KULAR KE SAATH WO DIN in Hindi Short Stories by Nilesh Dahiya books and stories PDF | कूलर के साथ वो दिन

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कूलर के साथ वो दिन

कहने को ठीक है पर यह गर्मी हालत ख़राब कर देती है जब यह अपनी औकात पर होती है , और हमे अपनी औकात याद दिला देती है |
कुछ ऐसा ही था मेरे साथ , तीन मंजिला मकान में सबसे ऊपर का 10*10 का रूम लिया था किराये पर ,अंदर जाते ही ऐसा लगे जैसे अचानक आपकी हाइट बढ़ गई हो और चार पंखुड़ियों वाला पंखा तैयार हो आप के सर से टकराने को।


एक ही रूम में सारा घर समाये साथ में बाथरूम वो भी अंग्रेजी वाले टॉयलेट के साथ, ढलती सर्दी के दिन में बुक किया था कुछ एडवांस देकर ,धीरे धीरे सर्दी रजाई में अपना मुँह छुपा रही थी और गर्मी धीरे - धीरे अपनी ताकत का जलवा दिखने का बस टाइम धुंध रही थी।
गर्मी के चार दिन छोटे से पंखे ( पवन - यन्त्र ) के नीचे पलंग सरकाके सोके गुजार दिए थे ,पर अब गर्मी सहन नहीं हो रही थी ,शरीर पर बिंदी जैसे छोटे छोटे घमोरिया निकल आयी और पसीना मानो शहर का गन्दा नाला बह रहा हो।
जैसे तैसे पैसो का जुगाड़ कर के ऑनलाइन देख दाख के एक छोटा सा कूलर ले आये थे रूम में, उसके भी बड़े नाटक थे रोज बाल्टी भर भर के पानी से भरो और रूम के अंदर रखो तो महाराज चलेंगे जरूर पर शरीर में चिपचिपाहट देते रहेंगे रात भार वो अलग ,पर दिन भर का जुगाड़ जोरदार होता था छोटे से रूम के दरवाजे को बड़े डोरी से कुण्डी से बांध कर बीच में कुछ जगह रखकर उसमे कूलर को एडजस्ट करते और कूलर की ऊपर की खाली जगह पर पर्दा या दरी डालकर गर्म हवा आने से रोकते . जुगाड़ कुछ भी हो इस गर्मी में यह कूलर जो आनंद देता है, अहा अहा अहा अहा अहा अहा …
वो परमसुख की अनुभूति करवाते ….कूलर के साथ वो दिन …...............................................................................
डॉ निलेश दहिया

jalore rajasthan

कहने को ठीक है पर यह गर्मी हालत ख़राब कर देती है जब यह अपनी औकात पर होती है , और हमे अपनी औकात याद दिला देती है |
कुछ ऐसा ही था मेरे साथ , तीन मंजिला मकान में सबसे ऊपर का 10*10 का रूम लिया था किराये पर ,अंदर जाते ही ऐसा लगे जैसे अचानक आपकी हाइट बढ़ गई हो और चार पंखुड़ियों वाला पंखा तैयार हो आप के सर से टकराने को।


एक ही रूम में सारा घर समाये साथ में बाथरूम वो भी अंग्रेजी वाले टॉयलेट के साथ, ढलती सर्दी के दिन में बुक किया था कुछ एडवांस देकर ,धीरे धीरे सर्दी रजाई में अपना मुँह छुपा रही थी और गर्मी धीरे - धीरे अपनी ताकत का जलवा दिखने का बस टाइम धुंध रही थी।
गर्मी के चार दिन छोटे से पंखे ( पवन - यन्त्र ) के नीचे पलंग सरकाके सोके गुजार दिए थे ,पर अब गर्मी सहन नहीं हो रही थी ,शरीर पर बिंदी जैसे छोटे छोटे घमोरिया निकल आयी और पसीना मानो शहर का गन्दा नाला बह रहा हो।
जैसे तैसे पैसो का जुगाड़ कर के ऑनलाइन देख दाख के एक छोटा सा कूलर ले आये थे रूम में, उसके भी बड़े नाटक थे रोज बाल्टी भर भर के पानी से भरो और रूम के अंदर रखो तो महाराज चलेंगे जरूर पर शरीर में चिपचिपाहट देते रहेंगे रात भार वो अलग ,पर दिन भर का जुगाड़ जोरदार होता था छोटे से रूम के दरवाजे को बड़े डोरी से कुण्डी से बांध कर बीच में कुछ जगह रखकर उसमे कूलर को एडजस्ट करते और कूलर की ऊपर की खाली जगह पर पर्दा या दरी डालकर गर्म हवा आने से रोकते . जुगाड़ कुछ भी हो इस गर्मी में यह कूलर जो आनंद देता है, अहा अहा अहा अहा अहा अहा …
वो परमसुख की अनुभूति करवाते ….कूलर के साथ वो दिन …...............................................................................
डॉ निलेश दहिया

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