Regum Wala - 19 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | रीगम बाला - 19

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रीगम बाला - 19

(19)

“मेरी बहन इसकी कैद में है ..मगर इसके अतिरिक्त कोई नहीं जानता की वह कहाँ कैद है,,” रीमा ने रुक रुक कर कहा “मैं चाहती हूं कि तुम इससे मालुम करो ..यह लो कटार ..।”

उसने आगे बढ़ कर एक चमचमाती हुई कटार उसके हाथों में थमा दी और बोली।

“इसके शरीर में चुभो चुभो कर पूछो कि नातुना कहाँ है ..यह मुंह खोलने पर विवश हो जाएगा।”

हमीद ने बौखला कर विनोद की ओर देखा, मगर अब भी उसके चेहरे पर किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं था,,उसी प्रकार की जड़ता छाई थी ..ऐसा लग रहा था जैसे सोचने और समझने की शक्ति से वंचित हो ।

“यह नहीं हो सकता ..” अचानक वह विमल की ओर झपटा, मगर उसके पीछे खड़े हुए कबालियों ने उसे पकड़ लिया और फिर वह चीखता ही चला गया।

“कासिम ...बेशर्म ..तुन खड़े देख रहे हो ...डूब मरो चुल्लू भर पानी में ...अगर ऐसा हुआ तो ..ऐसा हुआ तो ..”

उसकी आवाज कंठ में डूब कर रह गई ।

“इसे भी कुर्सी से जकड़ दो ...” रीमा बोली।

“यह नाही हो सकता ..” अचानक कासिम गुर्रा कर आगे बाधा, मगर यह नहीं देख सका कि लेकरास की टांग भी चली है ..वह लडखडा कर मुंह के बल फर्श पर आ रहा ।

लेकरास ने बड़ी फुर्ती से झुक कर कोई वस्तु उसके मुंह पर मल दी और वह “अरे,अरे” कहाता हुआ शिथिल पड़ गया।

दूसरी ओर हमीद उन दोनों कबालियों से गुथा हुआ था । अन्त में वह हमीद को बेबस करके कुर्सी से जकड़ने लगे । मगर इसमें भी उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पडा ।

रीमा और लेकरास दोनों ही बड़ी दिलचश्पी से यह द्रश्य देखते रहे थे।

जब हमीद भी कुर्सी से जकड़ लिया गया तो वह विनोद को ललकारने लगा।

“कहाँ गई वह शक्ति जो पत्थर को टुकडे टुकडे कर दिया करती थी ..कहाँ गया स्वाभिमान ..जिसने लोहे की मोटी सलाखों को भी कभी कभी पतले तारों के समान मोड़ दिया था होश में आइए ... आपको क्या हो गया है ..वह जो अकेला सैंकड़ों पर भारी पड़ता रहा वह इस प्रकार बेबस हो जाये ...लानत है ।”

मगर सब बेकार ..वह चीख कर निढाल हो गया मगर विनोद की दशा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।

रीमा और लेकरास इस मध्य अट्टहास लगाते रहे।

“विमल !” रीमा बोली “चलो अपना काम आरंभ करो ।”

हमीद ने विवशता से कासिम की ओर देखा जो अब भी फर्श पर बेहोश पडा हुआ था।

विमल विनोद की ओर बढ़ा और उसकी भुजा में कटार की नोंक चुभो कर पूछा।

“बताओ नातुना कहाँ है ?”

विनोद की काक से विचित्र आवाज निकाली और हमीद ने आंखें बंद कर लीं ।

फिर विमल पर जैसे दौरा सा पड़ गया था। वह बड़ी तेजी से विनोद के शरीर के विभिन्न अंगों में कटार की नोंक घंसा घंसा कर अपना प्रश्न दुहराए जा रहा था।

“ठहरो ..ठहरो ..” लेकरास ने हाथ उठा कर कहा मागे विमल का हाथ नहीं रुका ।

“इसे रोकिये मादाम कहीं विनोद मर ही न जाये” लेकरास ने रीमा से कहा।

फिर रीमा के कहने पर विमल ने हाथ रोक लिया और रीमा की ओर मुड़ा।

“इसे जरा दम लेने दो ..” रीमा ने उससे कहा “कुछ देर बाद जब यह जख्म इसको तडपाना आरंभ करेंगे तो ख़ुद ही मुंह खोलेगा।”

विनोद के होंठ मींचे हुये थे और नाक से कराहें निकल रहीं थीं। हमीद ने आंखें नहीं खोलीं।

फिर लेकरास ने उस आदमी को संकेत किया जो विमल को यहाँ लाया था। वह विमल को वापस ले जाने के लिये आगे बढ़ा और रीमा ने विमल से कहा।

