the heir in Hindi Women Focused by Rama Sharma Manavi books and stories PDF | वारिस

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वारिस

आज गायत्री का विवाह हो रहा था।उसकी बगल में अच्छी डील-डौल का देखने में सजीला सा दूल्हा बैठा हुआ था जो बाल सुलभ कौतूहल से सारा ताम-झाम देख रहा था, कभी दुल्हन बनी गायत्री का घूंघट उठाकर झांक लेता,फिर पिता की झिड़की सुनकर नाराज होकर मुँह बनाकर पंडित जी के कहे अनुसार रस्मों को करने का प्रयास करने लगता।गायत्री उदास सी यंत्रवत सारे रस्मों का अनुपालन करती जा रही थी।

कितने स्वप्न होते हैं युवतियों के नेत्रों में अपने विवाह एवं भावी जीवन को लेकर।लेकिन एक गरीब की बेटी को शायद यह अधिकार नहीं होता।गायत्री ने भी अपने जीवन के लिए बहुत बड़े ख्वाब नहीं संजोए थे।वह खुश थी अपने मजदूर माता-पिता एवं छोटे भाई के साथ।माता-पिता के पास थोड़ी सी जमीन थी, जिसमें दोनों परिश्रम कर मौसमी सब्जियां उगाते थे।राजसिंह बड़े खेतिहर थे,उनके खेतों में तमाम मजदूर कार्य करते थे, गायत्री के पिता-माता भी उनमें से एक थे।गायत्री गाँव के स्कूल में पढ़ने जाती थी,वह पढ़कर अध्यापिका बनना चाहती थी,घर के काम एवं भाई की पढ़ाई-लिखाई भी वह सम्हाल लेती थी।इसी वर्ष उसने इंटर की परीक्षा दी थी।वह आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन परिस्थितियां इजाजत नहीं दे रही थीं,अतः रिजल्ट निकलने के पश्चात प्राइवेट बीए करने का निश्चय किया था उसने।वह अध्यापिका बनना चाहती थी।

लेकिन किस्मत ने क्या लिख रखा है हाथ की लकीरों में,कोई नहीं जानता।पल भर में सपने धूल-धुसरित हो जाते हैं, आशाएं मटियामेट हो जाती हैं।यही हुआ गायत्री के साथ।छोटा भाई राजू गांव के बगीचे में अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था, बच्चों का प्रिय खेल होता है पेंड़ पर चढ़ना-उतरना।अचानक उसका पैर फिसल गया और वह ऊंची डाल से गिर गया,पैर टूट गया था।गाँव के प्राथमिक चिकित्सालय में दिखाया तो उन्होंने बताया कि ऑपरेशन कर के रॉड डालना पड़ेगा, जो शहर के अस्पताल में ही हो सकता है और ऑपरेशन शीघ्र करना होगा अन्यथा अगर गेंग्रीन हो गया तो पैर काटने की नौबत आ सकती है।अब गरीब के पास कोई बचत तो होती नहीं है, अतः आपदा पर कर्ज लेने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं होता है।कहीं से व्यवस्था न होने पर गायत्री के पिता हारकर राजसिंह के पास कर्ज लेने के लिए गए।उन्होंने सोचा था कि बेटे की जिंदगी की खातिर जमीन गिरवी रखकर रुपये ले लेंगे।लेकिन राजसिंह ऐसी शर्त रख देंगे जिसकी उन्हें सपने में भी उम्मीद नहीं थी।

राजसिंह का इकलौता बेटा था मोहन सिंह।अगर चुप बैठा हो तो देखने वाले उसकी भोली भाली शक्ल और शरीर सौष्ठव को देखकर बेसाख्ता आकर्षित हो जायँ।लेकिन फिर वही कहानी किस्मत की।जब मोहन 6 साल का था तो पेड़ से ही गिर गया था, उसके सर में अंदरूनी चोट आई थी, पानी की तरह पैसा बहाया था राजसिंह ने,जान तो बच गई थी लेकिन दिमाग में लगी चोट के कारण मस्तिष्क का विकास वहीं अवरुद्ध हो गया था, परिणामस्वरूप शरीर से तो वह पूर्ण युवा हो गया था किंतु दिमाग 6 वर्ष के बालक के ही समान था।अब कोई समर्थ घर की लड़की भला क्यों विवाह करती, अतः राजसिंह ने गायत्री के पिता के सामने उसका मोहन से विवाह करवाने का शर्त रख दिया।पिता ने सोचने की बात कहकर घर आकर निराश होकर चिंतित से बैठ गए।एक बच्चे की जिंदगी के लिए दूसरी संतान का जीवन बर्बाद करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।गायत्री के जोर देने पर कांपती आवाज में सारी बात बताई।कुछ मिनट सोचने के उपरांत दृढ़ निश्चय कर गायत्री ने पिता से विवाह की हामी भर दी।पैसे लेकर राजू की चिकित्सा करवाई गई, उसके घर आते ही राजसिंह का फरमान आ गया कि 10 दिन के अंदर विवाह कार्य सम्पन्न कर दिया जाय।

