Suhag, Sindoor aur Prem - 5 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | सुहाग, सिन्दूर और प्रेम - भाग(५)

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सुहाग, सिन्दूर और प्रेम - भाग(५)

दूसरी रात भी अल्हड़ सरगम ने संयम की मन की बात को ना समझा,संयम के नाम के अनुसार ही उसका स्वभाव भी था,अपनी नई नवेली दुल्हन से वो जी भर कर बातें करना चाहता था लेकिन शायद इन सबका उसके जीवन में अभी समय नहीं आया था,यही सोचते सोचते संयम की आँख लग गई,सुबह हुई और फिर से दयमंती बुआ ने दरवाजा खटखटाया और आज भी संयम ने ही दरवाजा खोला.....
दयमंती ने देखा कि आज भी सबकुछ वैसे का वैसा,कितनी नादान है ये लड़की कुछ भी नहीं जानती,मैने कितना समझाया था लेकिन समझी ही नहीं,दयमंती ने मन में सोचा फिर संयम से बोली...
संयम !आज पगफेरे की रस्म के लिए तुझे बहु को लेकर उसके मायके जाना होगा और शाम तक लौटना भी है,इसलिए तुम दोनों जल्दी से तैयार हो जाओ,ताँगेवाला बस आता ही होगा,मैने नाश्ता बना दिया है,मैं बहु को जगाकर उसे तैयार कराती हूँ और इतना कहकर दयमंती ने सरगम को जगाया....
सोने दो ना बुआ जी,सरगम बोली।।
बहु! अपने नानाजी से मिलने नहीं जाओगी,दयमंती बोली।।
हाँ...नानाजी से मिलने तो मुझे जाना है,सरगम बोली।।
तो फिर तैयार हो जा बहु! देख ताँगें वाला भी आ गया है,दयमंती बोली।।
दयमंती की बात सुनकर सरगम जाग पड़ी क्योंकि उसे ताँगें में सैर करने में बहुत मज़ा आता था और वो दयमंती के संग तैयार होने चल पड़ी,उधर संयम भी तैयार होने चला गया।।
तैयार होने के बाद दयमंती ने दोनों को नाश्ता कराया फिर सरगम से कहा कि सबका आशीर्वाद ले लो,मैं तब तक कुछ नाशता बाँध देतीं हूँ और सुराही में पानी भरे देती हूँ....
सबका आशीर्वाद लेकर सरगम ताँगें में जा बैठी,दयमंती ने प्यार से सरगम का माथा चूमते हुए कहा ...
बहु! अपना ख्याल रखना,नाशता और पानी मैनें ताँगें में रखवा दिया है,शाम को अँधेरा होने से पहले ही लौट आना,डकैतों का डर रहता है रास्तें में,इतना जेवर जो पहनकर जा रही हो....
फिकर मत करो बुआ! हम अँधेरा होने से पहले ही लौट आएंगे,संयम बोला।।
फिर दोनों चल पड़े सरगम के मायके की ओर....
दोनों घर पहुँचें तो कनकलता ने फौरन ही सरगम को सीने से लगा लिया,कालिन्दी भी तब वहीं थी और उसने सरगम को अकेले में ले जाकर पूछा...
और जीजा जी कैसें हैं?
मैं क्या जानूँ?ठीक ही होगें,सरगम बोली।।
क्यों तूने पान नहीं खिलाया? कालिन्दी ने पूछा।।
खिलाया था ना!लेकिन उन्होंने हँसते हुए कहा कि पान मुझे दे दो और तुम सो जाओ,सरगम बोली।।
सरगम की बात सुनकर कालिन्दी अचरज में पड़ गई और उसने ये बात कनकलता से बता दी,कनकलता हैरान हो गई और उसने संयम को अकेले में बुलाकर बात की....
संयम ने सब सच सच बता दिया और बोला....
मामी जी! आप घबराइए नहीं,वो थोड़ी भोली है,समय के साथ साथ सब समझ जाएगी,अगर जबरदस्ती करके मैं उसे पा भी लूँ तो वो मुझसे नफरत करने लगेगी और मैं चाहता हूँ कि वो मुझसे नफरत नहीं प्रेम करें।।
संयम की बात सुनकर कनकलता को बहुत तसल्ली और उसने संयम से पूछा....
