Nainam chhindati shstrani - 52 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 52

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 52

52

रोज़ी और समिधा की अच्छी मित्रता हो गई थी | दोनों एक-दूसरे का सुख –दुख बाँटने लगीं | र्प्ज़ी बहुत पहले से नृत्य सीखना चाहती थी परंतु माता-पिता के अभाव मेन उसका पूरा जीवन ही अभावग्रस्त रहा था | ऐसी स्थिति में रहकर उसने बचपन को बहुत नज़दीक से देख लिया था, उसकी न्श्वरता समझ ली थी और बचपन में ही वह बड़ी बन गई थी| बंबई आए हुए उसे केवल ढ़ाई वर्ष ही हुए थे, समिधा के साथ उन्हें दो नहीं, एक और एक ग्यारह बना दिया था | अब उसे अवसर मिला था कि वह अपने शौक पर ध्यान दे सके | 

उसने पैसे जोड़कर एक ‘स्कूटर’ खरीद लिया था जिसे वह बहुत शौक से, बहुत सँभल-सँभलकर चलाती थी| अब उसे स्कूटर पर बैठने के लिए एक साथी मिल गया था | वह समिधा के साथ बहुत शान से दूरदर्शन के कैंपस के बाहर निकलती | समिधा को लाइब्रेरी मेन छोड़कर वह स्वयं कुछ दूरी पर स्थित एक ‘नृत्य विद्यालय’ में ‘भरतनाटयम’ सीखने चली जाती | लौटती बार दोनों कभी चर्च-गेट तो कभी समुद्र के किनारे जा बैठतीं | ये घूमना-फिरना उनके खाली समय पर निर्भर करता | 

कभी-कभी समिधा आनमनी होती या कुछ अधिक उलझन में होती तो पुस्तकालय से उठकर समुद्र के किनारे जा बैठती, वहाँ वह लहरों से बातें करती| 

उसे लहरों में माँ का चेहरा फैलता, सिकड़ता नज़र आता | वहाँ बैठकर कितनी सारी बातें माँ से साझा कर लेती थी समिधा ! ये बातें बस उसके और लहरों के बीच में बसी माँ के बीच होतीं | रोज़ी समिधा से इतनी परिचित हो गई थी कि उसके मन की बात समझने में उसे ज़रा भी देर न लगती | लौटती बार उसे पुस्तकालय में न पाकर वह सीढ़ी ‘बीच’पर आ जाती जहाँ वह समिधा को लहरों से बातें करती, उनकी अठखेलियों में तल्लीन पाती | 

आज फिर पुस्तकालय में मन न लग पाने के कारण समिधा समुद्र की रेती पीआर आ बैठी थी | समुद्र की तरंगें खूब ऊँची-नीची हो रहीं थीं | आज समुद्र का मिज़ाज कुछ अधिक ही बिगड़ा हुआ था, वह कुछ क्रोधित सा लग रहा था | समिधा रेती पर बैठी आनमनी सी सोच रही थी कि माँ समुद्र के इस मिज़ाज में कैसे उससे मिलने आ सकेगी ? बहुत देर तक वह लहरों में झाँकती रही, जब उफ़ान उसके पास आने लगा, वह उठकर खड़ी हो गई और जीवन की तुलना आती-जाती लहरों से करने लगी | उसके मन में बीती स्मृतियाँ लहरों की भाँति बहुत तेज़ी से आने-जाने लगीं | 

अचानक ज़ोर से एक उछाल आई और एक लहर ज़ोर से समिधा के मुख पर ज़ोरदार थप्पड़ मारकर वापिस लौट गई | समिधा हत्प्रभ सीम हो उठी | उसे यह अनुभव पहली बार हुआ था | वह लहरों की ओर से अपना चेहरा घूमकर खड़ी हो गई कि फिर एक भयंकर लहर आई और उसे सिर से भिगो गई | समिधा इसके लिए तैयार नहीं थी, वह उफ़ान के च्पएट में आ गई | एक केएसएचएन को उसे माँ का उदास चेहरा लहरों में से झाँकता महसूस हुआ | क्या माँ उसे लेने आई हैं ? दूसरे ही क्षण जब लहरें समिधा को उठाकर दूर समुद्र में फेंकने को ही थीं, उसे किसीकी सशक्त बाहों ने थाम लिया| 

समिधा को दूर से रोज़ी की आवाज़ आती हुई सुनाई दे रही थी, उसकी आँखें बंद थीं और चेहरा पीला पड़ गया था | दो पलों में ही वह बेहोश होकर बचाने वाले की बाहों में लटक गई थी| 

रोज़ी ने दूर से समिधा को देख लिया था | यह भी कि समिधा को किसी अजनबी ने बचाया था | समिधा अजनबी की बाहों में थी और बेहोश हो चुकी थी | वह अपने हाथों से स्कूटर छोड़कर समिधा को आवाज़ लगाते हुए भागी | रोज़ी की आवाज़ समिधा ने सुन ली थी परंतु वह उसे उत्तर दे पाने की स्थिति में नहीं थी | 

