Nainam chhindati shstrani - 53 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 53

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 53

53

मुँह घुमाने से या परिस्थितियों का पीछा छुड़कर भाग जाने से कोई कब तक बच सकता है ? इंसान को अपने सामने आई हुई परिस्थिति का सामना करना ही पड़ता है और वह जितनी जल्दी स्थिति को समझकर अपनी नियति स्वीकार कर ले, उतना ही उसके लिए अच्छा होता है अन्यथा उसका चाइनोकरार चला जाता है | सबने अपने –अपने हिस्से के रंजोगम को, स्थिति को झेला था, परिस्थितियों को स्वीकार करके दुख-सुख अपना लिए थे | तीनों मित्र अपने-अपने जीवन के बारे में चर्चा करते हुए कभी मुरझा जाते तो कुछ समय बाद तीनों के चेहरों पर मुस्कुराहट तथा होठों पर हँसी खिलने लगती | 

जीवन इसी का ही तो नाम है | ज़िंदगी के ताल-तलैया पार करते हुए मनुष्य कभी फूला नहीं समाता, कभी दुखी हो जाता है, कभी सहम जाता है तो कभी अभिमान से भर उठता है | कभी अपने आपको श्रेष्ठ समझने का दावा करता है तो कभी निरीह दिखाई देने लगता है | कभी ठठाकर ज़िंदगी को ठेंगा दिखाने का प्रयास करता है | 

मनुष्य के जीवन में ये सारी अवस्थाएँ घूमती-फिरती बार-बार रूप बदलकर उसके सामने आती रहती हैं, वह उनमें गोल-गोल घूमता रहता है पर अपने समक्ष आने वाली समस्याओं से बचकर कहाँ रह पाता है और एक दिन जीवन के अंतिम मोड़ पर आकर कब खड़ा हो जाता है, उसे पता ही नहीं चल पाता | 

‘मैरी गो राउंड’ है जीवन !नीचे से ऊपर, ऊपर से नीचे घूमते हुए शरीर के साथ मन को ल पटकता है | 

“ज़िंदगी कितनी छोटी सी है पर हम उसे कहाँ ‘एंजॉय’ कर पाते हैं ?हम सबने ही कम उम्र मेन जीवन की कठोर सच्चाई को झेला है | ”सारांश कभी-कभी दार्शनिक बन जाता | वह अपनी इन दोनों मित्रों से अपने परिवार की सब बातें साझा कर चुका था और इनके बीते हुए कल की गवाही बन चुका था | 

“जब जानते हो तो क्यों नहीं कोशिश करते ?अपना साथी तलाश करो और उड़ने दो अपने आपको भीनी हवाओं में, ऊँचे आसमानों में –“रोज़ी आजकल बहुत चहकने लगी थी | वह पहले से काफ़ी खुल गई थी और कुछ अन्य दोस्त भी उसकी मित्रता के दायरे में आ गए थे | 

“लगता है, रोज़ी ने उड़ने के लिए साथी ढूँढ लिया है | ”सारांश मुस्कुराया | समिधा दोनों का मुँह बारी-बारी से ताकने लगी थी| 

रोज़ी के मुख पर लालिमा भरी जगमगाहट मानों कई दीपों की बाती सी रोशन हो गई | फिर धीरे-धीरे शर्मीली मुस्कुराहट ने उसे अपने भीतर सिकोड़ दिया | वह समुंदर की रेती को अपनी मुट्ठी में भरकर बिना बात ही उछालने लगी| 

“कुछ तो छिपा रही है रोज़ी हमसे ---तुम्हें भी कुछ नहीं मालूम समिधा ?”सारांश ने रोज़ी की नीछी, तिरछी नज़रों को ताड़ लिया था | 

“अरे भई ! बताओ तो सही, कौन खुश्न्सीब है जो तुम्हारे जीवन में यह खूबसूरत बदलाव लेकर आया है ?हमें भी तो ख़ुश होने का मौका दो और इस खूबसूरत बदलाव को हंसे शेयर तो करो –“सारांश मुस्कुराया | 

समिधा ने रोज़ी में कुछ परिवर्तन देखे थे, उसे लगा –यह उनकी त्रिमूर्ति का प्रताप है जो इन सभी मित्रों के लिए महत्वपूर्ण बन गई है, सुख-दुख को बाँटने का माध्यम, घुटन से मुक्ति का एहसास ! सारांश ने रोज़ी की आँखों में भर्ती चमक को ताड़ लिया, रोज़ी का साँवला चेहरा एक विशेष प्रकार की प्रेम की रोशनी से दपदपाने लगा था | 

स्त्री हो अथवा पुरुष, सबको एक संबल की तलाश रहती है | वह अपने सुख और दुख किसी के साथ बाँटकर हल्का होना चाहता है | रोज़ी का बचपन जिन परिस्थितियों में गुज़ारा, उसकी कड़वाहट ने उसे लोगों से दूर कर दिया था | अब जब जीवन की खिड़की से प्रकाश की र्रेखा उसे स्पर्श करने लगी, वह सहज होने लगी | उसे लोगों में अच्छाइयाँ नज़र आने लगीं, उसके मित्रों का डरा बढ़ने लगा | 

रोज़ी समिधा से जैक्सन के बारे में बातें करती रहती थी, समिधा ने भी कई बार रोज़ी से जैक्सन के बारे में खुलकर पूछने का मन बनाया परंतु न जाने क्यों पूछ नहीं पाई | 

रोज़ी के दिल के दरिया में एक महकता हुआ तूफ़ान आने लगा था | वह उफान आँखों से लेकर उसके पूरे शरीर में उछल लगाता दिखाई देता | रोज़ी ने अपने बचपन के मित्र जैक्सन की कहानी इन दोनों मित्रों के साथ साझा कर दी | कब तक छिपाती अफ़साना ?

