Vah ab bhi vahi hai - 15 in Hindi Fiction Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | वह अब भी वहीं है - 15

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वह अब भी वहीं है - 15

भाग -15

अपने प्रति उसका यह लगाव, अधिकार देख कर मैं भावुक हो उठा। क्षणभर उसकी आंखों में देखा जो भरी-भरी सी थीं। जिनमें खुद के लिए प्यार ही प्यार और उतना ही अधिकार भी उमड़ता देख रहा था। अचानक मैंने भावावेश में आकर उसे बांहों में जकड़ लिया। हम-दोनों उस क्षण डूब जाना चाहते प्यार के सागर में बिल्कुल गहरे, एकदम तल तक। लेकिन तोंदियल रोड़ा बना हुआ था। हम-दोनों को उस पर बड़ी गुस्सा आ रही थी, लेकिन विवश थे। किच-किचा कर रह गए। लेकिन अब सोचता हूँ कि उस बेचारे की भी क्या गलती थी, अलग हटने के लिए उसके पास भी जगह ही कहाँ थी। उसके अगले दिन छब्बी ने बताया कि, उस दिन मैडम ने मालिश नहीं करवाई। बस कुछ देर हाथ-पैर दबवाए थे।

समीना मैडम के यहां फिर ऐसे ही समय तेजी से निकलता जा रहा था और आगे होने वाली वह हाहाकारी घटना भी करीब आती जा रही थी, जो मेरी, छब्बी की दुनिया ही पलट कर रखने वाली थी। जल्दी ही गर्मी की छुट्टियों में मैडम साहब के साथ घूमने स्पेन चली गईं। वहीं उनको यह भी मालूम हुआ कि, दर्द से आराम के लिए जिस मालिश की खोज में वो मलेशिया, इंडोनेशिया, स्पेन घूम रही थीं, उससे हज़ार गुना ज्यादा प्रभावकारी, आयुर्वेदिक मालिश, चिकित्सा तो देश में ही होती है। जो वास्तव में शरीर के रोग को दूर करने की पूर्ण चिकित्सा के लिए ही होती है न कि, काम-वासना के दिवास्वप्न ( फैंटेसी ) में डुबकी लगाने, मजा के लिए। केरल, तमिलनाडु तो इसके लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।

क्षद्म मालिश से अपने को ठगा हुआ महसूस करती सुन्दर हिडिम्बा मैडम स्पेन से आने के कुछ महीने बाद ही केरल गईं। उसके बाद वहीं का तेल मालिश के लिए छब्बी को देतीं रहीं। समीना सच यह है कि, यह लोग जब घूमने जाते थे, तब भी व्यवसाय का पिंड छोड़ते नहीं थे। जितना घूमने-फिरने में खर्चा होता था, उससे कहीं ज़्यादा कमा भी आते थे। स्पेन जाते समय मैडम ने तोंदियल को भी छुट्टी दे दी थी कि, वह अपने घर हो आए। करीब दो वर्षों से वह घर नहीं गया था।

समीना इस तरह वहां काम शुरू करने के लगभग नौ-दस महीने बाद जब यह मौका आया तो मैं अंदर ही अंदर खुशी के मारे एकदम फुटेहरा हो गया था, छब्बी भी। जाहिर है सिर्फ़ इसलिए कि, तोंदियल नाम का जो कंकर हमारे उसके बीच में है, वह इतने दिनों तक नहीं रहेगा। मैडम भी नहीं रहेंगी, और हम-दोनों इस पूरे समय इस शानदार घर में खूब ऐश करेंगे। लेकिन मेरी ऐसी सोच पर सुन्दर हिडिम्बा ने ढेरों पानी उड़ेल दिया। मैडम के जाने के एक दिन पहले ही तोंदियल चला गया, और मैडम ने जाते समय किचेन, उससे लगी लॉबी, बॉलकनी में खुलने वाले दरवाजे के अलावा सब बंद कर दिया। हम लॉबी, किचेन ही प्रयोग कर सकते थे।

इसके अलावा यह भी व्यवस्था बनी रही कि, हम उनकी जानकारी, इच्छा के बिना कहीं जा नहीं सकते। मैडम साहब के यहां किसी को यह काम दे गई थीं। वह फ़ोन के जरिए, वॉचमैन के जरिए बराबर हम पर नज़र रखें थीं। खैर सब-कुछ मन का नहीं हुआ लेकिन कुछ ऐसा ज़रूर हुआ कि, हम-दोनों को जीवन में तब कुछ खुशी मिली। हमने ज़्यादा से ज़्यादा उसे समेटने की कोशिश की। इसके बावजूद कि, हर दो-तीन घंटे पर साहब के यहां से फ़ोन आता था कि, क्या कर रहे हो ? कहां हो ? इतना ही नहीं, कोई न कोई आदमी दिन-भर में एक बार ज़रूर आता था। हम-दोनों भी इन आने वालों के सामने एक दूसरे से ऐसे दूरी बनाए रखते मानो हम एक-दूसरे को देखना भी नहीं चाहते। नीचे ऑफिस में मैडम का स्टॉफ रोज की तरह काम करता था। हम-दोनों का दिन में काफी समय नीचे ऑफिस में ही बीतता था।

जिस दिन मैडम गई थीं, उस दिन मैं, छब्बी रात बारह बजे तक या तो टी.वी. देखते रहे या बॉलकनी में बतियाते रहे। रह-रह कर हम-दोनों बड़े रोमांटिक हो जाते। मगर इस डर से दूर रहे कि, कहीं मैडम यह कहते हुए न आ जाएं कि, जाना कैंसिल हो गया या फ्लाइट कैंसिल हो गई। या फिर ऐसा ही कुछ और। जब हमें यह विश्वास हो गया कि अब ऐसा कुछ नहीं हो सकता, तब हमारी बातें रोमांटिक से ज़्यादा चुहुलबाजी भरी हो गईं ।

