Kaash Laut Aaye Ab Vo Pal in Hindi Motivational Stories by निखिल ठाकुर books and stories PDF | काश लौट आये अब वो पल

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काश लौट आये अब वो पल

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काश लौट आये अब वो पल -1
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जब जब देखता हूं बचपन से संघर्ष मे लगे छोटे बच्चों को....
कितना दर्द और सिसकियां को समाये बैठा होता है जिन्दगी में कोई...
फिर भी अनजान बनकर हंसता रहता है वो सबके साथ...
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ये मेरे हृदय पंक्तियां उन सब पर सही है... जिन्होंने जीवन को एक रूप से कष्टों में, दर्दों मे जिया है...... कितनी वेदना सही होती है उन्होने जीवन में.....
अक्सर जब भी मैं किसी मासुम बच्चे को देखता हूं... तो जीवन एक बार फिर करवट ले लेता है.... अपने अतीत के बारे में... उस अतीत के काले अंधेरे साये के बारे में जिसे कभी जीवन में मैं याद करना ही नहीं चाहता... उस भयानक दर्दनाक यात्रा रूप जीवन के बारे जिससे मुझे बेहद नफरत है...
लोग अक्सर मुझसे यही कहते है कि निखिल तुम लिखते तो बहुत अच्छा है परंतु तुम्हारे शब्दों में दर्द होता है... क्या तुम्हें प्यार में धोखा मिला है... क्या तुम्हें किसी ने दर्द दिया है... मैं तो यहीं कहता हूं...
!!कुछ खुद का तारना है तो,कुछ औरों का आलम चुराता हूं
बस बन जाती है मेरी कलम की आवज... !!!
इस छोटी सी जिन्दगी ने बहुत कुछ मुझे सिखाया और दिखाया है.. अपनों और परायों मे अंतर बताया..... जब मैंने लोगों से मिलना जुलना, बाते करना शुरू किया तो...एक हद तक अपने जीवन के सभी जख्मों को मैं भुल चुका था.... और आनंद की लहर जीवन में आती हुई नजर आई... और इस लहर के अनुसार मैने जीवन को जीना शुरू कर दिया....
ना जाने फिर भी स्वयं के अतीत से क्यों मैं बाहर नहीं निकल पाया..... जितना दूर जाने की कोशिश करता हूं...किसी ना किसी रूप में अतीत . . ....सामने आ जाता है... बार बार मुझे एक दर्द का अहसास दे जाता है.... |
जीवन के इस मोड पे मैंने दोस्तों को बदलते हुये देखा है... और अनजानों को मुझसे मिलते और प्रेम करते देखा है... जिस पे अत्याधिक विश्वास होता है.... वह गिरगिट की तरह अपना रंग दिखा ही देता है.... एक पंडित से मिला था उसने कहा था... कि तुम्हारे मित्र तो अत्याधिक होंगे.... परंतु वे सब केवल तुम्हें बर्बाद करने के लिए होंगे.... तुम तो उनके लिए सब कुछ करोगे.....पर वे उसका फायदा लेकर अपना उल्लू सीधा करेंगे... और आखिर में वो ही सब हुआ....
परंतु मेरी एक खराब आदत रही है.. आप इसे मेरी राशि का गुण कहे... या राशि का प्रभाव कहें... क्योंकि मेष राशि का जातक हूं... लोग कहते है कि मेष राशि के जातक ऐसे ही होते है... वह गुण यही है कि.... जो व्यक्ति स्वयं की नजरों से गिर गया.. जिससे नफरत हो गई.... वह व्यक्ति भले दुनिया या परमात्मा की नजर में सही बनकर दिखाये ...पर मेरी नजरों में वह व्यक्ति वो ही का वो ही रहता है... जो पहले था... और उस व्यक्ति से सारे संबंध तोड देता हूं.... उससे किसी प्रकार का कोई रिशता भी नहीं रखता हूं... यह गुण चाहे अच्छा हो या बुरा... हो... पर यह परमात्मा का दिया एक महत्वपूर्ण गुण है...
किसी व्यक्ति ने कहा था...... """जीवन देखने मे छोटा लगता है... पर जीने बहुत लंबा लगता है... """
यह पंक्ति जीवन के इस तथ्य में परिपूर्ण बैठती है... और सही भी बैठती है...
जिन्दगी जितनी छोटी दिखाई देती है... पर जीने में उससे भी ज्यादा मुश्किल सी प्रतीत होती है..
एक बार... अभी पीछे दो महीने पहले की बात है कि... हम एक गरीब परिवार वालों से मिले.... उस परिवार में एक उनका पिता और एक उस लडके का बडा भाई.. और एक वह स्वयं था... उसकी उम्र होगी कोई 15 से 16 साल के आस पास... माँ गुजर गई है..
