Its matter of those days - 37 in Hindi Fiction Stories by Misha books and stories PDF | ये उन दिनों की बात है - 37

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ये उन दिनों की बात है - 37

दरअसल एक नए एहसास से ही हम दोनों रोमांचित हो उठे थे | एक अलग-सा एहसास मन को मदहोश कर रहा था | दिल में कुछ-कुछ होने लगा था जो ऐसा था जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल था |
चाहता तो वो भी था और मैं भी | मैं अपने इन्ही ख्यालों में खोयी सी थी की उसने अपना हाथ मेरे हाथों में ले लिया |
दिव्या!! क्या तुम भी वोही सोच रही हो जो मैं सोच रहा हूँ!!
हे भगवान!! इसे मेरे मन की बात कैसे पता चली?
पढ़ सकता हूँ तुम्हे, महसूस कर सकता हूँ तुम्हे, प्यार जो इतना करता हूँ तुमसे |
फिर भी मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया तुमने............
घर चले!! बहुत देर हो गयी है |
"अच्छा हुज़ूर"!! "आपका हुकुम सर आँखों पर"!!
सागर पार्किंग से गाड़ी निकालने चला गया |
सागर कैसे कहूँ तुमसे.......मैं भी इस एहसास से रूबरू होना चाहती हूँ, पर हाय! ये शर्म! ये हया! मुझे हर कदम रोकती है |
इधर गाड़ी निकलते वक़्त सागर भी कुछ ऐसा ही सोच रहा था | दिव्या, तुम्हारे होंठों की नर्म सुर्खियों को अपने हाथ से छूना चाहता हूँ | उसपर अपने होंठ रखना चाहता हूँ | उस नमी को, उस कशिश को महसूस करना चाहता हूँ, पहली बार |
लेकिन भावनाओं पर नियंत्रण करने की मजबूरी से सागर और दिव्या दोनों ही अभी गुजर रहे थे |दोनों एक दुसरे से कुछ भी कह पाने में असमर्थ थे |
बैठो |
हाँ |
बाइक पर बैठने से पहले मैंने दुपट्टे से अपना चेहरा बाँधा फिर मोटरसाइकिल पर बैठी | मेरी नजर सागर की नजर से मिली जो मोटरसाइकिल के आगे वाले शीशे से मुझे ही देख रहा था | नजर मिलते ही उसके होंठों पर मुस्कान बिखर गयी | जवाब में मेरे होंठों पर भी हल्की सी मुस्कान आ गयी |
चलें!!
मैंने सिर हिला दिया|
शाम धीरे-धीरे ढलने लगी थी और हवाओं में ठंडक सी घुल गयी थी | हवा के झोंखे चेहरे को सहला रहे थे जैसे ही अचानक सागर ने गाड़ी में ब्रेक लगाए, मैंने मारे डर के उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया |
डोंट वरी, दिव्या!! वो गाय आ गयी थी बीच में इसलिए ब्रेक लगा दिये मैंने |
कुछ खाओगी....
नहीं...
ठीक है |
थोड़ी ही देर में हम हवामहल पहुँच चुके थे |
मैं मोटरसाइकिल से उतरी | कामिनी अभी आई नहीं थी | कामिनी का इंतज़ार करते हुए मैं चबूतरे के पास बनी हुई एक ड्योढ़ी पर बैठ गयी थी | सागर भी मुझसे थोड़ी सी ही दूर पर एक दूसरी ड्योढ़ी पर बैठ गया था |
तभी सागर के पास एक गरीब-सी बच्ची आई, वो कुछ पैसे मांगने उसके पास आई थी |
भैया कुछ पैसे दे दो ना!! दो दिन से कुछ नहीं खाया |
सागर से रहा नहीं गया | उसने तुरंत उस बच्ची को अपनी गोदी में बिठा लाया | उस बच्ची के कपड़े मैले कुचैले थे |
क्या खाओगे....बेटा आप ?
खाना!! बच्ची ने बहुत ही मासूमियत भरे शब्दों में कहा |
सागर बच्ची को गोद में उठाये हुए ही एक दूकान में घुसा, जहाँ खाने-पीने का सामान था | मैं भी उसके पीछे-पीछे वहां तक चली आई | खाना टेबल पर आया, बच्ची खाने को देखकर बहुत ही खुश हुई उसकी आँखें चमक उठी | शायद पहली बार उसने ऐसा खाना देखा था | जैसे ही वो खाने को हाथ लगाने को हुई, उसने अपने हाथ तुरंत पीछे कर दिए और मासूमियत भरी आँखों से सागर को देखने लगी, मानों कह रही हो क्या मैं ये खाना खा लूँ!!
खा लो बेटा!! फिर से उस बच्ची के होंठों पर बड़ी सी मुस्कान आई गई और उसने खाना शुरू किया |
दो दिन की भूखी बच्ची को खाते हुए देखकर सागर की आँखें भर आई और मेरी भी |
मुझे अपने सागर पे बड़ा नाज़ सा हुआ और उसे चूम लेने का मन किया |
कहाँ रहती हो बेटा तुम?
कच्ची बस्ती मे!!
तुम्हारे मम्मी पापा क्या करते हैं?
पापा मर गए | मम्मी बीमार है, बड़े ही भोलेपन से उस बच्ची ने जवाब दिया |
सागर की आँखों से आंसू बह निकले पर वो बच्ची बिलकुल खुश थी, वैसे भी भूख से ज्यादा बड़ी और कोई समस्या है भी नहीं |
उसने तुरंत अपने आंसू पहुँचे | शायद उसने अपने मन में कुछ ठान लिया था की वो इस बच्ची के लिए कुछ ना कुछ करके ही रहेगा |

दिव्या तुम घर जाओ.....मैं जल्दी ही आ जाऊँगा |
कामिनी आ चुकी थी |
कहाँ थी तू ?
लेकिन फिर मेरी आँखों में आंसू देखकर वो और कुछ ना बोली |
हम दोनों घर पहुंचे |
कामिनी सारी बात कल ही बताऊंगी तुझे |