Suhag, Sindoor aur Prem - 9 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | सुहाग, सिन्दूर और प्रेम - भाग(९)

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सुहाग, सिन्दूर और प्रेम - भाग(९)

माधुरी तो इसी ताक में थी कि कब वो सरगम और कमलेश्वर को साथ साथ देख ले और उनके रिश्ते को कलंकित कर दे,सरगम को खुश देखकर उसके सीने में साँप लोटने लगते,वो खुद ही एक चरित्रहीन महिला था,इसलिए तो अब तक उसने शादी नहीं की थी।।
वो मौकें की तलाश में थी और आखिरकार उसे एक दिन मौका मिल ही गया....
वट-सावित्री का त्यौहार था,इत्तेफाक से उस दिन इतवार था,सबकी आँफिस की छुट्टी थी,उस दिन काँलोनी की बहुत सी सुहागिनों ने इस व्रत को किया,सभी सुहागिनें सम्पूर्ण श्रृंगार करके पूजा के लिए काँलोनी के बरगद के पेड़ के नीचे इकट्ठी हो गईं,वो बरगद का पेड़ सरगम के घर के ठीक सामने था और बरगद के पेड़ के बगल में बिल्कुल छोटा सा मंदिर और कुआँ भी था,आज पंडित जी ने पूजा के लिए कुएंँ में छोटी सी पीतल की बाल्टी लटका रखा थी वो इसलिए कि सभी औरतें पूजा के लिए कुएँ का पानी ही इस्तेमाल करें,
इतवार का दिन था तो कमलेश्वर,सरगम के घर पहुँच गया था,बच्चों के लिए कुछ खाने पीने का सामान लेकर,बुआ बोली अब आ ही गए हो तो दोपहर का खाना खाकर जाना,बच्चों ने खिड़की से देखा कि सब पूजा कर रहे हैं तो वें भी पूजा बाहर जाकर देखने की जिद करने लगें,लेकिन सरगम बाहर नहीं जाना चाहती थी,
क्योंकि वो भी पहले इस व्रत को किया करती थी लेकिन संयम के जाने के बाद उसकी माँग से सिन्दूर ही चला गया था तो फिर किसके लिए वो ये व्रत करती,सभी सुहागिनों को देखकर उसने भी सोचा कि आज संयम होता तो वो भी इसी तरह दुल्हन की तरह श्रृंगार करती।।
बच्चों के ज्यादा जिद करने पर सरगम को बाहर आना ही पड़ा,बच्चों के साथ साथ बुआ भी बाहर निकल आई,सब बाहर निकले तो कमलेश्वर अकेले अंदर क्या करता वो भी बाहर निकल आया और सभी पूजा देखने लगें....
पूजा देखने के लिए कालोनी की और भी औरतें इकट्ठी हो गई,जो इस व्रत को नहीं करतीं थीं वो भी,सबके साथ में वहाँ पर माधुरी भी मौजूद थी,माधुरी को तो बस मौका चाहिए था,वो मौकें की तलाश में थी और आज उसे वो मौका मिल गया था।।
पूजा बस खतम ही हुई थी,पंडित जी कथा बाँचकर मन्दिर में पहुँचे ही थे कि माधुरी ने वहाँ मौजूद महिलाओं से खुसर पुसर करनी शुरु कर दी,वो बोली....
देखो तो सुहागिनों के बीच में ये अभागन क्या कर रही है? यही तो होता है लोगों को दूसरों की खुशी देखी नहीं जाती,अपना सुहाग और माँग का सिन्दूर तो खो दिया और दूसरों पर नज़र लगाने आ जाते हैं....
माधुरी की बात सुनकर सरगम को बहुत बुरा लगा और वो घर के भीतर जाने लगी लेकिन दयमंती बुआ ने उसे इशारे से घर के भीतर जाने से मना कर दिया तो सरगम रूक गई,ये बात कमलेश्वर को भी बहुत बुरी लगी,लेकिन उसने सोचा औरतों का मामला है उसका यहाँ बोलना थोड़ा ठीक नहीं रहेगा,
तभी माधुरी फिर बोली....
