Vah ab bhi vahi hai - 10 in Hindi Fiction Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | वह अब भी वहीं है - 10

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वह अब भी वहीं है - 10

भाग - 10

अपनी तरह की खूबसूरत, सेक्सी, बिंदास महिला के साथ टेबिल लाइट डिनर का सपना चूर-चूर हो गया। सामने हमारा खाना रखा था। समीना मैं सपने में भी अन्न का अपमान नहीं करता, क्योंकि दुनियां में सब-कुछ केवल इसी के लिए ही तो होता है। लेकिन उस क्षण मेरा मन उस खाने को देखकर घृणा, क्रोध से उबल पड़ा। मन में आया कि, उसे उठाऊं और अंदर महंगी शराब के नशे में चूर होती जा रहीं सुन्दर हिडिम्बा के चेहरे पर नहीं, उसकी छाती पर खींच कर मारूं। छाती पर इसलिए कि, जिससे वह सब-कुछ आसानी से देख सकें।

चेहरे पर मारूंगा तो वह देखने लायक नहीं रहेंगी। मगर विवश था।

वैसे भी मेरा कोई अधिकार नहीं था कि, मैं उनसे ऐसी उम्मीद करता। हालांकि जो खाना हम-दोनों के लिए आया था, हम जैसा खाते हैं, उससे कई गुना बेहतर था। उसमें रूमाली रोटी, कबाब, साथ में बिरयानी भी थी। और दो-दो पीस मिठाई भी। खाना लगता था कि, सुन्दर हिडिम्बा ने अपनी खुराक के हिसाब से मंगवाया था। समीना और दिनों की बात होती, तो वह खाना मुझे बहुत बढ़िया लगता। लेकिन उस दिन अंदर-अंदर कुढ़ते हुए खाया। तोंदियल दो बोतल पानी ले आया था, पिया और अपने स्वभाव अनुसार गालियां देता हुआ लेट गया।

सुन्दर हिडिम्बा अंदर खा रही थीं या सो रही थीं, हमें कुछ नहीं पता था। अंदर से टी.वी. की हल्की-हल्की आवाज़ बाहर तक आ रही थी बस। तोंदियल ने अंदर जाने वाले रास्ते का दरवाजा बंद कर दिया। मुझे आश्चर्य हुआ कि, वह नौकरों के सहारे पूरा घर छोड़े हुए हैं । उन्हें अपनी इज़्जत का भी ख़याल नहीं कि, इस हालत का नौकर फायदा भी उठा सकते हैं। जिस शहर में हमेशा कोई न कोई कांड होता रहता है, वहां ऐसी निश्चिंतता मुझे आश्चर्य में डाल रही थी।

दिमाग में बड़ी उथल-पुथल मची हुई थी, निकल भागने का विचार फिर दिमाग में उछलने लगा था कि, यह इतना खा-पी रही हैं, लेटते ही कुछ देर में ही सो जाएंगी। तोंदियल भी थका-मांदा है, गहरी नींद ही सोएगा और तब मैं निकल भागूंगा।

समीना इसके बाद करीब घंटा भर बीत गया, लेकिन तोंदियल करवटें बदलता रहा, और मैं शांत उसके सोने का इंतज़ार करता रहा कि तभी, अंदर बड़ी तेज़ एक साथ कई सामानों के गिरने की आवाज़ आई, लगा कि जैसे साथ में कोई बहुत भारी भरकम चीज़ भी गिरी है। तोंदियल मुझसे पहले उठ गया था। नींद से उसकी तरह मेरी भी आंखें कड़ुवा रहीं थी। उन्हें मिचमिचाते हुए हम-दोनों उठे। तोंदियल अपने को बड़ा जोर देकर खड़ा हुआ और बोला, 'आओ मेरे साथ।'

मैंने पूछा, 'क्या हुआ?' तो वह बोला, 'खुदी देख लेना।'

दरवाजा खोलते ही बेहद ठंड का अहसास हुआ। मतलब सुन्दर हिडिम्बा ने ए.सी. फुल स्विंग पर चला रखा था। अंदर पहुंचा तो देखा वह फर्श पर लगभग एक करवट की स्थिति में गिरी पड़ी थीं। कुछ ही फिट की दूरी पर ढेर सारी उल्टी पड़ी थी। साथ में दो कुर्सियां और कई बर्तन भी इधर-उधर गिरे पड़े थे। मैं आशा के विपरीत यह सब देख कर हतप्रभ था।

दिमाग में आया कि, इनमें और अपने बड़वापुर के उन उठाइगीर पियक्कड़ों में अंतर क्या है? वो सब भी पीकर इधर-उधर, सड़क, नाली, गली में भहराते (गिरते-पड़ते) रहते हैं। उन्हें अपनी इज़्जत, मान-सम्मान की कोई परवाह नहीं होती और यहां यह। आखिर इनकी पढ़ाई-लिखाई, जीवन स्तर, सभ्यता और उन गंवारों-जाहिलों में कुछ तो अंतर दिखना ही चाहिये ?

