Nagmani ka addbhut rahashya - 2 in Hindi Adventure Stories by सिद्धार्थ रंजन श्रीवास्तव books and stories PDF | नागमणि का अद्भुत रहस्य (भाग - 2)

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नागमणि का अद्भुत रहस्य (भाग - 2)

कुछ ही सेकंड मे रंजीत की आँखों के सामने अंधेरा छा गया और वो अपने होशो हवाश खो चूका था। जब रंजीत की आँख खुली तो ख़ुद को एक कुर्सी से मजबूती से बंधा हुआ एक बंद कमरे मे पाया, पूरे कमरे मे एक अजीब सी गन्ध आ रहीं थी। रंजीत को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की वो इस समय कहाँ है लेकिन एक चीज उसे बखूबी समझ आ चुकी थी की उन नक्सलियों ने उसे बंदी बना लिया था।

लेकिन क्यूँ? क्या चाहते थे वो रंजीत से? वो चाहते तो रंजीत को उसी समय मार सकते थे। कैम्प के सारे कैडेट को मार दिया सिर्फ उसे ही यहाँ बंदी क्यूँ बना कर रखा है या फिर यहाँ कोई और भी बंदी है उसकी तरह?

अब आगे...

रंजीत के हाथ पैर कुर्सी से इस कदर बंधे हुए थे की उसका हिल पाना भी मुश्किल था, और इसके साथ ही उसके मुँह पर कपड़ा बंधा हुआ था ताकि रंजीत शोर ना मचा सके। रंजीत ने कमरे का मुआयना किया लेकिन कमरे मे अंधेरा होने की वजह से उसे कुछ खास पता ना चल सका।

रंजीत को ये भी पता नहीं था वो कब से यहाँ बंधा है और अब तो उसे भूख़ भी लगने लगी थी। उसने ख़ुद को उन रस्सीयों से छुड़ाने का प्रयास शुरू कर दिया लेकिन उनकी पकड़ इतनी मजबूत थी की वो अपने हाथ और पैर को जरा भी हिला पाने मे असमर्थ था। उसकी इसलिए जद्दोजहद के बीच उसे महसूस हुआ कि कोई दरवाजे के बाहर है, वो बिलकुल शांत होकर बैठ गया।

दरवाज़ा खुलने के साथ ही उसकी आँखों पर अथाह रौशनी पड़ी, उसकी आँखे स्वतः ही बंद हो गयी। उसने धीरे धीरे आँखे खोली तो देखा 2 दैत्य नुमा इंसान उसकी तरफ चले आ रहे है। अब तक रंजीत कि आँख उस रौशनी की अभ्यस्त हो चुकी थी, वो दोनों इंसान उसी नक्सली गिरोह के सदस्य थे जिन्होंने उन मासूम गाँव वालों और रंजीत के पूरे कैंप को मौत के घाट उतार दिया था।

रंजीत ने उन्हें उनके कपड़ों से उन्हें भली भातिं पहचान लिया था और तह जानने के बाद उसकी आँखों मे खून उतार आया था लेकिन बँधा होने की वजह से वो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था। उनमें से एक ने रंजीत के मुँह की पट्टी खोल दी।

"कौन हो तुम लोग और मुझे यहाँ क्यूँ बाँध रखा है?" रंजीत ने चीख़ कर लेकिन अनभिज्ञता जाहिर करते हुए सवाल किया
"खाना लेकर आये है तेरे लिए छुप चाप खा ले, तेरी बातों का जवाब नहीं देने आये है।" उन दोनों मे से एक ने कहा
"तुझे यहाँ क्यूँ रखा गया है ये बात सिर्फ सरदार जानते है, हमें जो करने को कहा गया है हम वही कर रहे हैं।" दूसरे ने जवाब दिया
"कब से बाँध रखा है मुझे।" रंजीत ने दूसरा सवाल किया
"दो दिन से 1 दिन से बेहोश है तू, अब जाके होश आया है। पता नहीं सरदार को इसमें ऐसा क्या काम का दिख गया।" पहले वाले ने मुँह बनाते हुए कहा
दूसरे वाले ने उसे घूर कर ऐसे देखा जैसे उसने मुझे बाहर निकलने का रास्ता बता दिया हो।
"जितना काम दिया जाये उतना किया कर, ज्यादा बातें करने को मना किया है ना।" दूसरे वाले ने पहले वाले को डांटते हुए कहा
"ये खाना खा लो।" दूसरे वाले ने मुझसे मुख़ातिब होते हुए कहा
"हाथ तो खोलो, कैसे खाऊंगा मैं?" रंजीत ने हाथों की तरफ इशारा करते हुए कहा
"हाथ नहीं खोल सकते।" दूसरे वाले ने कहा और फिर पहले वाले की तरफ देखने लगा, "इसको अपने हाथ से खाना खिला।"

