Nainam chhindati shstrani - 58 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 58

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 58

58

इंदु के व्यक्तित्व की पारदर्शिता से समिधा के पिता तथा सूद अंकल-आँटी प्रभावित हुए, उनकी बेटी को सारांश जैसा सुयोग्य तथा उच्च शिक्षित परिवार मिलेगा, इसकी उन्होंने कल्पना तक न की थी | वैसे उनके जीवन में सुख और दुख दोनों अचानक तथा अकल्पनीय ही तो आते रहे हैं| इंदु की सरलता तथा भद्रता देखकर वे अपनी बेटी से यह पूछना भी भूल गए कि उसका तथा सारांश का रिश्ता कैसे तथा किन परिस्थितियों में शुरू हुआ था ? उन्होंने अपने घर की परिस्थिति एवं स्थिति के बारे में इंदु को स्पष्ट रूप से बताया | 

इंदु पहले ही सारांश से सब-कुछ जान चुकी थी | बच्चे अपना जीवन प्रसन्नता से बिता सकें, एक-दूसरे की परेशानियों को समझें, सुख-दुख बाँटें, जीवन की समस्याओं का निदान आपस में ही मिल-बाँटकर ढूँढ़ें –बस !ज़िंदगी आपसे बहुत कुछ नहीं चाहती, वह सरलता से शांत नदी की भाँति सबको तृप्ति प्रदान करते हुए आगे बढ़ना चाहती है | 

समिधा के पिता तथा सूद अंकल-आँटी इंदु से मिलकर, बातें करके संतुष्ट हो गए | लड़की सुख से अपने घर-संसार में रहे, इससे अधिक माता-पिता की और क्या चाहना होती है ? समिधा के पिता अपनी इस मातृविहीन बिटिया के लिए चिंतित रहते थे | सारांश व इंदु से मिलकर उनकी चिंता काफ़ूर हो गई | उनकी बिटिया इतनी खुशनसीब हो सकती है ! उन्हें इसकी कल्पना तक न थी | इंदु के खूबसूरत चेहरे व व्यक्तित्व से उसके भीतर की सरलता, सहजता मुखर होती थी | उसके ठहरे हुए व्यक्तित्व में गज़ब का आकर्षण था जो उसके प्रति सहज श्रधा का भाव उत्पन्न करता था | 

इंदु के अपने सुख-दुख थे, अपना एकाकीपन था, अपनी जीवन-शैली थी, अपनी ऐसी अंतरंग बातें थीं जिनको वह किसी के भी साथ नहीं बाँट सकती थी, बेटे के साथ भी नहीं !वह सबके खिले हुए चेहरे देखना चाहती थी, सबमें प्यार व स्नेह बाँटना चाहती थी | 

अपने गोरे, सुंदर हाथों से जड़ाऊ कंगन उतारकर इंदु ने बहुत स्नेह से समिधा के हाथों में पहना दिए और उसे अपने गले से लगा लिया | क्षण भर के लिए समिधा को लगा मानो उसकी अपनी माँ लौट आई है | इंदु के स्नेहमय आँचल में छिपी वह एक नन्हे बच्चे की भाँति सुबक पड़ी | समिधा के सिर को अपने स्नेहपूर्ण हाथ से सहलाते हुए इंदु उसे जीवन की वास्तविकता से अवगत कराते हुए बोली –

“बेटा ! सारांश के साथ मैं तुम्हारी भी माँ हूँ, तुम मुझसे अपनी कोई परेशानी भी साझा कर सकती हो | अपनी कुछ भी परेशानी मुझसे बाँटकर हल्की हो सकती हो, संकोच मत करना | तुम्हारे जीवन में खूब खुशियाँ आएँ, खूब प्रगति करो | लेकिन जीवन कोई साफ-सुथरी समतल सड़क नहीं है, इसके हर मोड़ पर घेराव हैं | इसके रास्ते कभी पत्थरों से भर जाते हैं तो कभी काँटों से ! कभी-कभी जीवन में ऐसे मोड़ भी आते हैं जिन्हें अकेले पार करना कठिन होता है | ऐसे समय एक मित्र, साथी की आवश्यकता होती है } यदि पति में ही मित्र मिल जाए तो किसी भी परिस्थिति का सामना आसानी से किया जा सकता है | परंतु यदि पति-पत्नी में से एक भी अकेला पड़ जाए तो ---“ वे चुप हो गईं, पीड़ा उनकी आँखों से छलक़ने लगी | 

इंदु की इस पीड़ा को सारांश तथा समिधा ने भाँप लिया था | पल भर बाद ही इंदु के मुख पर मुस्कान थी और वह सामान्य दिखने लगी थी | उसने समिधा के पिता के समक्ष बच्चों के विवाह का प्रस्ताव रखने में पल भर भी विलंब नहीं किया | 

“यदि आप इस रिश्ते के लिए तैयार हैं तो इस रविवार को इनका विवाह आर्य समाज मंदिर में करवा दीजिए जिससे मैं निश्चिंत होकर जा सकूँ | ”

इंदु के अचानक ही विषय बदलकर इस प्रकार प्रस्ताव रखने से वहाँ स्थित सभी लोग सोच में पड़ गए | 

यह स्त्री हर बात में इतनी शीघ्रता क्यों करती है ?समिधा के पिता के मुख से तुरंत ही निकला, 

“इतनी जल्दी ?”