पांच दिन बाद सास दो-तीन महिला रिश्तेदारों के साथ गोदभराई की रस्म निभाने के लिए आईं।वे गायत्री के मासूम अपूर्व सौंदर्य को कुछ देर अपलक निहारती रहीं, फिर उन्होंने गायत्री से अकेले में बात करने की इच्छा व्यक्त की।गायत्री के साथ साथ उसके माता-पिता भी और सहम गए कि अब न जाने कौन सी नई परेशानी सामने आने वाली है।अकेले में सास ने गायत्री के हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा,"बेटी, मैं जानती हूँ कि तुम यह विवाह मजबूरी में कर रही हो,फिर भी मैं तुम्हें यह बता देना आवश्यक समझती हूँ कि मेरा बेटा शरीर से तो वयस्क है लेकिन मस्तिष्क से वह 6 वर्ष के बालक के समान है, तुम्हारी पूरी जिंदगी उसे बच्चे के समान सम्हालने में ही बीतेगी,कोई वैवाहिक सुख नसीब नहीं होगा।"

सास के प्रेमपूर्ण वचन सुनकर गायत्री अभिभूत हो गई और डबडबाई आंखों से उन्हें देखती लरजती आवाज में बोली"मां, भाई के इलाज के लिए लिए पैसे के एवज में यह विवाह मैं कर रही हूं, यह तो आपको ज्ञात ही होगा।एक गरीब की बेटी कटी पतंग के समान होती है, जिसे जमाना लूटने को तैयार बैठा रहता है।आज आपकी बातों से मुझे इतनी तसल्ली हो गई है कि आपकी छत्रछाया में मैं सदैव सुरक्षित तो रहूंगी।"इतना कहकर गायत्री ने अपनी सास के पांव छू लिए।सास ने उसे उठाकर बाहों में समेट लिया।यह देखकर गायत्री के माता-पिता ने राहत की सांस ली।गोदभराई के पश्चात जाते समय सास ने उसके माता-पिता को आश्वासन देते हुए कहा कि आज से गायत्री मेरी बेटी है, उसके सुख-दुःख का ध्यान रखना मेरी जिम्मेदारी है।

विवाहोपरांत विदा होकर गायत्री ससुराल में आ गई।उसकी सास ने उसे अपनी ममता के आंचल में छिपा लिया।गायत्री का इंटर का रिजल्ट घोषित हो गया।सास के प्रोत्साहन से उसने प्राइवेट बीए का फॉर्म भर दिया।

मोहन के लिए गायत्री उसकी सखी मात्र ही तो थी।वह कहां समझता था पति-पत्नी के रिश्ते को।गायत्री ने भी उसके बचपन को मातृत्व भाव से स्वीकार कर लिया था।गायत्री मोहन का पूर्ण ध्यान रखती थी।मोहन के साथ कभी लूडो खेलती कभी कैरम।कभी उसकी बालसुलभ शरारतों पर डांट भी देती।गायत्री की सास उसकी समझदारी पर निहाल रहतीं।देखते-देखते दो साल व्यतीत हो गए।मोबाइल पर इंटरनेट से गायत्री बाहर की दुनिया की सभी बातों की जानकारी रखती थी।

एक रात मोहन को सुलाकर गायत्री अपनी पढ़ाई कर रही थी।सास किसी कार्य से दो-तीन दिनों के लिए मायके गयी हुईं थीं।तभी ससुर जी ने आवाज लगाई कि बहू पानी दे जाओ।गायत्री पानी का गिलास लेकर ससुर के कमरे में पहुंची तो देखा कि वे शराब का सेवन कर रहे हैं।सास के रहते उसका सामना कम ही होता था उनसे।लेकिन दो वर्षों में वह काफी कुछ वहाँ की स्थिति समझ चुकी थी।मोहन के जन्म के समय समस्या आ जाने के कारण दूसरी संतान नहीं हो सकी थी।वे तो दूसरा विवाह कर लेते ,किंतु सास के दबंग मायके वालों के कारण उनकी हिम्मत न हो सकी।लेकिन बाहर कई मजबूर महिलाओं का वे शोषण करते रहते थे।

ससुर ने कहा,"बैठो,कुछ जरूरी बात करनी है।"