देखो तो इतना सुनने के बाद लोगों में जरा सी भी शरम नहीं रह गई हैं,बेशर्मों की तरह यही खड़े हैं,माधुरी ने आग तो लगा ही दी थी,थोड़ी देर में उसमें धुआँ भी उठने लगा और उनमें से कुछ औरतें माधुरी की हाँ में हाँ मिलाते हुए बोलीं.....
सही कहती हो माधुरी लोगों में शरम-लिहाज तो जैसे रह ही नहीं गया है कब से सब खुल्लमखुल्ला हो रहा है,हमारी भी बहु-बेटियाँ इस काँलोनी में रहतीं हैं ना जाने उनके ऊपर क्या असर पड़ेगा? लेकिन लोंग मानते ही नहीं बेशर्मी ज़ो लाद रखी है।।
उन सबकी बात सुनकर अब दयमंती बुआ चुप ना रह सकी और सबसे बोल पड़ी.....
आप सब लोगों के कहने का मतलब क्या है? जो कुछ कहना है खुलकर कहिए ना!
तभी माधुरी बोल पड़ी...
अब भला बोलने लायक रह क्या गया है? हम सब अन्धे नहीं है,हम सबको सब दिखाई देता है जो अनर्थ हो रहा है ना!उस अनर्थ को आप के अलावा सभी देख रहें हैं॥
कैसा अनर्थ हो रहा है? भला मैं भी तो सुनूँ,किसी पर ऐसे कैसे झूठा इल्जाम लगा सकतीं हैं आप सब,दयमंती बुआ बोली।।
तभी उनमें से एक और बोली....
वाह..जी..वाह..झूठा इल्जाम! आपके घर में जो हो रहा है वो सबको दिखाई दे रहा है।।
क्या हो रहा है मेरे घर में? दयमंती बुआ ने पूछा।।
यही की जवान विधवा बहु से मिलने गैर मर्द आता है और आपको कोई एतराज़ ही नहीं है।।
किसे गैर मर्द कह रही हो? वो तो उसके बचपन का दोस्त है,दयमंती बुआ बोली।।
उनमें से एक फिर बोली....
जाओ...जी...जाओ...हमने ऐसे बहुत से बचपन के दोस्त देखें हैं,दोस्ती की आड़ में पराए मर्द के संग गुलछर्रे उड़ाए जा रहे हैं और इसे आप दोस्ती का नाम दे रहीं हैं।।
तभी सरगम चीख पड़ी....
ये सब क्या लगा रखा है आपलोगों ने? मैं कुछ बोल नहीं रही तो कोई कुछ भी कहता रहेगा? मुझे पता है कि मैं निर्दोष हूँ ,मैने कोई पाप नहीं किया।।
पाप करने वाला कभी अपना पाप स्वीकार नहीं करता सरगम!वही तुम भी कर रही हो,माधुरी बोली।।
मुझे पता है माधुरी ये आग तुम्हारी लगाई हुई है,जब मैं निर्दोष हूँ तो क्यों कहूँ कि मैं पापिन हूँ? भगवान साक्षी है कि मेरे मन में कोई खोट नहीं है,सरगम बोली।।
उनमे से एक फिर बोली...
सरगम! तुम हमें क्या बता रही हो? क्या हमें दुनियादारी नहीं मालूम?जवान औरत को देखकर हर मर्द बस यही चाहता है कि कब वो उसके आगोश में आ जाए?
