Pyar ke Indradhanush - 15 in Hindi Fiction Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | प्यार के इन्द्रधुनष - 15

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प्यार के इन्द्रधुनष - 15

- 15 -

दो-तीन दिन डॉ. वर्मा व्यस्त रही। चाहते हुए भी मनमोहन के घर नहीं जा पाई। फिर एक दिन ओ.पी.डी. निपटाकर दोपहर का खाना खा रही थी कि टेबल पर पास में रखे मोबाइल की रिंगटोन बजने लगी। कॉल सनशाइन टीवी चैनल से थी। ऑन करते ही दूसरी ओर से आवाज़ आई - ‘आप डॉ. वृंदा वर्मा बोल रही हैं?’

‘जी हाँ, मैं डॉ. वृंदा वर्मा ही बोल रही हूँ। कहिए....?’

‘डॉ. वर्मा, मैं सनशाइन टीवी से बोल रहा हूँ। कांग्रेचुलेशन्स, आप को ‘कौन बनेगा अरबपति’ के लिये चुन लिया गया है। डिटेल्स आपको ईमेल पर भेज रहे हैं।’

‘थैंक्यू सो मच सर फ़ॉर द गुड न्यूज़।’

डॉ. वर्मा को यह शुभ समाचार सुनकर बड़ी प्रसन्नता हुई, जोकि स्वाभाविक थी। तत्काल उसके मन में आया कि यह शुभ समाचार किसी अपने से साझा किया जाए। क्षणभर भी नहीं लगा उसे निर्णय लेने में। मनमोहन से अधिक अपना तो कोई था नहीं, किन्तु अपने मन में उमड़ रहे आवेग को नियन्त्रित करते हुए उसने मनमोहन को सरप्राइज़ देने की सोची। खाना समाप्त किया, हाथ धोए और विश्राम हेतु बेडरूम में आ गई। ज्यों ही वह बेड पर लेटने लगी कि बहादुर ने आकर पूछा - ‘डॉ. साब, शाम के खाने में क्या बनाऊँ?’

‘वासु, आज शाम को मुझे किसी से मिलने जाना है। मेरे लिये खाना मत बनाना।’

डॉ. वर्मा को पता था कि मनमोहन का ऑफिस पाँच बजे बन्द होता है। इसलिए उसने शाम के राउंड के लिए अपनी क्लीग को कह दिया और आधे घंटे का मार्जिन लेकर घर से निकली। जब उसने मनमोहन के घर पहुँचकर बेल बजाई तो दरवाजा रेनु ने खोला। अचानक डॉ. वर्मा को अपने सामने देखकर रेनु हैरान हुई। हाथ जोड़कर नमस्ते करते हुए बोली - ‘दीदी आप....! इन्होंने तो बताया नहीं कि आप आने वाली हैं।’

‘रेनु, क्या मैं बिना बताए नहीं आ सकती? मनमोहन घर पर नहीं है क्या? मैंने तो सोचा था कि अब तक घर आ गया होगा! .... खैर, कोई बात नहीं। अब अन्दर चलें?’

‘ओह, मैं भी कितनी पागल हूँ! आपको दरवाज़े पर ही रोक लिया। आओ दीदी, अन्दर आओ। दीदी, आपका अपना घर है, आप किसी वक़्त भी आ सकती हैं, वो तो मैं वैसे ही बोल गई।’

साथ ही उसने एक तरफ़ होकर डॉ. वर्मा के अन्दर आने के लिए जगह बनाई। बैठने के उपरान्त रेनु बताने लगी - ‘अभी कुछ देर पहले इनका फ़ोन आया था। कह रहे थे कि बॉस ने किसी काम की वजह से रोक लिया है। छह-साढ़े छह बजे तक आऊँगा। ..... मैं इन्हें फ़ोन करके आपके आने की सूचना दे देती हूँ।’

‘रेनु, जब मनमोहन ने कहा है कि वह छह -साढ़े छह बजे तक आएगा तो फ़ोन करने की ज़रूरत नहीं। आज मैं फ़ुर्सत में आई हूँ।’