“ऐसे ही थोड़े हो जाती हैं शादियाँ ! वे किसी तैयारी से भी नहीं आए थे | क्या कर लेंगे वो दो-तीन दिन में ? सब कुछ ठीक लगते हुए भी उन्हें लग रहा था इतनी जल्दी क्यों ? कहीं ऊपर से कुछ और अंदर से कुछ और गड़बड़ तो नहीं है ? एक पिता का इस प्रकार चिंतित होना स्वाभाविक भी था | पता चला जितने खुश हुए बाद में उतना ही पछताना पड़े ! वे इंदु से दुबारा मुखातिब हुए ;

“इतनी जल्दी ?” फिर और कुछ नहीं सूझा तो बोले –

“इतनी जल्दी सारांश के पापा आ सकेंगे ?”

“वो तो वैसे भी नहीं आ सकेंगे, मुझे उनके कारण ही तो जल्दी है | उनकी तबीयत ठीक नहीं है, नौकरों के ऊपर छोड़कर आई हूँ | ”इंदु ने विवशता व्यक्त की | 

समिधा के पिता, सूद आँटी-अंकल, बॉस पति-पत्नी, रोज़ी सभी को कुछ अजीब लगा | बिना किसी पूर्व योजना के इतनी जल्दी विवाह ! सारांश को माँ का व्यवहार अनुचित भी लगा | केवल अपना स्वार्थ !आखिर उन्हें समिधा के पिता के बारे में भी सोचना चाहिए---बस, किसी प्रकार अपने कंधे का बोझ कम हो जाए –यह तो कुछ बात नहीं हुई | 

सारांश के मन में माँ के प्रति नाराज़गी घर करने लगी | माँ सब कुछ जानती, समझती हैं फिर भी बेटे की तुलना में पापा को अधिक महत्व देती रही हैं | क्यों नहीं समझतीं माँ अपना एकाकीपन !मेरा एकाकीपन ! क्यों और कैसे माफ़ कर सकती हैं ऐसे पति को जो उनके साथ कभी भी नहीं थे | सारांश के मन में इस प्रकार कभी भी उपद्रव होने लगता था | सबके सामने माँ कैसे पति की तरफ़दारी कर रही थीं | कभी-कभी उसका मन करता है, वह माँ से भी बात न करे | क्या माँ पापा को नहीं समझा सकती थीं कि एक बच्चे के जीवन में पिता का क्या स्थान होता है ?फिर खुद ही सोचता –‘माँ, खुद भी तो अकेली थीं, वे पापा के लिए ही तो साँस लेती रही हैं ताउम्र !”और अपना मन मारकर गुमसुम हो जाता | 

आपस में चर्चा करने के उपरांत समिधा के पिता को सारांश के पिता की अस्वस्थता के मर्म ने छू लिया था | सबके मन में यही विचार आया कि इंदु पति के अस्वस्थ होने की स्थिति में इससे बेहतर निर्णय और ले भी क्या सकती थी ? उन्हें पति व बेटे दोनों का ही ध्यान रखना था | न जाने सारांश के पिता कितने अस्वस्थ होंगे | देखा जाए तो इंदु की स्थिति दो पाटों के बीच में दबी हुई थी फिर भी वह स्वयं को सँभालकर पूरे मन से संलग्न थीं, इंदु की इच्छानुसार विवाह का दिन निश्चित हो गया| 

यह आश्चर्यजनक हर्ष की बात थी कि जैक्सन के माता-पिता भी उन्हीं दिनों बंबई पहुँचे थे और रोज़ी तथा जैक्सन का विवाह भी उसी रविवार को होना निश्चित हुआ था जिस दिन सारांश व समिधा का हुआ था | अब क्या किया जाए ? | स्वाभाविक था दोनों सहेलियाँ एक-दूसरे के विवाह में सम्मिलित होना चाहती थीं | बीच का रास्ता निकाला गया| सारांश व समिधा का विवाह रविवार को सुबह दस बजे आर्य समाज में होना निश्चित हुआ और रोज़ी तथा जैक्सन का शाम चार बजे चर्च में | इंदु ने दो दिनों में जो थोड़ी-बहुत खरीदारी हो सकी, की | समिधा के पिता से उन्होंने हाथ जोड़कर कहा था ;

“भाई साहब !आप बिल्कुल भी चिंता न करें, कुछ चीज़ें सुनिश्चित होती हैं | आपका और हमारा संबंध सुनिश्चित था जो हम लोगों का इस प्रकार मिलना हुआ | मैं जानती और समझती हूँ कि अपनी बेटी किसी को बिना जाने-पहचाने सौंप देना कोई सरल काम नहीं है | बस, आपको हम पर विश्वास करना होगा | वैसे यदि आप चाहें तो इलाहाबाद से हमारे परिवार के बारे में पूछताछ कर सकते हैं परंतु मुझे खेद है कि मेरे बहुत पास समय बहुत कम है | मुझे जल्दी इलाहाबाद वापिस लौटना है | ” इंदु बहुत उदास थीं, उन पर किसी प्रकार का संदेह करने का कोई कारण ही नज़र नहीं आ रहा था | पति की अस्वस्थता की स्थिति में इससे बेहतर निर्णय और क्या हो सकता था ??