ये कैसीं गन्दी बातें कर रहे हैं आप लोंग मेरे लिए,ये कहते कहते सरगम रो पड़ी।।
अच्छा जी! देखो तो कैसा जमाना आ गया है? ये पाप करें और हम कहें भी ना कि तुम गलत कर रही हो,उनमे से एक फिर से बोली।।
तो क्या चाहते हैं आप लोंग?सरगम ने पूछा।।
तुम काँलोनी में ये गंदगी फैलाना बंद करो,माधुरी बोली।।
मैने कोई गंदगी नहीं फैलाई,मुझे मेरे बच्चों की कसम,सरगम बोली।।
तो फिर कमलेश्वर तुम्हारे घर में दिन रात क्यों घुसा रहता है? उनमे से एक ने पूछा।।
वो केवल मेरा दोस्त है और कुछ नहीं,सरगम बोली।।
तुम झूठ बोलती हो,माधुरी बोली।।
मैं झूठ नहीं बोलती,सरगम बोली।।
देखों तो कितनी सती-सावित्री बनती है,इसकी तो नस-नस में झूठ है,माधुरी बोली।।
चुप हो जाओ तुम सब! अब मुझसे और नहीं सुना जाता और सरगम अपने कानों पर हाथ रखते हुए रोते हुए जमीन पर बैठ गई....
अब कमलेश्वर इससे ज्यादा बरदाश्त नहीं कर सकता था,वो सरगम के पास आया और उसका हाथ पकड़ते हुए मन्दिर तक ले गया,मन्दिर से उसने सिन्दूर उठाया और सरगम की माँग भर दी,फिर बोला...
अब आज के बाद कोई भी सरगम का नाम नहीं उछालेगा,आज से वो मेरी ब्याहता है,मेरी पत्नी है,मैं देवी माँ को साक्षी मानते हुए आज इसे अपनी धर्मपत्नी स्वीकार करता हूँ,आज से इसके बच्चे मेरे बच्चे और दयमंती बुआ मेरी माँ सामान होगीं।।
अब वहाँ मौजूद औरतों के मुँह पर ताला लग चुका था और सब जहाँ तहाँ भाग खड़ी हुईं,अपनी चाल उलटी पड़ती देख सबसे पहले तो माधुरी भागी।।
पंडित जी भी कब से खड़े खड़े सब देख रहें थें लेकिन औरतों के बीच में बोलने की उनकी हिम्मत ना पड़ी थी,
माँग में सिन्दूर भरते ही सरगम हतप्रभ सी हो गई,जो हुआ उसकी उम्मीद उसे कतई नहीं थी,वो उस क्षण एक दम सन्न सी हो गई और चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ी।।
कमलेश्वर ने फौरन ही सरगम को जमीन से उठाया और मंदिर के पास बैठा दिया ,बुआ भी सरगम के पास बैठ गई,कमलेश्वर ने जल्दी से कुएंँ से पीतल की छोटी सी बाल्टी में पानी भरा और सरगम के पास आकर उसके मुँह पर छींटे मारें,सरगम ने आँखें खोलीं और गुस्से में बाल्टी उठाई और अपने सिर पर उड़ेल जिससे उसकी माँग का सिन्दूर धुल जाएं और फिर आवेश में आकर बोली.....
नहीं बनना मुझे किसी की पत्नी,लो धुल गया सिन्दूर,तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी माँग में सिन्दूर भरने की,ये करके तुम साबित क्या करना चाहते हो कि तुम मेरे बहुत बड़े हितैषी हो?
मैं विधवा हूँ इसका मतलब मैं असहाय हो गई हूँ,मुझे किसी की जुरूरत नहीं, मैं खुद को और अपने बच्चों को अच्छी तरह से सम्भाल सकती हूँ,मुझे ये रिश्ता कतई मंजूर नहीं,तुमने मेरी माँग भर दी तो क्या मैं तुम्हें अपना पति मान लूँगी,
मेरे पति संयम थे और हमेशा वही रहेंगें,मैं उनसे ही प्यार करती थी और ताउम्र उनको ही चाहती रहूँगी,क्या हुआ जो वो इस दुनिया में नहीं है,लेकिन वो मेरे दिल में हमेशा रहते हैं और मेरे दिल में हमेशा वही रहेगें,उनकी जगह और कोई नहीं ले सकता,
तुम चले जाओं यहाँ से और आइन्दा अपनी शकल मुझे मत दिखाना,अब मैं तुम्हारा मुँह भी नहीं देखना चाहती और इतना कहकर सरगम ने कमलेश्वर की तरफ से अपना मुँह फेर लिया।।
सरगम की बात सुनकर पंडित जी सरगम के पास आकर बोलें....
