Nainam chhindati shstrani - 61 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 61

Featured Books
Categories
Share

नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 61

61

जहाज रन-वे पर उतरने वाला था, पेटी बाँधने की घोषणा होने पर इंदु के पास बैठे युवक ने उसे हिलाया, वह तंद्रा से जागी | 

“थैंक्स” उसके मुख से मरी हुई आवाज़ निकली | 

विकास ने गाड़ी भेज दी थी, वो घर पर ही थे | गाड़ी की आवाज़ सुनते ही वे लपककर बाहर आए, इन्दु ने उनकी उत्सुकता भाँप ली थी | विलास का चेहरा देखकर उसे सुकून मिला | विलास ने हर बार की भाँति पत्नी को एक ठंडा आलिंगन दिया | 

“सब ठीक से हो गया ?”

“हूँ –”

विलास ने बहादुर को चाय बनाने की आज्ञा दी | 

“तब तक तुम फ़्रेश हो जाओ |”

“हूँ“ धड़कते दिल से इंदु वॉशरूम में घुस गई | विलास को क्या मालूम, वह अभी किन गलियारों में भटककर लौटी है ? अंदर जाकर उसने दरवाज़ा बंद कर लिया और शीशे के सामने खड़ी होकर अपने बेदाग चेहरे को घूरने लगी जिसके दाग उन दोनों के अतिरिक्त किसी ने नहीं देखे थे | अचानक उसकी बहुत दिनों की रुकी हुई रुलाई फूट गई | 

गलियारों की गर्द झाड़ने का, पलकों पर आँसू चिपकाने का, दुखी होने का, सबका समय मिला था उसे, आँसू बहाने का समय नहीं मिला था | इतने दिनों से आँखों की सूखी धरती में इस समय बाढ़ आ गई | वह काफ़ी देर तक फूट-फूटकर रोती रही फिर शॉवर खोलकर उसने अपने आपको उसके नीचे खड़ा कर दिया | कुछ देर में वह हल्की हो गई और ऐसे बाहर निकली जैसे कुछ हुआ ही न हो | सामान्य रूप से चेहरे पर स्मित चिपकाए वह विलास के पास आ बैठी | बहादुर चाय की ट्रे और गर्म नाश्ता रख गया था जो अब तक ठंडा हो चुका था | मौन प्रतीक्षा में विलास एक प्याला चाय पी चुके थे | 

“बहादुर ! ज़रा फिर से चाय बना लाओ और नाश्ता गरम करके लाओ, बिलकुल ठंडा हो गया है | ”प्रोफ़ेसर विलास ने अपनी गंभीर आवाज़ में बहादुर को आज्ञा दी | 

“और बताओ इंदु, सब कैसा रहा ?” विलास ने सहजता से इंदु से पूछा | 

“बहुत अच्छा रहा विलास, बहुत अच्छी लड़की है | ”इंदु संक्षिप्त उत्तर देकर चुप हो गई | 

ऐसा नहीं था कि पति-पत्नी में बातें नहीं होती थीं अथवा दोनों एक-दूसरे से नाराज़ रहते थे | विलास तथा इंदु आदर्श पति-पत्नी के रूप में समाज में सम्मानित दृष्टि से देखे जाते थे, अपने वर्ग में उनकी प्रतिष्ठा थी | एक ही विश्विद्यालय में होने के कारण दोनों के मित्र भी अधिकतर एक ही थे परंतु कोई ऐसा मित्र न था जो उनके पारिवारिक मामलात में कूद सके | यह लक्ष्मण –रेखा न जाने कब खिंच गई थी | शिक्षित वर्ग का वातावरण ! कोई किसीके आंतरिक संबंधों में हस्तक्षेप नहीं करता था | 

मित्र-वर्ग में शादी-ब्याह होते, दोनों साथ ही आते-जाते | बेटे के बारे में पूछे जाने पर उसकी व्यस्तता की दुहाई देकर उसके न आने की विवशता बताई जाती और बात हवा में घूमकर वापिस लौट आती | 

इतने वर्षों से मौन संवादों की पीर मन के गहरे तालाब में छ्लक-छ्लक जा रही थी | कुछ बातें ऐसी जो साँस लेने के लिए आवश्यक हैं, सामान्य रूप से परिधि में गुमसुम हो दोनों के साथ –साथ धीमी गति से चल रही थीं, ज़िंदा रहने का शिथिल आभास कराती थीं | पर उस तर्ज़ की अधिक थीं जिनके बिना ज़िंदा तो रहता है आदमी, उसमें जीवन नहीं होता, कसमसाहट नहीं होती, मुस्कुराहट नहीं होती, खिलखिलाहट नहीं होती, आलिंगन नहीं होता | होता है केवल मौन –और मौन! यह मौन दूसरों को नहीं छूता स्वयं से किसी भी पल झगड़ा करने लगता है, फिर अस्त्र-शस्त्र लेकर आमना-सामना करने का प्र्यत्न करता है लेकिन धीमे से गुमसुम हो दिल की फिज़ाओं को भिगौने लगता है | 

विलास व इंदु दोनों अपनी-अपनी परिधि में कैद थे, दोनों चाय पीते हुए एक ही विषय पर चिंतन कर रहे थे परंतु दोनों के चिंतन की दशा भिन्न थी | स्वयं को नाटकीय रूप से व्यस्तताओं में लपेटकर क्या विलास ने किसी से भी न्याय किया था ? मानसिक व्यस्तता के उपरांत भी यह पीड़ा से भरा विचार विलास को धीरे-धीरे अशक्त करता जा रहा था कि जो कुछ भी अवांछनीय एवं पीड़ापूर्ण घटित हुआ था उसके लिए क्या इंदु उत्तरदायी थी अथवा विलास उत्तरदायी था ?

प्रोफ़ेसर का पारदर्शी ईमानदार मन अपने आपको कभी भी तुच्छता का भान कराने लगता | उन्होंने इंदु को किस बात का दंड दिया था ? एक माँ बनने का ? सारांश को ---जन्म लेने का ? और स्वयं को –लेकिन वे तो न्यायमूर्ति थे, दंड देने वालों में थे, दंड भुगत लेने वालों कहाँ थे ? यदि होते तो अपना पति का कर्तव्य पूरा कर पाते, अपने उस बच्चे को स्नेह की छाँव में पालते जिसे उन्होंने सदा अपने से दूर रखा था | उसके इतने महत्वपूर्ण निर्णय की बेला में उसके साथ खड़े होते, उसका संबल बनते | 

लोग बच्चे को गोद नहीं लेते क्या? उसका लालन-पालन, उसके प्रति समस्त कर्तव्यों का पालन नहीं करते क्या?उन्होंने क्या किया था ---उन्होंने ताउम्र अपने मन व तन से जुड़े भागों को प्रताड़ित कर उन्हें उस अपराध के लिए दंडित किया था जो अपराध उन्होंने किया ही नहीं था | क्या इंदु उनके मन व तन से नहीं जुड़ी थी ? और सारांश इंदु के तन व मन से नहीं जुड़ा था ?पर—उन्होंने कहाँ ये सब सोचा था ? वे तो उम्र भर दंड देने व सज़ा बाँटने में व्यस्त रहे थे | उन्होंने सज़ा दी थी, सज़ा की धीमी आँच में घुटन भरी साँसें लेने के लिए एक ऐसे दुर्ग का निर्माण कर दिया था जिसमें सुविधाएँ तो बहुत थीं –बस साँस लेने के लिए झरोखे ही नहीं थे |