8. कहीं यूँ भी होता है?
किरण की ज़िंदगी एक मुस्तकबिल मशीन बन कर रह गयी है. सुबह उठती है. रात भर की मुश्किलों को घसीट कर ज़ेहन से उतारती है. आसिफ के संसर्ग के आवेशों को दिमाग से, जिस्म से उतार फेंकने में खासी जद्दो जहद अब नहीं करनी पड़ती. इसकी वजह तो कई हैं. मगर ख़ास वजह यही है कि अब उसे इसकी आदत सी हो गयी है.
बिना किसी उत्तेजना के वह पत्नी होने के फ़र्ज़ को अदा करती है. औरत होने की अपनी जिस्मानी हकीकत आसिफ को सिर्फ इस नाते से परोस देती है कि किसी वक़्त वो उसे एक अच्छा इंसान लगा था. ये एहसास हुआ था कि इस इंसान के साथ खुशगवार ज़िंदगी बीतेगी. उस एहसास के साथ जीने की आदत सी हो गयी है किरण को. लेकिन हकीकत ये है कि हर रोज़ यही अच्छा इंसान उसके इस मुगालते को धराशायी कर देता है. कभी अपनी हठधर्मी से तो कभी अपनी वाचाल और आवारा जुबान से.
धीरे-धीरे किरण को ये एहसास भी हुया है कि अक्सर सड़क पर गलत चलने वाले या गलत तरीके से ड्राइव करने वाले को गाली देने वाला ये इंसान घर पर भी अपनी मनमर्जी नहीं होने पर गाली देने में उतना ही दक्ष था.
उस दिन साजिद ने दाल में धनिया थोडा ज्यादा डाल दिया था. किरण को बिलकुल परेशानी नहीं हुयी. वो तो वैसे भी धनिया और दूसरी सभी हरी सब्जियां खासा पसंद करती है. मगर आसिफ का पारा अचानक सातवें आसमान पर पहुँच गया.
उसने दाल की कटोरी अपने सामने से इस तेज़ी से हटाई कि वह टेढ़ी हो कर टेबल पर लुड़क गयी. दाल फैल गयी तो किरण भी आपे में नहीं रह सकी.
"ये क्या बदतमीजी है आसिफ? नहीं पसंद तो मत खाओ. इतना कुछ तो है. तुम्हारा मनपसंद कोरमा भी है आज." किरण की आवाज़ में तीखी झल्लाहट एक दिन में नहीं आयी थी. कई दिनों का गुबार इकठा हो कर आज निकल आया था.
"हाँ हाँ. तुम्हें क्या फर्क पड़ता है? तुम्हारा तो सब पसंद का ही है. सब तुम्हारे हिसाब से ही तो चलता है इस घर में. ये घर तुम्हारा है. सब लोग तुम्हारे हैं. खाओ घास फूस वाली दाल. मुझे नहीं चाहिए ये सब. यानी मैं घास फूस न खाऊँ तो मुझे दाल भी नहीं मिलेगी इस घर में. साले सब हरामजादे हो तुम लोग. "
किरण सकते में आ गयी थी. उसे समझ ही नहीं आया कि बात यहाँ तक कैसे पहुँच गयी थी. उसने खुद को काबू में किया. उसे लगा अगर आसिफ ने गुस्सा किया भी था, चाहे गलत ही था तो भी किरण को खुद को काबू में रखना चाहिए था. गुस्से का जवाब गुस्से में दे कर उसने गलती की है.
यही सोच कर वह फ़ौरन ठंडी पड़ गयी.
"डार्लिंग, ऐसा क्यूँ सोचते हो? ऐसा कुछ नहीं है. हम सब हर वक़्त तुम्हें खुश रखने की कोशिश करते हैं. तुम क्यूँ इस तरह उखड जाते हो? आइन्दा ख्याल रखेंगें. मैं खुद देख लिया करूंगी कि ऐसी गलती फिर न हो. कनिका को समझा दूंगी. वो देख लिया करेगी. "
आसिफ रुका नहीं था. उसे लगा था उसका वार सही पडा है. वह और उखड गया था. यही वक़्त है वह अपनी धाक जमा सकता है. दरअसल उसके यहाँ एक ख़ास तरह का एहसासे कमतरी है. जिसके चलते वह किरण को हर मौके पर नीचा दिखने की कोशिश में लगा रहता है.
"क्या देख लोगी? औरतों का काम होता है रसोई पर पूरी नज़र रखना. तुम्हें फुर्सत कहाँ है? "
इस पर किरण भड़क उठी थी.