असमंजस की स्थिति में गायत्री सावधान होकर दरवाजे के निकट ही खड़ी रही।ससुर ने कहना प्रारंभ किया कि मोहन मेरी इकलौती औलाद है।इसलिए मुझे हर हाल में अपना वारिस चाहिए।लेकिन मैं जानता हूँ कि वह समर्थ नहीं है, इसलिए यह कार्य मैं करूंगा।तुम्हारी भलाई इसी में है कि राजी-रिश्ते से इसे स्वीकार कर लो,अन्यथा मुझे जोर-जबर्दस्ती करनी पड़ेगी।इस समय तुम्हारी सास भी नहीं है तुम्हें बचाने के लिए।बस मुझे वारिस चाहिए।बाहर किसी को कुछ भी ज्ञात नहीं होगा।यदि तुम नहीं मानोगी तो मैं मोहन का दूसरा ब्याह करा दूंगा और तुम्हें धक्के मारकर घर से बाहर कर दूंगा।

गायत्री सन्न रह गई, ससुर की ऐसी कुत्सित मनोवृत्ति देखकर।समझ गई कि इस मुसीबत से सहज पार नहीं पाया जा सकता है, इसलिए समझदारी से काम लेना होगा।उसने नजरें झुकाए हुए कहा कि अभी मेरी तबियत खराब है, फिर मुझे थोड़ा समय चाहिए, वैसे भी मेरे पास आपकी बात मानने के अतिरिक्त कोई रास्ता तो है नहीं।ससुर उसकी बातों में आ गए।वह शीघ्रता से अपने कमरे में आ गई और आगे के बारे में विचार करने लगी।भले ही सास उसे बेटी की तरह प्यार करती हैं लेकिन क्या अपने पति की इस घटिया हरकत की बात बताने पर मेरा विश्वास करेंगी?बताना तो पड़ेगा,लेकिन अगर उन्होंने यकीन नहीं किया तो वह क्या करेगी,यही सोचते हुए सारी रात आँखों में गुजर गई।उसके शान्त आचरण को देखकर ससुर को पूर्ण विश्वास हो गया था कि गायत्री उसकी बात अवश्य मान लेगी।

तीसरे दिन सास वापस आ गईं।थोड़ी ही देर में उसके चिंतित चेहरे को देखकर वे भांप गईं कि गायत्री किसी अत्यंत बड़ी समस्या से जूझ रही है।उन्होंने गायत्री को अपने पास बिठाकर पूछा कि क्या समस्या है, खुलकर मुझे बताओ।बड़ी देर खामोश रहने के बाद उसने रोते हुए कहा कि मां,मैं जो कहने जा रही हूं, शायद आप यकीन नहीं कर पाएंगी।सास ने आश्वासन दिया कि मुझे तुमपर बेहद विश्वास है, तुम बेहिचक सारी बात बताओ।

गायत्री ने रोते हुए,धड़कते हृदय से सारी कहानी सुना दी।सास के कठोर चेहरे को देखकर वह हिरनी की भांति भयभीत हो गई।लेकिन यह क्या!सास ने उठकर उसके आंसू पोछते हुए कहा कि पगली,तू क्यों रो रही है?मुझे इसकी आशंका सदा से थी।इसीलिए तुझे मैं हमेशा अपनी आंखों के सामने रखती थी।माफी तो मुझे मांगनी चाहिए कि तुझे असुरक्षित छोड़कर मैं चली गई थी लेकिन मुझे तेरी समझदारी पर नाज है।हम दोनों मिलकर इस समस्या का भी समाधान निकाल लेंगे।गायत्री ने नेट पर IVF के बारे में पढ़ा था।उसने सास से इस संदर्भ में बात किया।

