नवरात्रि स्टोरी — नयन
मॉं की ऑंखें खुली थीं , मैं पूजा सामग्री हाथों में लेकर निहारती रही। सुंदर छवि देख कर मुझे जीती जागती मॉं दिखाई दी तभी पीछे से किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा—- “जल्दी करो! हमें भी पूजा कर के बाक़ी के काम निपटाने है , तुम्हारी तरह ख़ाली नहीं है ।”
मैंने मुड़कर देखा तो जब तक पीछे खड़ी हुई महिला ने हाथ लम्बे करके मॉं की मूर्ति के आगे पुष्प और पैसे पैरों पर निशाना लगा कर चढ़ाने की कोशिश की और वहॉं से लम्बे कदमों के साथ वापस चली गईं ।
मॉं की ऑंखों में देखते हुए मुझे मेरे आसपास कौन खड़ा है उसका एहसास ही नहीं हुआ, मनमोहनी मूरत को देखते हुए मैं रोमांचित हो रही थी ।मॉं के चक्षु सजल थे, उन्हें देखते हुए मैंने प्रार्थना की—
ॐस्तुता मया वरदा वेद माता प्रचोदयंताम् पावमानी द्विजानाम् आयु:प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्म वृचसं
मैयम्दत्वा बृजत ब्रह्म लोकम् ।
नतमस्तक होकर—
ॐनमोस्तवंताय सहस्र मूर्तये सहस्र पादक्षशिरोरुवाहवे,
सहस्र नाम्ने पुरुषायशाश्वते सहस्त्रकोटि युगधारणे नम:।
मैंने मॉं के चरणों में पुष्प अर्पित कर आशीर्वाद लिया, चरण स्पर्श करते हुए मेरी नज़र चरणों पर पड़ी तो मैं दंग रह गई । मॉं के दरबार में भीड़ बहुत थी, लोग पंक्तिबद्ध नहीं थे इसलिए धक्का मुक्की में ही दर्शन कर रहे थे ।भीड़ में से ही किसी ने सिक्के फेंक कर अर्पित किए जिससे पैर के अंगूठे का किनारा टूट गया ।
दुखद मन से मैं मॉं के चरणों में क्षमा माँगते हुए पुजारी जी के पास गई और उन्हें सारी घटना बताई । वह व्यस्त होने के कारण मेरी किसी बात को ध्यान से नहीं सुन सके।
सभी लोग अपनी श्रृद्धानुसार भेंट चढ़ा कर मॉं को प्रसन्न करने में लगे थे और पुजारी जी सामान को व्यवस्थित करने में ।
मॉं के दरबार में कुछ पुष्प पैरों में पड़े हुए थे, मैंने झुककर उन्हें उठाने की कोशिश की; तभी पीछे से किसी का धक्का लगा मैं स्वयं को संभाल न सकी और गिर गई।
मेरे काफ़ी चोट लगी, किसी सज्जन ने मुझे देखा और मेरे घर की जानकारी कर घर पहुँचा दिया ; मेरे घर पर सभी ने उनका शुक्रिया अदा किया ।
चोट मेरे इतनी लगी कि मुझे पंद्रह दिन अस्पताल में ही रहना पड़ा, सब कुछ घर पर अस्त- व्यस्त हो गया ।घर पर पूजा की सामग्री रखी रह गई ।
मैंने नवरात्रि में सुहागन स्त्रियों को मीठा भोजन कराने की योजना बनाई थी । सभी तैयारी हो चुकी थी लेकिन मेरी इच्छानुसार कुछ न हो सका। मेरे मन में घबराहट हो रही थी कि स्त्रियों के रूप में मैं माता रानी को अपने घर पर न बुला सकी, इस का मुझे खेद रहा। जब मैं लौट कर घर पर आई तब तक नवरात्रि समाप्त हो चुके थे ।
मैंने नवरात्रि व्रत का संकल्प लिया वह पूरा नहीं हुआ, डाक्टर ने कहा—
“आप को चोट लगने से ब्लीडिंग बहुत हुई है इसलिए आप का व्रत रखना आपके हित में नहीं होगा।”
अस्पताल से आने के बाद मेरा मन मॉं के मंदिर में जाने का हुआ और मैं अपने पति की सहायता से वहाँ गई। आज वहाँ पुजारी जी बैठे थे । मैंने उन्हें प्रणाम किया और दरबार में माथा टेकने के लिए गई ।जैसे ही मॉं के सामने गई वही मूर्ति में विराजमान थी।
मैंने उन्हें निहारते हुए उनकी ऑंखों में देखा तो लगा जैसे मॉं कह रही हो “कैसी हो मेरी बच्ची?” मैं बिलखते हुए रो पड़ी, क्योंकि मॉं के अंगूठे पर जो पत्थर टूटा था वह आज भी टूटा हुआ ही था ।मैं तो अस्पताल जाकर ठीक हो गई लेकिन मॉं की परेशानी देखने वाला कोई नहीं था, न ही किसी ने ध्यान दिया ।मेरी ऑंखें आंसुओं से गीली थी;अश्रु धारा बह रही थी ।
मुझे अहसास हुआ कि मॉं कह रहीं हैं मत रो मेरी बच्ची सदा सुखी रहो ।
नवरात्रि में इतनी भीड़ थी कि दर्शन करने के लिए बहुत ही मशक़्क़त करनी पड़ी, आज मंदिर में कोई नहीं था । किसी को फ़ुरसत नहीं कि मॉं का हाल चाल पूछ कर उन्हें सान्तवना दें कि मॉं हमसे बहुत बड़ी भूल हुई जो हमारे द्वारा फेंका गया सिक्का आपको बहुत चोट पहुँचा गया ।हमें क्षमा करो मॉं!
मैं नियमित मंदिर जाती रही मॉं को अपनी परेशानी बताती रही, जो कुछ चाहिए वह सब माँगती रही और वह झोली भरती गई । जब उन्हें कष्ट हुआ तब मैं कुछ भी न कर सकी।
मैं मॉं की ऑंखों में निहार रही थी और ऑंखों ही ऑंखों में मॉं की ख़ुशी देख कर अपनी झोली में मॉं का आशीर्वाद समेट कर मॉं को अपने घर आमन्त्रित कर रही थी ।मंदिर से घर जाते हुए वह दो ‘नयन’ मेरा पीछा करते हुए कह रहे थे— “सदा सुखी रहो ।”
आशा सारस्वत ✍️