"औरतों का काम क्या होता है ये तुम मत सिखाओ मुझे. तुम शाम से लेकर अब तक क्या कर रहे थे घर में बैठे हुए? न बेटी को देखते हो न किचन को. मैं अभी आयी हूँ. प्यार से समझने समझाने की कोशिश कर रही हूँ. तुम कुछ समझने को राजी ही नहीं हो? चाहते क्या हो तुम?"
आसिफ को समझ तो आ गया कि आज डोज़ कुछ ज्यादा हो गयी है मगर हार मानना उसकी फितरत में ही नहीं है.
हाथ का कौर प्लेट में पटक कर वह उठा, कुर्सी पीछे उछाली और दनदनाते हुए बेडरूम में घुस कर दरवाज़ा भड़ाक से बंद कर दिया. इतने शोर शराबे का जो असर होना था वो हो गया.
ग्यारह महीने की नीरू अन्दर अपने कमरे में चैन से रात के लिए सुलाई जा चुकी थी. कनिका रसोई में साजिद की मदद कर रही थी साथ ही पति-पत्नी के बीच होने वाली इस रोज़-रोज़ की
किट-किट को सुन कर भी अनसुना करने की कोशिश में उसे बातों में लगाने में मसरूफ थी.
उसी ने सबसे पहले सुना. नीरू की तेज़ी से रोने की आवाज़ अगले कुछ ही सेकंड में पूरे घर में भर गयी थी. सब उस नन्ही बच्ची की तीमारदारी में लग गए. खाना अधूरा बिखरा हुआ टेबल पर पडा रहा.
किरण का मन उसी टेबल की तरह बिखरा हुया उसे कचोटता रहा. वह सोफे पर आधी लेटी, थकी हुयी, भूखे पेट पडी देर तक सोचती रही कि क्या गलत हुआ उससे.
आसिफ से शादी करने का फैसला? शादी करने का फैसला? बच्चा करने का फैसला? या बेटी पैदा करने का दोष? क्या किया उसने जिसकी ये सज़ा उसे लगभग रोज़ ही मिलती है.
आसिफ भी कोई आनंद पा रहा हो ऐसा तो नहीं लगता उसे. वह सोचती रही कि उसने क्या गुनाह किया है? क्यों आसिफ ऐसा हो गया है. इतना कडवा? क्या वो ऐसा ही था. और उसे पता नहीं लगा इतने साल. ये कैसे हो सकता है?
लेकिन यही हुया था. कोर्टशिप के दिनों में आसिफ ने कभी राह चलते भी किसी को गाली नहीं दी थी. गुस्सा होने पर ख़ास अंग्रेजों की तरह हंसने लगता था. और हंस-हंस कर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करता था. किरण पर तो कभी गुस्सा होता ही नहीं था.
अब ये सब जो हो रहा था इसमें किरण कोई वजह नहीं ढूढ़ पाती थी. ले दे कर अगर कोई वजह समझ में आती भी थी तो वह यही थी कि आसिफ बेटी के पैदा होने से नाखुश था. लेकिन इस मसले का तो कोई हल था ही नहीं. ये बात आसिफ जितनी जल्दी समझ कर आत्मसात कर ले उतना ही अच्छा. किरण इसी कोशिश में लगी थी. मगर हर बार खुद को नाकाम होते देखती थी और उसका गम बढ़ता जाता था.
नीरू का रोना कुछ कम हुया था. अब वह सिसक रही थी. कनिका ने ला कर उसे किरण की गोद में डाल दिया. किरण ने प्यार से उसे गले लगाया और चुम्बनों से उसका माथा और चेहरा भर दिए. सिसकती नीरू हंसने लगी और फिर कुछ देर में ही ढीली पढ़ कर किरण की बाहों में लेट गयी.
किरण वैसे ही उसे लिए हुयी बैठी रही. उसे पता ही नहीं लगा बेटी कब सो गयी और कब कनिका उसे उसकी गोद से ले कर अन्दर उसके कमरे में सुला कर आ गयी.
"मैडम, ये तो रोज़ का बात है. दिल छोट्टा नहीं करने का. खाना खाओ और सो जाओ. सुबह ऑफिस जाना है आपको."
अहिस्ता से उठ खड़ी हुयी किरण. सुबह ऑफिस भी जाना है और माँ के लिए गेस्ट रूम में भी तैयारी करनी है.
