भाग -23
मैं और छब्बी इंतजार ही करते रह गए कि, वो हमें डांटे-फटकारें, नौकरी से बाहर कर दें। उनके आने के दूसरे ही दिन तोंदियल भी आ गया। अब हम-दोनों कई दिन तक बड़ा अटपटा सा महसूस करते रहे। ज़िंदगी फिर पुराने ढर्रे पर आने लगी। देखते-देखते कई महीने बीत गए लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी मुझे अपने काम के लिए घंटे भर का भी समय नहीं मिला। अंततः छब्बी और मैंने यह योजना बनाई कि, हर हफ्ते छुट्टी वाले दिन वे हमें बाहर घूमने-घामने दो-चार घंटे के लिए जाने दिया करें।
हमने सोचा इस दो-चार घंटे में हम-लोग फिल्मी दुनिया के लोगों से संपर्क साधेंगे। जिस दिन बात बन जाएगी उसी दिन रफू-चक्कर हो लेंगे। असल में अब मैं छब्बी के बिना वहां से निकलना भी नहीं चाहता था। एक से भले दो की बात मेरे मन में आ गई थी। बड़ी और पहली बात यह थी कि, छब्बी के दिल में मैंने कहीं गहराई में जगह बना ली थी। वह अब मेरे साथ ऐसे पेश आने लगी थी जैसे कोई खुर्राट पत्नी पति के साथ पेश आती है।
अब तोंदियल जरा भी उसको छू लेने, हंसी-मजाक करने की कोशिश करता तो वह उस पर एकदम भड़क उठती थी। जब वह बार-बार यही करने लगी तो अंततः तोंदियल ने हम-दोनों से किनारा कर लिया। बस काम भर का ही हूं... हां... करता, बोलता था। इस बीच एक और नई बात हुई, कि अब मैडम दिन में कई कामों के लिए मुझे इधर-उधर बाहर भी भेजने लगी थीं। आने-जाने के लिए मोटर-साइकिल देतीं और मोबाइल भी। बराबर संपर्क बनाएं रखती थीं। बाहर निकलने से मुझे बंद रहने की घुटन से थोड़ी राहत मिलने लगी थी।
मगर अब एक और तरह की घुटन मैं और छब्बी दोनों महसूस करने लगे थे। वह यह कि हम-दोनों ने पति-पत्नी के रिश्ते तो बना लिए थे, लेकिन पति-पत्नी की तरह रहने की जगह नहीं थी। हमने तय किया कि, मैडम से बात करके कहीं किराए पर जगह लेंगे। दोनों की तनख्वाह से किसी तरह गुजर बसर करने लायक कुछ जगह ली जा सकती है। यह सोच कर हमने एक दिन मैडम के सामने अपनी बात रख दी कि, 'हम-दोनों पति-पत्नी बन चुके हैं और अब बाहर कोई जगह किराए पर लेकर रहना चाहते हैं। काम यहां करते रहेंगे।'
हमारे इतना कहते ही मैडम ने एक नज़र हम-दोनों पर डाल कर पूछा, 'तुम-दोनों ने कब, कहां कर ली शादी? बताया ही नहीं?'
