भाग -25
उसकी बातें काफी हद तक सही थीं, तो मैं कुछ बोल नहीं सका। सिर्फ़ इतना कहा कि, ' ठीक है चलना। हो सकता है हम-दोनों को एक साथ ही काम मिल जाए।' तो वह बोली, ' ए...सपना इतना बड़ा भी न देख कि यदि टूट जाए तो संभल ही न पाएं और हार्ट फेल हो जाए।'
मैंने कहा, 'तू साथ रहेगी तो मेरा फेल हार्ट भी चल पड़ेगा।'
तो उसने कहा, 'अच्छा अब ज़्यादा तेलबाजी ना कर।'
उसकी इस बात पर मैंने उसे बाहों में जकड़ कर कहा, 'अरे! जाने-मन तेरे को तेल नहीं लगाऊंगा तो किसे लगाऊंगा। इस दुनिया में जो अपने थे उन सब को तो छोड़ दिया, अब तेरे सिवा है ही कौन मेरा।'
यह बात कहते-कहते मैं अचानक ही गंभीर हो उठा। तो उसने अपने को मेरी बांहों में एकदम ढीला छोड़ते हुए कहा, 'ए.. तू बात-बात पर इतना कमजोर क्यों पड़ जाता है। ये अच्छी तरह समझ ले कि, यहां कमजोर पड़ने वाले कभी कुछ कर नहीं पाते। बल्कि हमेशा के लिए चुक जाते हैं समझा। और तू तो विलेन-किंग बनने आया है। ख्वाब इतने ऊंचे पाल रखे हैं, और हिम्मत चूजों जैसी।' यह कहते-कहते उसने भी अपनी दोनों बांहों से मुझे भरपूर जकड़ लिया। उस समय हम-दोनों ही बड़े भावुक हो गए थे।
अगले दिन सुन्दर हिडिम्बा आंटी पिछली कई बार की तरह फिर पत्थर बन रास्ते में आ पड़ीं। उन्होंने यह कहते हुए साफ मना कर दिया कि, 'काम बहुत है। आज किसी भी हालत में छुट्टी नहीं मिल सकती। जबकि हम-दोनों ने यह कतई नहीं बताया था कि, फ़िल्म में काम की तलाश में जा रहे हैं। छब्बी ने योजनानुसार यही बताया था कि, लगता है वह पेट से हो गई है। और पता नहीं क्यों तकलीफ ज़्यादा हो रही है। इसलिए डॉक्टर के पास जाना चाहती है। कहीं तकलीफ बढ़ गई तो मुश्किल हो जाएगी। इस पर सुन्दर हिडिम्बा आंटी बुरा, कसैला सा मुंह बना कर बोलीं, 'ऐसा कुछ नहीं है। तकलीफ बढ़ेगी तो देखा जाएगा। मैं हूं, तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं। 'हमने कई बार मिन्नतें कीं, लेकिन सुन्दर हिडिम्बा टस से मस नहीं हुईं, उल्टे बड़ी बेरूखी के साथ हम-दोनों को कई कामों में लगा दिया। हम-दोनों खून का घूंट पी कर रह गए। उस रात सुन्दर हिडिम्बा को हमने खूब कोसा, गरियाया, और साथ ही अगले दिन एक और प्रयास के लिए योजना भी बना ली।
सवेरे मैडम के साथ योग वगैरह करने के बाद छब्बी किचेन में नाश्ता बना रही थी। अचानक कई बर्तन गिरने की आवाज आई तो मैं दौड़ा, वहां गया। जमीन पर कई बर्तन पड़े हुए थे। छब्बी भी जमीन पर गिरी हुई थी। उसे उठाकर मैं बाहर ले आया तो सामने नज़र आईं मैडम। मुझे छब्बी को पकड़े देख कर पूछा, 'क्या हुआ?'