पिता शराबी है... दारू पीता है रोज.... और भाई.... कमाने गया है... और उसकी कमाई का सारा पैसा उसका मामा खा लेता है.... हडप लेता है.. और वह लडका खुद भी स्कुल छोडकर कमाने निकला है... और उसके सारे धन को उसका पिता शराब में खर्च कर लेता... वह लडका बहुत परेशान और दुःखी था......
कि करें तो क्या करें... बहुत परेशान... मैने जब उस लडके की जीवन कथा को सुना तो... अत्यंत दुःखी हो गया.... हृदय में वेदना की सुई चुभ गई हो... क्योंकि मुझे स्वयं के बचपन की याद आ गई... जिसके सिर पर से पिता का साया ही ना रहा हो... और घर पे एक बुढी माँ.... उसके सिर पर तीन लडकियों और एक लडके का पालन पोषण की जिम्मेदारी, और वह औरत बुढी और अनपढ... बहुत कठिन होता है इतने बच्चों तो पालन पोषण करना और शादी के लिए तीन जवान लडकी हो.... कितना मुश्किल है जीवन का निर्वाह करना ....उस स्त्री ने कभी हिम्मत हारी ही नहीं.. कहीं किसी के घर पर मजदूरदारी नहीं की... अपनी जमीन में ही दिन रात मेहनत की... और बच्चों का पालन पोषण किया... जब माँ के इस संघर्षमय जीवन को मैं देखता हूं तो स्वयं में मुझे शर्म सी आ जाती है कि... कितनी मेहनत करती है.. हमसे एक कार्य में मेहनत सही रूप से नहीं हो पाती है...
और उस लडके की यही स्थिति थी... कि माँ नहीं रही... पिता शराबी है... और जीवन का निर्वाह कितनी मशक्कत के बाद करता है... होटल मे काम करता तरह- तरह के ताने सुनता.... मैने अधिकतर हर लोगों की एक बात को गौर से अनुभव किया है.... वह है निर्बल पे अपना स्वामित्व जिताना...अपना प्रभाव जमाना, गुस्सा निकालना...
क्योंकि उन्हें पता है कि यह सामने पलट कर प्रहार नहीं कर सकता है... तो उसे और भी अधिक प्रताडित करना शुरू कर देते है|
मेरे जीवन में अनेक लोग आये जो हर प्रकार किसी ना किसी रूप से जीवन से दुःखी है... किसी ना किसी संघर्षमय रूप से जीवन को जी रहे है...
चाहे शिवम शर्मा हो, चाहे अन्य शिष्य हो, चाहे अन्य साधक जो समस्या से ग्रस्त हो.. उन सब के दर्द को सुनकर मैं स्वयं के दर्द को छुपा लेता हूं... क्योंकि यदि मैं कमजोर पड गया तो... इन्हें उम्मीद, हौंसला और साहस कौन देगा... कौन इन्हे आशा की किरण दिखायेगा....
शिवम के जीवन में उनके परिवार उतना नहीं जानते है जितना कि मैं उसे जानता हूं... वह एक उदार हृदय से युक्त व्यक्ति है.... करूणा से युक्त हृदय है उसका......परंतु घर की समस्या बहुत ही विकट थी उसकी.... मेरे साथ वह दो वर्ष साथ रहा... एक ही थाली में हमने भोजन किया... कई तांत्रिक क्रियायाओं को साथ मिलकर सम्पन्न किया... अपने सान्निध्य में करवाया भी..... और आज वह निराशा से भरे जीवन मे भी आशा की एक उम्मीद में जीवन व्यतीत करता है
अधिकतर जहां तक अनुभव किया मैने... व्यक्ति 100 %में से 80% व्यक्ति समस्याओं और संघर्षमय जीवन में जुझंते ही रहते है... पूरे जीवन भर दर्द और दुःखमय जीवन को व्यतीत करते है..
जब हमारा बचपन होता है कितने अंजान होते थे हम.. जी किया हंसे... जी किया तो रोये... एक अलग ही मस्ती... ना किसी की परवाह तो... ना किसी की कोई चिंता... केवल आनंद और मुस्कुराता हुआ बचपन... माँ बाप के आँचलों में......
एक अलग ही मस्ती.... पर जब व्यक्ति होश संभालता है तो जीवन जीने की कला मानों कहीं खो जाती है.... और व्यक्ति मृत्यु तक उस कला को खोजता रहता है पर मिल ही नहीं पाती वह...
उन बच्चों की जिन्दगी के बारे में सोच कर मेरे हृदय में वेदना के कांटे चुभ जाते है... मानों हृदय को कांटों की सेज पर रखा हो...
