Stree - 9 in Hindi Fiction Stories by सीमा बी. books and stories PDF | स्त्री.... - (भाग-9)

Featured Books
Categories
Share

स्त्री.... - (भाग-9)

स्त्री......(भाग-9)

अगले दिन से माँ के बहुत मना करने के बाद भी मैं कपड़े धोने बैठ गयी.....ससुराल में काम करते रहने से यहाँ खाली बैठा नहीं जा रहा था। मैंने माँ को कहा कि मैं सब काम देख लूँगी, तुम आराम करो.....पर माँ को चैन कहाँ। मैंने काम नहीं करने दिया तो वो साड़ी ले कर बैठ गयी हाथ से काढने के लिए.....। माँ ने ये हुनर मुझे भी सीखा कर भेजा था और मेरे दहेज में माँ और मेरे हाथ की कढाई की साडियाँ थी, जिसमें एक साड़ी सास की भी थी.....हमारे गाँव में खाली समय में यही काम बहुत चाव से करती हैं औरतें और लड़कियाँ। माँ ने बताया कि पास के शहर से कुछ लोग हमें साड़ी और दुपट्टे कढाई के लिए दे जाते हैं, जिन्हें वो लोग दूसरे बड़े बड़े शहरों में ले जा कर बेचते हैं, बदले में सही पैसा भी देतेे हैं। अभी तो माँ छाया के लिए साड़ियाँ तैयार करने में लगी हैं और छाया भी तो सीख रही है सब काम......।। खाली हो कर मैंने मदद करना चाहा, पर माँ ने कहा जा तू अपनी सहेली से मिल आ, फिर पता नहीं तुम लोग फिर कब तुम लोग मिलोगी। माँ सही तो कह रही थी। मैं शोभा के पास चली गयी, वो लेटी हुई थी । मैंने उसे बाहर ही बुला लिया.....मैंने चारपाई बाहर ही बिछा ली। मेरे पास कई सवाल थे, पर मैं पूछ नहीं पा रही थी....हम दोनो बहुत देर तक अपनी पुरानी सहेलियों को याद करती रहीं और पुरानी बातों पर हँसती रही। फिर घूम फिर कर बात नृत्यशाला की आ गयी, उसने बताया कि मेरे छोड़ने के बाद कुछ समय वो जाती रही थी, मंजरी और गुरूजी के बीच में कुछ चल रहा था। मैं उसकी बातें सुन रही थी और मंजरी से तो मैं वैसे ही पहले से नाराज थी तो मैंने कोई जवाब नहीं दिया। उसने बताया कि गुरूजी काफी रंगीले स्वभाव के थे,ये सब लड़कियाँ कहती थीं। तेरे छोड़ने के बाद मुझे भी ज्यादा मन नहीं किया तो मैंने भी जाना छोड़ दिया, बाद में पता चला कि वो मंजरी को भगा कर ले जाने के चक्कर में थे, उसके परिवार में पता चला तो मंजरी को घर में बहुत दिन बंद रखा और हमारे रंगीले गुरूजी की खूब धुलाई की गयी ,कह कर हँसने लगी। फिर सुनने में आया कि मंजरी की शादी हो गयी है, मेरे घर में भी भाई को गुरूजी के बारे में पता चला तो कई दिन मुझे डाँट पीट कर पूछा गया कि मैंने तो कुछ गलत नहीं किया। बहुत मुश्किल से यकीन दिलाया कि मैने कुछ गलत नहीं किया। जानकी मेरी तरफ तो गुरूजी ने कभी ध्यान ही कहाँ दिया था, मैं तेरी जितनी सुंदर कहाँ हूँ और पता नहीं मंजरी में क्या देखा था गुरूजी ने वो भी कोई तेरे जैसी खूबसूरत थी??
सही तो कहा शोभा ने, मंजरी में वो बात कहाँ थी, जो मुझमें हैं,फिर भी पता नहीं क्यों वो लट्टू थे उस पर, चलो अच्छा ही हुआ, खुद से बात कर मैंने अपना मुँह बिचका दिया। शोभा तब दुबली पतली और साँवली सी दिखती थी, लंबाई भी कम थी, पर अब तो शोभा में निखार आ गया है, शायद घर के दूध मक्खन को प्रभाव है या माँ बनने की चमक है। जैसे माँ कह रही थी कि बच्चा पैदा होने वाला है तो शोभा निखर गयी है, ऐसा ही होता होगा....सोच मैं शोभा को ध्यान से देखने लगी।मुझे अपने में खोए देख वो बोली जानकी, हमारे जीजा तेरी पढाई करवा रहे हैं, इसलिए तुझे कभी छुआ नहीं, पर प्यार भरी बातें तो तुम लोग करते होंगे? शोभा ने ये बात कह कर मेरी दुखती रग को छेड़ दिया हो। मैं क्या कहती कि मेरा पति तो मुझसे बात ही नहीं करता और यहाँ तक की देखता भी नहीं.....पर ऐसा कुछ नहीं कहा और बोली" हाँ करते हैं न,पर वो बहुत कम बोलते हैैं", मैंने थोड़ा सच और थोड़ा झूठ का सहारा ले कर बात बदल दी। तू अपना बता? वो बोली, तेरे जीजा तो बहुत मस्ती करते हैं, बहुत प्यार भरी बातें करते हैं, रात को अकेले में। मैं उसका जवाब सुन सोच रही थी कि मेरी सांवली सलोनी सहेली कितनी अच्छी किस्मत वाली है !! थोड़ी जलन सी हो रही थी.....अगर शादी का मतलब ये होता है, तो फिर मेरे पति जो इतना लिखे पढे हैं वो नहीं जानते होंगे? लगता है, उन्हें मैं पसंद ही नहीं क्योंकि मुझे अँग्रेजी नहीं आती न शायद इसीलिए!!! पर शादी की हाँ तो सब जानकर ही हुई थी न, तमाम बातें मेरे मन में आने लगी, सुधा के मुँह से शादी के बाद की बातें सुन कर।
