Kya Tujhe bhi ishaq hai? - 5 in Hindi Fiction Stories by R.K.S. 'Guru' books and stories PDF | क्या तुझे भी इश्क़ है? (भाग-5)

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क्या तुझे भी इश्क़ है? (भाग-5)

भाग-5. इसको समझाओ कुछ!
इधर कानपुर में शाम के नौ बज चुके थे। शिवाक्षी की माँ और उसकी छोटी बहन आरोही दोनों ही उदास बैठी हैं क्योंकि वो और उसके पिताजी दोनों ही अब तक घर नहीं आये हैं। पुलिस ने शिवाक्षी के पापा को फ़ोन करके थाने बुला लिया था। उन्होंने शॉर्ट में पूरी बात उसकी माँ को बताई थी कि सड़क पर एक्सीडेंट के बाद क्या हुआ था। जिसके बाद से ही वो इस बात से चिंतित हो गई थीं कि कहीं बहुत बड़ी परेशानी ना हो जाए। वो उन दोनों का ही इंतजार कर रही थीं कि तभी डोर बेल बजी...
- आरू जाकर दरवाजा खोलो।
- हाँ मम्मा जा रही हूँ..
आरोही ने कहा और उसके बाद उसने दरवाजा खोला। उसके सामने शिवाक्षी और उसके पापा थे। दोनों का ही चेहरा उतरा हुआ था। शिवाक्षी की कोहनी पर पट्टी की हुई थी। उन दोनों को एक साथ देखकर उसकी माँ के चेहरे पर हल्की ख़ुशी थी लेकिन फिर भी उनके दिमाग में कई सारे सवाल कौंध रहे थे। शिवाक्षी लिविंग रूम के सोफे पर जाकर चुप-चाप बैठ गई।
- क्या हुआ? सब ठीक है ना? आप यूं उदास क्यों लग रहे हैं?
- हाँ सब ठीक है। जिस लड़के की कार के साथ शिवाक्षी का एक्सीडेंट हुआ था और उसके बाद लड़ाई हुई थी वो कोई और नहीं इंस्पेक्टर वीरेंद्र का बेटा अनिरुद्ध था। वीरेंद्र का बड़ा भाई सुबोध हमारा क्लासमेट रहा चुका है। वीरेंद्र शिवाक्षी को जानता नहीं था इस वजह से उसने कार्यवाई करने की बात की लेकिन जब उसने हमें देखा तो वो पहचान गया। जिसके बाद उसने अनिरुद्ध और शिवाक्षी की दोस्ती करवाई। आई मीन अब सब ठीक है.. ज्यादा टेंशन की बात नहीं है, तू बस चाय बना ले। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा। लेकिन ना जाने क्यों शिवाक्षी की माँ उनके इस तरह से बोलने की वजह से खुश नहीं थीं। वो चाहती थीं शिवाक्षी को उसकी गलती पर उसे डांटा जाए। जब उन्होंने चाय बनाने के बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो एक बार फिर शिवाक्षी के पिताजी ने उनसे कहा।
- अरे, चाय बनाओ न, बैठी क्यों हो?
- मैं नहीं बना रही चाय....
उसकी माँ ने गुस्से में कहा।
- क्यों.. अब क्या हुआ? अब तो सब ठीक है ना?
- सब ठीक है? आप कहना क्या चाहते हैं इतना सब हो जाने के बाद आपको सब ठीक ही नजर आ रहा है?
शिवाक्षी की माँ ने क्रोधित होकर पुछा। शिवाक्षी और आरोही दोनों ही चुप थीं।
- अरे, तो सब ठीक ही तो है? शिवाक्षी के ज्यादा चोट नहीं लगी। इसकी स्कूटी भी मैंने ठीक करवाने के लिए सर्विस सेंटर भेज दी है। सामान भी ले आए हैं, अब क्या रह गया है?
- सबकुछ हो गया है.. बस पच्चीस की हो जाने के बावजूद भी इसको अक्ल आनी बाकी रह गई है शिवी के पापा। आपको नहीं लगता कि आपके लाड प्यार ने इसको कुछ ज्यादा ही बिगाड़ दिया है। बचपन में ये जब मोहल्ले के लड़कों को कूटकर आती थी या किसी का सिर फोड़ देती थी तो आप इसे शाबाशी देते थे... वाह, हमारी बेटी लड़कों से डरती नहीं बल्कि उन्हें सबक सिखाती है..!
- हाँ, तो मम्मा क्या गलत कहते थे पापा। वो हमें साथ में क्रिकेट नहीं खिलाते थे.. और जब खिलाते थे तो बस हमसे फील्डिंग करवाते। बोलते थे कि पहले फील्डिंग करो, बाद में बैटिंग मिलेगी.. और जब हमारी बारी आती तो वो मैच को कॉल ऑफ कर देते.. एक तो उनको पिद्दी दो.. और जब बारी खेलने की आये तो हमें खेलने नहीं देंगे। साला ये कौनसी बात हुई? इस लिए हम धुन देते थे... क्यों पापा सही बोला ना..
