Vah ab bhi vahi hai - 21 in Hindi Fiction Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | वह अब भी वहीं है - 21

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वह अब भी वहीं है - 21

भाग -21

उस दिन छब्बी का रोना-धोना बहुत देर तक चला। उसे दो बातों का दुःख सबसे ज्यादा था। पहला बच्चों का, दूसरा भाई का। कि उस भाई ने भी उसे गलत समझा, जिसने उसके, पूरे परिवार के लिए वह जिम्मेदारियां निभाईं जो बाप की थीं। वह उसे एक बाप की ही तरह मानता, प्यार करता था। उसका आखिरी बार अत्यधिक दुखी होकर रोते हुए जाना वह भूल नहीं पा रही थी।

भाई के लिए उसका कलेजा वैसे ही छलनी होता था, जैसे बच्चों की याद आने पर होता था। समीना उस रात हमने, छब्बी ने एक दूसरे को अपने जीवन के कई कड़ुवे अनुभव बताए। मैंने उसके न जाने कितनी बार आंसू पोंछे। जब बातें खत्म हुईं तो रात भर खूब प्यार किया एक-दूसरे को।

वह मेरे विलेन-किंग बनने के सपने के बारे में जानकर बड़ी खुश हुई थी। बड़ी तारीफ़ की, कि मैं अपना सपना पूरा करने के लिए इतना कुछ कर रहा हूं, ठीक-ठाक पढ़ाई-लिखाई और, अच्छे-खासे खाते-पीते घर का होते हुए भी घरेलू नौकर बनकर यहां रह रहा हूं। लेकिन छूटते ही यह भी कहा कि, 'तुम्हारा यह सपना यहां रहते हुए कभी पूरा नहीं होगा। साहब और यह मैडम अपने नौकरों को, नौकर नहीं, गुलाम बनाकर, मानकर चलते हैं। अच्छा काम करने वाले नौकरों को छोड़ते ही नहीं। जो अच्छा काम नहीं करते, अपनी ताकत से उसे अच्छा काम करने का ही आदी बना देते हैं। तुम्हारा-हमारा जी-तोड़ मेहनत करना इन दोनों को पसंद है, इसलिए हम चाहें तो भी जल्दी छोड़ेंगे नहीं।

यह दोनों अपने नौकरों को पर-कटे पक्षी की तरह रखते हैं। उनके सारे सपनों के भी पंख काट देते हैं। तुम अपना ही देख लो, तुमने साहब से ऐक्टिंग करने की बात कर ली, तो तुम्हें यहां फंसा दिया। यहां एक तरह से कैद में ही रहते हैं हम-सब। मुझे तो लगता है कि जिस नौकर को ये लोग कुछ समय कैद में रखना चाहते हैं, उसे यहाँ रख देते हैं। और तब-तक रखते हैं जब-तक कि वह अपने को ही भूल न जाए।'

समीना अगले दिन हम-दोनों यह योजना बनाई कि, यहां रहकर तो कुछ कर नहीं सकते, यहां से निकलना ही होगा। इसके लिए ऐसा कुछ करते हैं कि, ये लोग खुद ही हम-दोनों को निकाल दें। योजना के हिसाब से हमने तय किया कि, हम छिपकर बॉलकनी में नहीं रहेंगे। खुलेआम अंदर ही ऐश करेंगे। जिससे मैडम कैमरों में देखकर गुस्सा होंगी और हम-दोनों को नौकरी से निकाल देंगी। इस तरह हमारा सपना पूरा होने का रास्ता साफ़ हो जाएगा । यह योजना बनते ही हम-दोनों खुल कर घर में ही खूब ऐश करते। हम रोज अपने भविष्य को लेकर बातें करते कि, यहां से निकलते ही कैसे-कैसे क्या-क्या करना है।

ऐसे ही एक दिन प्यार के एक दौर से गुजरने के बाद हम टी.वी. देखते हुए बतिया रहे थे। छब्बी अपना सिर मेरी जांघों पर रखे लेटी हुई थी। मेरे हाथ उसके शरीर को कभी सहला, तो कभी हौले-हौले थपकी दे रहे थे। भविष्य के सपने बुनते हुए मैंने कहा, 'छब्बी यहां से निकलने के बाद जब हम-लोग कुछ बन जाएंगे तो इससे भी शानदार अपना एक घर बनाएंगे। फिर शादी करके बच्चे पैदा करेंगे।'

समीना मेरा इतना कहना था कि, छब्बी एक झटके में उठ बैठी। बड़ी तीखी आवाज़ में बोली, 'सुनो, मुझसे दुबारा कभी शादी की बात न करना। अब मैं जीवन में ना कभी शादी करूंगी, ना ही कोई बच्चा पैदा करूंगी। मुझे इन सबसे अब घृणा हो गई है। दम घुटता यह सब सोचकर भी। ऐसे ही जब-तक जिया जा रहा है, तब-तक जियूंगी, नहीं तो मर जाऊंगी।'

अचानक ही उसके इस बदले व्यवहार, जवाब से मैं आश्चर्य में पड़ गया।

मैंने कहा, 'तो मेरे साथ शादी के बिना तुम यह रिश्ता, हमेशा ऐसे ही बनाए रखोगी।'

'तुम चाहोगे तो रहेगा, नहीं तो नहीं रहेगा।'

उस समय उसके इस तरह बेलौस बोलने से मुझे बड़ा धक्का लग रहा था।

मैंने कहा, 'लेकिन छब्बी मैं भी तो चाहूंगा कि, मेरी भी बीवी हो, बच्चे हों।'