‘यह तो बहुत अच्छी बात है कि आप फ़ुर्सत निकाल कर आई हैं। ..... मैं चाय बनाती हूँ, आप बैठिए।’

‘रेनु, अभी चाय रहने दे। चाय मनमोहन के आने पर ही पीएंगे। ....... गुड्डू सोई हुई है क्या, घर में सन्नाटा-सा लगता है।’

‘हाँ दीदी, आधा-एक घंटा पहले ही सोई है। आज सुबह से सोई नहीं थी।’

डॉ. वर्मा ने ‘कौन बनेगा अरबपति’ वाली खबर को मनमोहन के आने तक मन में ही रखकर अपना हैंडबैग खोला और गुड्डू के लिए लाई हुई ड्रेसेज़ रेनु को पकड़ाईं। रेनु ने उन्हें खोलकर देखा।एक ड्रेस को हाथ में लेकर धन्यवाद देते हुए कहा - ‘दीदी, आपकी पसन्द बहुत अच्छी है। इस ड्रेस में तो गुड्डू सचमुच की परी लगेगी।’

‘रेनु, धन्यवाद किस बात के लिए? गुड्डू कोई ग़ैर नहीं, मेरी अपनी बच्ची है।’

‘माफ़ करना दीदी, मैं भूल गई थी। गुड्डू आपकी ही है। .... दीदी, ये कह रहे थे कि गुड्डू का नाम आप रखेंगी। क्या नाम सोचा है?’

‘रेनु, तुम्हें बुरा तो नहीं लगा?’

‘बुरा क्यों लगेगा दीदी? जब इन्होंने मुझे बताया था कि गुड्डू का नाम आप रखेंगी तो मैंने कहा था कि जब दीदी गुड्डू को इतना प्यार करती हैं, इतना चाहती हैं तो इतना अधिकार तो उनका भी बनता है। .... तो दीदी, क्या नाम सोचा है?’ रेनु ने दुबारा पूछा।

‘नाम तो मैंने सोच लिया है, लेकिन अभी नहीं बताऊँगी। जब गुड्डू जाग जाएगी, उसे गोद में लेकर उसे उसके नाम से बुलाऊँगी। .... रेनु, हो सकता है कि मनमोहन लेट हो जाए, क्यों न हम डिनर की तैयारी कर लें? आज मैं तुम्हारे साथ ही खाना खाऊँगी।’

‘वाह दीदी, आपने तो दिल ख़ुश कर दिया। आप बैठो। देखती हूँ, गुड्डू उठ तो नहीं गई? अगर जागी नहीं होगी तो मैं रसोई का काम निपटा लेती हूँ।’

‘मैं तो चाहती थी, आज रसोई में तुम्हारा हाथ बंटा देती।’

‘मैं आपको भला ऐसा कष्ट कैसे दे सकती हूँ। जब तक ये नहीं आते, आप कोई पत्रिका पढ़ लें।’

डॉ. वर्मा समझ गई कि कोई भी गृहिणी अपनी रसोई में किसी अन्य की दख़लंदाज़ी जल्दी से बर्दाश्त नहीं करती। इसलिए उसने पुनः आग्रह नहीं किया और कंपीटिशन सम्बन्धी पत्रिका उठाकर पन्ने पलटने लगी। ऑब्जेक्टिव टाइप के सवाल-जवाब तो उसके भी काम आ सकते हैं, यह सोचकर वह ध्यान से पढ़ने लगी।

अभी डॉ. वर्मा को पत्रिका पढ़ते दसेक मिनट ही हुए थे कि मनमोहन ने घर में प्रवेश किया। रेनु रसोई में व्यस्त थी और लॉबी में बैठी, पढ़ने में मग्न डॉ. वर्मा को देखकर आश्चर्यचकित होते हुए उसने कहा - ‘व्हॉट ए सरप्राइज़! आज सूरज किधर से निकला था जो बिना इत्तला के दर्शन हो रहे हैं!’

‘सरप्राइज़ तो अभी बाक़ी है डियर।’

‘अच्छा?’

