The Author Misha Follow Current Read ये उन दिनों की बात है - 38 By Misha Hindi Fiction Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books कोण? - 24 भाग २५ सावलीने मग थेट तीचा बेडरूममध्ये जाऊन त्या कॅमेराची... तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 13 दोघेही मगरूमच्या बाहेर गेले... रुद्र आणि शर्य खोलीतून बाहेर... जंगलातील मैत्री आणि एकता जंगलातील मैत्री आणि एकताएका घनदाट जंगलात विविध प्रकारचे प्रा... नियती - भाग 50 भाग 50त्यावर तोही तिला खट्याळपणे म्हणाला...."काय झालं...?? ब... क्रीपि फाईलज - खरी दृष्य भीतीची ... - सीजन 1 - भाग 18 देवी योगेश्वरी माता महिमा भाग 1 नमस्कार मित्रहो सदर कथा सत्... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Novel by Misha in Hindi Fiction Stories Total Episodes : 41 Share ये उन दिनों की बात है - 38 (5) 1.5k 5.9k सागर उस बस्ती में गया जहाँ वो बच्ची रहती थी वहां की हालत देखकर उसका मन व्याकुल हो उठा जब वो उस बच्ची के घर गया तो घर क्या था सिर्फ एक छोटा सा कमरा था जहाँ बहुत ही कम सामान था देखा एक खाट पर उस बच्ची की माँ अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रही थी एक कोने में स्टोव रखा था एक दूसरे कोने में पीने के पानी की मटकी रखी थी घर में अनाज के दाने का नामोनिशान तक नही था कुछ बर्तन थे जो इधर उधर बिखरे पड़े थे पूरा कमरा एक अजीब सी गंध से दहक रहा था बच्ची की माँ ने अधखुली आँखों से सागर को देखा और एक बीमार सी मुस्कान दी जवाब में सागर भी हल्का सा मुस्कुरायाऔर फिर वे आँखें यूँ ही ठहर सी गयी उस बच्ची की माँ इस दुनिया से अलविदा ले चुकी थी कुछ पल के लिए सागर को उस बच्ची में खुद का अक्स और उसकी माँ में अपनी माँ नजर आई माँ देखो भैया ने मुझे क्या क्या दिलाया है वो बच्ची अपनी तमाम चीजें अपनी मरी हुई माँ को दिखा रही थीमाँ देखो ना तुम उठती क्यों नहीं देखो ना भैया ने कितनी सारी चीजे दिलाई है मुझे ये देखकर सागर से रहा नही गया जोरों से रो पड़ा उसने बहुत कोशिश की खुद को रोकने की पर सब्र का बांध जैसे टूट ही गया उस पल में उसे ऐसा लगा जैसे उसकी अपनी माँ उसे छोड़कर चली गयी होसागर रो रहा था उस कमरे की हर एक चीज रो रही थी पूरा कमरा ही ग़मगीन था सिवाय उस बच्ची के जो अब तक ये समझ पाने में असमर्थ थी की अब वो इस दुनिया में बिलकुल अकेली हो गयी हैसागर भागकर उस बच्ची से लिपट गया नही तुम अकेली नहीं हो बेटा मैं हूँ तुम्हारे साथ उसने उस बच्ची को गोद में उठा लिया और उसपर चुंबनों की बौछार कर दी सागर उसे अपने साथ अपने घर ले गयासागर के दादा दादी के मन में सवाल उठ रहे थे की की ये बच्ची कौन हैलेकिन उन दोनों ने उस वक़्त कुछ कहा नहीं सागर को देखकर उन्हें लग गया था की ये काफी रोया हैपिंकी अबसे तुम इसे अपना ही घर समझो पिंकी नाम सागर ने ही उसे दिया था कौन है ये बच्ची सागर और तुम्हे कहाँ मिली, दादी सागर के कमरे में आई दादी, पिंकी के साथ बहुत ही बुरा हुआ इसकी माँ इसे छोड़कर चली गई जिस तरह मेरी माँ मुझे छोड़कर चली गई थी हम्म्म्म पर दादी अभी में कुछ भी बताने की सिचुएशन में नहीं कैन बी प्लीज टॉक लेटर, सागर पिंकी को सुला रहा थाकोई बात नहीं बेटा तुम्हारा जब मन करे तब तुम बता देना ‹ Previous Chapterये उन दिनों की बात है - 37 › Next Chapter ये उन दिनों की बात है - 39 Download Our App