इस पर वह एकदम छिटक कर बोली, 'तो कर लो किसी से शादी। तुम्हें अगर यह लगता है कि, शादी के बिना किसी औरत के साथ नहीं रहा जा सकता, उसके साथ सारा जीवन नहीं बिताया जा सकता, तो किसी से भी बेहिचक शादी लो, भर दो उसकी मांग में ढेर सारा सिंदूर। लेकिन मेरे साथ यह कभी नहीं हो पायेगा समझे। मैं भर पाई शादी से।

क्या मान रखा उन-दोनों कमीनों ने सिंदूर का। सिंदूर को तो उन-दोनों ने अपने नीच कर्मों को पूरा करने के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल किया। अरे! जब उस पवित्र चीज का, उस पवित्र रिश्ते का मान रख ही नहीं सकते, तो उसे अपवित्र करने का काम क्यों करते हो ? दूसरी बार धोखा मिलने पर ही मैंने भगवान को साक्षी मान कर कसम खा ली थी कि, अब मैं किसी के कुकर्म का हिस्सा नहीं बनूंगी। सिन्दूर अपने तन को छूने नहीं दूंगी।

रही बच्चों की बात, तो आदमी साले औरत को ठोंक-ठोंक कर मजा लें। साथ में बच्चा भी चाहें। औरत नौ महीने उसे पेट में अपने खून से पाले, नौ महीने उठना-बैठना, सोना, खाना-पीना सब हराम। हज़ारों तकलीफों को झेलते हुए जान पर खेलकर, अपने कलेजे का टुकड़ा बच्चा पैदा करे। और फिर जब मौका मिले तो साला मर्द औरत को लात मार कर, मां का कलेजा उसका बच्चा लेकर चल दे।'

समीना यह कहते-कहते छब्बी फूट-फूट कर रो पड़ी। उसे अपने बच्चों की याद आ गई थी। मैंने उसे बड़ी मुश्किल से चुप कराया। फिर सोचा बात यहीं खत्म करूं। लेकिन उस समय छब्बी जैसे शांत होने को तैयार ही नहीं थी।

तो मैंने उसे समझाते हुए कहा कि, 'छब्बी ऐसा क्यों सोचती हो कि, सारे मर्द एक जैसे होते हैं। मैं तुमसे बकायदा शादी करूंगा। अपनी पत्नी बनाकर रखूंगा। जब तुम कहोगी तभी बच्चे के बारे में सोचूंगा।'

यह सुनते ही छब्बी फिर भड़कती हुई बोली, ' पत्नी तो उन-दोनों कमीनों ने भी बनाया था। पत्नी बनाकर छूरा पीठ में नहीं, सीधा छाती में घोंपा। तुम जो कह रहे हो इसकी भी क्या गारंटी। आज तुम ऐसे हो, तो ऐसा कह रहे हो। जब कल को कुछ बन जाओगे, तो तुम्हें भी बदलते समय नहीं लगेगा।'

मैंने उसे समझाते हुए कहा कि, 'छब्बी जब हाथ की सारी ऊंगलियां एक बराबर नहीं हैं, तो सारे आदमी कहां से एक जैसे हो जाएंगे।'

समीना मेरी यह बात मानों तेजाब से भरा बड़ा ड्रम था, और वह जैसे छब्बी पर पूरा का पूरा उलट गया हो। वह एकदम छटपटा कर किच-किचाती हुई उठ खड़ी हुई। सामने खड़ी होकर कांपती हुई कुछ क्षण मुझे देखती रही। फिर बोली, 'तुम भी जिस दिन कुछ बनोगे, उसी दिन तुम्हें भी बदलते देर नहीं लगेगी। मैं उम्र और अनुभव दोनों में तुमसे बड़ी हूं। और मेरा अनुभव गला फाड़-फाड़ कर यही कह रहा है कि, तुममें भी पल भर में रास्ता बदलने के सारे कीटाणु भरे पड़े हैं। और मेरी बात का प्रमाण यह है कि, तुम्हें भी और मर्दों की तरह औरत का चमकता-दमकता खूबसूरत शरीर ही चाहिए।'

फिर उसने बड़े भद्दे ढंग से अपनी छाती, अपनी जांघों के बीच हाथ मारते हुए कहा, 'तुम्हें भी तो यह सब-कुछ सांचे में ढला हुआ ही चाहिए। अभी पूरा एक दिन भी नहीं बीता है, कल तुम ही तो कह रहे थे कि, ''छब्बी तेरा ये-ये, जब मैं खूब पैसा कमाने लगूंगा तो डॉक्टर के यहां चलकर ठीक करा दूँगा। एकदम जवान लड़कियों सी हो जाओगी तुम।'' मेरे पेट पर बच्चे पैदा करने के निशान तुम्हें अखर रहे हैं। तुम्हारे ही हिसाब से बच्चों ने मेरी छातियों की सुंदरता निचोड़ ली है।

अरे! जब अभी कुछ नहीं हो, तब तुम्हारे दिमाग में यह भरा हुआ है, जिस दिन कुछ हो जाओगे, उस दिन मेरा यही शरीर, जिससे आज चिपके हुए हो, तुम्हें इतना बदसूरत, घिनौना, भद्दा लगने लगेगा कि, मेरी छाया से भी घृणा करोगे, पहचानोगे भी नहीं, और मैं फिर फुटपाथ पर भीख मांग रही होऊंगी। बोलो, मैं गलत कह रही हूँ क्या? '