मेरे बोलने से पहले ही छब्बी बिना हिचक बोली, 'मैडम जब आप बाहर गई थीं, उसी बीच हम-दोनों ने तय किया कि, हम पति-पत्नी बनेंगे। फिर यहीं भगवान जी को साक्षी मानकर, माथा नवां कर, पति-पत्नी के रिश्ते मेें बंध गए।'
यह सुन कर सुन्दर हिडिम्बा मैडम मुस्कुराईं, गहरी दृष्टि डाल कर बोलीं, 'वेरी नाइस। मगर किसने शादी कराई? तुम्हारी मांग में न सिंदूर, न बिंदी कौन सी रीति-रिवाज से की शादी।'
उनके इस प्रश्न से बिना हिचकिचाए छब्बी ने कहा, 'मैडम हमने बस भगवान को साक्षी मान कर अपना रिश्ता बना लिया है, और रही बात सिंदूर, बिंदी की तो मैडम यह सब दिखावे की बातें हैं। हमें दिखावा एकदम समझ में नहीं आता। इसीलिए ऐसी कोई रीति-रस्म हमनें नहीं पूरी की। अब बस आपकी थोड़ी कृपा हो जाए, तो हम-दोनों एक ही छत के नीचे आराम से रहने लगेंगे। बस इतनी मेहरबानी आप कर दें। हम जीवन-भर आपके अहसानमंद रहेंगे।'
इस बीच मैं एकदम चुप खड़ा रहा, क्योंकि मुझे लगा कि, छब्बी सही कोशिश कर रही है। मैडम कुछ देर चुप रहने के बाद बोलीं, 'ठीक है, यहीं-कहीं आसपास कोई जगह ले लो किराए पर। क्योंकि दूर जाओगे तो यहां टाइम से नहीं पहुंच पाओगे। कंवेंस का खर्च अलग बढ़ जाएगा।'
मैडम की बात, उनकी बेरूखी से हमें बड़ा धक्का लगा। क्योंकि मैडम ने किराए का मकान दिलवाने में कोई मदद करने से यह कहकर मना कर दिया कि इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। यहां तक कि, पैसे के लिए भी कोई मदद देने को तैयार नहीं हुईं। हम महीने भर हाथ-पैर मार-कर थक गए, लेकिन हमारा जो बजट था, उतने में कोई ठिकाना नहीं मिला। हम पहले ही की तरह, सुन्दर हिडिम्बा मैडम के सोने के पिंजरे में इधर-उधर किसी कोने में दुबकते-फिरते रहे। इन सारी समस्याओं से हम इतना व्याकुल हो उठे कि, मन करता ऊपर से ही नीचे कूद जाएँ। छब्बी तो मुझसे भी ज़्यादा परेशान थी।
एक दिन उसने भड़कते हुए कहा, 'सुनो जब यह रानी साहिबा हम-दोनों के लिए कुछ नहीं कर सकतीं, तो यहां ना नौकरी करेंगे, ना रहेंगे। अब चाहे जो भी तकलीफ उठानी पड़े हम इस सोने के पिंजरे का मोह छोड़-छाड़ कर चलते हैं कहीं और, जहां कोई काम मिल सके, और कहीं एक कोना आराम से साथ रहने के लिए।'
उसकी बात मुझे सही लगी। मगर मेरे मन के एक कोने में यह घबराहट भी हुई कि, यहां अच्छा खाने-पीने और पैर फैलाने भर की साफ-सुथरी जगह मिल जा रही है। छोड़ने के बाद जाने कहां-कहां ठोकरें खानी पड़े। दर-दर भटकना पड़े। मेरी यह दुविधा छब्बी ने ना जाने कैसे भांप ली। तुरंत बोली, 'क्या सोच रहे हो, डर लग रहा है क्या?' मैंने तुरंत खुद को संभालते हुए कहा, 'नहीं तो, ऐसा क्यों कह रही हो ? मैं तो खुद ही यही चाहता हूं। तुमसे पहले ही कहा था।'
फिर हमने दूसरी योजना बना कर जैसे ही अगले महीने तनख्वाह मिली, उसके अगले ही दिन मैडम से कहा कि, 'हम-दोनों नौकरी छोड़कर कहीं, किसी कस्बे में जाकर कुछ काम-धंधा करेंगे। रहने का कोई ठौर ढूढे़ंगे। क्योंकि मुंबई में सब इतना महंगा है कि, यहां हमारा रहना नहीं हो पायेगा।'
इस बार मैडम कुछ बहस पर उतर आईं, तो छब्बी भी बिना हिचक बोली, 'मैडम आखिर हम कब-तक ऐसे ही रहेंगे। हम अपना परिवार बसाना चाहते हैं, अपने भविष्य के लिए बच्चे पैदा करना चाहते हैं। इसलिए आपसे यह कह रहे हैं, नहीं तो आप इतने अच्छे से हम-लोगों को रखती हैं, हम क्यों छोड़कर जाने की सोचते। लेकिन सच तो यह भी है ना कि, हम यहां रहकर अपना परिवार, अपने परिवार का सुख तो कभी नहीं पा पाएंगे। इसलिए बस हम पर कृपा करिए।'