अजनबी ने कुछ कदम गीली रेती में चलकर समिधा को कुछ दूरी पर लाकर एक सूखे स्थान पर लिटा दिया था | रोज़ी समिधा के पास पहुँचकर उसे झंझोड़ने लगी | उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे | समुद्र तट पर खड़े लोगों ने, ठेले वालों ने –सभी ने इस दृश्य को देखा था और उन्हें लग रहा था कि लड़की लहरों के साथ बह जाएगी | वहाँ ऐसी दुर्घटनाएँ होती ही रहती थीं | न जाने किसके आशीष से यह बहती हुई लड़की बच गई थी | कई लोग उसे घेरकर खड़े हो गए थे | 

“आप इन्हें जानती हैं ?”समिधा को बचाने वाले सुदर्शन युवक ने रोज़ी से पूछा | 

रोज़ी ने ‘हाँ’ में सिर हिलाया और समिधा से चिपट गई | उसके चेहरे पर घबराहट पसरी हुई थी | 

युवक ने आस-पास खड़े हुए लोगों से प्रार्थना की कि वे बेहोश युवती पर हवा आने दें और दौड़कर थोड़ी दूरी पर खड़े गन्ने के रस के ठेले से रस ले आया | अब तक समिधा ने आँखें खोल दीं थीं | उसने रोज़ी को ऐसे कसकर भींच रखा था मानो समुद्र से अभी कोई दानवी लहर उसे अपना ग्रास बनाने आ जाएगी | 

“लीजिए, पीजिए, आप बेहतर महसूस करेंगी| ” समिधा ने रोज़ी से *अलग होते हुए बड़ी मुश्किल से अपनी घबराई हुई दृष्टि से अजनबी की ओर देखा | 

“पी लो समिधा और इनका थैंक्स पे करो, इन्होंने ही तुम्हें बचाया है | 

समिधा की बहयभीत दृष्टि में कृतज्ञता भर उठी और उसने अजनबी को एक गहरी दृष्टि से देखा | एक सभ्य, सुसंस्कृत, शिक्षित युवक जिसके व्यक्तित्व में सरलता, पारदर्शिता प्रगट हो रही थी!उसने काँपते हाथों से गन्ने के रस का ग्लास पकड़ लिया जिसे रोज़ी ने सहारा देकर समिधा के मुँह तक पहुँचाया | 

समिधा को इस स्थिति में देखकर रोज़ी अस्वस्थ हो उठी थी, अब उसे ठीक-ठाक देखकर उसकी जान में जान आई | युवक ने उस पर उपकार किया था | रोज़ी ने उसे ‘थैंक्स’ बोला | युवक ने बहुत शालीनता से कहा ;

“कोई भी होता तो यही करता बशर्ते उसके पास इनके पास पहुँचने का समय होता | ”

अजनबी युवक काफ़ी देर तक दोनों के पास रहा | बाद में समिधा के सहज होने पर वह उन्हें दूरदर्शन तक छोडने भी आया था | 

युवक का नाम सारांश था, उसे भी बंबई में अधिक समय नहीं हुआ था | वह मैनेजमेंट के एक दफ़्तर में अच्छे पद ओर कार्यरत था| युवक अब अपने विषय में पी. एचडी करना चाहता था | वह अक्सर पुस्तकालयों में जाकर अध्ययन करता | उसने समिधा को पुस्तकालय में कई बार देखा था और उसके अध्ययन में डूबने की तल्लीनता से प्रभावित भी था | बंबई में उसे इस प्रकार की अध्ययनशील लड़कियाँ दिखाई नहीं दी थीं | यह नगरी उसे बनावटी लगती और यहाँ की लड़कियाँ अत्यंत आधुनिक ! जो उसके डायरे में नहीं आती थीं | 

अकेला रहता था इसलिए चिंता भी नहीं थी कि कोई उसकी प्रतीक्षा कर रहा होगा | खाना खाकर रात को देर से घर पहुँचता था | उसने बताया था कि वह उत्तरप्रदेश का निवासी है और उसका अधिक समय शिमला व नैनीताल के स्कूलों में व्यतीत हुआ है | 

उस दिन तीनों काफ़ी देर तक वहीं बैठे रहे थे धीमे-धीमे एक-दूसरे की जीवन-कथा से परिचित होते रहे थे | यह युवक सारांश था जिसकी काफ़ी रुचियाँ समिधा से मिलती थीं और जिसने पहली बार ही समिधा के मन में स्थान बना लिया था | इस प्रकार एक दुर्घटना होते-होते बची और दूसरी घटना ने समिधा और सारांश को एक-दूसरे के समीप ल खड़ा किया | 

