Ek raaz in Hindi Motivational Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | एक राज़

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एक राज़

राम सिंह अपने माता-पिता के साथ अपने छोटे से घर में बहुत ख़ुश था। उसके पिता रघुवीर सिंह हमेशा बीमार रहते थे इसलिए उन्होंने राम सिंह की नौकरी लगते ही अपनी नौकरी छोड़ दी। उसकी माँ घर का कामकाज कर पति सेवा में लगी रहती थी। राम सिंह कलेक्टर कार्यालय में क्लर्क था और छोटी-सी तनख्वाह में आराम से उनका गुज़ारा हो जाता था। उन्होंने कभी भी अपनी ज़रूरतों को बढ़ाया नहीं था, जितना था उतने में वे सभी ख़ुश थे। रघुवीर सिंह ने अपने बेटे को बहुत अच्छे संस्कार दिए थे। वह एकदम सत्यवादी थे और वही उन्होंने राम सिंह को भी सिखाया था। बचपन से ईमानदारी का पाठ सीखने वाला राम सिंह बिल्कुल अपने पिता जैसा ही था और उनकी हर बात को मानता भी था।

रघुवीर सिंह ने एक दिन अपनी पत्नी वसुधा से कहा, "वसुधा अब हमें राम का विवाह कर देना चाहिए"

"हाँ तुम ठीक कह रहे हो।"

"वसुधा मेरी चिंता यह है कि लड़की कैसी मिलेगी? हमारे परिवार में सामंजस्य बिठा पाएगी या नहीं?"

"रघु तुम इतनी चिंता क्यों करते हो, सब ठीक ही होगा।"

"वसुधा हमें अपने से गरीब घर की लड़की लाना चाहिए जो हमारे परिवार में आकर कोई कमी महसूस ना करे और ख़ुश रहे। यदि हम अपने से बड़े घर की लड़की लेकर आएँगे तो वह हमारे घर में कभी ख़ुश नहीं रह पाएगी। हो सकता है हम उसकी ज़रूरतें पूरी ना कर सकें इसलिए गरीब घर की सुशील लड़की ढूँढ कर लाना होगा।"

"हाँ आप बिल्कुल ठीक कह रहे हो। किसी बड़े घर की लड़की लाकर उसे दुःखी करने से किसी की भलाई नहीं होगी ना उसकी ना ही हमारी।"

इन्हीं सब बातों का ध्यान रखते हुए उन्होंने राधा नाम की एक गरीब घर की लड़की से राम सिंह का रिश्ता जोड़ दिया। आठवीं पास राधा यूँ तो एकदम गरीब घर में पली थी पर उसने अपने मन में बहुत सारी ख़्वाहिशें एकत्रित करके रखी थीं। विवाह के बाद अपनी सभी इच्छाएँ पूरी करुँगी। ऐसे विचार हमेशा ही उसके मन को लुभाते रहते थे।

शादी पक्की हो गई, लड़के के पास स्कूटर है सुनकर राधा स्कूटर पर पीछे बैठकर राम सिंह के कमर में हाथ डाल कर घूमने के सपने भी देखने लगी। लिपस्टिक, नए-नए कपड़े, कंगन, बाली सब का शौक रखने वाली राधा को लग रहा था, अब उसके यह सारे सपने पूरे हो जाएँगे। लड़का सरकारी दफ़्तर में नौकरी करता है। वह तो मानो हर रात सपनों में पंख लगा कर सुंदर-सी दुनिया में उड़ रही थी। लड़की पसंद करते समय कोई किसी के मन के भीतर तो नहीं झांक सकता था ना। सब कुछ देखने परखने के बाद भी कहीं ना कहीं, कुछ ना कुछ छूट ही जाता है। राम सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।

अपनी ढेर सारी आशाओं के साथ राधा ब्याह कर राम सिंह के घर आ गई। अपने पिता के घर होने वाली सारी कमी यहाँ पूरी करुँगी। इसी उम्मीद के साथ उसने गृह प्रवेश किया था। स्वभाव से वह अच्छी थी किंतु समझदारी में थोड़ी कच्ची थी। राम सिंह उसे एक दिन फ़िल्म दिखाने ले गया और बाहर खाना खा कर फिर वे वापस घर आ रहे थे। राधा बहुत ख़ुश थी, आज उसका देखा हुआ सपना साकार जो हो रहा था। उसने राम की कमर में अपने दोनों हाथों को लपेट लिया था और सोच रही थी कितना मज़ा आ रहा है।

