Anokhi Dulhan - 34 in Hindi Love Stories by Veena books and stories PDF | अनोखी दुल्हन - (एक घर ऐसा भी_१) 34

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अनोखी दुल्हन - (एक घर ऐसा भी_१) 34

अपना सारा सामान बांध जूही वीर प्रताप के साथ गाड़ी में बैठ उसके घर पहुंची। बिल्कुल उसी वक्त यमदूत कचरे की थैली ले घर से बाहर आया। वह जूही को वीर प्रताप के साथ देख चौक गया।

" यह यहां क्या कर रही है ?" उसने वीर प्रताप से पूछा।

उसे देख जूही वीर प्रताप के पीछे छीप गई थी। वीर प्रताप ने जूही का हाथ पकड़ उसे अपने पास खड़ा किया। " आज से यह हमारे साथ यही रहेगी।"

" क्या तुम एक इंसान को एक यमदूत के साथ रखना चाहते हो ‌? वह भी ऐसे इंसान को जिसे अभी जिंदा ही नहीं होना चाहिए। यह कभी यहां मेरे साथ नहीं रह सकती।" यमदूत ने वीर प्रताप की आंखों में आंखें डालते हुए कहा।

" यह मेरी अनोखी दुल्हन है और यह यही रहेगी। अगर किसी को इस बात से परेशानी है, तो उनके लिए इस घर के बाहर का दरवाजा खुला है।" वीर प्रताप ने भी उसी अंदाज में यमदूत से कहा।

यमदूत ने कुछ पल के लिए सोचा। " अच्छा अगर यह यहां पर है इसका मतलब तुम ने फैसला कर लिया है। क्या सही कहा मैंने ?"

"यह मेरा घर है। मैं जिसे चाहे यहां रखूं। तुमसे मतलब?" वीर प्रताप ने यमदूत को इस वक्त इग्नोर करना ही सही समझा।

अपनी हिम्मत जुटाकर जूही ने दो कदम यमदूत की तरफ आगे बढ़ाएं। वह थोड़ा झुकी और अपने हाथ जोड़े। " नमस्ते। मेरा नाम जूही है। मैं आजसे आपके साथ रहूंगी। मुझे उम्मीद है कि आप मुझे किसी तरह की तकलीफ नहीं होने देंगे।"

" हां। बिल्कुल सही कहा तुम ने गुमशुदा आत्मा। आज से मैं तुम्हारी तरफ हूं।" यमदूत ने कहा।

" क्या मैं जान सकती हूं कि आप इस वक्त घर से बाहर क्या कर रहे थे ?" जुही ने यमदूत से पूछा।

तभी कचरे की गाड़ी लेकर एक आदमी वहां से हॉर्न बजाते हुए गुजरा। घर के दरवाजे के बाहर से ही यमदूत ने कचरे की थैली बराबर गाड़ी में फेंकी। " मैं यही करने आया था।" उसने चुटकी बजाते हुए कहा।

" सारी बातें यहीं करनी है या फिर अंदर भी जाना है ?" वीर प्रताप को इन दोनों का दोस्ताना कुछ खास पसंद नहीं आ रहा था।

" हां चलो चलते हैं गुमशुदा आत्मा।" यमदूत ने कहा। और तीनों दरवाजे की तरफ मुड़े ‌।

जूही उन दोनों को देख रही थी। दोनों कुछ सोचते हुए बाहर ही खड़े थे। " तो अब हम अंदर जाने वाले भी है या नहीं ?" अब जुही को गुस्सा आने लगा था।

" तो क्या पासवर्ड है इसका ?" यमदूत ने पूछा।

" तुम टेनेंट हो तुम्हें बताया नहीं राज ने ?" वीर प्रताप।

" मैं टेनेंट हू। तुम इस घर के मालिक हो यह सब तुम्हें पता होना चाहिए।" यमदूत का जवाब तैयार था।

