Vah ab bhi vahi hai - 14 in Hindi Fiction Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | वह अब भी वहीं है - 14

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वह अब भी वहीं है - 14

भाग -14

उन्होंने बातचीत में छब्बी को यह भी बताया था कि, वह जो भी हैं, वह ''मां वैष्णों देवी'' के ही कारण हैं। और गायत्री मन्त्र ऐसा मन्त्र है, जिसके उच्चारण करने से इंसान को स्वस्थ जीवन, समृद्धि दोनों ही मिलते हैं । आदमी रातों-रात शिखर पर पहुँच जाता है। यह मंत्र छब्बी ने उन्हीं से सुन कर याद कर लिया था। अपनी कुछ ही देर की यह पूजा करने के बाद मैडम बेड पर आ जाती थीं, और कभी पंद्रह तो कभी बीस मिनट बाद एक सिगरेट जला कर अपने खूबसूरत होंठों के बीच फंसा कर, गिलास में शराब लेकर उसमें ढेर सारी बर्फ डालतीं थीं, फिर धीरे-धीरे बड़ी देर में खत्म करती थीं।

यह सब कभी-कभी डेढ़ बजे तक चलता था। इसके बाद वह सवेरेआठ बजे तक, घोड़े बेच कर सो जाती थीं। मगर समीना इन सबके बीच छब्बी के लिए करीब आधा-पौन घंटा बड़ी मेहनत वाले होते थे। मैडम जोड़ों के दर्द से परेशान रहती थीं। उन्हें औस्टियो आर्थ्राइटिस की समस्या ने छू लिया था। खाने-पीने का परहेज उनके वश का नहीं था। वह कहती थीं कि दवा से ज़्यादा फायदा उन्हें योग-प्राणायाम से मिलता है। उनकी तमाम बातों को बताते हुए छब्बी कहती थी कि जब पैसा होता है तो आदमी ज़िंदगी अज़ब-गज़ब तरीके से जीता है। मैडम यही करती थीं। एक बार वह घूमने इंडोनेशिया और मलेशिया गई थीं ।

मलेशिया में जिस रिजॉर्ट में वह और साहब रुके थे, वहां उन्होंने मजे के लिए ही स्टीम बाथ ली और मसाज भी करवाई थी। लेकिन इससे उन्हें जो आराम मिला, उससे वह बहुत इम्प्रेस हुईं। और फिर जब-तक वहां रहीं, रोज मालिश करवाई। मालिश वाले को पैसा देकर कौन सा तेल है यह भी जान लिया। इंडिया में नहीं मिलेगा यह सोच कर आते समय ले भी आईं, और खत्म होने से पहले मंगाती भी रहतीं। मगर यहां उस तरह से मसाज करवाने की समस्या आ खड़ी हुई। यहां के कई मसाज पार्लरों में उन्होंने वही तेल ले जाकर मसाज कराया। मगर उन्हें यहाँ की मसाज समझ में नहीं आई। उन्हें लगा कि, इतना महंगा तेल भी बरबाद हो जाता है।

समीना मेरे वहां पहुँचने से पहले जब एक बार छब्बी मैडम की सेवा में वहां पहुंची थी, और एक दिन दर्द से परेशान हो कर मैडम ने हाथ-पैर दबवाने शुरू किए तो कुछ राहत मिलने पर उन्होंने कहा, ''तुम मेरी मालिश डेली कर दिया करो। मैं इसके तुम्हें अलग से पैसे दूंगी।'' छब्बी ने कहा, 'मैंने सोचा चलो एक ही नौकरी में दो-दो तन्ख्वाह मिल जाएगी।'

अगले दिन उन्होंने छब्बी को वह खास तेल दिया, और कई वीडियो दिखाए कि, उस तेल से वहां मालिश कैसे करते हैं। उसमें कई खंड थे, जिसमें किसी में औरत मालिश कर रही थी, तो किसी में मर्द। और कराने वाले मर्द, औरत बिल्कुल निर्वस्त्र होते थे। अपने सारे कपड़े उतार कर जब वह ऊंची चौकी पर लेटते थे, उस समय एक पतला सा तौलिया ऊपर डाल दिया जाता था। बहुतों में तो मालिश के दौरान ही वह भी हटा दिया जाता था।

