TEDHI PAGDANDIYAN - 25 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | टेढी पगडंडियाँ - 25

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टेढी पगडंडियाँ - 25

टेढी पगडंडियाँ

25

किरण को सामने बैठा कर रोटी खिलाने से गुरनैब को लगा कि उसके चाचे की रूह को शांति मिली होगी । मरते मरते भी उसे किरण की चिंता जरूर हुई होगी । आखिर ये उसके इश्क का मामला था । मिर्जे को साहिबां ने ही अपने भाइयों से मरवा दिया था पर यह बात अभी पक्की न थी । साहिबाँ यहाँ कोठी में फकीरनी हो गयी थी और उधर एक और साहिबां हवेली में आराम से रह रही थी ।
उस दिन के बाद से गुरनैब हर रोज कोठी आने लगा था । जब भी उसे समय मिलता , वह आता और आते हुए कुछ न कुछ लेकर ही आता । कभी फल सब्जी , कभी मिठाई तो कभी नमकीन मठरी या समोसे । किरण को जबरदस्ती खिलाता और खुद भी थोङा बहुत खा लेता । पंद्रह बीस मिनट रुक कर लौट जाता । किरण का आजकल खाना बनाने या खाने का बिल्कुल मन न होता पर गुरनैब को वह मना नहीं कर पाती । वह आता । जोर देकर फुल्के बनवाता और अपने सामने किरण को बैठाकर खिलाता । जबतक किरण खाना खा न लेती , बैठा रहता और उसके हाथ धोते ही चल पङता । किरण अपने गम से बाहर आने की कोशिश कर रही थी जिसमें गुरनैब उसका पूरा साथ दे रहा था ।
गुरनैब से किरण का पहले दिन से ही दोस्ती का रिश्ता बन गया था । निरंजन से वह नफरत करती थी । बाद में इस नफरत की जगह भय ने ले ली । भय अपनी जगह कायम था पर धीरे धीरे उस भय में मोह भी शामिल हो गया था । वह न आता तो उसका इंतजार रहता और आ जाता तो एक अजीब सा डर उस पर तारी हो जाता । जितनी देर वह सामने रहता , वह सूखे पत्ते की तरह काँपती रहती । जितना निरंजन पूछता , बस उतना ही बोल पाती । न एक लफ्ज कम , न एक लफ्ज ज्यादा पर गुरनैब उसका पितु मातु सहायक स्वामी सखा सब कुछ था जिससे वह अपनी चिंताएँ , खुशियाँ सब बाँट सकती थी । गुरनैब उसे गाँव के ऐसे ऐसे किस्से सुनाता कि वह हँसते हँसते लोटपोट हो जाती और न जाने कितनी देर तक हँसती रहती । निरंजन की न जाने कितनी शिकायतें उसने गुरनैब से की होंगी , उसे खुद भी याद नहीं । गुरनैब उसका गुस्सा , नखरा , मान , खुशी सब चुपचाप झेल जाता । वक्त जरुरत पर निरंजन को सलाह भी दे डालता और समझाइश भी । जसलीन का हाल भी गुरनैब से ही पूछ सकती थी वह । निरंजन से कुछ पूछ कर वह साँप की पूँछ पर पैर कैसे रख सकती थी । और अब निरंजन के यूं अचानक चले जाने के बाद तो गुरनैब उसके लिए उसी तरह जरुरी हो गया था जैसे देह को साँस लेने के लिए हवा ।
उधर हवेली में मातम चल रहा था । लोग लगातार आ रहे थे । हरपल मेला सा लगा रहता । रोना धोना पूरा दिन चलता । ऐसे ही दस दिन बीत गये ।
दसवीं वाले दिन गुरु ग्रंथ साहब का प्रकाश हुआ था । पूरा दिन अटूट लंगर चला था । पूरे पंजाब से लोग उसे अंतिम विदा देने आये थे । सिमरन और जसलीन के मायके से भी कई लोग आये ।
निरंजन की दसवीं धूमधाम से निपट गयी । सैंकङों रिश्ते नातेदार , परिचित अपरिचित आदमी औरतें उसकी अंतिम अरदास में शामिल हुए थे । अवतार सिंह ने दिल खोलकर खर्च किया था । गुरुघर के लिए बीस दरियाँ , पचास गद्दे और दस पंखे दान किये थे उसने । लोग निरंजन की जवानी और अवतार सिंह की दरियादिली की तारीफें करते हुए विदा हुए थे । जसलीन के दोनों भाइयों ने जसलीन केलिए दस तोले सोने की चूङियाँ बनवा दी थी और एक दिन की रोटी का एक लाख रुपया अवतार को थमा दिया था । निरंजन के वारिस के नाम की पगङी गुरनैब के हिस्से आई थी । जसलीन का कोई बेटा होता तो उसे पगङी बंधती पर एक साल तो शादी को हुआ था तो गुरनैब ही उसका वारिस था । गुरनैब धायें मार मार कर रोया था उस दिन । उसका भाइयों जैसा चाचा सचमुच दुनिया से जा चुका था ।
सब कुछ आराम से निपट गया । आये हुए मेहमान अब वापिस जाने शुरु हो गये थे । गुरनैब कुछ लेने भीतर गया । अचानक उसने साथवाले कमरे में जंगीर और जसलीन को धीमे सुर में बात करते सुना । जसलीन जंगीरे से लङ रही थी । भाई तुझे उसे समझाने को कहा था । तूने तो सारा खेल ही खत्म कर दिया ।
जंगीरे ने आगे से क्या कहा – यह गुरनैब सुन नहीं पाया । शक तो उसे पहले दिन से था पर अब तो सब कुछ साफ हो गया था , एकदम शीशे की तरह साफ । तो ये साले ही निरंजन की जान के दुश्मन बन गये थे । उससे वहाँ रुका नहीं गया तो वह नीचे आकर गुरद्वारे से आई दरियाँ और बरतन गिनवाने लग गया । फिर ट्रैक्टर पर लदवाकर खुद ही छोङने गया । देर शाम तक उसने खुद को काम में झोंक दिया । जब उसका काम खत्म हुआ , तबतक सब मेहमान विदा हो गये थे । तो वह खेस उठाकर छत पर सोने चला । चन्न कौर ने टोका – ओए , अभी तो सात ही बजे हैं । थोङी रोटी तो खाके सो । अभी से सोने चल पङा ।
नहीं बीबी , मैं बहुत थक गया हूँ औऱ मन भी नहीं है रोटी खाने का । चार साढे चार बजे तो खायी थी । अभी तो वह ही हजम नहीं हुई । सिर भारी सा लग रहा है । थोङा सो लूँगा तो ठीक लगेगा ।
चन्न कौर ने फिर उसे नहीं रोका । गुरनैब के अपने चाचा से मोह को वह समझती थी । उसने एक ठंडी साँस ली और खुद भी भीतर जाकर लेट गयी । उस दिन सब दिन भर के थके हारे थे तो सब जल्दी ही सोने चले गये ।

बाकी कहानी अगली कङी में ...