आपको सरगम पसंद तो हैं ना! क्योंकि आप उसे देखने नहीं आएं थे,इसलिए थोड़ी चिन्ता थी।।
वो इतनी भोली और नादान है कि भला उसे कौन पसंद नहीं करेगा,मैने उसे जब पहली बार देखा था तभी मुझे उससे प्रेम हो गया था,मैं चाहता हूँ कि वो भी मुझे प्रेम करने लगें,जब मन मिल जाऐगें जो तन भी मिल जाऐगे,ऐसी भी जल्दी क्या है? सारी उम्र पड़ी है,पहले हम एकदूसरे को समझ तो लें,संयम बोला।।
संयम की बातें सुनकर कनकलता बोली....
दमाद जी! हम धन्य हो गए आप जैसा दामाद पाकर ,आपके उच्च विचारों ने मेरा दिल जीत लिया,अब मैं सरगम की तरफ से बिल्कुल निश्चिन्त हूँ,मुझे पूरा विश्वास है कि आप हमारी सरगम को हमेशा खुश रखेगें।।
कनकलता ने दोनों का खुब स्वागत-सत्कार किया,संयम और सरगम को शगुन देकर विदा किया ,ताँगें में पूरे घर के लिए मिठाइयाँ,फल और कपड़े भी भिजवाएं,अँधेरा होने के पहले दोनों घर भी पहुँच गए।।
दो चार दिन संयम घर पर रहा लेकिन वो अब भी फर्श पर चटाई बिछाकर ही सोता और सरगम ऊपर पलंग पर,अब संयम की छुट्टियाँ भी खतम होने को आईं थीं जो उसने अपनी शादी के लिए लीं थीं इसलिए उसे अपनी नौकरी पर शहर वापस जाना था।।
और उसने सरगम से इस विषय पर रात को बात की...
सरगम उस समय सोई नहीं थी,बस लेटी थी...
सरगम! सो गई क्या? संयम ने पूछा...
नहीं! कहो क्या कहना चाहते हो? सरगम बोली।।
मैं परसों शहर चला जाऊँगा,मेरी छुट्टियांँ खत्म हो गई हैं,संयम बोला।।
तो क्या तुम शहर में रहते हो? सरगम ने पूछा।।
हाँ! मैं वहाँ नौकरी करता हूँ ना! संयम बोला।।
मुझे भी शहर देखना है,सरगम बोली।।
तो चलोगी मेरे संग,संयम बोला।।
हाँ...हाँ...चलूँगी,मुझे तुम ले चलोगे ना! सरगम ने पूछा।।
हाँ! क्यों नहीं,तो कल मैं बुआ से कह दूँगा वो मेरे साथ साथ तुम्हारी भी तैयारी बना देगीं,संयम बोला।।
बहुत अच्छा रहेगा,तुम कितने अच्छे हो,सरगम बोली।।
सच में,मैं अच्छा हूँ,तुम्हें पसंद हूँ,संयम ने पूछा।।
हाँ! तुम सच में बहुत अच्छे हो और मुझे पसंद भी हो,तुम लड़ते भी नहीं हो,,मेरे गाँव के तो सब लड़के मुझसे लड़ा करते थे,मेरे अमरूद भी छीन लेते थे,सरगम बोली।।
संयम ऐसे ही सरगम से बातें करता रहा और कुछ देर बाद सरगम सो गई....
सुबह हुई...
संयम ने सबसे कहा कि उसकी छुट्टियांँ खतम हो चुकीं हैं,अब वो वापस शहर जाएगा,सरगम को भी वो साथ ले जाना चाहता है,संयम की बात घर की औरतों को पसंद नहीं आई,सबने कहा....
बहु को अभी यही रहकर कुछ काम धाम सीखने दो,बड़ो की कुछ सेवा कर लें फिर तो जिन्दगी भर उसे तेरे साथ ही रहना है लेकिन संयम ना माना,उसकी ये बात उड़ते उड़ते जगजीवनराम जी तक पहुँची और वे बोलें.....