समीना छब्बी ने आगे बताया कि, 'मैं वह सब बहुत ध्यान से देख रही थी। क्योंकि मुझे पगार के बराबर और मिलने वाले पैसे दिख रहे थे। मैं मौका खोना नहीं चाहती थी।' वह चटखारे लेकर कहती, 'मैं मन ही मन यह भी सोच रही थी कि, वाह मैडम विदेश में सारे कपड़े उतार कर स्टीम बाथ, मालिश का मजा लिया। पता नहीं मर्द से करवाती थी या औरत से। चलो कभी तुम्हारा मूड सही रहा या नशे में हुई तो यह भी पूछ लूंगी।' उसने कहा कि, ' कई वीडियो देखने के बाद मैंने उत्साह में मैडम से कहा, 'मैडम मैं सब समझ गई हूँ। आराम से यह मालिश कर सकती हूं।'

छब्बी ने उस दिन जोश में आकर मुझे बताया कि, 'नाऊन की बिटिया हूं, मालिश तो हम पीढ़ियों से करते आ रहे हैं। मगर यह सोच कर मेरे बदन में झुरझुरी सी हो रही थी कि, क्या मैडम ऐसे ही सब-कुछ उतार कर मालिश करवाएँगी। और ये औरतें जिस तरह से नाम-मात्र के दो कपड़े पहन कर करती हैं मालिश, क्या मुझे भी ऐसे दो कपड़े ही पहनने देंगी। इन नाम-मात्र के कपड़ों में तो, मैं क्या जो भी होगी, उसे नंगी ही कहेंगे।

मैं यह सब ज़्यादा नहीं सोच पाई। मैडम ने बेड पर पहले एक कंबल, उसके ऊपर एक चादर बिछवाई, फिर नाम-मात्र की रोशनी वाली एक फैंसी लाइट जलने दी, और मेरे देखते-देखते कपड़े उतार कर लेट गईं। उन्होंने अपने ऊपर नाम-मात्र का वह तौलिया भी नहीं डाला जैसा वीडिओ में दिखाया गया था। फिर बोलीं, ''देखते हैं छब्बी, तुमने कितना सीख लिया है।'' मैंने कहा आप निश्चिन्त रहिये, मुझे पक्का विश्वाश है कि आप जरूर खुश होंगी।'

समीना किसी को भी ज़िंदगी कब कौन सा रंग दिखा दे, इसका कोई ठिकाना नहीं। छब्बी ने बताया कि, 'मुझे बड़ा अटपटा लग रहा था। जीवन का यह पहला अनुभव था। नाऊन की बिटिया जरूर थी, लेकिन मां ने इस धंधे से हम-लोगों का पीछा बचपने में ही छुड़ा दिया था।

उन्होंने मालिश के कई तरीके सिखाए भी थे कि, गरू समय (भारी या कठिन समय) में यह गुण काम भी आ सकता है। प्रसव के बाद महिलाओं की, की जाने वाली मालिश खासतौर से बताई थी। ऐसे कई मौकों पर मुझे ले भी गई थीं। कस्बे की कई मध्यम वर्गीय महिलाओं की मालिश मैंने देखी और की भी थी। वो मालिश के समय भी ब्लाउज, पेटीकोट पहने रहती थीं। पेटीकोट को ढीला कर, सिकोड़ कर एकदम बीच में कर दिया जाता था। जिससे की उनकी लाज ढंकी रहे। एक महिला नाऊन के सामने भी यह पर्दा था। मगर यहां तो मैडम ने एक पल गंवाए बिना कपड़े ऐसे उतार दिए, मानों वहां उनके सिवा कोई दूसरा है ही नहीं ।'