उसने राम सिंह से कहा, "सुनो राम, हम दोनों हमेशा ऐसे ही फ़िल्म देखने, बाहर खाना खाने तो जाएँगे ही पर मेरे पास अच्छे कपड़े नहीं हैं। कल हम बाज़ार चलेंगे थोड़े कपड़े, लिपस्टिक सब कुछ मुझे दिला देना।"

राम सिंह उसकी इस बात का कोई जवाब ना दे पाया। वह सोचने लगा बाप रे राधा ये क्या बोल रही है? तब तक राधा ने फिर से कहा, "राम मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दे रहे हो?"

राम सिंह ने हड़बड़ा कर कहा, "हाँ हाँ, चलेंगे ना ज़रूर चलेंगे," उसने इतना कह तो दिया लेकिन वह तनाव में आ गया।

अब हर 15 दिन में राधा फ़िल्म देखने जाने की ज़िद करने लगी। शुरू में एक दो बार मजबूरी में ही सही पर राम उसे ले गया किंतु अब तो पानी सर के ऊपर से जाने लगा। बार-बार उसकी ज़िद के कारण एक दिन राम को कहना ही पड़ा, "राधा देखो अपनी इतनी कमाई नहीं है कि हम हर 15 दिन में फ़िल्म देखने या बाहर खाना खाने जा सकें, साल में दो-तीन बार ठीक है।"

यह सुनते ही राधा का पारा चढ़ गया, "यह क्या कह रहे हो आप? यह तो आपको विवाह के पहले सोचना चाहिए था। किसी को अपने परिवार में ला रहे हो तो उसकी जवाबदारी उठाने की औकात भी रखनी चाहिए। यदि मुझे पहले पता होता तो मैं यह शादी ही नहीं करती।"

"यह क्या कह रही हो राधा तुम। तुम्हें यहाँ सब कितने प्यार से रखते हैं। क्या यह काफ़ी नहीं है तुम्हारे लिए?"

"सिर्फ़ प्यार से ज़रूरतें पूरी नहीं होतीं राम। उसके लिए अपनी कमाई बढ़ाना पड़ता है। तुम इतनी मेहनत करते हो, पैसा कितना कमा पाते हो? सिर्फ़ इतना कि दो वक़्त की रोटी और कपड़ा मिल सके। अच्छे से गुज़ारा करने के लिए नौकरी के साथ तिकड़म भी करनी पड़ती है। मैं जानती हूँ तुम चाहो तो लोगों का काम अटका कर पैसा बना सकते हो। क्यों नहीं करते? सभी तो करते हैं।"

"यह क्या कह रही हो राधा तुम? तुम्हें शर्म आनी चाहिए, मुझे ग़लत रास्ते पर जाने का कह रही हो।"

"इसमें ग़लत कुछ नहीं है राम, अधिकतर लोग ऐसे ही पैसा कमा कर आगे आते हैं।"

"आते होंगे, उनका ज़मीर उन्हें ऐसा ग़लत काम करने के लिए हाँ कहता है, तो करते हैं लेकिन मेरा ज़मीर इसके लिए कभी तैयार नहीं होगा, चाहे कितनी भी तंगी में गुज़ारा क्यों ना करना पड़े।"

इसके बाद राधा और राम सिंह के बीच लगभग रोज़ ही किसी न किसी बात को लेकर झगड़े होने लगे।

अब तक रघुवीर सिंह और वसुधा भी सब कुछ जान चुके थे। रघुवीर सिंह ने वसुधा से कहा, "वसुधा मुझे लगता है एक बार मुझे राधा को समझाना चाहिए शायद मेरी बात मान जाए।"

