Ishq Faramosh - 7 in Hindi Love Stories by Pritpal Kaur books and stories PDF | इश्क फरामोश - 7

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इश्क फरामोश - 7

7. मामला सुलझा नहीं

सिंह ने अब तक मोर्चा संभाल लिया था. रौनक ने उसकी तरफ देखा. वह चाहता था कि अब वही बातचीत शुरू करे तो आगे का सिलसिला चल निकले.

सिंह ने सोनिया से कहा, "मैडम, आप की शिकायत मैंने पढ़ी है. आपने जो बातें इसमें लिखी हैं ये तो पति-पत्नी का आपस का मामला है जी. आप को आपस में ही बात कर लेनी चाहिए थी. मगर अब चूँकि आप ये बात पुलिस के माध्यम से करना चाहते हो तो जी हमने आप के पति को बुला लिया है. ये बैठे हैं आपके सामने. इनसे अपनी शिकायतें कहिये और फिर हम सब मिल कर उन्हें दूर करते हैं. हमारा काम यही है जी. हर समस्या को सुलझाना. "

सोनिया को शायद रौनक के लिए पुलिस के इस नरम रवैये की उम्मीद नहीं थी. उसने एक बार सिंह को देखा फिर रौनक को. दोनों ही उसके बोलने का इंतज़ार कर रहे थे.

"मैं तो बता चुकी हैं. ये हमारा बिलकुल ध्यान नहीं रखते. हमारे लिए कुछ नहीं करते."

शायद पैसा मांगने वाली बात लिखने के बाद उसे भी एहसास हो गया था कि ये आरोप उसने गलत लगा दिया है.. लेकिन उसे अब भी यही लग रहा था कि इस आरोप के बाद रौनक पर धारा 498A के तहत मुकद्दमा हो जाएगा, जो बेहद खतरनाक है. उसकी वजह से रौनक की ज़िंदगी और करियर सब बर्बाद हो सकता है. और इसी डर को दिखा कर वह रौनक से अपनी सारी बातें मनवा लेगी.

उसे पिछले कुछ समय से घर में भापा जी और माँ की मौजूदगी खलने लगी थी. ख़ास कर माँ की. बच्चे बड़े हो रहे थे ऐसे में सोनिया की सामाजिक ज़िंदगी विस्तार पाने लगी थी. रौनक तो दिन भर अपने काम में व्यस्त रहता था. सोनिया के कई दोस्त बन गए थे, जिन्हें वह अक्सर लंच पर घर बुलाती थी.

लेकिन माँ भी दिन भर घर में ही रहती थीं. उनकी दिन में टेलीविज़न देखने की आदत थी. वैसे उनके बेडरूम में भी टेलीविज़न था. लेकिन वे दिन में लंच के बाद ड्राइंग रूम में ही दोपहर भर टेलीविज़न देखती या कोई किताब पढ़ते हुयी अपना दिन बिताती थीं. ये उनका बरसों का अभ्यास था.

शाम को अक्सर भापा जी के आने के बाद भी वे दोनों वहीं ड्राइंग रूम में रहते. उस वक़्त भापा जी अपनी ड्रिंक ले रहे होते या फिर वे दोनों क्लब चले जाते जहाँ से अक्सर रात का खाना खा कर ही आते. वर्ना शाम ड्राइंग रूम में बिताते. जहाँ कई बार उनके कोई दोस्त भी आ जाते और रात का खाना वहीं डाइनिंग एरिया में होता. उसके बाद वे दोनों अपने बेडरूम में जाते.

सोनिया अब तक इस रूटीन से अप्रभावित थी. उसे घर में रौनक होने से अच्छा ही लगता था. बच्चे दादा-दादी की सानिंध्य में अच्छे पल रहे थे. लेकिन अब उसके पास वक़्त था और ड्राइंग रूम उसे पूरा का पूरा अपनी सुविधा से नहीं मिल रहा था.

हालाँकि गायत्री के सुझाव पर सोनिया की इस असुविधा को दूर करने के लिए पहले फ्लोर पर उसके लिए अलग से लिविंग रूम बनवा दिया गया था जहाँ सारी वही सुविधाएँ मौजूद थीं जो ग्राउंड फ्लोर के ड्राइंग रूम में थीं. लेकिन वहां बच्चे भी मौजूद रहते थे. इसलिए भी और अपना वर्चस्व रखने की चाह के चलते भी सोनिया इस इंतजाम से बिलकुल भी खुश नहीं थी.

उसने कई बार इशारों- इशारों में रौनक से कहा कि वे लोग पास में ही एक फ्लैट में शिफ्ट हो जाते हैं. लेकिन रौनक इसके लिए तैयार नहीं हुआ. इस पर आये दिन मियाँ-बीवी में खट-पट रहने लगी.

