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26.8.2021
पूरी रात बीती होगी। यहाँ तो अंधेरा ही अंधेरा था।
बहाव अब धीमा हुआ।
मैंने मेरे खड़क पर से उस बच्चों को बातों में रखने पूछा "किसीको सिग्नल मिल रहे है?"
दिगीश ने कहा उसका मोबाइल भीग गया था। मनीष ने ना कही। उसने पूछा "सर, आपको मिल रहे है?"
मैंने देखा। 4जी ऑन किया।
"ना। मुझे भी नहीं। ऐसा करो, मोबाइल सब पावर सेविंग मोड़ में रख दो। ब्लेक एन्ड व्हाइट स्क्रीन। कोई एप न चले। टोर्च जरूरत पड़े चालू करेंगे।"
तनु ने हिम्मत करते उस ड़ाली हमारी ओर फेंकी। मैंने ड़ाली पकड़ी और तोरल ने मुझे। हम मुश्किल से सम्हलते नीचे उतरे और बहते, तैरते बिल्कुल सामने उस खड़क तक पहुंचे। बीचमें एक बार फिसलकर बहते भी रह गए। अब हम सब एक साथ थे जो इस परिस्थिति में ज़रूरी था। गामिनी ने अक्कल चलाई। "वैसे भी मोबाइल किसी काम का नहीं है। सब बंद कर दो। ज़रूरत पड़ने पर ही चालू करेंगे। और पानी उतरने तक यहीं शांति से बैठें।"
"अब वह थैले में से सेब हाथ से तोड़ें, बिस्किट एक एक सब लें। ऐसे ही दिन निकालना है।" तोरल ने कहा। फिर मेरा हाथ पकड़े बोली "सर, चलो अंताक्षरी खेलें। जो होगा सो होगा। पता तो चले सब जी रहे हैं!"
दिशा और दिगीश इस स्थितिमें भी इलू इलू खेलते लगे। मैंने इन्हें बुलाया "कहाँ ध्यान है? अब तो सबके साथ रहो?"
छोटू बोला "अगर गाना ही है तो एक रिहर्सल ही हो जाए।"
गज़ब की हिम्मत है इस आधे कद के 'आदमी में।' मैंने कहा। सब हँस पड़े।
एक दो गीतों का रिहर्सल किया भी। बांसुरी, ब्युगल और ड्रम थे भी। पर हवा की कमी थी। जल्द ही थक गए। सब को हाँफ चढ़ी। रिहर्सल बंद किया। मैंने सबको आंखे बंद करते धीरे से साँस लेने को और कम हलचल करने को कहा जिस से कुछ शक्ति बचे। लगता तो था अब मौत ही आएगी लेकिन न जाने बाहर से मदद कब आएगी या न भी आएगी। आए तब तक तो साँस चलने दें!
दिगीश थोड़ी देर चुप बैठा रहा। फिर बोला 'यह पेड़ की डालियों से क्यों न आग लगाएँ? सॉर्ट ऑफ केम्प फायर। आग या धुंआ देखते कोई मदद आएगी
"अबे कोड़े (गुजराती गाली), न देखी हो तो केम्प फायर वाली। लाइटर तेरी .. में से.." जग्गू मुश्किल से निकलती आवाज़ में भी चिल्लाया।
मैंने 'शी..श' आवाज़ करते जग्गू को आंख दिखाई।
दिशा बोली "मेरे पास दो चकमक के पत्थर भी है जो यहाँ आते उस जंगल से ले आई थी। और शायद जग्गा के पास माचिस भी है। चलो आग प्रगटाएँ।"
जग्गा बोला कि स्पर्धा नजदीक होने पर उसने स्मोकिंग बंद कर दी है। उसके पास माचिस नहीं है।
उसने कुछ घास पर चकमक पत्थर घिसे पर घास गिला था। कुछ नहीं हुआ।
"सर, आप कुछ ट्राय करेंगे?' रूपा बोली।
"लाओ। हम आदि मानव। ऐई.. चकमक लोहा घिसते घिसते बह गई जिंदगी सारी.." (एक विख्यात गुजराती कविता)
मनन गाते गाते मुड़ में आ गया। लेकिन न उससे आग जली न उसकी जिंदगी इसी क्षण तो फली।
तनु 'हेईसो ..' करता कुछ सुखी घास पर चकमक घिसने लगा। एक तिनखा उस घास पर पड़ते ही आग जली लेकिन तुरंत धुंआ हो गई।
"सब आग से दूर हो जाओ। धुंआ बाहर जाते ही कोई मदद आएगी।" गामिनी बोली।
तोरल ने थेले में से एक थाली और एक चम्मच निकाले और जोर से बजाने लगी
थके हुए छोटु ने पूरी ताकत से ब्युगल बजाने की कोशिश की।
यहाँ प्राणवायु की कमी थी। हवा भी गीली और मृत वनस्पति की गंध वाली थी। हो सकता है कार्बन मोनोक्साइड भी हवामें था।
थोड़ी ही देर में सब की दम घूँटने लगी। कुछ बच्चे उलटी भी करने लगे। बंद जगह धुंए से भर गई थी। हम अपनी नाक हाथ या कपड़े से ढकने की व्यर्थ कोशिश करने लगे।
ऐसे ही बैठे रहते लेकिन यहाँ भी चमगादडों ने हमें नहीं छोड़े। ऊपर मंडराने लगे। लड़कियाँ गले से आवाज न निकली फिर भी चीखने लगी। अपने चुने लड़के से जैसे उस में घूंस जाती हो वैसे लिपट गई। ऐसी परिस्थिति में भी अगर वो सब अपना 'स्त्री धर्म' न चुके तो साथी पुरुष अपना 'कर्तव्य' बजाएगा ही ना! आसपास भी अंधेरा था।
यह सब कितना चले? सब भूख,प्यास, थकान और चिंता से अधमुए हो कर पड़े रहे।
ठंड भी बढ़ रही थी और सब की अशक्ति भी।
फिरसे बारिश आई। अब यह सब होने के साथ भीगे और ठिठुरते हम सब वैसे भी जिंदा लाश बनने लगे।
ऐसे शायद दो तीन दिन निकल चुके होंगे।