बेटी! इस बच्चे ने देवी माँ को साक्षी मानकर तेरी माँग भरी है,वो भी इन समाज वालों का मुँह बंद करने के लिए,मैं ये तो नहीं कहता कि इस बच्चे ने बिल्कुल सही किया लेकिन उसे ये करने के लिए मजबूर किया गया,तुम समाज का मुँह नहीं बंद कर सकती थी लेकिन इस बच्चे ने तुम्हारी माँग भरके गंदी सोच वालों की बोलती बंद कर दी।।
मैं जानता हूँ कि तुमने अपने मन-मन्दिर में अपने पति को ही देवता स्वरूप बिठा रखा है लेकिन बेटी तुम ये क्यों नहीं समझ रही कि वो अब तुम्हारी सहायता करने भगवान के घर से वापस नहीं आ सकता,बेटी! माना कि नारी में बहुत शक्ति होती है साक्षात् वो देवी काली का स्वरुप हो सकतीं है लेकिन काली माँ भी स्वयं को भगवान शंकर के बिना अधूरा मानती हैं ,
तो बेटी ! मैं तुम पर कोई दबाव नहीं डाल रहा क्योंकि तुम अपना भला-बुरा समझने में स्वयं सक्षम हो,लेकिन आज के दिन इस बच्चे ने तुम्हारी माँग भरकर गंदे समाज के मुँह पर जोर का तमाचा मारा है,तुम्हारे सम्मान की खातिर ही उसने पल भर में इतना बड़ा कदम उठा लिया तो मेरा तो मानना है कि तुम इसे दिल से अपना पति ना स्वीकारो लेकिन समाज के सामने इसे आज अपना पति स्वीकार लो,यही तुम दोनों के उज्जवल भविष्य के लिए अच्छा रहेगा।।
पंडित जी की बात सुनकर दयमंती बोली......
सरगम ! पंडित जी की बात से मैं भी सहमत हूँ,लेकिन अभी तुम घर चलो,सब वहीं सोच विचार करेंगें,
सरगम तो बहुत बड़ी उलझन में थी,इसलिए उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था,वो बस अभी यहाँ से जाना चाहती थी।।
दयमंती ने पंडित जी को धन्यवाद दिया और कमलेश्वर से इशारों में कहा कि तुम अभी अपने घर जाओ,मैं बाद में तुमसे मिलती हूँ,कमलेश्वर अपने घर लौट गया और दयमंती,सरगम और बच्चों को लेकर घर आ गई।।
घर आकर सरगम फौरन बाथरुम में घुसी और शाँवर के नीचे खड़े होकर जो बचा-खुचा सिन्दूर उसकी माँग में रह गया था वो भी उसने धो दिया,ये सब दयमंती को अच्छा नही लगा लेकिन वो बोली कुछ नहीं क्योकिं मामला अभी बहुत गरम था,दयमंती के बोलने से क़हर आ सकता था।।
उधर कमलेश्वर भी बेहाल सा था उसकी हालत भी अच्छी नहीं थी,वो ये सब नहीं करना चाहता था,वो सरगम को चाहता तो था लेकिन इस तरह से उसको अपनी जिन्दगी में शामिल नहीं करना चाहता था ,वो करता भी क्या? परिस्थितियांँ ही ऐसी हो गई थीं,मजबूरीवश उसे ये कदम उठाना पड़ा।।
वो निढ़ाल सा बिस्तर पर जाकर लेट गया और सोचने लगा कि अब आगें वो क्या करेगा? सरगम तो उसका मुँह भी नहीं देखना चाहती,कैसे सुलझाएगा वो इस उलझन को,पता नहीं जिन्दगी ने कौन से दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है उसे,घरवालों से भी कुछ नहीं कह सकता।।
पता नहीं सरगम इस रिश्ते को स्वीकार भी करती है या नहीं,अचानक ये कैसा तूफान आया उसकी जिन्दगी में और एक ही पल में सब बिखर गया,उस दिन सबकी मनोदशा बहुत ही विदीर्ण थी, सबका दिन ऐसा ही गया,ना किसी ने खाना खाया और ना कोई किसी से बात कर रहा था,हाँ दयमंती बुआ ने जरूर बच्चों को खाना खिला दिया था लेकिन खुद नहीं खाया था।।
दोपहर से शाम हुई और शाम से रात लेकिन किसी के चेहरें पर मुस्कुराहट नहीं आई,सबके चेहरों पर ग़मो की उदासी के बादल छाए रहे,दयमंती बुआ ने रात का खाना बनाया, बच्चों को खिलाकर सुला दिया,और सरगम से आकर बोलीं....