आज जो खुशी की बात आसिफ को डाइनिंग टेबल पर बताने वाली थी वो तो दाल में पड़े धनिया ने तबाह कर दी थी. आज ही दिन में सुजाता का फ़ोन आया था. वे अगले महीने इंडिया आ रही हैं दो महीने के लिए.
"कनिका, तुम लोग खा कर सो जाओ. मुझे एक कॉफ़ी दे दो. खाना नहीं खाना. भूख नहीं है."
कह कर वो स्टडी में चली गयी. एक ही फ्लोर पर के दो बराबर सटे हुए फ्लैट्स को लेकर खासा बड़ा बना ये घर छः बेडरूम का है, सो सब कामों के लिए और सब के लिए खूब जगह है.
कुछ देर लैपटॉप पर सर्फ करती रही. कॉफ़ी ख़त्म हो चुकी थी. मगर दिल कहीं नहीं लग रहा था.
घर में घनघोर शांति थी. शाम को हुयी बदमज़गी के बाद.
कनिका के लिए अलग एक छोटा सा कमरा है लेकिन वो नीरू के कमरे में ही लगे दीवान पर सोती है. साजिद रात को अपने घर चला जाता है. सुबह जल्दी नाश्ते के टाइम से आ जाता है.
किरण पर थकान और नींद हावी होने लगी थी. सोने के लिए उठी और बेडरूम की तरफ चल दी. मगर बेडरूम का दरवाज़ा अंदर से लॉक था. ये पहली बार हुआ था. अब तक यह अक्सर होता आया था कि आसिफ भड़क कर अन्दर जल्दी सोने चला जाता था और किरण बाद में आती थी और चुपचाप कपडे बदल कर नाईट गाउन पहन सो जाती थी.
आज इतनी गनीमत रही कि थकी हुयी किरण ने खाना खाने से पहले ही नहा कर रात के लिए एक हल्का सा काफ्तान पहन लिया था. एक बार दिल में ख्याल आया कि नॉक करके दरवाज़ा खुलवाये फिर अगले ही पल ये ख्याल दिल से निकाल फेंका.
कितना झुकेगी? कितना दबेगी? नाजायज़ बातों के लिए. मन कडा किया और मुड़ कर स्टडी में आ कर वहां रखे काउच पर लेट गयी. अक्टूबर का आखिरी हफ्ता है. उसके जीवन से बिलकुल अलग मौसम इन दिनों बेहद मेहरबान है.
पंखे के नीचे कुछ ही देर में नींद भी उस पर तारी होने लगी और थोड़ी ठण्ड भी लगने लगी. किरण ने उठ कर शेल्फ पर रखी एक शाल उठाई जो वो इस कमरे में इसलिए भी रखती थी कि कभी काम करते हुए ठण्ड लगे तो ओढ़ी जा सके. ख़ास कर प्रेगनेंसी के दिनों में जब वह अक्सर घर से काम किया करती थी.
शाल ओढ़ कर वह चंद सेकंड में ही नींद में डूब गयी थी. स्टडी का ये काउच खासा लम्बा चौड़ा है. लगभग एक क्वीन साइज़ के बेड जितना.
नींद में ही थी जब उसे अपने स्तनों पर किसी कीड़े के काटने का एहसास हुया. वह चीख कर नींद से उठ गयी. कुछ पल तो उसे समझ ही नहीं आया कि वह कहाँ है और किस हालत में है. उसका पूरा जिस्म किसी भारी सी चीज़ से दबा हुया था.
कुछ सेकंड में उसे याद आया वह स्टडी में काउच पर सो रही थी. फिर उसने देखा उसके काफ्तान के बटन खुले हुए थे और उसके नंगे स्तन काफ्तान से बाहर निकले पड़े थे. फिर उसने देखा कि आसिफ उसके ऊपर लेटा हुआ था.
वो कुछ समझ पाती. कोई प्रतिक्रिया कर पाती, कुछ बोल पाती उससे पहले ही आसिफ उस के एक स्तन को अपने मुंह में ले चुका था. उसे चूसते हुए उसने अपने दूसरे हाथ से उसके दूसरे स्तन को मसलना शुरू कर दिया था. किरण कसमसा कर रह गयी.
एक पल के लिए तो उसे समझ ही नहीं आया कि ये कौन है. वह फिर से चिल्लाने वाली थी कि ख्याल आया कि ये उसका पति है. फिर अगला ख्याल आया कि अगर पति है तो बलात्कार क्यों कर रहा है? क्यूँ नहीं उसके जाग जाने और होश में आने का इंतज़ार कर रहा?