"हाँ आप ठीक कह रहे हो, कोशिश कर देखने में हर्ज़ ही क्या है? हो सकता है बात बन जाए। मुझे तो बेचारे राम पर दया आ रही है, कितना परेशान रहता है। मुझे तो डर लगता है, कहीं बचपन की सिखाई हमारी शिक्षा भूल कर वह ग़लत रास्ते पर ना चला जाए। कम से कम हम हर रात, भर पेट खाकर सुकून से सोते तो हैं। सर पर किसी तरह की कोई चिंता नहीं होती। इससे बड़ा सुख और क्या हो सकता है।"

रघुवीर सिंह ने राधा को बुलाकर अपने पास बिठाया और कहा, "राधा बेटा हमारी जितनी चादर हो उतने ही पैर फ़ैलाना चाहिए। लालच बुरी बलाय यह तो शायद तुमने भी पढ़ा होगा? यह लालच ऊँचाई पर ले जाकर कभी-कभी इतना ज़ोर का धक्का देती है कि इंसान संभल भी नहीं पाता और दलदल में जाकर गिरता है। क्या तुम चाहती हो राम के और हमारे साथ भी ऐसा ही कुछ घटे? बेटा मैंने बड़ा जतन करके, बड़े प्यार से अपने बच्चे को थोड़े से में ख़ुशियाँ हासिल करना सिखाया है। तुम भी तो ऐसे ही गरीब परिवार से आई हो। क्या तुम वहाँ पर हर 15 दिन में फ़िल्म देखने या बाहर खाना खाने जाती थीं? नहीं ना, फिर यहाँ आकर तुमने ऐसी इच्छाओं को अपने ऊपर क्यों हावी होने दिया बेटा?"

राधा ने शांत होकर अपने ससुर की बातें सुन तो लीं लेकिन उन पर अमल करने का इरादा उसका बिल्कुल नहीं था। वह तो इस समय लालच के समंदर में गोते लगा रही थी। उसने शाम को राम से कहा, "आज पापा ने मुझे बहुत बड़ा भाषण दिया, इच्छा तो हो रही थी कि कह दूँ कि इस तरह भाषणों से पेट नहीं भरता लेकिन अपने मन पर पत्थर रखकर मैंने कुछ भी नहीं कहा।"

"बड़ी मेहरबानी की राधा तुमने धन्यवाद। तुम सुधरोगी नहीं ना।"

"देखो राम बदलना तो तुम्हें ही पड़ेगा वरना मैं मायके चली जाऊँगी ।"

आखिरकार एक दिन परेशान होकर राम ने पाँच हज़ार रुपये लाकर राधा के हाथों में रख दिए और कहा, "यह लो राधा इससे तुम्हारा इस माह का फ़िल्म देखने, होटल में खाने और अन्य शौकों का ख़र्चा निकल जाएगा। लेकिन मैं इसका हिस्सा कभी नहीं बनूँगा, इन रुपयों के साथ पता नहीं कितनी बद्दुआएँ आई होंगी। हमारे जैसा ही कोई यह रुपये मेरे हाथों में रख कर गया है। किसी और की थाली से छीन कर खाना मेरे माता-पिता ने मुझे कभी नहीं सिखाया। जिसने मुझे यह रुपये दिए हैं वह अपनी कृषि भूमि के पंजीयन की नक़ल लेने आया था। पास के गाँव चंदनपुर में रहता है, गणेश नाम है उसका। वह बेचारा काफ़ी गिड़गिड़ा रहा था कह रहा था बाबूजी पत्नी बहुत बीमार है, बच्चे नहीं हैं मेरे, बस उसी का आसरा है। अगर वह मर गई तो मैं अकेला क्या करूंगा? मैं गरीब इंसान हूँ साहब, आपको पैसे कहाँ से दूँगा? उसकी आँखों से आँसू भी बह रहे थे पर मैंने भी अपना दिल पत्थर का बना लिया। मैंने उसे कह दिया भाई जल्दी काम करवाना है तो पैसे तो देने पड़ेंगे ना, आख़िर मुझे भी तो अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करनी है"