इस बार पहले वाले ने बिना कुछ कहे उसके हाथ से खाने की प्लेट ले ली और खाने का एक बड़ा सा कौर बना कर मुझे खिलाने को तैयार हो गया।
पहली बार मेरी नज़र उस खाने पर पड़ी थी, प्लेट मे सिर्फ दाल और चावल थे वो भी गीले और जले हुए पर ऐसी हालत मे चुनने का कोई विकल्प नहीं था और होने बेज़ान शरीर मे जान लाने के लिए मुझसे खाने की बहुत जरुरत थी।

कुछ निवाले खाने और पानी के पेट मे जाने के बाद मुझमे कुछ जान आई। मुझे खिलाने के बाद वो दोनों वापस चले गए और दरवाजे को यथावत बंद कर दिया। एक बार फिर से मेरे दिमाग़ ने आस पास की चीजों को ध्यान करना शुरू किया जो मैंने उस समय देखी थी जब वो मुझे खाना खिला रहे थे। यह कमरा किसी स्टोर रूम जैसा लग रहा था जिसमे लकड़ी के डब्बो मे कुछ पैक करके रखा गया था जिनसे अजीब सी बदबू आ रहीं थी।

मेरे दिमाग़ ने सोचना शुरू किया की आखिर ये बदबू है किस चीज की। पेट भरा हो तो दिमाग़ भी सही चलने लगता है, मुझे ज्यादा देर नहीं लगी ये समझने मे कि ये बदबू कुछ और नहीं मावेशियों के चमड़े की है। इसका मतलब ये लोग स्मगलिंग में पूरी तरह लिप्त है, अब मुझे यह पता लगाना था की इसके अलवा और कौन कौन से काले धंधे पाल रखे है इन्होने।

कुछ समय यूँही बीत जाने के बाद एक बार फिर से दरवाजे पर आहट हुई लेकिन इस बार ये आहट एक या दो लोगों की नहीं बल्कि कुछ ज्यादा ही तादाद की थी। दरवाजे के खुलते के साथ ही 10-12 आदमी कमरे मे हाथ मे हथियारों से लैस होकर आते है और उनके पीछे आता है एक 6.5 फ़ीट का चौड़ी छाती और स्याह काले रंग का हट्टा कट्टा इंसान।

"मेरा नाम संदीपन है, ये सारे लोग मेरे लिए काम करते है और तुम्हे यहाँ मेरे कहने से ही लाया गया है।" उस आदमी ने अपनी भारी भरकम आवाज़ में अपना परिचय दिया

मैं अभी तक उस इंसान को गिरोह का सरगना समझ रहा था जिसको मैंने मारने का प्रयास किया था, यानि वाह सिर्फ एक कमांडर था।

"हमने सुना कैसे तुमने हमें 16 आदमियों को अकेले सिर्फ एक खंजर से क़त्ल कर दिया। तुम्हे यहाँ एक खास मकसद से लाया गया है।" उसने अपनी भारी आवाज़ में कहा
"मकसद? कैसा मकसद?" रंजीत ने उससे सवाल किया

"तुम सरकार का साथ क्यूँ दें रहे हो? क्या देती है सरकार तुम्हे इस काम के?" संदीपन ने मुझसे सवाल किया

मुझे यह समझते देर ना लगी कि यह मुझसे क्या चाहता है। वो मुझे अपने गिरोह में शामिल करना चाहता था क्यूंकि मैंने अकेले उसके 16 आदमियों को जो मारा था।
मेरे दिमाग़ में तुरंत एक योजना बनी और मैंने उसी ोे अमल करना शुरू कर दिया।

"सरकार मुझे पैसे देती है, खाना और कपड़े, उन पैसे से मैं अपने घर वालों की मदद करता हूँ।" रंजीत ने संदीपन को जवाब दिया

"मैं तुम्हे सरकार से ज्यादा पैसे दूंगा अगर तुम मेरे लिए काम करो।" संदीपन ने मुझे लालच देते हुए कहा

"लेकिन मुझपे भरोसा करने की वजह?" रंजीत ने सवाल किया

"क्यूंकि तुम भी जंगल से अच्छी तरह वाकिफ़ हो और तुम्हारी जाति को भी इस सरकार से बहुत शिकायत है।" संदीपन ने कहा

संदीपन को शायद ये पता चल चूका था की मैं आदिवासी समुदाय से हूँ, दरअसल आदिवासी समुदाय प्रमुख धारा से जुड़ना नहीं चाहते और इस को कुछ लोग विरोध मानते है जबकि हम अपनी जड़ों से जुड़े रहना ज्यादा पसंद करते है।

"अगर मुझे अच्छे पैसे मिलेंगे तो मैं आपका साथ देने को तैयार हूँ।" रंजीत ने संदीपन को जवाब दिया

"अगर मुझसे धोखा करने की कोशिश की तो तुम्हे होने हाथों से मौत के घाट उतार दूंगा।" संदीपन ने धमकी देने के अंदाज़ में कहा