पिछले कई दिनों से अबोला चल ही रहा था. सोनिया ने अपनी कुछ सहेलियों से सलाह-मशविरा किया और रौनक पर ये गंभीर आरोप लगा कर पुलिस में अर्जी दाखिल कर दी. ताकि वह दबाव में आ कर सोनिया की घर बदलने की बात मान जाए.

"आप बच्चों से ही पूछ लीजिये. बच्चे तो झूठ नहीं बोलते न."

ये कह कर सोनिया ने अदिति को टहोका मारा. और अहिस्ता से कहा, "बोलो बेटे, जो कहना है न पुलिस अंकल से कह दो. "

"हाँ अंकल. मेरे पापा बहुत गंदे हैं. हमें चॉकलेट नहीं ला कर देते. पिक्चर भी नहीं दिखाई. सन्डे के बाद अभी तक नहीं दिखाई. " अदिति ने कुछ रटा-रटाया और कुछ अपनी तरफ से जोड़ा . कह कर वो अपने पापा की तरफ देख कर जोर से हंस भी पडी.

रौनक भी हंस पडा. वह भाग कर उसके पास आ गयी और फिर उसकी गोद में गाल से गाल सटा कर बैठ गयी.

सिंह भी हंस पडा, "ठीक कहती हैं मैडम आप. बच्चे कभी झूठ नहीं बोलते."

इस पर बजाय शर्मिंदा होने के सोनिया ने अम्बर को टहोका मारा, "बेटा, तूने क्या कहना था पुलिस अंकल से? घर पर कह रहे थे न. ये वही अंकल हैं. डरो मत इनको बता दो सारी बात."

अम्बर जो बैठा हुया था उठ कर सावधान की मुद्रा में खडा हो गया. कुछ देर उसने याद करने की भंगिमा में आँखें बंद की, फिर बोला," मेरा बाप बहुत खराब है. मुझे छुरा दिखाता है. कहता है मार डालूँगा. काट डालूँगा. "

ये कह कर उसने माँ की तरफ एक नज़र देखा. फिर चोर नज़रों से रौनक की तरफ देखा जो अदिति को गोद में बिठाए उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था. फिर भाग कर वह भी रौनक की गोद में जा दुबका.

सिंह इस पारिवारिक सीन को दिलचस्पी के साथ देख रहा था. खासा फ़िल्मी सा मामला हो गया था. दोनों बच्चे सच को सच की तरह बोल कर सच की गोद में जा कर हंस बने बैठे थे. रौनक की आँखें भीगी हुईं थीं. जिन्हें वह छिपाने की कोशिश कर रहा था. सोनिया आग बबूला थी. उसके नथुने गुस्से के मारे फूल रहे थे. गाल लाल हो गए थे. और वह गज़ब की खूबसूरत नज़र आ रही थी. सिंह समझ गया क्यों ऐसी तल्ख़-मिजाज़ की होने के बावजूद रौनक अपनी पत्नी से इस कदर मोहब्बत करता है.

उसने रौनक से मुखातिब हो कर कहा, "डॉक्टर साहिब. आप कुछ कहना चाहते हैं?"

"क्या कहूँगा सर? आप देख ही रहे हैं. मेरे कहने की क्या ज़रुरत है?"

"हाँ वो तो दिख रहा है."

अब वो सोनिया की तरफ मुखातिब हुआ. उसका गुस्सा छिपाए नहीं छिप रहा था.

"मैडम. बच्चों ने तो अपनी बात कह दी. हमने सुन भी ली. अब आप बताएं. ये पैसे वाला मामला क्या है? जहाँ तक मुझे पता लगा है. आपके पति का तो बड़ा शानदार क्लिनिक है सेक्टर पचास में. दस लाख रुपये से उनको क्या फरक पड़ने वाला है? बात कुछ समझ नहीं आयी जी मुझे तो "

सोनिया एक बार तो सकपका गई. लेकिन फिर बोली, "इनके पिता जी ने दबाव डाला होगा. मुझे क्या पता?"

"मैडम, इनके पिता जी को सब जानते हैं. भापा जी तो अनाथ लड़कियों की शादी में हर साल दस लाख का चंदा देते हैं. वे आपसे दस लाख क्यों मांगेंगे? समझ में नहीं आयी बात मैडम."

भापा जी के बारे में ये बात मशहूर थी. जो शायद सोनिया भूल गयी थे. कारण कि बहुत कहने के बावजूद वो कभी उस समारोह में नहीं गयी थी. उसे ये सब समय की बर्बादी लगती थी. पुलिस अधिकारी और नॉएडा के गणमान्य व्यक्ति सभी इस समारोह में शामिल होते थे. जो हर साल होता था.