जैसे उन सबको शराब पी रही है, वैसे ही इन्हें भी शराब ही पी रही है।

मैंने तोंदियल से तेज लाइट जलाने को कहा, तो वह फुसफुसाते हुए बोला, ' जरूरत नहीं, चलो उठाओ बेडरूम में ले चलना है।'

मैं हरकत में आऊं उसके पहले ही वह बेडरूम की तरफ गया, दरवाजा खोलकर वहां का नाइट लैंप ऑन किया, ए.सी. चलाया, फिर लौटा। इस बीच मेरे सामने जमीन पर पड़ी मैडम सुन्दर हिडिम्बा खर्राटे ले रही थीं। धर्म-दुनिया, लाज-शर्म से एकदम बेखबर। कपड़े का कोई ठिकाना नहीं था। वह कहीं थीं, और कपड़ा कहीं जा रहा था। वह करीब-करीब बिना कपड़े के ही पड़ी थीं।

उस बेहद कम रोशनी में भी, उनका बदन मुझे चमकता सा लग रहा था। तोंदियल ने आकर उनके कपड़े ठीक कर धीरे से कहा, 'चलो उठाओ।' साथ ही मेरे पास फुस-फुसाया, 'ज़्यादा चकर-मकर मत देखो। पूरे घर में कैमरे लगे हैं। सब पता रहता है इन्हें। कोई गड़बड़ देख ली तो समझ लो जिंदा नहीं रहोगे।'

उसकी बात से मैं क्षण भर को घबरा गया कि, मेरी चोरी सवेरे निश्चित ही इनकी पकड़ में आएगी, और तब यह मुझे छोड़ेंगी नहीं। क्योंकि जब तोंदियल बेडरूम खोलने, ए.सी., लाइट ऑन करने गया था, तो मैंने उत्तेजना में आकर मैडम की अस्त-व्यस्त स्थिति के साथ कुछ हरकत की थी। जो गंदी थी।

मैं अंदर ही अंदर सिहर उठा था और यह भी समझ गया था कि, तोंदियल इसी कारण नज़र झुकाए मशीन की तरह सारे काम किए जा रहा है। नहीं तो जिस औरत के नग्न तन के आगे बड़े-बड़े योगी पल में फिसल जाते हैं, यह कहां से आज के युग में हठ योगी बन यहां आ गया है, जितेंद्रिय बन गया है, इसकी सारी इच्छाएं मर गई हैं क्या? इसके सारे अंग शिथिल और निष्क्रिय हो गए हैं क्या? लेकिन नहीं, सच में ऐसा कुछ नहीं था समीना।

केवल डर था, मौत का डर, जिसने उसे हृदयहीन, भावहीन मशीन बना दिया था, निर्जीव मशीन। जिस तन के आगे मैं क्षण भर में बहक गया, तोंदियल न होता तो शायद और बहकता, वहीं अब मैं भी मशीन बन गया था। हां यह जरूर था कि, अंदर-अंदर मेरा और तोंदियल का कोई पुर्जा जरूर बहक रहा था । ऐसा मुझे बीच-बीच में अहसास हुआ। खैर किसी तरह मैडम को बेड पर लिटाया गया, तोंदियल को उस कम रोशनी में भी मैडम के माथे का गुलमा दिख गया था, तो वहां उसने पेन किलर स्प्रे को स्प्रे कर दिया। एक तौलिया गीला कर उनके मुंह, पैर, कपड़े पर लगी उलटी को बहुत ही सावधानी से बचा-बचा कर पोंछा, फिर चादर ओढा दिया और बाहर आकर दरवाजा बंद कर दिया। मैं अनुचर सा उसके पीछे-पीछे था। उसके काम को देखकर स्पष्ट था कि, वह इन सबके लिए अभ्यस्त था।

डाइनिंग रूम में आते ही उल्टी ने फिर जी खराब कर दिया।। इस बीच तोंदियल एक कीटनाशक स्प्रे लेकर आया, उल्टी और उसके आसपास ढेर सा स्प्रे कर दिया। तोंदियल का ऐसे मशीनी अंदाज में काम करना मुझे परेशान कर रहा था, और डाइनिंग टेबल अलग हैरान किए हुए थी। मैडम पूरी बोतल शराब के साथ-साथ सारा खाना चट कर चुकी थीं।

सुन्दर हिडिम्बा मैडम की पहलवानों सी सेहत का राज जान कर मैं तोंदियल के साथ फिर बॉलकनी में अपने बिस्तर पर था। तोंदियल ने दरवाजा बंद कर सुर्ती भी निकाल ली थी। मैंने भी चुटकी भर लेकर होंठ और दांतों के बीच दबा ली थी। तोंदियल के हाव-भाव बता रहे थे कि, उल्टी ने मेरी तरह उसका भी जी खराब कर दिया था। हम दोनों की नींद उखड़ चुकी थी। करीब एक बजने को था।