यह वही जैक्सन था जो बचपन में उसका पड़ौसी था और न जाने किती बार उसने भूखी रोज़ी को स्वादिष्ट भोजन खिलाया था, कितनी बार उसकी ज़ालिम चाची से उसे बचाया था | वह चुपचाप बचपन में उसके साथ घर-घर खेली थी | जैक्सन अपनी उसकी आँखों से आँसू पोंछता और उसे अपने सीने से लगा लेता था | जब कभी रोज़ी को स्कूल में किसी चीज़ की ज़रूरत होती, जैक्सन अपने पॉकेट-मनी में से उसे लाकर दे देता | वह उससे लगभग दो-ढाई वर्ष बड़ा था और उसीने अपने पिता को मनाया था कि केवल वे ही रोज़ी के चाचा को किसी भी प्रकार समझा सकते हैं कि रोज़ी को तकनीकी शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए | 

वैसे रोज़ी के चाचा अपनी नकचढ़ी क्रूर पत्नी से बहुत घबराते थे | फिर भी उन्होंने किसी न किसी तरह रोज़ी की चाची को पटाया था कि वह कमाकर तो उसीको देगी फिर क्यों परेशान होती है ?अब तो रोज़ी के बचपन पर केएचआरसीएच करने वाले समय तथा पैसे भुनाने का वक़्त आया है | 

रोज़ी की मूर्ख तेज़, तर्रार ने कभी यह याद ही नहीं रखा था कि रोज़ी के पिता की छोड़ी हुई दौलत पर ही तो वह और उसका परिवार ऐश कर रहा था | अपनी बेटी को भी उसने अपने जैसा स्वार्थी और बदतमीज़ बना दिया था अलबत्ता रोज़ी की कमाई हड़पने की बात उसकी खूंडित बुद्धि में तुरंत आ गई थी | और मुँह चढ़कर ही सही, अहसान जताते हुए उसने रोज़ी को बी. ए के बाद तकनीकी कॉलेज में प्रवेश दिलवा दिया था | उसे क्या मालूम था कि तकनीकी परीक्षा में पास होकर चिड़िया फुर्र से उड़ जाएगी | 

रोज़ी और जैक्सन अपने भविष्य की योजना बना चुके थे | जैक्सन की योजनानुसार रोज़ी ने दूरदर्शन में नौकरी प्राप्त करने के लिए बेहद श्रम किया था और श्रम का परिणाम भी प्राप्त किया था | जैक्सन भी बंबई में काम करना चाहता था | उसके माता-पिता रोज़ी को बचपन से जानते थे और पूरे परिवार से बहुत अच्छी प्रकार से परिचित थे | 

दुर्घटना में रोज़ी के माता-पिता की मृत्यु के बाद अपनी ओर से वे सदा रोज़ी के लिए कुछ न कुछ करने का प्रयास करते रहते | वे चाहते थे कि जैक्सन रोज़ी को अपने जीवन-साथी के रूप में पा सके| रोज़ी बंबई पहुँचकर जैक्सन की प्रतीक्षा कर रही थी | इस योजना के कार्यान्वयन न होने तक दोनों इस बात को पर्दे में रखना चाहते थे | उसकी यह प्रतीक्षा अब पूरी होने जा रही थी | जैक्सन को बंबई में नौकरी मिल गई थी और वह कुछ ही दिनों में बंबई आने वाला था \ जब वह साक्षात्कार के लिए आया था तब दोनों ने भविष्य में एक-दूसरे का साथ निभाने का निश्चय कर लिया था | वैसे बचपन से वे एक-दूसरे की प्रतीक्षा ही तो कर रहे थे | 

रोज़ी की प्रसन्नता देखकर सारांश व समिधा प्रसन्न हो गए थे | 

“ज़िंदगी में सैटल तो होना ही है, जितनी जल्दी हो जाएँ अच्छा है | ”रोज़ी का मुख दीप्त हो रहा था | 

“हाँ, यह तो है | मैं भी घबरा गया हूँ अपने अकेलेपन से!”अचानक सारांश के मुख से निकला | 

“तो, क्यों नहीं बता देते अपने मन की बात ? रोज़ी चहकी | उसने समिधा की ओर देखकर सारांश को इशारा किया | सारांश के मन में समिधा के प्रति झुकाव को वह पहले ही ताड़ गई थी | 

“क्या हम जीवन-साथी बन सकते हैं ?”सारांश ने एक बार रोज़ी की ओर देखा और समिधा के समक्ष प्रस्ताव कुछ ऐसे रख दिया मानो उसकी गाड़ी छूट रही हो |