अब समिधा, रोज़ी तथा सारांश –तीनों प्रगाढ़ मित्र हो गए थे | प्रत्येक छुट्टी के दिन ये त्रिमूर्ति कहीं न कहीं घूमती दिखाई देती | तीनों कलप्रिय थे, साथ में घूमते, संगीत –नृत्य के, कवि-गोष्ठियों के कार्यकर्मों में जाते | तीनों मित्रों में एक-दूसरे से हल्के-फुल्के मज़ाक भी होने लगे थे | 

दुर्घटना होने के बहुत दिनों तक समिधा समुद्र पर जाने से डरती थी | वह सोचती, माँ कैसे उसे अभी अपने पास बुला सकती हैं ? वह उससे मिलने आतीं, उसे जीने का सही मार्ग दिखातीं लेकिन इस दुनिया से ले जाने की बात कैसे कर सकती थीं ? समिधा का मन डांवाडोल होने लगता | 

कैसा डरता है न मनुष्य अपनी मृत्यु से ! माँ जब तक उसे लहरों में दिखाई देतीं, उससे प्यार-दुलार से बातें करतीं, तब तक तो सब ठीक था, माँ उसे सहारा लगतीं पर जैसे ही समुद्र की लहरों में भयानक रूप दिखाई दिया समिधा की साँसें उखड़ने लगीं | काफ़ी दिनों के बाद बहुत प्रयत्न करके बामुश्किल रोज़ी तथा सारांश उसकी घबराहट को दूर कर सके थे | 

एक दिन चौपाटी पर चाट खाते हुए सारांश लहरों को देख रहा था कि अचानक ज़ोर से हँस पड़ा | ऐसी तो कुछ बात हुई नहीं थी इतनी ज़ोर से क्यों हँसा होगा सारांश ?सारांश रोज़ी से कान में कुछ कह रहा था जिसे सुनते ही रोज़ी के चेहरे पर भी मुस्कुराहट पसर गई | समिधा पाशोपेश में थी| उन तीनों की दोस्ती पारदर्शी थी, उसकी समझ में नहीं आया कि ऐसी हँसने वाली बात आख़िर हुई क्या जो दोनों उसको बता भी नहीं रहे हैं ? बात तो उसीकी हो रही है | 

“मुझे भी बताओ –“समिधा ने गोलगप्पा मुँह की ओर ले जाते हुए अपना हाथ रोक लिया | 

सारांश व रोज़ी की हँसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी | 

“रोज़ी, तुम बताओ ---“ सारांश ने रोज़ी के कंधे पर अपना भार डाल दिया | 

“नहीं, तुम बोलो न, तुम्हीं ने तो मुझे बताया था –“ रोज़ी ने शरारत से हँसते हुए कहा | 

अब समिधा का मन सच में डांवाडोल होने लगा | उसके हाथ में पकड़ा गोलगप्पा पानी से गाल गया और नीचे गिर पड़ा | अब तो और भी ठहाका लगा | 

“ अब बताओगी भी –“ समिधा ने खीज उठी | 

“भई, नाराज़ होने की बात नहीं है पर एक बात सारांश ने जो मुझसे पूछी बिलकुल सही थी पर उसका उत्तर मेरे पास भी नहीं है | ” दोनों मित्र समिधाकी खिंचाई कर रहे थे | 

“नहीं, मैं वैसे ही रोज़ी से पूछ रहा था कि तुम उस दिन लहरों की ओर से मुँह घूमकर इसलिए खड़ी हो गईं थीं कि पीछे से लहरें तुम्हें नहीं ले जा पाएंगी ?”

समिधा के चेहरे पर मुस्कुराहट पसर गई | उसे याद आया एक बार माँ जब उसके साथ स्कूल से वापिस आ रही थीं, उनके साथ शांति मौसी भी थीं | रोडवेज़ के बस अड्डे को पर करते हुए एक तरफ़ पानी भरा था, दूसरी ओर से मोड़ पर बस आ रही थी | शांति मौसी और वह तो अपने कपड़े सँभालते हुए पानी के दूसरी ओर कूद गए थे | माँ का हाथ पकड़ना चाहा पर माँ ने उनकी ओर हाथ नहीं बढ़ाया और बस की ओर से मुँह घुमाकर खड़ी हो गईं थीं मानो बस उन्हें बिना कुचले हुए निकाल जाएगी | 

माँ की इस भोली हरकत का विस्तृत वर्णन करते हुए शांति मौसी ने सबको कितना हँसाया था कि जब भी इस प्रकार की स्थिति समक्ष आती, माँ के सब मित्र कहते ;

“हमें अपने बचाव का एक नया फॉर्मूला मिल गया है –कोई भी परिस्थिति हो बस ---मुँह घुमाकर खड़े हो जाओ | ”और फिर सब खी-खी करने लगते !!