस बड़ी कम्पनी में काम करते हैं वहां आजकल इसके बारे में ही चर्चा है। बहुत से लोग पट्टाभी की कल्पना षक्ति, कहानी में जो उत्सुकता है व उसने जो समस्या उठाई है उसकी तारीफ करते हैं। पर कुछ लोगों कोउन पर गुस्सा करते हैं। उसे ईष्र्या भी कह सकते हैं। आफिस में हमी ऐसे हैं जो वेतन उठाते उसका पूरे विष्वास के साथ काम करते हैं। यें पट्टाभी कहानी लिखता हूं कहकर कहानी बनाता फिरता है। वे लोग उससे खार खए बेैठे थे। षायद उनमें से ही किसी ने जी. एम. कुछ कह दिया हो ? इसी बात को सोच पट्टाभी डर रहा था। 

इतने में ही ’’जी.एम.आपको बुला रहे हैं। ’’ बुलावा आ गया। पट्टाभी ने जल्दी से बाथरूम में जाकर हल्का होकर चेहरे को पानी से धोया। फिर षर्ट की जेब से एक छाटी सी पुड़िया निकाल कर उसे खोल उसमें से भभूति निकाल कर माथे पर थोड़ा लगाया। मन ही मन सब भगवानों से प्रार्थना की फिर जी.एम. के कमरे में धीरे से बिल्ली जैसे घुसा। 

जी.एम. सहाब किसी फाइल को देखने में मग्न थे। जब थोड़ा सिर उठा कर उन्होंने देखा,तो पट्टभी ने दोनों हाथ जोड़कर ’नमस्कार सर’ बोला। 

’’आईऐ--आप ही पट्टाभी हो क्या ? बैठिये। ’’जी.एम. बोले। 

’’थैंक्स सर ’’कह कर सामने बड़े कुषन वाले कुर्सी के किनारे पर ही पट्टाभी बैठे। 

‘‘आप कुछ कहानियां आदि लिखते हो सभी कह रहें हैं। मुझे उसके बारे में आपसे पूछना था, व आपको आपके ट्रान्सफर के बारे में भी बताना था। ’’

’’सर.......सर .....प्लीज ......ऐसा कुछ जल्दबाजी में मत कर दीजियेगा ! मैं बाल बच्चे वाला हूं। मेरे बुर्जुग मां-बाप है। मैं उनका इकलौता बेटा हूं। मुझे व मेरी पत्नी को शुगर व ब्लड़ प्रेषर की बीमारी है सर। मेरे तीन बच्चे अठवीं,छठी व चैथी में पढ़ते हैं। अतः अपने ही शहर में नौकरी करने से ही किसी तरह लाइफ चल रही है। हमारा सयुंक्त परिवार है,इस चिड़िया के घोंसले को दया करके मत हटाइये। आपको पुण्य मिलेगा। मैं आप कहो तो अब से इस क्षण से कहानी लिखना छोड़ देता हूं। कृपा करके इस बार मुझे क्षमा कर दीजिएगा। ‘‘ आंखों में आंसू लिए पट्टाभी ने बड़ी दयनीय ढ़ग से निवेदन किया। 

‘‘नो....नो.....मिस्टर पट्टाभी, आप इस ट्रान्सफर से बच नहीं सकते। मैं एक फैसलालेता हूं,तो उसे पूरा करता ही हूं‘‘। जी.एम.के कहते समय ही उसे समर्थन कर रहा हो ऐसे टेलिफोन की घण्टी बजी। 

’’ एस्स.... कनेक्ट दी काल ’’ कह कर किसी से बहुत देर तक बातें करते हंसते हुए आज्ञा देते रहें। 

पट्टाभी का मन घबराहट के मारे धकधक कर रहा था व उसका ब्लड प्रेषर बढ़ रहा था। पता नहीं कौन सी जगह उस भाषा से अन्जान शहर होगा ? क्या पता बिना पानी के जंगल जैसे जगह होगी! सेाच सोच वह बड़ा दुखी हो रहा था। उस ए.सी. कमरे के ठण्ड़क में भीउसे पसीना आ रहा था। 

टेलिफोन से बातें खतम होते ही जी.एम. इनकी ओर देखते हुए बोले ’’डरो मत पट्टाभी। पत्रिकाओं से आप कई सालों से जुड़े हुए हो अतःआपको प्रमोषन देकर आपको अपने विज्ञापन के सेक्षन में मेनेजर बना कर भेज रहा हूं। अभी आप काम कर रहे एॅकाउट सेक्षन से व्यापार के विज्ञापन विभाग में ये लोकल ट्रान्सफर ही है। वह भी मेनेजर के प्रमोषन के साथ। आपको एडवास में बध्ंााई देता हूं। बाइ दी वे, आपकी अभी तक लिखी कहानियांे का एक सेट मुझे चाहिए। बहुत दिनों से दिल्ली में ही रहने से तमिल कहानियों को पढ़ने का मौका ही नहीं मिला। मुझे व मेरी पत्नी को तमिल कहानियां पढ़ने का बहुत शौक है। आप हमेंषा निरंतर तमिल की पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां लिखते रहियेगा। पट्टाभी..... साॅरी, खोट्टावी कह कर इतने बड़े, एक प्रसिद्ध लेखक हमारी कंपनी में काम करते हैं, ये बात तो अपनी कंपनी के लिए गर्व की बात है। ‘‘ ऐसी उसकी प्रषंसा कर खड़े हुए जी.एम. अपने दोनों हाथों से उनके दोनों को लेकर मिलाया व ’आल दी बेस्ट’ कह कर बिदा किया। 

उन्हें थैक्स कह कर पट्टाभी बाहर आया व सोचा नये जी.एम. कितने अच्छे है बाद में ही समझ पाया। 

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मूल लेखक डब्यू. गोपालकृष्णन तमिल लेखक

अनुवाद-एस.भाग्यम शर्मा 

बी-41 सेठी कालोनी जयपुर-302004