Its matter of those days - 39 in Hindi Fiction Stories by Misha books and stories PDF | ये उन दिनों की बात है - 39

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ये उन दिनों की बात है - 39

सागर, बेटा! नीचे आ जाओ, नाश्ता तैयार है!
आओ पिंकी! नीचे चले |
पिंकी को सुलाते-सुलाते सागर उसी के पास ही सो गया था |
खाने की टेबल पर दादा दादी सागर का इंतज़ार कर रहे थे |
हमें सागर से बात तो करनी पड़ेगी, इस तरह पिंकी को यहाँ घर पर रखना ठीक नहीं | इतने में सागर और पिंकी तैयार होकर नीचे आये |
पिंकी ने गुलाबी रंग की फ्रॉक पहनी हुई थी जिसमें वो बहुत ही प्यारी लग रही बिलकुल किसी राजकुमारी की तरह |
दादी ने उसकी तरफ देखकर वात्सल्य भरी मुस्कान दी |
दादाजी, पिंकी का एडमिशन अच्छे से स्कूल में करा दीजिये, पिंकी की प्लेट में परांठा रखते हुए सागर ने कहा |
काफी सारा सामान खरीदना है हमें पिंकी के लिए, कहते वक़्त सागर की आँखें एक उत्साह से चमक रही थी |
उसके उत्साह को देखकर दादाजी कुछ कहना नहीं चाहते थे लेकिन फिर भी कहना तो था ही फिर उन्होंने दादीजी की तरफ देखा और उन्होंने हौले से हामी भरी कि सागर से बात करनी चाहिए |

सागर बेटा हम जानते है की तुम जो भी करोगे वो अच्छा ही करोगे | हमने कभी तुम्हारी किसी बात को मना नहीं किया पर अभी पिंकी को यहाँ रखना ठीक नहीं | उसे ऑफिशियली गोद लेना जरूरी है इसलिए अच्छा यही होगा की तुम उसे किसी अनाथालय................
अनाथालय का नाम सुनते ही सागर भड़क उठा | नहीं! दादाजी! आपने ये कैसे सोच लिया की मैं पिंकी को किसी अनाथालय में छोड़ दूँगा | पिंकी इस घर को छोड़कर कहीं नहीं जायेगी |
और अगर पिंकी आप लोगों को इतनी ही बुरी लग रही है तो पिंकी को लेकर मैं ही चला जाते हूँ यहाँ से |

इतना कहकर सागर पिंकी का हाथ पकड़कर, उठकर जाने लगा |
सागर! रुको बेटा! ठीक है पिंकी यहीं रहेगी, दादी ने सागर का हाथ पकड़कर उसे बैठाया |
अब मेरा मन नहीं है कुछ खाने का और ये कहकर वो अपने कमरे में चला गया |
इस वक्त सागर कुछ भी सुनने-समझने की स्थिति में नही है | हमें उसे थोड़ा वक्त देना होगा क्योंकि जो उसने हाल ही देखा है उससे वो खुद को जोड़कर देख रहा है | उसने अपनी माँ को खोया है तो ये बात वो बखूबी जानता है की माँ से बिछड़ना क्या होता है | रही बात पिंकी की तो अभी वो यहीं रहेगी |
पिंकी इन सब बातों से बेखबर अपना नाश्ता खाने में लगी हुई थी | पहली बार उसने इतना अच्छा खाना खाया था |

क्या मैं एक और पराँठा ले लूँ? बड़ी ही मासूमियत से पिंकी ने पूछा |
हाँ बेटा और दादी ने पराँठा उसकी प्लेट में रखकर उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा |

********************

दो दिन से सागर दिखा नहीं था | आखिरी बार उसे मैंने तब देखा था जब सागर उस बच्ची को अपने घर लेकर जा रहा था | मैं हैरान सी उसे बालकनी में खड़ी देख रही थी लेकिन उसने एक बार भी ऊपर देखा नहीं | नहीं तो हमेशा बालकनी की ओर ही देखता रहता है जब भी गली से होकर गुजरता है | मेरे मन में अजीब-अजीब से ख्याल आ रहे थे | आखिर सागर इसे अपने घर क्यों लेकर आया, ऐसी क्या बात हो गयी थी जो उस बच्ची को घर लाना पड़ा |

पर कैसे सागर से मिलूँ? बस यही सोच सोचकर परेशान हो रही थी | बार-बार भागकर बालकनी की ओर दौड़ पड़ती की एक बार सागर दिख जाए तो कम से कम उससे बात तो करूँ | अभी कोई ऐसा बहाना भी नहीं था जो उसके घर जा सकूँ |

जब एक दिन और गुजर गया, तब मुझे चिंता सी होने लगी और सागर पर भी गुस्सा आने लगा की मेरे बिना वो एक पल भी नहीं पता था | अब ऐसा क्या हो गया की एक बार भी मुझसे मिलने का मन नहीं हुआ उसका |

अब कोई ना कोई बहाना तो बनाना ही पड़ेगा | वो नहीं मिलना चाहता तो क्या मैं तो उससे मिलना चाहती हूँ | उसे देखना चाहती हूँ, बात करना चाहती हूँ |

जब मैं बालकनी से अपने कमरे में आई तो देखा नैना मैथ्स के सवाल हल कर रही थी | किसी सवाल में अटकी हुई थी वो, तभी अचानक से मन में एक ख्याल आया और मैं ख़ुशी से उछल पड़ी |
क्या हुआ नैना?
देख ना दीदी! ये सवाल कब से करने की कोशिश कर रही हूँ पर अभी तक हल नहीं हुआ मुझसे |
बस इतनी सी बात.............