रंजीत ने हाँ में सिर हिला दिया।

संदीपन ने होने आदमियों को मुझे खोलने का इशारा किया, उनके दो आदमियों ने आगे बढ़ कर मेरी सारी रस्सीयाँ खोल दी। अब मैं पूरी तरह आज़ाद था, मैंने झुक के संदीपन का अभिवादन किया।
संदीपन ने मेरे हाथ में एक कपड़े की पोटली पकड़ा दी और मेरा खंजर भी मुझे वापस दें दिया। उस पोटली को मैंने खोल कर देखा तो वो आभूषणो से भरा हुआ था, इतना पैसा शायद आर्मी में मैं एक साल में भी नहीं कमा सकता था। मैंने एक बार फिर संदीपन का झुक के अभिवादन किया।

"तुम्हारे बाकी के हथियार तुम्हे 1-2 में दें दिए जायेंगे, आज से हिरवा और कोलवा हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगे और तुम्हे सब कुछ यहाँ के बारे में बता देंगें।" संदीपन ने उन्ही दो आदमियों को इंगित किया जो मुझे खाना देने आये थे।

सभी लोग उस कमरे से बाहर चले गए सिर्फ रंजीत और वो दोनों ही कमरे में रह गए।

"पता नहीं क्यूँ मुझे इस पर जरा भी भरोसा नहीं है है, मैं पहले से बोल देता हूँ कोलवा.." पहले व्यक्ति ने बोलना शुरू ही किया था तब तक दूसरे ने उसे टोक दिया

"तुझसे जितना कहा जाये उतना ही किया कर हिरवा, अब चल और इन्हे दूसरे कपड़े दें पहनने को ये कपड़े खून से सने है।" दूसरे व्यक्ति कोलवा जो की बड़ा स्वामिभक्त लगता था ने ये बात हिरवा से कही

दोनों ने मुझे अपने साथ चलने का इशारा किया और उस स्टोर से बाहर ले आये, बाहर आकर उस बदबू से तो पीछा छूटा। बाहर आकर रंजीत ने देखा सच में उसके कपड़े खून से सने हुए थे पर यह खून उसका नहीं था बल्कि उन सभी का था जिसका क़त्ल रंजीत ने उस रात अपने खंजर से किया था।

उन्होंने मेरे नाप के हिसाब से कुछ कपड़े मुझे पहनने को दिए, जाहिर है ये सब आभूषण और कपड़े उन लोगों ने लुटे हुए थे। मैंने उनमें से एक कपड़ा लिया और अपने कपड़े बदल लिए इसके बाद उन्होंने मेरे रहने का स्थान मुझे दिखा दिया। वो कोई रहने का कमरा नहीं था पर चर दीवारी जरूर थी, शायद पहले कोई हरा भरा गाँव रहा होगा जो अब खंडहर में तब्दील हो चूका है जिसे इन्होने अपना छिपने का स्थान बना लिया था।

घने जंगल के बीच होने की वजह से यहाँ पहुंचना सबके लिए संभव नहीं था। मुझे धीर धीरे वहाँ की आवश्यक जानकारी दें दी गयी केकिन मुझे वो जानकारियां चाहिए थी जिससे मैं यहाँ से मौका देख मर निकाल सकूँ। संदीपन से उस दिन में बाद मुलाक़ात नहीं हुई, कहते है संदीपन जिससे मिलना चाहें वही उससे मिल सकता है।

मेरे लिए इन दो भूतों (हिरवा और कोलवा) के हमेशा साथ होने की वजह से अतिरिक्त जानकारी इकठ्ठा करने में काफ़ी कठिनायाँ हो रहीं थीं। अब तक मुझे यह तो पता चल चूका था की इनके पास चरस, गंजा, हथियार, मांस, चमड़ा, सींग, हाथी दांत और न जाने क्या क्या स्मगलिंग का काम किया जाता था पर जो सबसे विचित्र बात सुनने को मिली वाह थीं इनकी सबसे महत्वपूर्ण तलाश।

हिरवा और कोलवा ने बताया की इस जंगल में कई लोगों ने नागमणि देखें जाने का दावा किया है और संदीपन को उसी नागमणि की तलाश है। इंटरनेशनल मार्किट में उस नागमणि की कीमत तक तय कर चूका था संदीपन, बस बाकी था तो उस नागमणि का हासिल करना।

यह बात सुन कर रंजीत को अंदर ही अंदर बहुत हसी आयी, नागमणि जैसी कोई चीज भी होती है क्या। ये संदीपन का फितूर है और कुछ नहीं, जब कुछ समय में उसे कुछ हासिल नहीं होगा तब उसकी हालत देखने लायक होगी।

पर अकेले में रंजीत में दिमाग़ में यह जरूर आता की क्या सच में नागमणि होती है? आखिर कैसी दिखती है नागमणि? या सिर्फ ये सब एक अफवाह है और लोगों का भ्रम?

रंजीत को तो इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था की भविष्य में उसके साथ क्या होने वाला है।

To be continued....

-"अदम्य"❤