मैंने कहा, 'तबियत ठीक नहीं है। चक्कर आ गया तो गिर गई। यह कहते हुए मैंने छब्बी को लॉबी में जमीन पर बैठाया और पानी लेने किचेन में गया। लौटा तो देखा मैडम झुकी हुई छब्बी से कुछ पूछ रही हैं। जब छब्बी ने पानी पी लिया तब उन्होंने कहा कि, 'कुछ खा-पी ले, तो इसे डॉक्टर के यहां दिखा लाओ।'
मैंने कहा, 'जी ठीक है।'
इसके बाद छब्बी को लेकर मैं ऊपर अपने आशियाने में आ गया।
मैंने देखा छब्बी की हालत से तोंदियल भी परेशान हो गया था। मैंने सोचा कौन किसके दिल की कब पीर बन जाए कुछ पता नहीं। ऊपर आशियाने में आते ही हमने एक दूसरे को भींच कर पकड़ लिया। हंस पड़े हम। छब्बी की खिल-खिलाहट बंद ही नहीं हो रही थी। हमारी छुट्टी लेने की योजना, ऐक्टिंग दोनों जबरदस्त कामयाब हो गई थीं।
छब्बी ने महिलाओं की एक ऐसी अंदरूनी समस्या का बहाना किया था कि, मैडम जैसी स्मार्ट महिला भी मान गई। हम-दोनों जल्दी ही तैयार हो कर गोरे गांव के लिए निकल लिए। रास्ते में छब्बी से मैंने कहा, 'एक्टर बनने मैं जा रहा हूं, लेकिन तेरी एक्टिंग तो लाजवाब है। चल वहां दोनों ही काम मांगते है। क्या पता दोनों ही चल निकलें।'
इस पर वह बोली, 'चल-चल, पहले तू विलेन बन फिर मेरे को हिरोइन बनाना।'
रास्ते भर ऐसी ही बातें करते हम विले पार्ले वेस्ट एक अनाम से निर्माता के पास पहुंचे, तो हमारा उत्साह, उसके ऑफ़िस को देख कर काफी हद तक ठंडा पड़ गया। एक्टिंग के लिए लालायित मेरे जैसे कुछ और लड़के-लड़कियां, मर्द-औरतें पहले से पहुंचे हुए थे, उन्हीं से मालूम हुआ कि अंदर ऑडिशन चल रहा है। निर्माता-निर्देशक महोदय एक-एक कर लोगों से मिल रहे हैं। मैं भी अपने नंबर का इंतजार करने लगा। करीब दो घंटे बाद मुझे बुलाया गया। मुझे कुछ क्षण तक वह देखता रहा, फिर बैठने का संकेत कर बातें पूछने लगा। मैंने सीधा सा जवाब दिया कि, 'कई ऐड फ़िल्मों में काम कर चुका हूं। फ़िल्म में काम करना चाहता हूं। एक्टिंग वगैरह का कोई कोर्स नहीं किया है।'
यह सब कहते हुए मेरे दिमाग में साहब के लिए समुद्र तट आदि पर जो काम किया था, वही सब चल रहा था। वह मुझे सीधे-सपाट अंदाज में बात करते देख कर बोला, 'एक्टिंगआती है कि नहीं, इससे मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। एक्टिंग तो मैं अनाड़ी से अनाड़ी व्यक्ति से भी करवा लेता हूं। बस उसमें काम करने की चाहत होनी चाहिए।'
मैंने कहा, 'मेरी चाहत में कोई कमी नहीं है। काम के लिए ही तो आया हूं।' उसकी ऐसी ही और बातों से मैं अंदर ही अंदर ऊबने लगा। मगर उसने अपनी बातों से यह विश्वास दिला दिया कि, वह वाकई फ़िल्म निर्माता है, और फ़िल्मों का जानकार भी।