‘हाँ’, उत्तर देते हुए डॉ. वर्मा ने बैग में से मिठाई का डिब्बा निकाला और एक लड्डू मनमोहन के मुँह में देते हुए कहा - ‘मनु, अपनी ख़ुशी सबसे पहले तुमसे शेयर कर रही हूँ। मुझे ‘कौन बनेगा अरबपति’ में पार्टिसिपेट करने का ऑफ़र आया है।’

डॉ. वर्मा प्रसन्नता के अतिरेक में अनजाने में मनमोहन को मनु कह तो बैठी, लेकिन मन-ही-मन सोचने लगी कि रेनु जो पास ही रसोई में काम कर रही थी, ने अवश्य ‘मनु’ सुन लिया होगा, वह क्या सोचेगी? डॉ. वर्मा को अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी रेनु की प्रतिक्रिया की। रेनु हाथ पोंछती हुई आकर बोली - ‘दीदी, आज तो मैं आपसे नाराज़ हूँ। छोटी बहन से इतनी बड़ी ख़ुशी की ख़बर अब तक छुपाए रखी? और आप इन्हें ‘मनु’ बुलाना पसन्द करती है, यह जानकार मेरी नाराज़गी दूर भी हो गई। अब आपको कम-से-कम मेरे सामने तो इन्हें मनमोहन कहकर बुलाने की ज़रूरत नहीं। और ‘कौन बनेगा अरबपति’ की ऑफर के लिए बहुत-बहुत बधाई।’

डॉ. वर्मा रेनु की सरलता से अभिभूत हो गई। उसने रेनु को गलबहियाँ डालते हुए कहा - ‘रेनु, मैंने आज तक तुम जैसी समझदार लड़की नहीं देखी। तुम मनु की परफ़ेक्ट पार्टनर हो। मुझे विश्वास हो गया है कि तुम्हारे होते हुए दु:ख-कष्ट मनु के जीवन में कभी झाँक भी नहीं सकेंगे। मैं दुआ करती हूँ कि तुम दोनों जैसी अंडरस्टैंडिंग दुनिया के हर कपल में हो!’ फिर मज़ाक़िया लहजे में कहा - ‘लेकिन ख़बरदार, कहीं तुम भी ‘मनु’ बुलाने मत लग जाना। ‘मनु’ पर मेरा ही अधिकार रहेगा।’

‘दीदी, मैं तो इन्हें नाम लेकर बुलाने की भी नहीं सोच सकती, ‘मनु’ बुलाना तो दूर की बात है। आप निश्चिंत रहें, मैं आपका अधिकार नहीं छीनने वाली। आपके इतने बड़े त्याग के कारण तो मुझे इनकी पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैं उम्र भर आपकी अहसानमंद रहूँगी।’

‘पगली, छोटी बहन भी बनती हो और अहसान की बातें भी करती हो। मैंने कोई त्याग नहीं किया, बस मनु तेरे नसीब में लिखा था। नसीब को कौन बदल सका है आज तक? ….. ख़ुशी इस बात की है कि तुम्हारे होते हुए मैं भी मनु के नज़दीक बनी रह सकूँगी।’

मनमोहन दत्तचित्त होकर रेनु और डॉ. वर्मा की बातें सुन रहा था। दोनों ही अपने-अपने ढंग से बेइंतहा ख़ुशी प्रदान कर रही थीं। रेनु और डॉ. वर्मा के बीच वार्तालाप चल ही रहा था कि बेडरूम से गुड्डू के रोने की हल्की-सी आवाज़ आई। रेनु को देख का ध्यान शायद उधर ही था। बेडरूम की ओर जाते हुए बोली - ‘लो, इतनी बढ़िया बातें सुनने के लिए गुड्डू भी जाग गई।’

रेनु ने गुड्डू को गोद में उठाया। उसे सू-सू कराया। स्तन फ़ीड दिया और उसके कपड़े बदलकर बाहर ले आई। डॉ. वर्मा ने गुड्डू को अपनी गोद में लिया और प्यार से पुकारा - ‘स्पन्दन, मेरी प्यारी स्पन्दन! जब भी तुझे गोद में लेती हूँ, मेरे हृदय की स्पन्दन बढ़ जाती है।’