कुछ देर सब चुप रहे. सोनिया अपना अगला पैंतरा सोच रही थी. रौनक की जान में जान आयी थी. बच्चे आपस में खुसर-फुसर कर रहे थी. अभी तक दोनों रौनक की ही गोद में थे.

आखिरकार सिंह ने ही बात शुरू की.

"देखिये मैडम जी. आप ने जो आरोप अपने पति पर लगाया है, वो बहुत संगीन है. और कानून भी औरत के यानी आप के हक में है. धारा 498A इन पर लग सकती है. और उसमें इनको जेल हो सकती है. ऐसे में आप को भी बहुत परेशानी होगी. घर में कमाने वाला कौन होगा? आप तो हाउसवाइफ हो. खर्चा कैसे चलेगा? दूसरे जी अब कुछ बदलाव भी हुए हैं ऐसे मामलों में. सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि हम इनको तब तक जेल नहीं भेज सकते जब तक आपस में बातचीत की उम्मीद पूरी तरह ख़त्म न हो जाए और हमें आरोप में दम न नज़र आये. सो तो हमें नज़र नहीं आ रहा. और फिर आप को ये आरोप साबित भी करना पडेगा. आपके पास कोई सबूत है जी? कोई चिठ्ठी, मेसेज या ईमेल? जिसमें इन्होनें आपके पिता से दस लाख मांगें हों? आप के पापा की गवाही भी चाहिए होगी जी. उनको भी बुलाना होगा. कहाँ रहते हैं जी वो?"

सोनिया चुप रही. कुछ देर के बाद सिंह ने फिर कहा, "मेरी तो यही सलाह है मैडम कि आप घर जाएँ और आपस में बातचीत कर के इस मामले को सुलझा लें. आप की शिकायत हमारे पास दर्ज है.. आप जब कहेंगी हम इस पर कार्यवाही कर लेंगें. लेकिन एक बार आपस में प्यार से बातचीत ज़रूर करें. कहीं घूमने जाएँ. दोनों जन. मेरी सलाह माने. आपके कितने प्यारे दो बच्चे हैं. आप दोनों बहुत अच्छा इंसान हैं. प्लीज."

इतना लंबा भाषण दे कर सिंह चुप हो गया. रौनक ने एक नज़र सोनिया को देखा. सोनिया कुछ देर बैठी रही. तभी सिंह का फोन बजा. उसने फ़ोन लिया और उस पर बात करने के लिए दूसरे कमरे में चला गया.

रौनक ने सोनिया से कहा, "यार हम घर पर ही बात कर लेते. यहाँ ऐसे सब के सामने क्या यार...."

सोनिया कुछ नहीं बोली. उठ खड़ी हुयी और बाहर निकल गयी. रौनक भी उठा लेकिन खड़ा रहा. दोनों बच्चे भी रौनक का हाथ पकड़ कर वहीं खड़े रहे.

सिंह अन्दर आया. सोनिया से बाहर ही अभिवादन कर के वह अन्दर आया था. सोनिया अपनी गाड़ी से आयी थी. वह चली गयी.

सिंह ने अंदर आ कर रौनक से कहा, "मुझे जगमोहन सिंह साहब का फ़ोन आ गया था. उन्होंने भी सारी बात बतायी. मैं खुद भी भापा जी को जानता हूँ. उनको कौन नहीं जानता भला? ये मैडम जी की शिकायत तो आपका बड़ा दुर्भाग्य है. मैडम का मिजाज़ संभाल कर रखिये. इनकी कुछ बातें माननी ही पड़ेंगी. आप जानते हैं सब. मैं क्या समझाऊँ? आप निश्चिन्त रहें हम सब आपके साथ है. ये मामला बढ़ने नहीं पायेगा. मैडम कहाँ से सबूत लायेंगीं? लेकिन घर में शांति भी तो होनी चाहिए न. मेरे खयाल से आप समझ ही गए हैं"

रौनक ने हाँ में सर हिला कर सिंह से हाथ मिलाया और दोनों बच्चों का हाथ पकड़े-पकड़े बाहर निकल आया.

बच्चे गाड़ी में बैठते ही चिल्ला उठे, "पापा. .. मैकडोनाल्ड. "

पापा भी जोश में थे और भूखे भी.

"हाँ मैकडोनाल्ड .... "

और उन तीनों की रेल-गाड़ी छुक-छुक करती तेज़ गति से मैकडोनाल्ड की तरफ चल पड़ी.