मैंने सोचा कि, यह उम्र में मुझसे छोटा ही होगा लेकिन कितना आगे है। फिर उसने कुछ ही देर में वह कह दिया जिसे सुनकर मैं उछल पड़ा। जिसे सुनने के लिए मैं बरसों से दर-दर की ठोकरें खा रहा था। ना जाने किस-किस की क्या-क्या बातें, गालियां, अपमान सुन-झेल रहा था। जिसके लिए अपना घर-द्वार मां-बाप परिवार सब छोड़ आया था। उसने मुझे अपनी फ़िल्म में विलेन का रोल देने के लिए चुन लिया था। लेकिन मुख्य विलेन के लिए किसी और को चुना था। इससे मैं थोड़ा मायूश हुआ था।
फिर भी मैंने उसे लाख-लाख धन्यवाद दिया। आभार जताया। मगर इसी वक्त मेरे मन में पैसे की बात भी उठी, कि यह अभी तक पैसे के बारे में तो कुछ बोल ही नहीं रहा है। कहीं साहब की तरह यह भी मुफ्त में ही काम न करा ले। मगर काम मिलने की खुशी में मैं कुछ पूछने की हिम्मत नहीं कर सका। बात पूरी होने का इशारा मिलते ही एक आदमी मुझे बगल के एक छोटे से केबिन में ले गया। जहां एक महिला ने एक रजिस्टर में मेरा पूरा ब्योरा नोट कर लिया।
मेरा मोबाइल नंबर भी और कहा कि, 'जल्दी ही फ़िल्म की शूटिंग शुरू होने पर बुलाया जाएगा।' फ़िल्म के नाम आदि के बारे में मैंने कुछ जानना चाहा तो उसने कहा, 'यह सब उसी समय बताया जाएगा।' मन में पैसे को लेकर चल रही उधेड़-बुन पर मैं ज़्यादा देर कंट्रोल नहीं कर पाया और दबे मन से यह बात भी उसके सामने रख दी। यह सुनते ही उसने मेरी तरफ ऐसे देखा मानो मैंने कोई अपराध कर दिया है।
कुछ क्षण देखने के बाद बोली, 'न्यू कमर्स के लिए तो चांस मिल जाना ही बहुत बड़ी रकम मिलने से कम नहीं है। फिर भी पेमेंट तो करेंगे ही। पहले काम तो शुरू होने दीजिए।' उसकी बातों ने मेरे सारे उत्साह पर एक तरह से पानी फेर दिया था। संतोष था तो सिर्फ़ इतना कि चलो शुरुआत तो हुई। कुछ तो काम मिला।
बाहर आकर छब्बी को बताया तो वह भी बहुत खुश हुई। पैसे की बात पर उसने कहा, 'चल कोई बात नहीं, पैर रखने की जगह मिल गई है, तो आगे और फ़िल्मों में भी तुझे काम मिलेगा। तू ऐक्टिंग सीखेगा, वह भी मुफ्त। यदि पैसा मिल गया तो उसे बोनस समझ लेना।' कुल मिलाकर हमने अपने हिसाब से जश्न भी मनाया। होटल में खाना खाया। जब वापस लौटे तो रात हो रही थी। नीचे ऑफ़िस बंद हो चुका था। ऊपर पहुंचे तो मालूम हुआ कि सुन्दर हिडिम्बा मैडम शाम पांच बजे ही कहीं गई हैं।
यह जानकर मन में बड़ी राहत महसूस की, कि चलो अच्छा हुआ नहीं तो सुन्दर हिडिम्बा दवा, डॉक्टर और पर्चा आदि के बारे में पूछतीं तो क्या बताता। तोंदियल ने पूछा, 'क्या हुआ था?' तो उसे बताया कि, 'कुछ खास बात नहीं है। पहले तो हम डर रहे थे, लेकिन डॉक्टर ने कहा कि कोई डरने वाली बात नहीं है। बस कुछ स्टमक डिसऑर्डर सा है, दो-चार दिन में सही हो जाएगा।'
मगर छब्बी ने और आगे की सोचते हुए एकदम से एक नई कहानी गढ़ दी कि, 'आते वक़्त हमारा बैग ना जाने कहां गिर गया? उसी में दवा, पैसे, पर्चा सब था।'
'तो फिर दवा कैसे खाओगी?'