ये ठीक है कि बहु को यहाँ कुछ दिन रहकर हम सबकी सेवा करनी चाहिए लेकिन अभी उनका नया नया ब्याह हुआ है उनके खेलने खाने के दिन हैं ,साथ में जाने दो दोनों को ,बहु फिर कभी यहाँ रहकर हम सबकी सेवा कर लेगी।।
अब जगजीवनराम जी की बात टालने की किसी में हिम्मत ना थीं और आखिरकार परिवारवालों को सरगम को संयम के साथ शहर भेजना ही पड़ा।।
संयम शहर में सरकारी घर में रहता था और पूरी काँलोनी में सब उसके ही आँफिस के लोंग रहते थे,सबसे संयम का अच्छा व्यवहार था,जब सबने संयम को सरगम के साथ देखा तो बोले...
बताया भी नहीं और अकेले अकेले ही ब्याह के लड्डू खाकर आ गए...
सब बहुत जल्दीबाजी में हुआ,दादाजी को लड़की पसंद आ गई तो मैने भी हाँ कर दी ब्याह के लिए,संयम बोला।।
कोई बात नहीं भाई,बधाई हो!
सबकी बधाई पाकर संयम और सरगम घर के भीतर पहुँचे,इतने दिनों से घर बंद था इसलिए घर बहुत गंदा पड़ा था,उसने सरगम से कहा कि तुम कपड़े बदलकर हाथ मुँह धो लो और चुपचाप बिस्तर पर लेट जाओ,मैं तब तक सफाई करता हूँ,संयम ने घर साफ करके नहाया और फिर सरगम से बोला....
उठो! मैं चाय बनाता हूँ,तुम तब तक घर से लाया हुआ खाने का सामान निकालो....
संयम ने पाउडर वाला दूध घोलकर चाय बनाई और सरगम ने खाने का सामान निकाला,खाने का सामान बाँधे रहने से खाने लायक नहीं रह गया था,इसलिए दोनों ने चाय और बिस्किट से ही काम चला लिया,शाम हुई,संयम ने सरगम से कहा.....
दरवाजा ठीक से बंद कर लो मैं सब्जी लेकर और कुछ राशन लेकर अभी आया....
सामान लेकर संयम लौट आया और उसने ही शाम का खाना बनाया,दोनों ने खाना खाया और फिर संयम ने ही बरतन धुलकर रखें,दोनों ने थोड़ी देर बातें कीं फिर सरगम पलंग पर और संयम सोफे पर सो गया...
ऐसी ही दोनों की दिनचर्या चल रही थी,संयम सुबह सारा काम करता ,सफाई करता,खाना बनाता और फिर आँफिस जाता,शाम को भी वो ही आँफिस से आकर खाना बनाता और बरतन धोता।।
उनके घर के बगल में ही आँफिस में संयम के साथ काम करने वाले जोशी जी रहते थे जिनसे संयम का अच्छा व्यवहार था,मिसेज जोशी से संयम ने कहकर सरगम के लिए दो चार जोड़ीं सलवार कमीज और कुछ उसकी जरूरत का सामान भी मँगवा लिया था,मिसेज जोशीको संयम दीदी कहता था और जोशी जी को भाईसाहब,मिसेज जोशी ने संयम से कहा भी कि काम के लिए बाई क्यों नहीं लगवा लेते तो संयम बोला....
दीदी! आप सरगम को तो जानतीं ही हैं कितनी भोली है,इसलिए बाहर वालों को घर में बुलाना ठीक नहीं।
मिसेज जोशी का नाम वसुधा था,उनकी एक बेटी थी जो कि नौवीं में पहुँची थी,उसका नाम अवंतिका था,वो जब स्कूल की ड्रेस पहनकर,बालों में रिबन से दो चोटी बनाकर स्कूल जाती तो सरगम का भी मन करता कि वो भी स्कूल जाएं और ये बात उसने संयम से कही.....
संयम ने सोचा कि ये बात पहले उसके मन में क्यों नहीं आई कि सरगम का स्कूल में एडमिशन करवा दें,स्कूल जाएंगी तो कुछ सीखेगी ही और घर पर रहकर बोर भी नहीं होगी।
ये बात उसने वसुधा दीदी से कही और वसुधा दीदी बोली....
