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मनमोहन नौकरी पाने में सफल रहा। नौकरी लगने के पश्चात् उसके विवाह के लिए रिश्ते आने लगे। वह टालमटोल करता रहा। एक रविवार के दिन विमल मनमोहन से मिलने उसके घर आया हुआ था। मंजरी ने मौक़ा देखकर बात चलाई - ‘विमल, अब तुम दोनों विवाह कर लो। बहुओं के आने से घरों में रौनक़ आ जाएगी।’
‘दीदी, मैं तो तैयार हूँ। किसी अच्छी लड़की का रिश्ता आने की बाट जोह रहा हूँ। लेकिन, मनमोहन के लिए तो आपको अभी डेढ़-दो साल इंतज़ार करना पड़ेगा।’
मनमोहन ने विमल की तरफ़ आँखें तरेरीं, किन्तु विमल अपनी रौ में बोलता ही चला गया।
मंजरी को विमल की बात में कुछ रहस्य की भनक लगी, सो उसने पूछा - ‘वो क्यूँ?’
‘इसने जो लड़की पसन्द कर रखी है, वह एम.बी.बी.एस. कर रही है।’
मंजरी ने बनावटी ग़ुस्से से कहा - ‘मोहन, तूने तो कभी ज़िक्र नहीं किया?’
मनमोहन संकोच में चुप रहा। विमल ने ही बात आगे बढ़ाई - ‘दीदी, पिछले दिनों जो हम जयपुर गए थे, तो उसी के निमन्त्रण पर गए थे। .... दीदी, लड़की क्या है, गुणों की खान है।’
‘लेकिन, मोहन उससे मिला कहाँ और कैसे?’
तब विमल ने सारा क़िस्सा कह सुनाया। सारी बातें सुनने के पश्चात् मंजरी ने अपनी शंका निवारण हेतु प्रश्न किया - ‘विमल, तुझे लगता है कि वृंदा के पेरेंट्स इस रिश्ते को परवान चढ़ने देंगे?’
‘दीदी, वृंदा इकलौती सन्तान है। वह अपनी बात मनवा भी सकती है। वह मनमोहन के प्रति पूर्णतया समर्पित है। .... उसके एम.बी.बी.एस. करने तक तो इंतज़ार करना ही पड़ेगा।’
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