मैडम की मालिश का वह पहला अनुभव बता-बता कर छब्बी हंसे भी जा रही थी। समीना वह बड़ी हंसमुख थी, हँसते-हँसते ही बोली, 'उस समय भी मेरी हंसी नहीं रुक पा रही थी।'

समीना असल में मैडम की मुंह-लगी होने के कारण छब्बी को ज़्यादा डर नहीं था। लेकिन उसके बार-बार हंसने पर मैडम ने पूछा, ''तुझे इतनी हंसी क्यों आ रही है?'' तो छब्बी ने कहा, ''जी नहीं, कुछ नहीं, ऐसे ही कुछ याद आ गया।''

समीना इसके बाद छब्बी ने जो बताया उससे मुझे मैडम पर बड़ा गुस्सा आया।आज भी घृणा होती है। छब्बी भी बताते हुए गंभीर हो गई थी। उसने घृणा भरे स्वर में कहा, 'तेल से बचने के लिए मैं अपना दुपट्टा और कुर्ता भी बराबर समेट रही थी। मेरे हंसने से भीतर ही भीतर नाराज मैडम ने एक झटके में कहा, ''मैं जानती हूँ तुम्हें कुछ भी याद नहीं आया है। मैं ऐसे लेटी हूं इसीलिए तुम्हें हंसी आ रही है, तेल तुम्हारे कपड़े भी खराब कर रहे हैं, तुम बार-बार डिस्टर्ब हो रही हो, इसीलिए मालिश ठीक से नहीं कर पा रही हो, टाइम अलग वेस्ट हो रहा है। ऐसा करो तुम कपड़े उतार कर, जैसे एक्सपर्ट कर रहे थे, उसी तरह करो।'' इसके साथ ही मैडम ने पैसे का पासा भी फिर फेंका। वह मेरी पैसों की जरूरत की कमजोर नस पकड़ चुकी थीं। कपड़े उतारने की बात पर मैं हाथ जोड़ती हुई बोली, ''नहीं मैडम कर लूंगी आप परेशान न हों।'' लेकिन मैडम ने जिस तरह से कहा कि, ''यहां कौन देख रहा है। क्या इनरवियर नहीं पहन रखे हैं?''

कुछ कड़ी आवाज़, और उनके बात करने के तरीके ने मेरी हालत खराब कर दी। मुझे अपने हाथों से तनख्वाह के बराबर मिलने वाली रकम फिसलती नज़र आने लगी। डर अलग गई कि, कहीं साहब से न कह दें। मैं एक पल में मैडम के हथियार के आगे टूट गई। सो न चाहते हुए भी उतार दिए कपड़े। तन पर छोटे-छोटे दो पुराने कपड़े थे। पैसे की तंगी ऐसे कपड़ों पर ज़्यादा नहीं खर्चने देती। ज़रा सी हँसी के लिए मैडम इस तरह मेरे कपड़े उतरवा कर मुझे अपमानित करेंगी, जीवन भर न भूलने वाली सजा देंगी, यह मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। मैं उफ़ भी नहीं कर सकती थी, आखिर उनके सामने मेरी बिसात ही क्या थी?

मुझे अपनी हालत गावों-कस्बों में अपमानित होने वाली उन औरतों सी लगी, जिन्हें दबंगों द्वारा अपनी दुश्मनी निकालने, अपना आतंक कायम करने के लिए निर्वस्त्र करके पूरे गाँव, मोहल्ले में घंटों घुमाया जाता है, और ये असहाय औरतें अपमान के इस जहर से हड्डियां तोड़ देने वाले दर्द को जीवन भर बर्दाश्त करती हैं, तड़पती-कलपती हैं।

शर्म के मारे बाकी जीवन घर के अँधेरे कोने में आसूं बहाते-बहाते बिताती हैं। घर के लोगों के भी सामने आने के नाम से ही सिहर उठती हैं। कुछ बर्दाश्त नहीं कर पातीं तो फांसी लगा लेती हैं या किसी कुँए में कूद कर मर जाती हैं । लेकिन मैंने मरने की नहीं सोची, क्योंकि मेरे आगे-पीछे तो कोई है ही नहीं जिससे मैं शर्म से जमीन में गड़ती। अपनी ही नज़रों में शर्मिंदगी महसूस कर रही थी तो भीतर-भीतर आंसू बहाती, कुढ़ती, एकदम शांत हो उस अजीब सी भीनी-भीनी खुशबू वाले तेल से, उनकी ठीक उसी तरह, पूरे तन की मालिश की जैसी वीडिओ में देखी थी। करीब चालीस मिनट की मालिश के बाद उन्होंने अलसायी सी आवाज़ में मना कर, जाने को कहा। ऐसा लगा जैसे वह नींद में थीं। मुझे एकदम से अम्मा की याद आ गई। उन्हें आधे सिर के दर्द अर्ध-कपारी की समस्या थी, जो शाम को अक्सर बढ़ जाता था। जब मैं देर तक उनका सिर दबाती, तो आराम मिलने पर वह ऐसे ही सो जाती थीं। मैंने जल्दी से कपड़े पहने और चली आई बेडरूम से बाहर। सोचा जब कहेंगी, तब हटा दूंगी चादर, कंबल।

मैं भारी मन से अपने बिस्तर पर आकर लेट गई। मुझे लगा कि, आज मैं पैसों के लिए बहुत नीचे गिर गई। जिस काम के लिए मन गवाही नहीं दे रहा था वह काम किया। मैडम की निश्चित ही यह एक शातिर चाल ही थी कि, पहले मुझे पैसे के जाल में फंसाया, मैं उनकी ऐसी मालिश की बात कहीं और न कहूं तो, मुझे भी नंगी कर दिया। फिर यह भी सोचा कि नहीं, मेरी हंसी के कारण यह सब हुआ। मुझे हंसना नहीं चाहिए था। आखिर वह दर्द से परेशान एक महिला हैं। जो दिन-भर जी-तोड़ मेहनत करती हैं। मेरा हंसना एक तरह से उनकी खिल्ली ही उड़ाना था। गलती तो मैंने ही की थी। दिनभर की थकी-हारी मैं यही सब सोचती-सोचती सो गई।

सुबह टाइम से उठकर काम-धाम में लग गई। करीब साढ़े आठ बजे मैडम तैयार होकर बाहर आईं। उनके चेहरे पर गजब की ताजगी नज़र आ रही थी। मैं करीब पहुंची तो, उन्होंने कहा, '' बड़ी अच्छी मालिश की, बहुत आराम मिला।'' उनकी इस बात से पता नहीं क्यों मुझे बड़ी राहत महसूस हुई। उन्हें नाश्ता, पेपर देकर मैंने बेडरूम में चादर, कंबल हटा दिए।'

समीना, छब्बी मालिश पुराण बताते-बताते कई बार भावुक हो गई थी। उसकी बातों से मैं बहुत आहत हुआ था।

मैंने उसके मुंह पर ही सुन्दर हिडिम्बा को गाली देते हुए कहा, ''उनसे कहो एक बार मुझसे मालिश करा लें। मैं उनका हर तरह का, सारा दर्द हमेशा के लिए ठीक कर दूंगा।''

यह सुनते ही छब्बी मेरे ही ऊपर एकदम से भड़क उठी। तमककर बोली, ''अच्छा! उनकी मालिश करोगे। बहुत लपलपा रही है जबान।'' मैं उसे हक्का-बक्का देखने लगा कि, इसे क्या हो गया है? तभी वह मेरा हाथ पकड़ कर बोली, ''सुन बड़ा मचल रहा है औरत की मालिश करने को, तो तू सिर्फ़ मेरी मालिश कर। तेरे ये हाथ किसी दूसरी औरत के नंगे बदन को छुएं, यह मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगी। मैं तुझे छोड़ूंगी नहीं यह साफ बता दे रही हूं।''