यही ठीक रहेगा सरगम के लिए,स्कूल की प्रिन्सिपल से मेरी जान पहचान है,मैं उनसे जाकर बात करती हूँ और थोड़ी सोर्स- सिफारिश के बाद आखिरकार सरगम को स्कूल में नौवीं कक्षा में एडमिशन मिल ही गया।।
नई-नई किताबें और स्कूल की ड्रेस को देखकर वो चहक उठी और संयम के लिए एक काम और बढ़ गया,सरगम को पढ़ाने का ,लेकिन संयम के पास तो बहुत संयम था और उसने इस चुनौती को भी स्वीकार कर लिया,दिनरात की मेहनत के बाद आखिरकार सरगम ने अच्छे नम्बरों से नौवीं पास कर ली...
लेकिन इतने दिन साथ रहकर भी सरगम के मन में संयम के लिए प्यार का अंकुर ना फूटा,वो तो उसे बस अपना एक अच्छा दोस्त ही मानती थी।।
अब सरगम दसवीं में पहुँच गई थी और वो अठारह की पूरी होने वाली थी,तब लड़कियाँ जवानी में कदम रखते हुए तरह तरह की बातें करने लगती हैं,सरगम की कक्षा में भी कुछ ऐसी ही लड़कियाँ थी,वसुधा की बेटी अवंतिका भी उसकी ही कक्षा में पढ़ती थी और वो भी सरगम से ऐसी बातें करती तो सरगम उसे झटक देती,कहती मुझसे ऐसी बातें मत किया करो,मुझे अच्छा नहीं लगता।।
वो घर पर आकर संयम से भी सबकुछ बता देती और संयम उसकी नादानी पर मन ही मन हँसता और कहता कुछ भी नहीं।।
ऐसे ही एक साल और बीत गया अब सरगम की दसवीं की परिक्षाएं चल रहीं थीं,उस दिन आखिरी पेपर था,उसकी तबियत अन्दर से बिल्कुल भी ठीक नहीं थी, आखिरी पेपर था उसने संयम से कहा तो संयम ने सोचा थकावट का बुखार है,रात रात भर पढ़ती रही इसलिए बुखार आ गया होगा,उसने सरगम को बुखार की गोली दे दी और सरगम पेपर देने चली गई,दवा खाकर सरगम को बेहतर लग रहा था,उसने आराम से पेपर दिया।।
वो अवंतिका के संग घर वापस लौट रही थी तो तभी जोर की बारिश होने लगी और वो पूरी तरह भीग गई,जैसे तैसे दोनों घर पहुँचीं,तब तक दवा का असर खतम हो चुका था और सरगम को फिर बुखार हो गया,उसे घर पहुँचना मुश्किल हो गया था ,जबकि स्कूल घर से ज्यादा दूर नहीं था।।
जैसे तैसे वो घर पहुँची दरवाजा बंद किया और सोफें पर वैसे ही गीले कपड़ो में लेट गई,उसकी तबियत ज्यादा खराब थी शायद इसलिए कपड़े बदलने का होश ना रहा।।
आज संयम जल्दी घर आ गया था क्योंकि उसे सरगम का पेपर चेक करना था कि उसका आज का पेपर कैसा गया है?
दूसरी चाबी उसके पास रहती थी इसलिए वो चुपचाप दरवाजा खोलकर अंदर आ गया,उसने देखा कि सरगम ने तो आज कपड़े भी नहीं बदले और ऐसे ही सो गई तो उसे जगाने के लिए जैसे ही उसने हाथ लगाया तो सरगम का बदन आग की तरह तप रहा था,गीले कपड़ो ने उसके ताप को और भी बढ़ा दिया था।।।
कपड़े बदलने भी जरूरी थे,संयम ने हिम्मत करके सरगम के कपड़े बदले,सूखे कपड़े पहनाकर उसे बिस्तर पर लेटाया और वसुधा से कहा कि सरगम की तबियत खराब है,मैं डाक्टर को लेने जा रहा हूँ,जरा ध्यान रखिएगा.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...