‘वाह, क्या ख़ूब नाम रखा है! बहुत ही प्यारा तथा सुन्दर नाम है।’ मनमोहन ने चहकते हुए कहा। रेनु भी कहाँ पीछे रहने वाली थी, उसने कहा - ‘दीदी, छुटकी आपके हृदय की ही स्पन्दन नहीं, हम सबके दिलों की धड़कन है। ... आप इसे लाड़ लड़ाएँ, इतने में मैं चाय बनाकर लाती हूँ।’

‘कमाल है भई, वृंदा को अभी तक चाय भी नहीं पिलाई?’ मनमोहन ने बनावटी ग़ुस्से से रेनु की तरफ़ देखते हुए कहा।

मनमोहन के अंदाज को भाँपकर रेनु ने परिहास करते हुए कहा - ‘मैं तो बना रही थी, किन्तु दीदी ने ही रोक दिया था। शायद इन्हें आपके बिना चाय अच्छी न लगती!’

मनमोहन टोकते हुए कहा - ‘रेनु, इस तरह का मज़ाक़ अच्छा नहीं।’

डॉ. वर्मा - ‘मनु, थोड़ा मज़ाक़ कर लिया तो क्या हुआ, आख़िर रेनु मेरी छोटी बहन है। दूसरे, आज ख़ुशी के माहौल में टोका-टाकी अच्छी नहीं।’

मनमोहन को चुप करवाने के लिए इतना काफ़ी था। चाय पीते हुए रेनु ने मनमोहन को बताया कि आज दीदी गुड्डू के लिए बड़ी ही सुन्दर ड्रेसें लाई हैं और यहीं खाना खाएँगी।’

‘अरे वाह, यह तो अच्छा सोचा वृंदा तुमने। …. रेनु, बाज़ार से कुछ लाना हो तो बताओ।’

‘बाज़ार से कुछ नहीं लाना। मैंने सब कुछ तैयार कर रखा है।’

खाना खाते हुए डॉ. वर्मा ने बताया - ‘ ‘कौन बनेगा अरबपति’ वालों ने सूचित किया है कि कुछ दिनों में चैनल की टीम मेरा वीडियो शूट करने के लिये आएगी। वे लोग मेरे कार्यक्षेत्र यानी अस्पताल में मुझे ड्यूटी देते हुए तथा घर में साधारणतया मैं कैसे रहती हूँ, क्या करती हूँ आदि की शूटिंग करेंगे। मैं चाहती हूँ कि जब वे घर पर शूटिंग करें तो स्पन्दन मेरी गोद में हो।’

‘वाह वृंदा, बहुत ख़ूब! बड़ी भाग्यशाली है स्पन्दन जो इसे दुनिया भर के लोग टीवी पर देखेंगे। तुम मुझे बता देना। जब चैनल की टीम आएगी, मैं इन्हें ले आऊँगा।’

‘मनु, एक बात और। चैनल वालों ने लिखा है कि मुझे अपने साथ एक साथी भी लेकर जाना है। तुम लोग मेरे साथ चलो। इस बहाने रेनु और तुम मुम्बई भी घूम लोगे।’

‘परन्तु दीदी, आपने कहा कि चैनल वालों ने एक साथी लाने के लिखा है। फिर हम तीनों कैसे जा सकते हैं?’

‘रेनु, यह ठीक है कि रिकॉर्डिंग के समय स्टुडियो में मेरे साथ एक ही व्यक्ति अन्दर जा सकेगा, लेकिन रिकॉर्डिंग से पहले और बाद में तो हम इकट्ठे मुम्बई घूम-फिर सकते हैं।’

‘दीदी, गुड्डू अभी बहुत छोटी है। सफ़र या मुम्बई का मौसम यदि इसे माफ़िक़ न आया तो दिक़्क़त हो सकती है। इसलिए आप अपने साथ इन्हें ही ले जाएँ।’

‘मैं हूँ ना! मेरे होते हुए स्पन्दन की तुम चिंता क्यों करती हो?’