तू जरा बच्चों को देखना ,मैं कमलेश्वर को खाना खिलाकर आती हूँ।।
सरगम मना तो करना चाहती थी और बुआ से पूछना चाहती थी कि उसे खाना खिलाने क्यों जा रहीं हैं? लेकिन उस समय उसने मौन रहना ही बेहतर समझा,क्योंकि कहते हैं ना कि मौन सभी समस्याओं का समाधान होता है,उसने सोचा कुछ कहेगी तो ऐसा ना हो कि बुआ को कुछ बुरा लग जाएं।।
उस समय सबकी ही स्थिति ही ऐसी थी ना बोलते बनता था और ना चुप रहते बनता था,कभी कभी बोलने से स्थितियाँ बिगड़ जातीं हैं इसलिए सब मौन ही रह रहे थे।।
दयमंती बुआ ,कमलेश्वरके घर पहुँची,कमलेश्वर के पास एक ही बिस्तर था और बुआ को उसने उस में बैठने के लिए कह दिया,बुआ बैठ गई और बोली...
ले खाना खा लें,मैं तेरे लिए खाना लाऊँ हूँ।।
मन नहीं है बुआ जी!भूख नहीं है,कमलेश्वर बोला।।
खाएगा नहीं तो आज तूने जो इतनी बड़ी जिम्मेदारी अपने सिर उठाई है ,उसे कैसे निभाएगा?दयमंती बुआ बोली।।
सरगम के शब्द तो सुने थे ना आपने वो कैसीँ बातें कर रही थी? वो तो मुझसे कोई भी रिश्ता रखने को तैयार ही नहीं,कमलेश्वर बोला।।
बस,तुझे अपने बचपन के प्यार पर इतना ही भरोसा था,इतनी जल्दी हार मान गया तू!दयमंती बुआ बोलीं।।
आपको कैसे पता चला कि मैं उसे बचपन से चाहता था? कमलेश्वर ने पूछा।।
बेटा! तुझसे उम्र और तजुर्बे में बड़ी हूँ,तेरी आँखों में पढ़ा है मैने कि तू उसे कितना चाहता है,दयमंती बोली।।
लेकिन सरगम को मैं स्वीकार नहीं बुआजी! कमलेश्वर बोला।।
बेटा! एक बात बोलूँ,ये जो पति-पत्नी का रिश्ता होता है ना है! उसमें एक तरह की शक्ति आ जाती है,क्योंकि पति-पत्नी एक दूसरे के पूरक होते हैं,ना चाहते हुए भी एक ना एक दिन दोनों के दिल एक दूसरे से मिल ही जाते हैं,
अभी वो तुझसे नाराज है,क्योंकि सब कुछ बहुत अचानक हो गया,इसलिए वो इस रिश्ते को स्वीकार नहीं कर पा रही है,उसे थोड़ा वक्त थे,उसका गुस्सा ठण्डा होते ही मैं उसे समझाऊँगी और देखना वो मेरी बात को जरूर समझेगी,दयमंती बुआ बोली।।
आप कहती हैं तो मैं उस वक्त का इन्तज़ार कर लेता हूँ,देखता हूँ कि कब तक सरगम के मन के गिले-शिकवें दूर होते हैं? कमलेश्वर बोला।।
और तू ये खाना मेरे सामने खतम कर फिर मैं सरगम को भी जाकर खिलाती हूँ,दयमंती बोली।।
तो आप भी मेरे साथ खा लीजिए,कमलेश्वर बोला।।
मैं सरगम के साथ ही खाऊँगीं,बच्चों को तो खिलाकर सुला आई थी,तू खा ले फिर मैं जाती हूँ,दयमंती बुआ बोलीं।।
और दयमंती , कमलेश्वर को अपने सामने ही खाना खिलाकर घर वापस आ गई फिर वें सरगम के लिए भी खाना परोसकर ले आईं और उससे खाना खाने को कहा....