" देखो मुझे कभी इन सब चीजों की जरूरत ही नहीं पड़ी‌ मैं हमेशा अपनी मर्जी से आता जाता हूं। कोई दरवाजा पासवर्ड या ताला मुझे रोक नहीं सकता।" वीर प्रताप ने बड़े ही गुरुर से कहा।

" मेरी भी यही परेशानी है। मुझे भी कहीं आने जाने के लिए किसी की इजाजत की जरूरत नहीं है।" यमदूत भी ताकतवर है। यह दीखाने से वह कभी पीछे नहीं हटता।

" अगर तुम दोनों का ताला कंपटीशन खत्म हो गया हो। तो अब मुझे बताएगा कोई कि मैं इस घर के अंदर कैसे जाऊंगी ?" जुही ने फिर गुस्सा होते हुए पूछा।

उन दोनों ने फिर से एक दूसरे को देखा। फिर आंखों ही आंखों में हा का इशारा किया और एक चुटकी बजाईं। चुटकी सुन जब जूही ने अपने आसपास देखा वह वहां अकेली खड़ी थी।
" टांडा।" वीर प्रताप ने सामने से दरवाजा खोला। " अंदर आ जाओ। बस आज की रात एडजस्ट कर लो। कल सुबह में राज को तुम्हें यहां का पासवर्ड बताने के लिए कह दूंगा।" वीर प्रताप ने जूही का सामान अंदर लेते हुए कहा।

फिर वीर प्रताप उसे उसका कमरा दिखाने ऊपरी मंजिल पर ले गया। यमदूत भी उनके पीछे पीछे ही था। जूही ने कमरा देखा। कमरा पुराने सामान से भरा हुआ था उसमें ना बिस्तर था ना सामान रखने की जगह। कमरा देख जुही एक पल के लिए चौक गई।

उसके चेहरे का भाव देख वीर प्रताप समझ गया। "देखो यह कमरा कल सुबह पूरी तरह से नया बन जाएगा। फिर तुम यहां पर अपना सामान आराम से रख देना।"

" हां सही कहा। कल सुबह बन जाएगा। फिर आज की रात में घर के बाहर उस बेंच पर ही सो कर निकाल लेती हूं। भले ही ठंड से मैं मर क्यों ना जाऊं। लेकिन क्या फर्क पड़ता है ? आखिर हूं तो एक अनाथ ही ना।" अपने हाथ हवा में उठाते हुए जूही ने कहा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वह वीर प्रताप को किस तरह समझाएं।

" ऐसी बातें क्यों कर रही हो ?" वीर प्रताप ने पूछा।

" अच्छा तो बताओ मैं आज की रात कहां सोऊंगी ?" जूही ने पूछा।

" सही कहा। बिना सोचे समझे एक लड़की को यहां ले आए और कमरे का भी अता पता नहीं है।" यमदूत ने आग में घी डालने का काम बखूबी किया।

" बीच में मत बोलो। अगर मैं इसे यहां लाया हूं तो कुछ सोच समझकर ही लाया हूं।" वीर प्रताप ने यमदूत को चुप रहने का इशारा किया। फिर वह जूही की तरफ मुड़ा। " और तुम आज की रात मेरे कमरे में रहोगी।"

" क्या ? यह कैसी बातें कर रहे हो ? अब तक हमारी शादी नहीं हुई।" जुहीने अपना मुंह फेरते हुए कहा।

" शरम नहीं आती। अब तुम्हारी हरकतें ऐसी हो गई है। बिना शादी के एक नौजवान लड़की के साथ एक कमरे में रात बिताओगे ? तुम्हारी तो मैं...." यमदूत ने जूही को सहारा देते हुए वीर प्रताप को उससे दूर किया।

" तुम दोनों मेरी बात का हमेशा गलत मतलब क्यों निकालते हो ? मेरा मतलब था जूही आज की रात मेरे कमरे में अकेले रहेगी।" वीर प्रताप ने उन दोनों को समझाते हुए कहा।

" अगर जुही तुम्हारे कमरे में अकेले रहेगी तो तुम कहां रहोगे ?" यमदूत ने अपनी कमर पर हाथ रखते हुए पूछा।