बॉलकनी में ऊपर लगे पंखे की हवा राहत दे रही थी। नीचे सड़क पर गाड़ियों, लोगों की आवाज़ अब भी थी। मगर दिन की अपेक्षा न के बराबर थी। हम-दोनों करीब दस-पंद्रह मिनट बतियाते रहे। जिसमें तोंदियल ने बताया कि, सवेरे बाई आएगी वही सारी साफ़-सफाई करेगी। जो आदमी अपने घर गया है, वह और उसकी बीवी, मैडम के विश्वासपात्र हैं। वह उन पर आंख मूंद कर भरोसा करती हैं, और वह दोनों भी इन पर जान छिड़कते हैं। उन दोनों के बाद वह तोंदियल पर यकीन करती हैं। और जब-तक वह वापस नहीं आते, तब-तक उसे ही सब संभालना है। मैं उसका सहयोग करूंगा। मैडम सप्ताहांत की पहली रात, ऐसे ही गले तक नहीं बल्कि मुंह तक खाती-पीती हैं, और अक्सर यही किस्सा दोहराती हैं।

समीना मैं उससे जितनी बातें कर रहा था, मेरा अंदर-अंदर सहमना भी उतना ही बढ़ रहा था, कि सवेरे जब मैडम कैमरे में मेरी ओछी हरकत देखेंगी तो जिंदा नहीं छोड़ेंगी। साहब को बुलवाएंगी और वह मुझे कहीं समुद्र में फिंकवा देंगे। जहां शार्क, व्हेल जैसे महाकाय जलीय जीव मुझे सेकेण्ड भर में निगल जाएंगे। या फिर खतरनाक शिकारी मछलियां कुछ ही देर में नोच-नोच कर मुझे चट कर जायेंगी।

यह सोचते-सोचते घबरा कर मैंने तय कर लिया कि, इसी समय भागूंगा। साहब रख लें मेरा सारा सामान। जिंदा रहा, तो कर लूंगा सारा इंतजाम। मौका बढ़िया है। मैडम टुन्न पड़ी हैं। तोंदियल को बोलता हूं कि, खाना बहुत ज़्यादा हो गया बाहर कुछ दूर टहल कर आता हूं। यह बात दिमाग में आते ही मैंने दो-तीन बार उबकाई आने का नाटक किया। तोंदियल ने पूछा तो मैंने कहा, 'अपच सा हो रहा है, कुछ टहल लूं तो राहत मिल जाएगी।'

इस पर तोंदियल ने जो कहा, उससे मैं, मानो कटे पेड़ सा ज़मीन पर धड़ाम से गिर पड़ा। उसने बताया, 'मैडम जब देखती हैं कि, अब बाहर का कोई काम नहीं है, तो वह दरवाजे का इंटरलॉक लगा कर, चॉबी बेडरूम में कहीं रख देती हैं। डिनर आने के बाद उन्होंने खुद बंद किया है। इसके अलावा इस वक्त जो चौकीदार होगा बाहर, वह पहले मालिक को फ़ोन करके कंफर्म करता है, तभी किसी नौकर को बाहर जाने देता है। इसलिए इस समय बाहर नहीं निकला जा सकता। बॉलकनी में यहीं जितना टहल सकते हो टहल लो।'

इस बात को सुनकर मैं एकदम खीझ उठा। भीतर ही भीतर सुन्दर हिडिम्बा, और साहब को गाली देता हुआ लेट गया दरी पर। सोचा कि, देखने में इतनी उदार-मना हैं। घर ऐसा बना रखा है कि, जैसे कोई ताला-बंदी ही नहीं है। मगर तैयारी ऐसी शातिराना की बड़े-बड़े फंस जाएं।

नौकरों की ऐसी हालत बना रखी है कि, वो नज़र उठाने में भी कांपते हैं। मुझे भी छांट कर रखा कि, मेरी गर्दन पर साहब की छूरी है। मेरी हैसियत एक मेमने से ज़्यादा नहीं है, इसीलिए इतनी बेधड़क और निश्चिंत हैं कि, न घर की चिंता, न तन की। सवेरे आने वाली आफत की सोचते-सोचते मैं देर तक नहीं सो सका। जबकि तोंदियल पंद्रह मिनट बाद ही ऊपर से नीचे सड़क पर सुर्ती थूक कर सो गया।

अच्छा यह भी था कि, वह खर्राटे बिल्कुल नहीं लेता था। मैंने भी कुछ देर बाद सुर्ती नीचे थूकी। अनुमान लगाया कि, ऊपर से नीचे करीब पचास फिट की दूरी है। लेकिन जब बिल्डिंग की बनावट पर ध्यान दिया, तो लगा यह तो ऐसी बनी है कि, ऊपर से नीचे उतरने का कोई जुगाड़ बन ही नहीं सकता। आखिर मैं विवश होकर लेट गया कि, जो होगा देखा जाएगा।