कुछ दिनों के बाद सास गायत्री औऱ मोहन को लेकर शहर के एक बड़े महिला चिकित्सक के पास गईं।मोहन की मनःस्थिति को बताते हुए जानना चाहा कि क्या IVF तकनीक से गायत्री गर्भवती हो सकती है?डॉक्टर ने बताया कि यदि मोहन में स्पर्म की स्थिति सही होगी तो यह पूर्णतया सम्भव है।एक आशा की किरण सास,बहू की आँखों में कौंध गई।सबसे पहले मोहन के स्पर्म की जांच हुई, जो बिल्कुल सही निकला।फिर गायत्री के सारे टेस्ट किए गए, उनके भी रिपोर्ट नॉर्मल आए।आगे की प्रक्रिया के लिए डॉक्टर ने तिथि निर्धारित कर दिया।उचित समय पर IVF की प्रक्रिया सम्पन्न की गई।दो भ्रूण गर्भाशय में आरोपित किए गए।इस तकनीक में कम से कम दो भ्रूण इसलिए आरोपित किए जाते हैं कि यदि किसी कारण से एक खराब हो जाय तो दूसरा पूर्ण विकसित हो सके,इसीलिए अक्सर दो बच्चों का जन्म होता है।एक माह तक डॉक्टर ने अपनी पूरी निगरानी में रखा, जब विकास से पूर्ण सन्तुष्ट हो गईं तो सभी हिदायतों एवं औषधियों के साथ उन्हें समय- समय पर चेकअप कराने की सलाह के साथ घर भेज दिया।पूर्ण बेड रेस्ट के साथ गायत्री के खान-पान तथा सेहत का ध्यान सास पूर्ण सावधानी से कर रही थीं।जब 7 महीने का गर्भ हो गया तब उन्होंने धूमधाम से गोद भराई की रस्म को सम्पन्न कराया।राजसिंह सारी बात जानकर हैरान रह गए।यथासमय गायत्री ने सिजेरियन ऑपरेशन द्वारा दो स्वस्थ बच्चों एक बेटी एवं एक बेटे को जन्म दिया।सबकी खुशी का पारावार न रहा। राजसिंह ने अपनी बहू से हाथ जोड़कर अपने घृणित विचार के लिए माफी मांगी।

हॉस्पिटल से घर आने पर जब मोहन ने दो छोटे बच्चे देखे,तो खुशी से उछल पड़ा।गायत्री ने उसे समझाया कि आप इन बच्चों के पिताजी हैं।मोहन ने मासूमियत से पूछा,"जैसे मैं बाऊजी का बेटा हूँ, वैसे ये भी बड़े होकर मुझे बाऊजी कहकर बुलाएंगे।"गायत्री के हाँ कहने पर पूरे घर में प्रसन्न होकर शोर मचाने लगा।मोहन की दुनिया बच्चों के इर्द गिर्द घूमने लगी।बेटे का नाम कृष्ण एवं बेटी का सिया रखा।जब बच्चे एक वर्ष के हो गए, तब सास ने गायत्री से अपनी अधूरी शिक्षा को पूर्ण करने को कहा।सास सहायिकाओं की सहायता से बच्चों को सम्हालने लगीं।उनके प्रोत्साहन एवं सहयोग से गायत्री ने एमए,बीएड पूर्ण कर लिया।अब बच्चे भी स्कूल जाने लगे थे।सास की इच्छा थी कि गायत्री अपने पैरों पर खड़ी हो जाय,लेकिन बाहर नौकरी के लिए भेजने की न इच्छा थी,न हिम्मत।दोनों सास बहू ने काफी सोच-विचार के पश्चात गांव में ही डिग्री कॉलेज खोलने का निश्चय किया।जमीन तो थी ही,पैसों की भी कमी नहीं थी।

गायत्री के सहयोग से भाई राजू भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर शिक्षा विभाग में उच्च अधिकारी हो गया था।राजू अपनी बहन के त्याग से भली भांति परिचित था, वह जानता था कि उसके लिए गायत्री ने अपने जीवन की तमाम खुशियों को कुर्बान कर दिया था।गायत्री ने जब अपनी योजना भाई से बताई तो उसने शीघ्र ही सारी जानकारी एकत्रित कर लिया।फिर भाई-बहन ने अथक प्रयास से शीघ्र ही सारी औपचारिकताओं को पूर्ण कर दिया और एक वर्ष के अंदर ही कॉलेज प्रारंभ कर दिया।अभी ग्रेजुएशन तक प्रारंभ हुआ था, जिसे 2-3 साल में पीजी कॉलेज में बदलना था।5-6 वर्ष में उनके कॉलेज को सरकारी सहायता भी प्राप्त होने लगी।

आज गायत्री के स्कूल का पन्द्रहवां स्थापना दिवस था।बेटी मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी, पढ़ाई पूरी करने के पश्चात वह गांव में एक समस्त सुविधाओं से युक्त हॉस्पिटल खोलना चाहती थी।बेटा पीएचडी करने के बाद अपने स्कूल को सम्हालने में माँ का साथ देने वाला था।गायत्री को पत्नी सुख तो नहीं प्राप्त हो सका,लेकिन उसे अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी।वह अपने मातृत्व के सुख में प्रसन्न थी।उसका त्याग फलीभूत हुआ था।उसके बच्चे अपनी मां के संघर्ष से पूर्ण परिचित एवं अभिभूत थे।वह अपनी सास की आजीवन ऋणी रहेगी, जिन्होंने हर कदम पर उसका साथ दिया।जीवन की कठिनाइयों से उसने हार नहीं मानी औऱ आज वह सफल होकर लोगों के लिए एक उच्च आदर्श स्थापित कर चुकी है।

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