छब्बी तुरंत बोली, 'एक खुराक चलने से पहले खा ली थी। उससे बड़ा फायदा हुआ है। बाकी कल देखेंगे।'
मैं समझ गया कि छब्बी ने मैडम से निपटने का पुख्ता इंतजाम कर लिया है। मगर उस दिन इसकी नौबत ही नहीं आई। मैडम खा-पी कर रात में एक बजे आईं और सीधे बेडरूम में जाकर कर सो गईं। उन्होंने अच्छी-खासी ड्रिंक कर रखी थी। उनका इंतजार कर-कर के ऊबे हम सब भी खा-पी कर अपने बिस्तरों पर पहुंच गए।
बहुत दिनों बाद, ये कहें समीना कि, बड़वापुर छोड़ने के बाद वह दूसरी ऐसी रात थी जो मेरी तब-तक की सबसे खूबसूरत रात थी। उस रात छब्बी भी जिस कदर खुशी में पागल होकर प्यार में रात-भर मेरे साथ मिल रही थी, उससे मुझे विश्वाश हो गया कि, यह वाकई मेरे साथ तन से ही नहीं, मन से भी पूरी तरह जुड़ी है। मेरी खुशी से, उसी तरह खुश है जिस तरह मैं स्वयं।
रात-भर कभी मैं उसे बांहों में भर प्यार करता, कभी वो करती। हंसती खिल-खिलाती। उस दिन मैंने जाना कि, छब्बी तो प्यार का सागर है। जो उस प्यार के सागर के साथ भी खुश ना रह सके, उससे बड़ा अभागा और कोई नहीं हो सकता। रातभर हम नए-नए सपनों में खोते रहे। उस रात एकदम आखिर में, हम-दोनों बमुश्किल दो घंटे ही सो पाए थे। सवेरे मैडम की तीखी डांट मिली। छब्बी ने बैग खोने, तबियत खराब होने की खूबसूरत ऐक्टिंग करके उनके गुस्से को काफी हद तक कम कर दिया था। फिर भी दिन भर बात-बात पर उनकी तीखी झाड़ की खुराक मिलती रही।
निर्माता-निर्देशक के फ़ोन का इंतजार करते-करते दस-बारह दिन बीत गए। कोई फ़ोन नहीं आया, तो एक दिन मैंने खुद किया, तो कहा गया कि दो दिन बाद फ़ोन कीजिए। अब मेरी धड़कनें और बढ़ गईं। छब्बी भी उतावली हो रही थी। बड़ी बेचैनी में कटे दो दिन। तीसरे दिन फिर फ़ोन किया। तो बड़ा रूखा सा जवाब मिला कि, 'कल सुबह दस बजे आ जाइए।' बात पूरी होने के साथ फ़ोन काट दिया लेकिन और बातें जानने के लिए मैंने फिर मिला दिया। मगर रूखा सा जवाब मिला कि, 'बाकी बातें यहीं आकर करिएगा।' साथ ही फिर फ़ोन कट गया। मन में अजीब सी छटपटाहट बेचैनी लिए हम-दोनों अब इस उलझन में पड़ गए कि कल कैसे निकला जाए? इस बार मैडम को धता बताना संभव नहीं है। कोई रास्ता न सूझते देख हम-दोनों ने तय किया कि, मैडम को साफ बात देंगे कि, हमें फ़िल्म में काम मिल गया है, और हम हर हाल में जाएंगे। जितने दिन हम काम पर नहीं रहेंगे, उतने दिन की हमारी तनख्वाह काट लीजियेगा, और यदि इस पर भी नहीं मानीं तो कह देंगे हम नहीं कर पाएंगे नौकरी, निकाल दे हमें।
छब्बी और मेरा दिमाग इसलिए भी सातवें आसमान पर था, क्योंकि हमारे दिमाग में अब यह बात घर कर गई थी, कि ना कुछ सही, इस फ़िल्म से इतना पैसा तो मिल ही जाएगा कि, गुजर-बसर करने लायक गाड़ी चल ही जाएगी। और अब तो दूसरी फिल्मों के मिलने के भी सारे रास्ते खुल गए हैं।