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क्या आपने महाभारत को ठीक से समझा है?
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द्वापर में महाभारत का रहस्य क्या है?
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जिसमें जीवन के रंग ही रंग हैं.........
आजकल की स्थिति के अनुसार... देखें तो... जब भी किसी घर परिवार में झगडा होता है, तो अक्सर लोग या रिश्तेदार कहते है कि महाभारत चल रहा है|....और उनके झगडे का आनंद लेते है... अधिकतर घरों मे आज महाभारत चल रहा है... और हो रहे है.... भाई -भाई का दुशमन हो रहा है, बेटा.... पिता को आंख दिखा रहा है..... भाभी... अपनी ननद से... और जेठानी -जेठानी आपस मे उलझ कर लड रही है.... और अत्याचार अनाचार बढ रहा है... |
परंतु क्या यह नयी बात है?... क्या द्वापर युग के महाभारत में भी यही हुआ, क्योंकि हमने जो टी.वी,इत्यादि दूरसंचार के माध्यम से देखा है तो उससे तो यही ज्ञात हुआ है.... कि कौरव और पांडव आपस मे लडे़ थे.... फिर भी हमने इतिहास से कोई सबक नहीं लिया|
इसलिए आज पुनः महाभारत के रहस्यमय कथा को पूर्णरूप से आप सबके सामने लेकर आ रहा हूं.... और सही और प्रमाणिक रूप से लिख कर सत्यता को बता रहा हूं...
<•क्या आपने महाभारत को ध्यान पूर्वक पढा या समझा?>
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हर भारतीय जो हिन्दू है... वे सभी अपने घर मे एक मंदिर की स्थापना अवश्य करते है और हर दिन नित्य कर्म को भी सम्पन्न करते है.....और हर घर में कोई न कोई धार्मिक ग्रंथ अवश्य होता है... और अधिकतर व्यक्तियों के घर में श्रीमदभगवद्गीता, भागवतमहापुराण, रामायण, नित्यकर्म, चालीसा और व्रत अनुष्ठान आदि की धार्मिक पुस्तकें होती है... और नित्य वे पाठन और देव आराधना नियमित रूप से करते है....
.....और अधिकतर हिन्दू परिवार की यही ईच्छा रहती है कि वह अपने जीवन में श्रीमदभागवत कथा सम्पन्न कराएं... यह सब को ज्ञात होगा क् श्रीमदभागवत की रचना वेदव्यास जी ने की है.... और इसमे महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित कृष्ण जीवन के वृतान्त के साथ साथ उस समय की समकालीन घटनाओं का वर्णन है|
परंतु मैने जीवन मे यही देखा है कि.... हर व्यक्ति श्रीमदभागवत कथा को ही महाभारत की कथा मान लेते है.... इसलिए आप सब इस बात को सदैव ध्यान में रखें कि... श्रीमदभागवत कथा... महाभारत की कथा नहीं है.... महाभारत तो एक अलग ही वृतान्त है... जो कौरवों और पांडवों की गाथा से भरा पडा है.... उनके वंश पर आधारित है|और महाभारत विश्व का सबसे बडा़ पद्यकाव्य है|
हमारे पुराणों या धार्मिक मतों के अनुसार यह कहा जाता है कि जब वेदव्यास जी ने महाभारत की कथा लिखी और उन्होंने तो यह सब कथांनक जीवन्त देखा था, इस पूरे इतिहास को लिपिबद्ध करके, वे अत्यन्त व्यथित हो उठे और उनका शरीर ताप से चलने लगा और उन्होनें अपने जीवन का अंत करने का निर्णय ले लिया |
इस अवसर पर एक बार नारद ऋषि आए और उन्होने श्री वेदव्यास से उनके दुःख का कारण पूछा, तब वेदव्यास जी ने उन्हें महाभारत कथा का वृन्तात बताया और कहा, कि यह पूरी की पूरी कथा अपने आप में घृणा, व्याभचार, द्रोह, द्वेष, शत्रुता, ईर्ष्या इत्यादि सारे दुर्गुणों से ही भरी हुई है|
तब नारद जी ने एक प्रश्न किया क् इस पूरे घटनाक्रम मैं कोई तो ऐसा व्यक्तित्व होगा, जो इन दोषों से रहित होगा|
तब वेदव्यास ने कहा कि पूरे महाभारत में मुझे केवल श्रीकृष्ण चरित ही ऐसा दृश्यमान होता है, जो मानो अंधकार के निराश में आशा के ज्योति स्तम्भ है, घृणा, द्वेष, अहंकार, ईर्ष्या आदि के महासागर में कमल का पुष्प है, अज्ञान के बीच ज्ञान का पुंज है|
तब नारद जी ने वेदव्यास को सलाह दी कि आप अपने जीवन के इस दुःख, ताप को दूर करने के लिये श्रीकृष्ण -चरित्र पर श्रीमदभागवत की रचना करो, जिससे आपके जीवन के दोष भी दूर हो जायेंगे और इस वृद्धावस्था में आपको मानसिक शांति प्राप्त होगी और आप भगवान श्रीकृष्ण को प्राप्त कर सकेंगे| तब नारद जी की सलाह मानकर भगवान वेदव्यास ने श्रीमदभागवत की रचना की और नारद की सलाह से देव अग्रणी श्रीगणपति को लिपिबद्ध करने के लिये आग्रह किया इस प्रकार से इस महान श्रीमदभागवत महाग्रंथ की रचना हुई.. इसी में गीता भी है और यही गीता बिन्दुओं का श्रेष्ठतम धर्मग्रंथ है|..इसके विषय मे मै(निखिल ठाकुर) अपने गांव के बजुर्गों व ज्ञानियों से एक मत सुनता था वह इस प्रकार से है...