बुआ जी! मुझे भूख नहीं है,सरगम बोली।।
तू नहीं खाएगी तो मैं भी नहीं खाऊँगीं,दयमंती बुआ बोली।।
ये कैसी जिद़ पकड़कर बैठ गईं हैं आप? सरगम बोली।।
तू बस खाना खा ले तो कोई जिद़ नहीं करूँगीं,दयमंती बुआ बोलीं।।
मैने कहा ना !मन नहीं है,सरगम बोली।।
देख परोसी हुई थाली का निरादर नहीं करते,दयमंती बुआ बोलीं।।
तो आप मुझे खाना खिलाकर ही मानेगीं,सरगम बोली।।
हाँ! दयमंती बुआ बोली।।
आप तो अपने लाड़ले को खाना खिलाने गईं थीं,मैने देखा था जब आप जा रहीं थीं उसके घर तो आपके हाथ में टिफिन था,सरगम बोली।।
वो भी तो मेरे संयम की तरह ही है,उसको ना खिलाती तो भूखा ही सो रहता बेचारा!दयमंती बुआ बोलीं।।
भूखा सोता है तो सो जाएं,मेरी बला से,सरगम बोली।।
इतनी निष्ठुर ना बन,दयमंती बोलीं।।
उसने ऐसा काम ही किया है,सरगम बोली।।
उसने कुछ गलत नहीं किया,जो कीचड़ तेरे ऊपर उछाला जा रहा था वो उसने अपने बदन पर ले लिया,तू तो बच गई लेकिन मैला वो हो गया,दयमंती बुआ बोलीं।।
लेकिन बुआ! मेरे दिल में अभी भी मेरे पति समाएं हैं,वो त़ो मेरे लिए परपुरूष है,सरगम बोली।।
लेकिन उसके दिल में तो तू समाई है,दयमंती बुआ बोलीं।।
क्या मतलब? सरगम ने पूछा।।
मतलब ये कि वो बचपन से केवल तुझे ही चाहता है इसलिए तो अभी तक उसने शादी नहीं की,दयमंती बुआ बोलीं।
क्या कह रहीं हैं आप? सरगम बोली।।
हाँ! और यही सच है,बचपन से तुझसे इतनी मार क्यों खाता आया है? क्योंकि वो तुझे चाहता था और चाहता है और आगें भी चाहता रहेगा,वो गहरी दोस्ती नहीं,सच्चा प्यार था,दयमंती बुआ बोलीं।।
बुआ! मैं अब तो और भी उलझन में फँस गई,सरगम बोली।।
तू अब खाना खा,इस पर फिर कभी बात करेंगें,दयमंती बुआ बोलीं...
और सरगम कुछ सोचते हुए खाना खाने लगी...