मैं रह-रह कर छब्बी को अपनी तरफ खींच लेता, बांहों में कस लेता। जल्दी ही वह भी यही सब करने लगी। उसकी आंखों, बहुत से और व्यवहार से जब काम की मादक खुशबू मेरे नथुनों को मदमस्त करने लगी, तो कैमरों के डर के कारण हम बॉलकनी में ही एक दूसरे से गुंथ गए। बहुत देर तक एक-दूसरे को प्यार करते रहे।

समीना मैंने छब्बी से पहले बहुत सी औरतों से सम्बन्ध बनाये थे, लेकिन जैसी सुख, संतुष्टि, उस दिन छब्बी के साथ मिली, वैसी उसके पहले कभी नहीं मिली थी। पहले जिन भी औरतों से सम्बन्ध बने थे, उन सब में जहां सब कुछ मशीनी लगता था। औरतें जहां यह अहसास देती थीं कि, पैसा मिला है, तो काम करना है, वहीं छब्बी में प्यार की ज्वाला की तपिश में तपने के साथ ही, प्यार, मनुहार, लगाव की शीतलता, मन को मदहोश करने वाली छुअन थी।

बॉलकनी में जब हम-दोनों पहली बार प्यार के शिखर से धरातल पर आए तो, सोचा कहीं दूर किसी बिल्डिंग से हम किसी के द्वारा देखे तो नहीं गए। हमारी बदकिस्मती देखो समीना कि, हमें उस घर में, ढंग का एक कोना भी नहीं मिला था, जहां हम निश्चिन्त होकर मन-भर कर प्यार कर सकते।

मन में ऐसी आशंका के आते ही हम दोनों ने तय किया कि, मैडम नाराज हों या नौकरी से निकाल दें। प्यार हम-दोनों का व्यक्तिगत मामला है, हम चाहे जो करें। हम बालिग हैं । उन्हें अपने काम से मतलब होना चाहिए। अब हम जानवरों की तरह ऐसे खुले में नहीं मिलेंगे। छब्बी ने इसका हल अपनी तरह से यह निकाला कि, बॉलकनी में ही अपना बिस्तर लगाएंगे। और लाइट ऑन रहने पर मैं बॉलकनी में चला जाऊं। फिर वह दिखाने के लिए दरवाजा बंद करेगी फिर दूसरे कोने की फुट लाइट ऑन करेगी। उसके सामने कोई सामान रख देगी। जिससे लाइट और कम हो जाए। फिर मैं भी बॉलकनी से अंदर आ जाऊँगा। हमने खुद को समझाते हुए यह भी बात की, कि मैडम को भी ऐतराज नहीं होगा, क्योंकि यदि होता तो वह ऐसा इंतजाम करतीं की हम मिल ही ना पाते।

यह बात तो वह आसानी से समझ ही रही होंगी कि, जब घर में औरत-मर्द अकेले रहेंगे, सोएंगे तो प्यार भी होगा ही, यह एक स्वाभाविक काम है। हम-दोनों ने अपनी सुविधानुसार अपने लिए जो सही हो सकता था, वैसी ही सारी बातें सोची और कीं। मन में यह बातें आते ही योजना फिर बदल गई, और फिर हमने बिना किसी हिचक, डर के लॉबी में ही लगा लिया अपना बिस्तर। तब हम-दोनों ऐसा महसूस कर रहे थे जैसे कि, किसी कैद से न जाने कितने वर्षों बाद आज़ादी मिली है। उस रात हम-दोनों बतियाते रहे, करीब दो-ढाई बजे तक। प्यार की दुनिया की दो बार सैर कर लौटे, तो हमें लगा मानो हमसे सुखी इंसान दुनिया में कोई है ही नहीं। छब्बी मेरे सीने में ऐसे दुबक जाती थी, जैसे कोई छोटा बच्चा मां की छाती से चिपका सो रहा होता है।

उस रात अमूमन मस्त दिखने वाली छब्बी ने तमाम ऐसी बातें बताईं जो बरसों से उसकी छाती में समाई हुई थीं। वह बातें बता-बता कर कई बार रोई। उसने बताया कि, ' हम सात भाई-बहन थे। जिनमें से एक बहन एवं एक भाई दवा, खाने-पीने के अभाव में बचपन में चल बसे थे। मां और सारे बच्चों ने बड़े कष्ट उठाए हैं। बाप ने अपनी जिम्मेदारी सिर्फ़ इतनी निभाई कि, साल दर साल एक-एक कर सात बच्चे पैदा कर दिए। उनकी सारी कमाई-धमाई केवल अपने शराब के लिए होती थी। बच्चे भूखे मरें या कुछ भी हो उनसे कोई मतलब नहीं था। यहां तक की पी कर मां-बच्चों सबको पीटते थे।

मां चौका-बर्तन करके जो पैसे कमातीं, दारू के लिए वह उनको भी छीन लेते। यहां तक कि मां को गर्भावस्था में भी मारते-पीटते थे। शराब के चलते वह इतना नीचे गिर चुके थे कि न दिन देखते, न रात, न बच्चे, न मां की गर्भावस्था। बस वासना का भूत सवार होते ही टूट पड़ते थे, जिससे खूब झगड़ा होता। आए दिन पड़ोसी आकर शांत कराते। अक्सर ऐसे में वह पड़ोसियों से भी भिड़ जाते और मार खा कर सो जाते।