राधा घबरा गई चंदनपुर में तो उसके मामा गणेश और मामी रहते हैं।

तभी राधा के मोबाइल की घंटी बजी उसने फ़ोन उठाया। उधर से आवाज़ आई, "राधा तुम्हारी मामी बहुत ज़्यादा बीमार है। आज मैं कलेक्टर ऑफिस में गया था। वहाँ पर मेरा काम करने के लिए बाबू जी ने पाँच हज़ार रुपये मांग लिए। मेरे पास अब तुम्हारी मामी की दवाइयों के लिए रुपये नहीं बचे हैं। क्या तुम मदद कर सकती हो? तुम्हारी शादी तो सरकारी दफ़्तर में काम करने वाले से हुई है। बेटा तुम्हारी मामी मर जाएगी। जिसने मुझसे वह रुपये लिए हैं, उसे मेरी ऐसी बद्दुआ लगेगी कि वह कभी भी सुख से नहीं रह पाएगा।"

राधा के पैरों तले से ज़मीन ही खिसक गई। वह समझ गई कि राम सिंह जो रुपये लेकर आया है, वह उसके मामा के ही हैं। मामा उसकी शादी में नहीं आ पाए थे इसलिए इन दोनों ने एक दूसरे को देखा ही नहीं है।

राधा ने कहा, "हाँ मामा, मेरे पास रुपये हैं। आप जल्दी आ जाइए, मामी को बचा लो मामा।"

"क्या हुआ राधा? किसका फ़ोन था? कौन पैसे मांग रहा था तुमसे?"

राधा की आँखों में आँसू थे, रोते-रोते उसने कहा, "राम आज तुमने जिस से रुपये लिए हैं वह मेरे मामा हैं। मेरी मामी जीवन और मौत के बीच लड़ाई लड़ रही हैं। यह रुपये हमें उन्हें लौटाने होंगे। मुझे माफ़ कर दो राम मैंने अपनी ग़लत ज़िद के कारण तुम्हें भी पथभ्रष्ट करवा दिया। मैं जान गई हूँ कि पापा ने तुम्हें सही शिक्षा दी है। इन पैसों के साथ कितनी बद्दुआएँ आती हैं, यह भी जान गई हूँ।"

राधा के मामा पैसे लेने आए तब राम सिंह को देखते ही उन्होंने कहा, "अरे तुम? तुम यहाँ क्या कर रहे हो? यह तो मेरी भांजी की ससुराल है और उसका पति बहुत ही ईमानदार इंसान है। वह तुम्हें यहाँ देखेगा तो..."

तब राम सिंह ने कहा, "मुझे माफ़ कर दीजिए मामा जी, उसका पति में ही हूँ। मैं भटक गया था। यह मेरी पहली और आख़िरी ग़लती है।"

राम सिंह ने उन्हें जब पाँच हज़ार रुपये वापस करे तब वे दोनों एक दूसरे की तरफ़ देख कर मुस्कुरा रहे थे। इस मुस्कुराहट के पीछे एक राज़ छुपा था जिसे राधा कभी नहीं जान सकी। वह यह भी कभी नहीं जान पाई कि उसे सही राह पर लाने के लिए राम सिंह, रघुवीर सिंह, राधा के पिता और मामा ने मिलकर यह रास्ता चुना था। इस राज़ ने राधा को भी एक नई राह पर चलना सिखा दिया।

रात में जब राम सिंह और राधा अपने बिस्तर पर लेटे थे तब राधा ने उससे कहा, "राम जीवन में कभी-कभी कैसी अनहोनी हो जाती है। देखो ना तुमने मुझे ख़ुश करने के लिए मजबूरी में पहली बार जिससे इस तरह पैसे लिए, वह मेरे ही मामा निकले। मेरी मामी की दवाइयों के पैसे उन्होंने बद्दुआओं के साथ तुम्हें दे दिए। शायद भगवान ने तुम जैसे सच्चे इंसान को पथभ्रष्ट होने से बचाने के लिए ही यह खेल खेला था।"

राम ने मुस्कुराते हुए उसे अपनी बाँहों में भर लिया। बस उसके बाद क्या था राम सिंह की ही तरह राधा भी थोड़े से में बहुत सारी ख़ुशियाँ ढूँढना सीख गई।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)