मन में वो इच्छाएँ जो गुरूजी को देख कर जागी थी, वो फिर अपना सर उठा रही थीं, कितना अलग सा महसूस किया था मैंने उनके छूने से......सोचते ही शरीर में आज भी गुदगुदी और सिहरन सी उठ गयी......। सुधा की माँ ने उसे बुला लिया तो मैं भी घर आ गयी। मन अशांत हो गया था। अब ये रोज की बात हो गयी थी, हम दोनों बातें करती और घूम फिर कर बात ससुराल और पतियों पर खत्म होती, कई बार मन किया कि उससे कह दूँ कि कुछ और बात करते हैं, पर मुझे भी तो लालच आ जाता था पति पत्नि के रिश्ते के बारे में और जानने का। शोभा पढने में बिल्कुल होशियार नहीं थी और देखने में भी औसत थी, पर वो दिन प्रतिदिन मुझ पर हावी होती जा रही थी। वो मुझसे बेहतर है, ये बात मन में घर करने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। रातों की नींद गायब हो गयी थी शोभा और उसके पति से अपनी और अपने पति की तुलना करते करते....जैसे जैसे सुबह होने लगती,वैसे वैसे मेरा पति ज्यादा पढा लिखा है, वो मुझे भी पढा रहा है, जो किसी का पति मेरे जानने में नहीं करता न किसी ने किया वो मेरा पति कर रहा है, सोच कर मन अभिमान से भर देता, पर ये अभिमान रोज टूट जाता था, जब शोभा अपने अनुभव बताने लगती या कोई आ कर छेड़ जाता.....एक भाभी ने कहा कि जानकी का पति बहुत अनोखा है, नए विचारों वाला है या कोई और ही बात है?? ये बात वो मेरी माँ से कह रही थी तो माँ भी हँस दी.....मैंने कहा कोई और बात क्या होगी भाभी? उन्होंने माँ की तरफ देखा तो बोली मैं तो मजाक कर रही थी। अब भाभी की बात समझ तो नहीं आयी थी, पर बुरी बहुत लगी थी.....।15 दिन होने को आए थे, एक दिन मेरे पति की चिट्ठी आयी कि माँ बाथरूम में फिसल गयी थीं, उनके पैर की हड्डी टूट गयी है, चिट्ठी मिलते ही पिताजी के साथ आ जाओ। रात को पिताजी को बताया तो वो बोले सुबह ही टिकट निकलवा लेता हूँ, तुम तैयारी रखो क्या पता शाम की गाड़ी होगी तो उसमे ही चल देंगे....।
मैं जानती थी कि सुमन दीदी ने सब संभाल लिया होगा पर फिर भी घबरा रही थी क्योंकि दीदी को पूरा काम करने की आदत जो नही है, फिर उनका स्कूल भी है.....पिताजी का अंदाजा सही था, शाम की एक गाड़ी थी और हम उसी शाम चल दिए......वापिस जाते हुए मन में बहुत कुछ चल रहा था। माँ की हालत के साथ साथ शोभा की बातें दिल और दिमाग को बेचैन कर रहीं थी। पिताजी का ज्यादातर सफर सोते हुए कटा, 2 रात ट्रेन में गुजार तीसरी सुबह सुबह हम शहर पहुँच गए.....पिताजी ने स्टेशन से निकलने से पहले उसी दिन शाम की टिकट करवा ली थी क्योंकि वो बेटी के घर रूकना नहीं चाहते थे और उन्हें काम पर भी जल्दी से जल्दी पहुँचना था। टैक्सी ले कर घर पहुँचे तो पिताजी मेरी सास का हालचाल पूछ नहाने चले गए। उनके आने तक सुमन दीदी ने चाय और नाश्ता तैयार कर लिया था। मैं भी जल्दी से नहा कर तैयार हो कर आ गयी। पिताजी के नाश्ता करके थोड़ा सुस्ताने तक मैंने साथ के लिए पूरी सब्जी तैयार कर दी.......पिताजी ने मेरी सास से विदा ली और उनका वादा भी लिया कि ठीक बोने को बाद सबके साथ वो गाँव जरूर आएँगी । हम लोग कब आने वाले हैं ये तो किसी को पता ही नहीं था, इसलिए मेरे पति और देवर से उनकी मुलाकात नहीं हो पायी.....पिताजी रेलवे स्टेशन के लिए निकल गए। वो बहुत असहज महसूस कर रहे थे, एक तो वो बहुत कम बोलते थे और उस समय हम तीनों औरते ही तो थी......शायद सब लड़कियों के माँ बाप अपनी बेटियों के घर ऐसे ही महसूस करते हों!!! सुमन दीदी को राहत मिली थी मेरे आने से वो एक हफ्ते से स्कूल नहीं जा पायी थी....माँ बहुत दर्द में थी, पर मेरे आने से खुशी और तसल्ली दोनों उनके चेहरे पर झलक रही थी।
क्रमश:
स्वरचित