मनमोहन ने अभी तक अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी। उसने कहा - ‘वृंदा, हमारा या मेरा तुम्हारे साथ जाना ठीक नहीं रहेगा। मेरे विचार में, तुम अंकल जी और आंटी जी को अपने साथ लेकर जाओ। उन्हें भी अच्छा लगेगा और उचित भी रहेगा।’

‘मनु, पापा को मैं ले तो जाती, लेकिन एक तो उनकी सेहत ठीक नहीं रहती, दूसरे, उनको साथ ले जाने से कोई फ़ायदा नहीं होने वाला।’

‘अंकल जी को क्या हुआ?’

‘कुछ तो एज फ़ैक्टर है, कुछ अकेले रहने के कारण उनकी सेहत ठीक नहीं रहती। मैंने तो कई बार कहा है कि मेरे पास रहें, किन्तु वे गाँव छोड़ना नहीं चाहते। जब भी एक-आध दिन की छुट्टी होती है, मैं उनके पास चली जाती हूँ। वहाँ जाकर जो आनन्द का अनुभव होता है, वह शहरी जीवन में कहाँ? सच में भागदौड़ की ज़िन्दगी से इस तरह चुराए पलों के आनन्द को केवल अनुभव किया जा सकता है, शब्दों में बयान नहीं। पिछली बार जब मैं गाँव गई थी, तो खेत में लगे ट्यूबवेल की तेज धार के नीचे बैठकर नहाई भी थी। मज़ा आ गया था।’

‘दीदी, आप खेत में खुले में नहाई थीं?’ रेनु ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।

‘यह कौन-सी बड़ी बात थी! घर से जाते हुए मैं बदलने के लिये कपड़े ले गई थी। ट्यूबवेल के साथ रूम बना हुआ है, नहाकर वहाँ चेंज कर लिया था। वैसी ताजगी बाथरूम में नहाकर कहाँ मिलती है?’

मनमोहन - ‘ठीक कहती हो वृंदा। शहर अपना चाहे छोटा ही है, फिर भी प्रदूषण तो बहुत बढ़ गया है। ऐसे प्रदूषित वातावरण से दूर प्राकृतिक वातावरण में साँस लेने को मिले तो आनन्द तो आएगा ही। ..... तुम कह रही थी कि अंकल जी को साथ ले जाने से कोई फ़ायदा होने वाला नहीं, इसका मतलब?’

‘मनु, मैं तुम लोगों को अपने साथ इसलिए लेकर जाना चाहती हूँ, क्योंकि तुम मुझे एक मोटी रक़म जीतने में मदद कर सकते हो।’

‘वो कैसे?’

‘इस खेल में यदि किसी प्रश्न का उत्तर कन्टेस्टेंट को नहीं आता तो वह एक बार अपने साथी से मदद ले सकता है। तुम कंपीटिशन की तैयारी कर रहे हो, हो सकता है, किसी प्रश्न का जवाब मुझे पता न हो और तुम्हें पता हो तो हम उसका जवाब देकर अच्छी ख़ासी रक़म जीत सकते हैं। ..... मनु, मेरी मानो तो समय निकालकर ‘कौन बनेगा अरबपति’ अवश्य देखा करो। इसमें जो प्रश्नोत्तर होते हैं, उससे तुम्हें कंपीटिशन के लिए बहुत लाभ हो सकता है।

‘दीदी, ऐसी बात है तो आप इन्हें ही ले जाओ’, क्योंकि गुड्डू के साथ होने पर आप दोनों के पढ़ने में बाधा पड़ेगी।’

जब रेनु ने निर्णयात्मक स्वर में कहा तो डॉ. वर्मा को लगा, चलो, यह भी ठीक है। इस बहाने मनु के साथ कुछ दिन अकेले में बिताने का अवसर मिलेगा!

मनमोहन ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। अत: खाना समाप्त करने के पश्चात् उसकी ‘हाँ’ मानकर डॉ. वर्मा ने स्वादिष्ट खाने के लिये रेनु का धन्यवाद किया और विदा लेने की अपनी इच्छा व्यक्त की।

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