समीना सुन्दर हिडिम्बा मैडम बड़ी घाघ थीं। वह मेहनती, जांचें-परखे नौकर इतनी आसानी से नहीं छोड़ना चाहती थीं। तो टालती हुई बोलीं, 'ठीक है, अभी रुको, कल बताऊंगी।'
हम समझ गए कि, अब यह साहब से बात कर प्रेसर बनाएंगी। रोकने का कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेंगी। मगर हमने भी ठान ली थी कि मानेंगे नहीं।
समीना एक बात और बताऊँ, छब्बी जब मैडम से बात कर रही थी तो उसकी एक बात मेरे दिमाग में बैठ गई। बाद में मैंने छब्बी से वह बात पूछी कि, 'यह बताओ, तुम तो कहती हो कि शादी, बच्चे कुछ करना ही नहीं है, तो मैडम से झूठ क्यों बोला कि, परिवार बच्चे आदि करने है? ''
इस पर वह तन-तनाती हुई बोली, 'तो तुम क्या समझते हो कि, वो इतनी आसानी से मान जाएंगी। फिर वो ही हमसे कौन सा सब सच ही बोलती हैं। जो रुकने को बोला है ना, देखना, निश्चित ही साहब का रौब डलवाएंगी और साहब अपनी ताकत दिखाएगा, हड़काएगा।' उसका मूड देखकर मैंने कहा, 'अच्छा छब्बी, हम-लोग सच में शादी करें, मां-बाप बनें तो कितना बढ़िया रहेगा।'
मेरा इतना कहना था कि, छब्बी फिर भड़क उठी। बोली, 'सुन, मुझे जो कहना था वह एक बार कह दिया। दो बार शादी करके, एक बार दो बच्चे पैदा करके मन इतना अघा गया है इन-सब से कि अब इनके बारे में सोचना भी नहीं चाहती। और सुन तू इस होश में न रहना कि, पहले यहां से चलें, फिर शादी, बच्चे के लिए दबाव डालेंगे। अगर तुम्हारे दिमाग में यह बात है, तो साफ कह रही हूं कि, भूल जाओ। अब भी सोच लो, जिस दिन तुम ने यह बात कही, मैं उसी दिन तुम्हें छोड़ कर कहीं और चल दूंगी।'
समीना उसकी दृढ़ता देखकर मुझे पक्का यकीन हो गया था कि, यह जो कह रही है, वही करेगी। इरादों की पक्की लग रही है। उस समय मैंने यह कह कर बात खत्म की कि, 'मैंने तो ऐसे ही कह दिया। बाकी यह सब तो पहले ही तय है कि, इन झंझटों में हमें नहीं पड़ना है।'
समीना उस रात मुझे बहुत देर तक नींद नहीं आई। मैं छब्बी को लेकर तरह-तरह के ख़यालों में खोया हुआ था। उस बॉलकनी में लेटा यही सोच रहा था कि, इस समय छब्बी के साथ लेटा होता, तो उससे भविष्य को लेकर और बातें करता। लेकिन सुन्दर हिडिम्बा मैडम जी का जंजाल बनी हुई थीं। उस दिन भी बड़ी देर तक अपनी मालिश करवाने के बाद उसे छोड़ा था। थकी-मांदी वह हमेशा की तरह लॉबी में ही सो गई थी।
इधर तोंदियल भी एक कोने में सो रहा था। हमारे लिए वह भी मैडम से कम बड़ा जी का जंजाल नहीं था। वह नहीं होता तो चाहे जैसे मैं छब्बी को अपने साथ बालकनी में ही रखता। तभी अचानक ही मेरे दिमाग में यह बात आई कि, छब्बी पिछले कई महीने से मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाए हुए है, लेकिन यह अभी तक प्रिग्नेंट नहीं हुई। कहीं इसने कुछ ऐसी-वैसी व्यवस्था तो नहीं करवा रखी है, ऑपरेशन वगैरह, या कुछ और । लेकिन उसके पेट पर ऑपरेशन के तो कोई निशान हैं नहीं । साहब के यहाँ भी सम्बन्ध बनाती रही है, आखिर मामला क्या है ? मेरे दिमाग में यह बात इसलिए ज़्यादा जोर से उभर आई थी क्योंकि सच यही था कि, मेरे मन में यह बात जमी हुई थी कि, जब जीवन एक ढर्रे पर आ जाएगा, तो छब्बी को किसी भी तरह तैयार करूंगा कि, वह बीती बातों को भूल कर फिर से मां बने । जीवन पुरानी बातों को पकड़ कर बैठने के लिए नहीं है। अतीत में हुई अच्छी-बुरी बातों से सबक लेकर भविष्य की सीढियां बनाने के लिए है। अतीत की बातें तो भविष्य के लिए नींव का पत्थर होती हैं। इन्हीं मजबूत पत्थरों से भरी नींव पर हम अपने सपनों का महल बनाते हैं। हमें भी यही करना चाहिए।