उनकी मुस्कुराहट जो छीन गयी है... चार दीवारी के जीवन में.... जिनके नसीब में एक वक्त की रोटी बडी मुश्किल से नसीब हो पाती है... दिन प्रतिदिन मैं ऐसे अनेक बच्चों से मिलने जाता हूं... उनके साथ समय व्यतीत करता हूं... मेरे आ जाने से भले ही उन सबके होंठों पे हंसी आ जाती है...और शायद अपनी वेदना को वे छुपा लेते है... पर मैं तो एक पारखी हृदय हूं.....जो स्वयं वेदना से गुजरा है.. ...उनके साथ व्यतीत किया समय की वे मुस्कुराहट मेरे जीवन की स्वर्णिम मोती वर्षा से कम नहीं है... उनके साथ खेलना, हंसना, गाना, सुमिरन करना.... कितना जीवन को मधुरमय बना देती है....
ना जाने जिन्दगी के भरे पन्ने कभी पुनः पलटेंगे और फिर पुनः उनके साथ रहने का मौका मिलेगा... फिर व्यतीत किये हुये स्वर्णिम पल लौट आयेंगे... कि नहीं... जो अब खो गये है... काली घटा बदरिया की चादर में... और जो लौटकर नहीं आने वाले है....
कितना कुछ बदल जाता है जीवन में... यह एक वर्ष..... पूर्णरूप से साधना के लिए समर्पित कर दिया... घर परिवार की कोई फिक्र ही नहीं... किसी से मिले ही नहीं.. बस साधना करने के लिए कभी पंजाब, तो कभी हिमाचल के सदूर इलाकों में तो कभी हरिद्वार ...और इसी तरह से वक्त बीतने का मालुम नहीं चला की... एक साल गुजर गया हो..
जितनी सिद्धियां प्राप्त की..... पर उससे ज्यादा स्वर्णिम पलों को खोया है मैंने..... उन बच्चों की किलकिरियां, उनकी हंसी, उनके रोने और मधुर वाणी को... खोया है............ व्यतीत किये हुये पलों को खोया... है...
काश लौट आये अब वो पल......
........काश लौट आये अब वो पल....
मन और हृदय यही शब्द गुंजते रहते है मेरे...कि..काश लौट आये अब वो पल।
काश ऐसा होता है कि एक बार पुन: बचपन के पलों को जीने का मौका मिल पाता ..तो जिन्दगी के हर दु:ख,परेशानियों,चिंताओं से आजादी तो मिल जाती।
किसी ने बहुत अच्छी बात कही थी कि """ अपने गमों को भुलाना चाहते हो तो कभी उन लोगों को देख लेना जिन्हें एक वक्त का खाना भी बड़ी मुश्किल से नसीब होता है"""।
जब भी मैं उन लोगों को देखता हूं तो उनके सामने मुझे अपे सभी दु:ख व गम कम ही लगते हैं।
क्योंकि हमें तीन वक्त का खाना तो शांति से नसीब हो रहा है।पर उन्हें तो एक वक्त खाना भी बड़ी मुश्किल से नसीब होता है।
जीवन की धारा तो सदा यूं ही बहती रहेगी ..और जीवन के पल तो वक्त साथ गतिमान है...जीवन का एक पल हमें मृत्यु की ओर ले जा रहा है और हमें लग रहा है कि हम बड़े हो रहे है। परंतु हम कभी ये सोचते नहीं है कि हमारी जिन्दगी कितने साल गुजर गये है और हमारा पल-पल मौत की तरफ बढ़ रहा है।
और हमने अभी तक सही से होश संभाले भी नहीं है..बस उलझनों में उलझे रहे ...कभी खुद के लिए स्कून का वक्त ही नहीं निकला ...बस भागदौड़ से भरी जिन्दगी में उलझ कर ही रह गये।
कई बार सोचता हूं कि इस भागदौड़ भरी जिन्दगी से तो बचपन ही बेहतर था ...जिसमें हमें ना सुख -दु:ख की चिंता होती थी और ना ही किसी प्रकार उलझनें।बस खेलकूद में ही खोये रहते थे।
कितने मधुर पल थे ना वो ..पर जबसे हम बडे हो गये है ...जबसे उम्र का पड़ाव युवास्था में पहुंचा तो तबसे ना जाने जिन्दगी कहां खो सी गई ...ना जाने खुद के वजूद को कहां खो दिया है..ना जाने वो खुशी भरे पल कहां खो दिये हो..
अब तो दिल भी यही चाहत करता है ..जब थक हार सा जाता हूं ...कि ..काश लौट आये अब वो पल
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