||सर्वदेवमयी गौ, सर्वतीर्थमयी गंगा
सर्वग्रंथमयी गीता ||
.....लेकिन हम यह नहीं भुले कि श्रीमदभागवत महाभारत काल का एक भाग है|प्रस्तुत लेख में मैं महाभारत की कथा को संक्षिप्त में पुनः दोहराने का प्रयास कर रहा हूं... एक बार पुनः इतिहास के पन्नों को पुनः आप सबके समक्ष रख रहा हूं|...जिससे साधक जन यह दान सके कि भारतवर्ष के कालखण्ड में महाभारत का काल कितना अंधकार पूरण था|जिस अंधकार को केवल श्रीकृष्ण जैसे दिव्यात्मा ही दूर कर सके और इसलिए आज भी अधिकतर हिन्दू धर्म मे इस महा
न श्लोक को लोग पढते है... बोलते है... और इस महान श्लोक की रचना हुई....
‼️यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत❗
अभ्युत्थानधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम‼️
⚫महाभारत की शुरूवात
.....महाभारत की कथा की शुरूवात तो आप सबको पता है कहां से हुई.... अधिकतर तो लोग इस कथा को शांतनु की जीवन गाथा से जानते है|परंतु वास्तव यह कथा इस प्रकार से है
भारत वर्ष मे दो ही प्रतापी वंश हुए है|प्रथम सूर्यवंश कहलाता है,जिस वंश में श्रीराम जी का जन्म हुआ था|दूसरा वंश चन्द्रवंश कहलाता है, जिसमें श्रीकृष्ण, कौरव, पाण्डव इत्यादि उत्पन्न हुए थे|
महाभारत की मूल कथा चंद्र वंश के दो भाग की कथा है|कौरवों और पाण्डवों के आपसी द्वेष, ईर्ष्या, युद्ध की कथा है, जिसका एक मात्र उद्धेश्य भारत वर्ष पर राज्य करना था|चंद्रवंश में प्रतापी राजा दुष्यंत, भरत, शांतनु इत्यादि हुए|दुष्यंत का विवाह शकुन्तला से हुआ|शकुन्तला की माता का नाम मेनका था, मेनका जो देव दरबार में इन्द्र की सभा में अप्सरा थी और उसका प्रेम सबंध विश्वामित्र से हुआ और इस अनधिकृत प्रेम सम्बन्ध की सन्तान शकुन्तला थी|शकुन्तला ऋषि कण्व के आश्रम में रही और पली बडी है|शकुन्तला ने उस युग के प्रतापी राजा दुष्यंत से प्रेम विवाह किया|इनकी सन्तान राजा भरत हुए, जिसके आधार पर आर्यावर्त का नाम भारत वर्ष पडा|इस कुल मे आगे राजा प्रतिभा आदि हुये और उनके पुत्र का नाम शांतनु था|....अधिकतर महाभारत की कथा को शांतनु से ही मानते है बल्कि महाभारत की कथा का मूल तत्व तो इस पूर्व का है... और उन प्रतापी राजा के जन्मों से जुडा है|...
और यहां से आगे ही शांतनु की जीवन गाथा होती है.... और सम्पूर्ण प्रलयकारी और भविष्य पर पडने वाले उसके दुष्परिणाम की शुरूवात और कलिकाल के अंत तक महाभारत की नीतियों का प्रभाव और उनके दुराचार का प्रभाव व्याप्त रहा |यह बात सत्य है कि... यदि हमारा वर्तमान सुव्यवस्थित हो... तो हमारा भविष्य भी उतम सुनहरा होगा... और हमारा वर्तमान जितना दुष्परिणामों से युक्त रहेगा.... तो उसके परिणाम भविष्य मे उतने ही विनाशकारी साबित होंगे|महाभारत का पूर्ण प्रभाव कलियुग में पडा है.... और उसके परिणाम आज भी व्याप्त है|