ये बात वो उसे कहने ही वाली थी कि आसिफ ने अपना एक हाथ उसके कफ्तान के निचले सिरे तक पहुंचाया, काफ्तान ऊंचा किया, उसके पेट तक.
तब किरण ने नीचे की तरफ देखा तो मानो उसे सांप सूंघ गया. आसिफ पूरी तरह नग्न हो कर ही वहां आया था. उसके जिस्म पर कोई कपड़ा नहीं था. उसके पीनिस का उभार अपने चरम पर था. नीम अँधेरे में उस इंसान के जिस्म की इस उघडी हुयी सच्चाई को देख कर, जो कि उसका पति था, किरण को बिलकुल भी उत्तेजना महसूस नहीं हुयी.
बल्कि जिस तरह दबे पाँव और ढिठाई से वह उसकी नींद में दाखिल हुया था, किरण को उबकाई आ गयी. उसने खुद को किसी तरह रोका. मगर तब तक किरण का काफ्तान पूरी तरह ऊपर खिसक कर उसके पेट तक कर आ कर वहीं सिमट चुका था.
किरण के मन की हालत से बेखबर आसिफ ने अपना पीनिस किरण की योनी में डाल दिया था. अगले चंद पल किरण के लिए नरक का द्वार साबित हुए थे. आसिफ अपनी बेजा सेक्सुअल ताकत के नशे में डूबा खुद को आनंद में भिगोता जल्दी ही स्खलित हो गया.
शॉक में डूबी उसका चेहरा देखती किरण हैरान रह गयी. ऐसा कुरूप चेहरा उसने अपनी ज़िन्दगी में आज तक नहीं देखा था. वो जानती थी इस चेहरे को वह कभी भूल नहीं पायेगी. इस वक़्त वह भूल गयी थी कि ये इंसान वही इंसान था जो उसे एक वक़्त अच्छा इंसान लगता था.
स्खलित होने के फ़ौरन बाद आसिफ एक झटके के साथ उसे धकियाते हुए उठा था और उसी नग्न अवस्था में अपने बेडरूम की तरफ चला गया था. इस बात से पूरी तरह बेखबर और इस एहसास से रहित कि इस घर में एक नन्ही बची भी थी और एक आया भी.
किरण भी फ़ौरन उठी थी. बाथरूम में जा कर कमोड पर बैठी. खुद को अच्छी तरह धोया. देर तक हैण्ड शावर से पानी की धार से खुद को साफ़-सुथरा करने की कोशिश में लगी रही. उसकी योनी में पानी की धार चुभ रही थी. आँखों से आंसू बह रहे थे. ये मन के दर्द के थे या उस चुभन के, तय नहीं कर पायी.
टॉयलेट रोल से पेपर लिया. जननांगों को सुखाया. मगर गालों पर बहते आंसुओं को नहीं पोंछा. उठी ही थी और काफ्तान नीचे किया ही था कि जो उबकाई अब तक रोक कर रखी थी वह उमड़ कर बाहर निकल आयी.
वहीं बैठ गयी. कमोड में उल्टी करती हुयी पेट को पूरी तरह खाली करने की कवायद करती रही और सोचने समझने की अपनी शक्ति को बहाल करने में जुटी रही.
किरण को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसकी ज़िन्दगी में क्या हो रहा है और क्यूँ हो रहा है?
उसका बलात्कार हुया था. अपने ही घर में अपने ही पति के द्वारा. और वो जानती थी वो कुछ नहीं कर सकती. कोई उसकी शिकायत नहीं सुनेगा. सुन भी लेगा तो कोई कुछ नहीं कर सकता.
किरण के इस बलात्कारी के लिए किसी सज़ा का कोई प्रावधान किसी कानून में नहीं है. जबकि वह खुद बिना कोई गुनाह किये बलात्कार की सजा पा चुकी है और शायद ज़िन्दगी भर पायेगी.
आज की रात उसके मानस पटल से कभी मिटाई नहीं जा सकेगी. आसिफ का वह कुरूप चेहरा हर बार जब भी वह आसिफ को देखेगी उसकी आँखों में उतर आयेगा.
क्या कभी आसिफ के साथ वह अपनी खुशी से सहवास कर पायेगी?
एक बड़ा सा 'ना' उसकी आत्मा से निकला और उसे झिंझोड़ कर उसके जिस्म के आर-पार हो गया.