उसने जोर से कहा।
- तू ना ज्यादा बोल मत। आप इसे समझा रहे हो या नहीं। बचपन में हम इसके लड़ाकू स्वभाव से परेशान थे और अब भी ये हमें परेशान करती है। आपको पता होना चाहिए ये अब गलत लाइन पर जा रही है.. आज अनिरुद्ध को थप्पड़ लगा दिया.. कल किसी और को मारेगी, बोलो इसकी का जरूरत थी..
उसकी माँ ने क्रोधित होकर कहा।
- जरूरत थी मम्मा.. एक तो हमारी अनारकली को उसने टक्कर मारी, उस बेचारी का मडगार्ड तोड़ डाला। ऊपर से हमें ही गरियाने लगा। बोला, मेरी गलती है। जब हमने नहीं मानी तो हमसे झगड़ने लगा। हमने बोल दिया ज़्यादा दिमाग ना ख़राब कर हम धुन देंगे तो गरियाते हुए बोला तेरी औकात नहीं है हमको मारने की.. मारके दिखा। पहले हमने खुद के गुस्से पर काबू रखा लेकिन बाद में जब उसने बार-बार कहा तो हमारा पारा चढ़ गया और हमने जोर का झापड़ लगा दिया.. अब देखो हमें कोई बार-बार कहेगा कि मारके दिखा तो हम मारेंगे नहीं का...
उसने गुस्से में कहा।
- देखो, देखो.... कैसे बातें कर रही हैं आपके सामने ही, एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी। इंस्पेक्टर के बेटे के थप्पड़ मार दिया। वो तो अच्छी बात थी कि वो तुम्हारे पापा के दोस्त का बेटा निकला वर्ना लेने के देने पड़ जाते..
- क़ानून सबके लिए एक जैसा होता है मम्मा, आप ना सीखाओ हमें..
उसने फिर से मुंह बनाते हुए कहा.
-देखो इसके नखरे.. आप सुन रहे हो ना। मैं बोल दे रही हूँ वक्त रहते इस लड़की पर लगाम लगा लो.. वरना वो दिन दूर नहीं जब ये अपनी वजह से हम सबको जेल की हवा खिलाएगी।
उन्होंने गुस्से में कहा लेकिन उसके पापा चुप थे। वो कुछ नहीं बोले क्योंकि वो जानते थे आज शिवाक्षी की कोई गलती नहीं है लेकिन फिर भी वो चाहते थे कि शिवाक्षी अपने गुस्से पर कंट्रोल करे।
- आप जवाब दे रहे हो या नहीं। मैं कबसे बोल रही हूँ।
- पापा दे दो जवाब इनको और कर दो हमको नजरबंद। हम जा रहे हैं अपने कमरे में और हाँ कोई अब हमें परेशान करने के लिए ऊपर ना आए। हम आज भूखे ही सो जायेंगे।
उसने गुस्से में कहा और उसके बाद वो अपने कमरे की तरफ चली गई।
- देखो... देखो.. आपके सामने से जा रही है..
- तुम चुप करो ना.. हमारे आँखें हैं..और हमें अच्छे से पता है इसको कैसे समझाना है। बात का बतंगड बनाने की जरूरत ना है.. एक चाय बनाने को बोला था तुमको.. लेकिन तुम हो कि हर रोज शिवी को लेकर महाभारत खड़ी कर देती हो।
शिवाक्षी के पापा ने गुस्से में कहा और उसके बाद वो भी अपने कमरे की तरफ चल दिए। उसकी माँ हैरान होकर किचन की तरफ चली गई। वो भी मन ही मन सोच रही थी कि आखिर उनकी गलती क्या है? वो शिवाक्षी का भला ही तो चाहती हैं वरना उसके गुस्सैल स्वभाव के चलते कोई दिन ऐसा आयेगा जब परिस्थिति उनके नियन्त्रण में नहीं रहेगी।
इधर शिवाक्षी के पापा भी यही सोच रहे थे कि कुछ हद तक शिवाक्षी की माँ ठीक ही कह रही है। शिवाक्षी को अगर वक्त रहते नहीं समझाया गया तो उसके स्वभाव के चलते आगे उसे दिक्कत हो सकती है। ऐसे में उन्होंने शिवाक्षी के नेचर को बदलने के लिए तरकीब लगानी शुरू की। हालाँकि इसमें ये तो तय था कि वो उसे प्यार से ही समझाने वाले थे। उन्हें ऐसा प्लान सोचना था जिसे सुनकर शिवाक्षी खुद को बदलने का मन बना ले। हालाँकि ये इतना आसान होने वाला है ये तो वक्त ही बतायेगा!
क्रमश: