Vah ab bhi vahi hai - 12 in Hindi Fiction Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | वह अब भी वहीं है - 12

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वह अब भी वहीं है - 12

भाग - 12

तोंदियल ने एक तरह से मुझे कपड़े की तरह धोकर, निचोड़कर तार पर लटका दिया था। मैं निचुड़ा हुआ बॉलकनी की रेलिंग पर खड़ा नीचे देखे जा रहा था। सोचा भी नहीं था कि यहां नौकरों को ऐसे कैद कर दिया जाता है। कम से कम इस बिल्डिंग में तो सारे नौकर कैद ही थे। करीब पांच बजे कॉल-बेल बजी। तोंदियल के प्रति मुझमें अब-तक कुछ सम्मान भाव पैदा हो चुका था। उसके उठने से पहले मैंने जाकर दरवाजा खोल दिया।

सामने साहब का एक ड्राइवर जिसे मैं पहचानता था, और करीब तीस-पैंतीस की उम्र की एक महिला खड़ी थी। मैं ड्राइवर को नमस्कार भर कर पाया था कि, तब-तक पीछे से तोंदियल आया और बोला, 'आओ' मैंने भी रास्ता दे दिया। ड्राइवर, महिला दोनों अंदर आ गए। महिला के साथ दो एयर बैग थे। उसे देखकर मैं कोई अनुमान नहीं लगा पाया कि वह कौन है। तभी तोंदियल बोला, 'अपना सामान वहीं रख दो छब्बी, जहां पिछली बार रखा था। मैडम ने फोन किया था कि, तुम आ रही हो।'

मैंने अंदर ही अंदर कहा, वाह तोंदियल फ़ोन आया था। और तूने बताया तक नहीं। ''छब्बी'' पहली बार सुन रहा था यह नाम। छब्बी जैसे ही अपना सामान लेकर अंदर गई, वैसे ही ड्राइवर नारायण मुझे नीचे ले गया। वहां साहब ने मेरा सामान भिजवाया था। उन्हें लेकर मैं ऊपर आ गया। नारायण ने बताया कि, ''साहब ने कहा है कि मैडम की सेवा में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।'' मैं चुपचाप सिर हिला कर ऊपर चला आया पिंजरे में। बॉलकनी मेरा ठिकाना थी।

ऊपर पहुंचा तो देखा छब्बी और तोंदियल बड़े याराना माहौल में बतिया रहे हैं। मेरे पहुंचने पर तोंदियल ने मेरा परिचय कराया और कहा, 'यह यहां तब-तक मैडम की सेवा में रहेंगी जब-तक अपने घर गए नौकर वापस नहीं आ जाते।' अब जाकर यह बात मुझे स्पष्ट हुई थी कि, छब्बी भी हमारी तरह नौकर ही है। उसकी ड्रेस, हाव-भाव से यह अनुमान लगा पाना कठिन था।

मुझे धुंधला ही सही याद आ रहा था कि मैं पहले भी इसे कहीं देख चुका हूँ। मैं समझ रहा था कि, मैडम के ऑफ़िस की कोई कर्मचारी है। छब्बी का पूरा नाम सुतापा सुले था। मराठवाड़ा के ही किसी स्थान की रहने वाली थी। जिस तेजी से उसने नाम बताया था स्थान का, उतनी ही तेजी से मेरे दिमाग से निकल भी गया। समीना यह छब्बी जल्दी ही मेरी सब-कुछ बन गई थी। मगर उस समय दोनों जिस ढंग से बात कर रहे थे, हंसी-ठिठोली कर रहे थे, उससे यह साफ था कि, तोंदियल और उसके बीच गहरी छनती है।

दोनों अंदर बतियाने में लगे रहे मैं बॉलकनी में लटका रहा। कितना समय बीता पता ही नहीं चला। जब तोंदियल की आवाज़ आई तो मैं अंदर गया। दोनों जमीन पर बिछे कॉरपेट पर बैठे थे। तीन कप चाय थी। प्लेट में कई बिस्कुट। मैं समझ गया कि, चाय के लिए बुलाया गया है। शाम के सात बज चुके थे। मैडम का कहीं पता नहीं था। चाय पीने के बाद तोंदियल बोला, 'मैडम खाना खा कर आएंगी। हम-लोगों को अपना बनाना है।'

तभी छब्बी बीच में टपकी, 'छुट्टी वाले दिन मैडम घर पर खाती ही कहां हैं। वैसे भी उन्हें घर का खाना पसंद नहीं आता।'

'मैडम की बात छोड़ो, ये बताओ बनाओगी क्या?'

इस पर छब्बी ने एक उड़ती सी नज़र मुझ पर डाली, फिर तोंदियल को देखती हुई बोली, 'जब मैडम को नहीं खाना है, तो कुछ हल्का-फुल्का बना लेते हैं।' और उसने क्षण-भर में तय कर दिया कि, सिर्फ़ सब्जी-रोटी बनेगी। सब्जी कौन-सी यह भी पता नहीं चला। मैं कितनी रोटी खाऊंगा यह भी छब्बी ने पूछ लिया।

एक और बात समीना कि, छब्बी के आने से मैं भीतर से न जाने क्यों बड़ा हल्का महसूस कर रहा था, जैसे कोई खुशी मिल गई हो। उसका काम करने का साफ-सुथरा, सलीके भरा अंदाज, फुर्ती, एकदम सीधे-सीधे बेलौस बोलना, मुझे बड़ा प्रभावित कर रहा था। नौ बजे तक हम सबने खा-पीकर साफ-सफाई सब कर दी। छब्बी ने मैडम का बेडरूम भी संवार दिया था।

खाने के बाद मेरा सोने का मन कर रहा था। दस बज रहे थे। मैडम का कुछ पता नहीं था। मुझे सुबह क्या काम दिया जाएगा, मन में उमड़-घुमड़ रहा यह प्रश्न भी बेचैन किए जा रहा था। तोंदियल बॉलकनी में अपने बिस्तर पर तकिए के सहारे अधलेटा था। मैं भी उसी तरह अपने स्थान पर बैठ गया। कुछ ही देर में छब्बी भी आकर तोंदियल के बिस्तर पर बैठ गई और स्वभाव के मुताबिक पकर-पकर बतियाने लगी। मुझे नींद के कारण उसकी बातों में ज़रा भी रस नहीं मिल रहा था। जब ग्यारह बज गए तो तोंदियल बोला, 'छब्बी अगर तुम जाग रही हो, तो मैं सो जाऊं, सवेरे जल्दी उठना है। मैडम का फ़ोन आए तो बता देना।'

इस पर छब्बी बोली, 'जागेंगे नहीं, तो जाएंगे कहां? तुम सो जाओ। वो बारह-एक के पहले आने वाली नहीं। मुझको देखते ही उनके बदन में दर्द जरूर होगा, फिर वो घंटा भर मालिश जरूर करवाएंगी। तुम्हीं लोग अच्छे हो।'

अब-तक मैं भी छब्बी से काफी खुल चुका था। इस का पूरा श्रेय उसी को था, वह खुद ही जैसे मुझसे घुल-मिल जाने को उतावली लग रही थी। तोंदियल ने इसी समय एक ऐसी बात कही कि, मैंने मन ही मन कहा, 'वाह रे तोंदियल, इस उमर में यह रंग।' छब्बी की मालिश वाली बात पर वह बड़ा आहें भर कर बोला था। 'अरे! परेशान काहे होती हो। मैडम की मालिश से तुमको थकान आ जाए तो बताना, मैं मालिश करके, तुम्हारी थकान दूर कर दूंगा।'

छब्बी तुनकते हुए बोली 'अच्छा! मेरी मालिश करोगे? मेरी मालिश से तुम थक गए तो तुम्हारी थकान कौन उतारेगा।'

तोंदियल फिर इठलाता हुआ बोला, 'तुम भी क्या बात करती हो, तुम्हारी मालिश करके तो थकान उतर जाएगी। बशर्ते जैसे करती हो, वैसे ही करवाओ तो।'

छब्बी अब और भड़क कर बोली, 'अच्छा, बड़ा मचल रहा है मेरी मालिश करने को, ठीक है परेशान न हो तू, जिस दिन थकूँगी, उस दिन तेरे से मैं बिलकुल वैसी ही मालिश कराऊंगी जैसी मैडम की करती हूँ, और जो न कर पाया तो मैं तेरी मालिश कर दूंगी।'

समीना मुझे लगा कि बात बिगड़ गई है, और छब्बी लडे़गी। लेकिन वह अपनी बात पूरी कर खिलखिला पड़ी। मुझे अब साफ हो गया था कि, इन दोनों के बीच बड़ा खुला रिश्ता है। मगर छब्बी की बातों, तरीके ने दिमाग में यह प्रश्न खड़ा कर दिया था कि, यह कहीं से मराठी तो लग ही नहीं रही है, और आखिर यह मैडम की कौन सी खास मालिश करती है, जो एकदम अलग तरह की है। इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए दिमाग में कुलबुलाहट शुरू हो गई। इसी क्षण कॉल-बेल बजी। छब्बी आगे और पीछे तोंदियल और मैं पहुंचा। एक बड़े रोबीले व्यक्तिव वाला आदमी मैडम को ऊपर तक छोड़ कर चला गया था। वह अंदर, आगे-आगे मस्त चाल से आईं, फिर क्षण भर रुक कर बोलीं 'जाओ तुम लोग सोओ, छब्बी तुम यहां आना।'

उनका आदेश सुनकर हम-लोग अपने बिस्तरों पर पहुंच गए। छब्बी उनके पीछे बेडरूम के अंदर पहुंच गई। कुछ देर बाद छब्बी ने बॉलकनी में खुलने वाला दरवाजा भी आकर बंद कर दिया। दरवाजा बंद होने की आवाज़ सुनकर तोंदियल अस्पष्ट शब्दों में बोला 'लगता है आज मालिश होगी।'

'मालिश!' मेरे दिमाग में एक बम सा फूटा था। मैडम हल्के-फुलके नशे में थीं यह मैंने उनके अंदर आते ही भांप लिया था। मगर यह सारी बातें नींद के आगे एक किनारे हो गईं, और मैं भी तोंदियल की तरह सो गया।

समीना अगली सुबह मेरे लिए एक नया अनुभव लेकर आई। पैसा होने पर ज़िंदगी जी कैसे जाती है, उसकी एक झलक मैडम में सुबह देखी। तोंदियल सुबह पांच बजे उठा और मुझे भी उठा दिया। कुछ ही देर में हम तैयार हो गए। छब्बी भी। उसकी आंखें बता रही थीं कि, रात देर से सोई थी, और अधूरी नींद ही जाग गई है। जल्दी-जल्दी ड्रॉइंगरूम साफ किया गया। सोफे को किनारे कर ज़्यादा जगह बनाई गई।

तोंदियल के साथ लगा मैं सब करता जा रहा था, लेकिन यह सब क्यों किया जा रहा है, यह समझ नहीं पा रहा था। तभी तोंदियल ने रूम फ्रेशनर स्प्रे करने को कहा। खुद बॉलकनी का दरवाजा, खिड़कियां खोल दीं। सारे पर्दे हटा दिए। बाहर से अच्छी-खासी सुबह की नर्म धूप अंदर आने लगी। एक बड़ी खूबसूरत सी मोटी कालीन लाकर तोंदियल ने बिछा दी। उसकी बगल के दोनों तरफ साफ-सुथरी दरी भी। तभी मैंने उत्सुकता से व्याकुल होकर उससे इशारे में पूछा कि यह सब हो क्या रहा है? तो वह बड़े धीरे से बोला कि, 'मैडम यहां योग, प्राणायाम, ध्यान करेंगी। साथ में हम सबको भी करना है, क्योंकि इससे हम-सब ज़्यादा फ्रेश और ज़्यादा चुस्त-दुरुस्त रहेंगे। इससे बढ़िया काम कर सकेंगे।' यह सुनकर मैं हक्का-बक्का रह गया।

जीवन में पहली बार सुन रहा था कि, कोई मालकिन जो कि हर तरह का नशा भी करती है, वो योग, प्राणायाम, ध्यान न सिर्फ खुद करती है बल्कि अपने स्टॉफ को भी करवाती है, जिससे कि सब ज़्यादा ताकत, स्फूर्ति के साथ ज़्यादा काम कर सकें। मेरे पास ज़्यादा कुछ सोचने-विचारने के लिए समय नहीं था। अपने कमरे से मैडम एकदम तरोताजा निकली थीं। कहीं थकान नहीं दिख रही थी। उन्होंने नहाते समय जो भी साबुन-शैंपू इस्तेमाल किया था, उसकी खुशबू घर में फैल रही थी। उन्होंने गोल गले की चुस्त टी-शर्ट और बेहद चुस्त ट्रैक शूट वाला ट्राउजर पहन रखा था। बेहद सफेद रंग के यह कपड़े उन पर खूब फब रहे थे। वह आकर शांत भाव से कालीन पर बैठ गईं। फिर चालीस मिनट तक उन्होंने योग, प्राणायाम, ध्यान किया, और हम सब से करवाया। विशेष रूप से सूर्य-नमस्कार आसन।

तोंदियल, छब्बी यह सब उनके साथ पहले ही से करते आ रहे थे, इसलिए वो दोनों उनके साथ पूरे लय-ताल में करते रहे। मगर मैडम को मुझे एक-एक चीज बतानी पड़ी, लेकिन फिर भी उन्होंने बड़े शांत भाव से बताई, सिखाई और करवाई। सूर्य-नमस्कार आसन के समय उनके बदन का लचीलापन देख कर मैं दंग रह गया।

समीना तुम्हें उस समय की अपनी एक गलती, अपने मन की एक गंदगी भी बताता हूं। जब वह सूर्य-नमस्कार आसन करती हुई ऊपर को हाथ उठातीं, तो ट्राउजर, टी-शर्ट अपनी जगह से बहुत दूर तक खिंच जाते थे, और मैं बदन के उस ढेर सारे खुल जाने वाले हिस्से पर अपनी चोर नज़र डाल पाने से खुद को रोक नहीं पाता था। मन भटकता हुआ न जाने कहां से कहां चला जाता था। लेकिन यह स्थिति पहली बार कर रहे एक कुपात्र के भटकते मन की थी, आगे के दिनों में मैडम ने मुझे मांज-मांज कर इन सब के लिए सुपात्र बना दिया था। इसके लिए मन के किसी कोने में उनके प्रति आज भी इसके बावजूद सम्मान है कि, आगे उन्होंने मेरे साथ घोर अन्याय किया, मुझसे मेरी छब्बी, मेरा तोंदियल हमेशा के लिए छीन लिया।

लेकिन समीना उन्होंने जो किया वह उनके स्वार्थ की दुनिया थी, हमें उनकी नहीं केवल अपनी बात करनी है।

तो आज जब ज़िंदगी अचानक ही तुम्हारी तरह खत्म होने की हालत में पहुँच गई है, तो अपने एक-एक पाप याद आ रहे हैं। पछतावा हो रहा है, आंखें भर जा रही हैं। उस दिन मैं योग वगैरह करके बड़ा तरोताजा महसूस कर रहा था। मैडम ने जल्दी ही ऑफ़िस वाले कपड़े पहने और नाश्ते में एक बड़ा गिलास एप्पल जूस, चार-पांच पीस ब्रेड-बटर लिया। नाश्ते के दौरान कई न्यूज़ पेपर, खासतौर से बिजनेस वाले देखे और साढ़े नौ बजे चल दीं नीचे ऑफ़िस के लिए। मैं और तोंदियल भी उनका सामान लेकर पहुंच गए। फिर रात नौ बजे तक जो काम-धाम चला उससे मैं कई बार खीझ उठा।

मैडम ने खुद करीब दो बजे लंच किया, उनके बाद फिर हम-दोनों कर सके। मैडम ऊपर लंच करके आ गईं, तब हम-दोनों एक-एक कर गए ऊपर लंच करने। मैं उस दिन, दिन-भर के काम-धाम से यह समझ पाया कि, मैडम रियल-स्टेट, विज्ञापन एजेंसी, शेयर मार्केट से जुड़े कामों में लगी हैं। और उस छह मंजिला बिल्डिंग में भी वह साहब के साथ बराबर की हिस्सेदार हैं।