tedhi pagdandiyan - 23 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | टेढी पगडंडियाँ - 23

Featured Books
Categories
Share

टेढी पगडंडियाँ - 23

टेढी पगडंडियाँ

23

बसंत, इक्कीस साल का गबरु जवान इस समय छोटे बच्चे की तरह लगातार ऊँचे स्वर में रोये चला जा रहा था । घबराई हुई किरण को समझ नहीं आया कि वह बसंत को कैसे चुप कराये । वह बार बार पूछे जा रही थी – क्या हुआ , कुछ बताओ तो सही । तुम लोग घेर लावारिस छोङकर कहाँ चले गये थे ? देसराज कहाँ है ? रो क्यों रहे हो ? बोलो तो सही कुछ ? बोल क्यों नहीं रहे हो पर बसंत किसी बात का कोई जवाब दे ही नहीं रहा था । वह बस दोनों हाथों में चेहरा छिपाये फूटफूट कर रोता रहा । रोता रहा । रोता रहा । आखिर करीब आधा घंटा रोने के बाद जब वह रो रो कर थक गया , तब उसने अंगोछे से अपना मुँह पौंछा । रोते रोते उसकी हिचकियाँ बंध गयी थी । किरण ने उसे पानी का गिलास थमाया – पानी पी बसंत । पानी पीकर वह थोङा प्रकृतिस्थ हुआ तो उसने नल पर जाकर आँखों में पानी के छींटे मारे और सामान्य होने की कोशिश करने लगा पर किरण के सामने पङते ही उसकी आँखों से फिर से आँसू बहने लगे ।
अब बता , क्या हुआ – किरण ने फिर पूछा ।
चाची , चाचा चला गया ।
कहाँ चला गया ? बाजार तक गया होगा । नहीं तो ज्यादा से ज्यादा शहर तक । आ जाएगा थोङी देर तक । इसमें इतना रोने की क्या बात है ?
हाय चाची , बाजार कहाँ , वह तो वहाँ चला गया जहाँ से कोई आज तक लौटकर नहीं आया । बसंत ने चीख मार कर कहा ।
क्या बक रहा है । तेरा दिमाग तो नहीं चल गया । आज भांग खाकर बैठा है । जो मन में आया , बोल पङा ।
मैं झूठ क्यों बोलूंगा तुझसे चाची । हम सचमुच लुट गये ।
किरण की आँखों के आगे अंधेरा छा गया । उससे खङा नहीं रहा गया । वह वहीं जमीन पर बैठ गयी । पता नहीं कितनी देर वे गुमसुम एक दूसरे के सामने बैठे रहे ।
पर यह हुआ कैसे ? क्या इसीलिए उसकी बायीं आँख कल से फङक रही थी ?
बसंत सिसकियाँ लेते हुए बता रहा था - चाचा रात को तेरे पास से मोटरसाइकिल से हवेली जा रहा था । अकेला पहली बार निकला था । रात का टैम । सुनसान सङक । रास्ते में कोई दुश्मन घात लगाके बैठा होनै पहले से । जैसे ही चाचे ने कच्चे रास्ते पर अपनी मोटरसाइकिल डाली , पीछे से आकर ट्रक ने टक्कर मारी और चाचा मोटरसाइकिल समेत नीचे गिर गया । उस जालिम ने ट्रक दो बार उसकी छाती के ऊपर से निकाल दिया । सुबह दूध इकट्ठा करने वालों ने सङक किनारे पङा उसे देखा तो हवेली में भागके खबर की । सुनते ही इधर उधर से सारे लोग भागे । बङा सरदार और भापा पहुँचे , तबतक पंछी उङ गया था । फिर भी भापा कार में डालकर ले गया था शहर के बङे अस्पताल कि शायद कोई साँस बाकी हो तो बच जाये । पर चाची इतने अच्छे करम कहाँ थे जो बच जाता । लाश ही आई घर ।
मुझे देखना है उसे ।
अब देखने को बचा ही नहीं कुछ । उसका तो संस्कार भी हो गया चाची ।
अच्छा ,
चलना चाहती है तो चल । मैं ले चलता हूँ तुझे हवेली ।
नहीं रहने दे । तू अपना काम करले ।
वह घुटनों पर हाथ रखकर उठी और पैर घसीटती हुई कोठी में आ गयी । कोठी में आते ही वह पेङ से काटी गयी टहनी की तरह पलंग पर गिर गयी । पाँच महीने का साथ था उन दोनों का । नफरत से शुरु हुआ रिश्ता अभी पनपना शुरु हुआ था । अभी मोह के धागे लपेटने के लिए उँगलियाँ फैलाई थी उसने । अभी दो तार ही लिपटे थे । सुख दुख कहने सुनने शुरु किये थे दोनों ने । अभी तो बहुत कुछ कहना सुनना बाकी था । अभी कई बातें कहनी थी ।
इस महीने तो तारीख निकले पंद्रह दिन ऊपर हो गये । ये खबर भी उसे देनी थी । डरती ने अभी तक उसे बताया न था कि पता नहीं गुस्से हो जाएगा कि खुश होगा । सोच रही थी कि पहले खबर पक्की हो जाए फिर बता देगी पर अब किसे बताएगी ।कौन उसकी बात सुनेगा । कौन उसकी खुशी में शामिल होगा ।
अभी कल ही तो बैठकर दोनों ने इस नये घर के लिए सामान की लिस्टें बनायी थी । एक दो दिन में दोनों ने इकट्ठे बाजार जाना था और कागज पर लिखा सारा सामान खरीद कर लाना था । एक एक चीज दोनों ने पसंद करनी थी फिर इकट्ठे लाकर इस घर को सजाना था पर अचानक से यह क्या होनी बरत गयी ।
यह सब याद आया तो वह सुबक सुबककर रोने लगी ।
गुरजप बाहर रेत में घर बना रहा था । उसके रोने की आवाज सुनी तो दौङा आया – क्या हुआ बीबी , तू रो क्यों रही है किसी ने कुछ बोला तो मुझे बता । मैं उसकी पिटाई कर दूँगा । - किरण गुरजप का गुस्से से तमतमाया हुआ मासूम सा चेहरा देखकर रोते हुए भी हँस पङी। उसने नन्हे गुरजप को अपने सीने से लगा लिया – मैं वारी जाऊँ बच्चे । माँ सदके । मैं कहाँ रो रही हूँ । वो तो सब्जी के लिए प्याज काटे थे न तो उनके कङवेपन से आँखों से पानी बह गया ।
तो तू सब्जी में प्याज न डाला कर । मैं बिना प्याज के सब्जी खा लूँगा ।
वह गुरजप का चेहरा देखती रही देर तक । हूबहू निरंजन है । निरा निरंजन । वही खङा होने का स्टाइल , वही बात का लहजा , वही नाक पर रखा गुस्सा और मक्खन की डली से भी मुलायम दिल । अभी पाँच साल का हुआ नहीं है । इस असौज में पाँच साल पूरे होंगे । पर ठसका बाप वाला बरकरार है । जब चलता है तो निरंजन की परछाई दिखता है । आज इसकी नजर उतारनी पङेगी । कहते हैं , माँ की नजर भी लग जाती है बच्चों को । उसने आगे बढकर गुरजप को सीने से लगा लिया फिर नमक लालमिरच और राई निकाल उसके सिर से सात बार घुमाकर चुल्हे में डाल आई । फिर भी तसल्ली नहीं हुई तो चौरस्ते की मिट्टी भी वार डाली । उसके बाद खीर चढादी । गुरनैब आने को होगा ।

बाकी कहानी अगली कङी में ...