दूसरे दिन सरगम आँफिस नहीं गई,उसने सोचा आँफिस वालों तक भी ये बात पहुँच गई होगी,कैसे सामना करेगी सबका? इसलिए उसने एक हफ्ते की छुट्टी ले लीं,यही कमलेश्वर ने भी सोचा और उसने भी एक हफ्ते की छुट्टी ले ली,दोनों ने सोचा कि शायद हफ्ते भर में मामला कुछ ठण्डा पड़ जाएं।।
हफ्ते भर बाद जब दोनों आँफिस पहुँचे तो सबकी निगाहें दोनों पर उठ गई,एक ने कमलेश्वर से की चुटकी लेते हुए भद्दा सा मज़ाक करते हुए कहा....
क्यों भाई! कहाँ रहें हफ्ते भर? हनीमून पर गये थे क्या?
कमलेश्वर उसकी बात का कोई जवाब ना देते हुए आगें बढ़ गया,फिर दोपहर के समय सरगम और कमलेश्वर दोनों का आमना-सामना कैंटीन में हुआ,लेकिन दोनों ने एकदूसरे से कनाव काट लिया,वहाँ माधुरी भी मौजूद थी माधुरी ने सरगम से कहा....
और मिसेज कमलेश्वर कैसा रहा हफ्ते भर का हनीमून?
ये बात कमलेश्वर ने भी सुनी फिर माधुरी की देखा देखी एक दो महिलाओं ने और उससे मज़ाक करते हुए कहा....
भाई! अब सुहागन हो गई हो ,सिन्दूर क्यों नहीं डाला माँग में?
सरगम ने अनसुना कर दिया,फिर एक और बोली.....
हमने सुना है कि सरगम शादी के बाद तुम विदा होकर अपने पति कमलेश्वर के घर नहीं आई,अभी तक अपने घर में रहती हो,नई-नई शादी है,बेचारे की रातें कैसीं कटती होगीं तुम बिन?
अब कमलेश्वर के सिर से पानी ऊपर हो गया था और उसने सबके पास जाकर तेज आवाज़ में कहा ....
आप लोगों को शरम नहीं आती ऐसी बातें करते हुए ,एक बेबस का मजाक उड़ाते हुए ,अरे!कुछ तो शरम करो,अब सरगम मेरी पत्नी है और अगर किसी ने भी इसके खिलाफ कुछ अनर्गल बात कही तो मुझसे बुरा कोई ना होगा,मैं उसकी जान लेकर रहूँगा फिर चाहें मुझे मेरी नौकरी से हाथ ही क्यों ना धोने पड़े?फिर उसने सरगम का हाथ पकड़ा और बोला....
चलो सरगम !यहाँ से,ये गंदे लोंग तुम्हारे काबिल नहीं है,फिर दोनों कैंटीन से बाहर आने लगे....
और सरगम कभी कमलेश्वर का चेहरा देखती तो कभी उसके हाथ की पकड़ अपने हाथों में देखती,उसकी आँखें भर आईं थी,जो आज कमल ने सबके सामने उसका साथ दिया था इसलिए....
कैंटीन से बाहर आकर कमल ने उसका हाथ छोड़ दिया और बिना मुड़े,बिना कुछ कहें अपने रास्ते चला गया और सरगम उसे जाते हुए देखती रही।।
वो दिनभर यही सोचती रही कि कमल ने कैसे सबको मुँहतोड़ जवाब देकर सबकी बोलती बंद कर दी?

अब वसुधा भी अवन्तिका की शादी से वापस आ गई थी,उसे इस घटना के बारें में पता चला तो मन ही मन मुस्काई,उसे ये अच्छा लगा कि सरगम का हाथ कमल ने थाम लिया है,
लेकिन फिर उसने ये सुना कि वो दोनों अभी भी अलग अलग रह रहे तो कुछ सोच में पड़ गई और उसने इस विषय पर दयमंती बुआ से बात करने का सोचा,वो इस समस्या का समाधान करना चाहती थी,आखिर वें दोनों पति-पत्नी हैं और उन्हें एक ही घर में रहना चाहिए।।

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....