“अब तुम मुझसे प्रति दिन्मिल सकोगे, जा कर आराम करो ।”

विमल किसी आज्ञाकारी दास के से भाव में चलता हुआ कमरे से निकल गया।

अब कमरे में दो सशस्त्र कबायली ही रह गये थे।

“बड़े कायर हो कैप्टन हमीद ..आंखें खोलो” रीमा ने चुटकी ली ।

“मैं कायर नहीं हूं ..” हमीद चीख पडा “इस आदमी की बेबसी मुझसे नहीं देखी जाती ।मैं द्दावे के साथ जह सकता हूं कि इस पर तुम्हारी मेडिकल सायन्स ने कोई जुल्म धाया है वर्ना अब तक उस कुर्सी की लकडियाँ टुकडे टुकडे हो कर इस कमरे में बिखर गई होती, किससे तुमने उसे जकड़ रखा है।”

“तुम ठीक कह रहे हो कैप्टन ..” लेकरास हँसकर बोला” इसकी समस्त शक्तियां जवाब दे चुकीं हैं और अब हम इसे बोलने पर विवश कर देंगे,तुम शौक से अपनी आंखें बंद रखो ।”

हमीद कुछ नहीं बोला। वातावरण पर विचित्र सा सन्नाटा छा गया था। हमीद को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे दिल खोपसी में धड़क रहा हो ।

“अब मेरी कहानी सुनिये मदाम ..” उसने लेकरास की आवा सुनी।

“हां ..मैं सोच रही थी कि यह कहानी कैप्टन हमीद ही के सामने सुनी जाये ताकि उस पर उसके चीफ की और दूसरी महानता भी प्रकट हो सके ।”

“आपने बड़ी सुंदर बात कही है मादाम ..” लेकरास हँस कर बोला “इसे इसका अवसर अवश्य मिलना चाहिये इस बेचारे ने भी बड़े दुख उठाये हैं. तो मदाम ! जब यह साबित हो गया कि लेकरास औरत नहीं है तो फिर मुझे आपकी याद आई और मुझे विश्वास हो गया कि तीसरी नागिन अप ही हैं ।”

“तुमने यह क्या बकवास आरंभ कर दी ..” रीमा ने तेज आवाज़ में कहा।

“मैंने बात का ढंग बदल डिया है मादाम ..अभी असली बात की ओर आता हूं ..जरा ठहरिये ।”

हमीद ने बौखला कर आंखें खोल दी,क्योंकि यह तो लेकरास की आवाज नहीं थी ..उसने रीमा को भी चोंकते हुये देखा! लेकरास हँस रहा था ।

और प्रह्तम इसके कि रीमा अपने स्थान से हिलती लेकरास ने उसके बाल मुट्ठी में पकडे और हाथ उंचा कर दिया । वह उसी प्रकार लटकी हुई हाथ पैर मारती रही ।

फिर उसने अपने हाथ को घुमाना आरंभ कर दिया और रीमा गला फाड़ कर चीखने लगी ।

दोनों कबायली हँस रहे थे।

“देखो ...देखो” हमीद न रुकने वाले अटटहासों के बीच कहता रहा “देखो ..यह मेरा चीफ ..देख लो इसकी महानता ..हा हां हां और यह ज़ख्मी बुद्धू ..निश्चय ही लेकरास होगा ।हां हां हां यह है मेरा चीफ कर्नल विनोद ..हा हां हां ।”

फिर रीमा के बाल छोड़ दिये गये और वह चकरा कर गिरी ।

फिर वह दोनों सशस्त्र कबायली आगे बढ़े और उन्हों ने रीमा के हाथ उसकी पीठ पर बांध दिये ।

“कैप्टन हमीद !” रीमा बोली “तुम वह पहले आदमी हो जिसे मैंने चाहा है ।”

“चाहती रहो ..मैं मना नहीं करता ..” हमीद ने कहा।

अब कबायली उसे कुर्सी से खेल रहे थे ।

मुक्ति पाने के बाद हमीद कासिम के निकट पहुंचा ।

“इसे अभी लेटा रहने दो हमीद” विनोद ने कहा और रीमा की ओर देख कर बोला “अभी तुमने जीरो लैंड की मेडिकल सायन्स के बारे में कुछ कहा था।”

रीमा कुछ नहीं बोली –विनोद ने फिर कहा।

“अगर मेरे अतिरिक्त और कोई भी कासिम को होश में ला सके तो मैं वचन देता हूं कि लेकरस की जबान खोल दूंगा ---”

“तो क्या वह सचमुच लेकरास है ?” हमीद ने विनोद के हमशक्ल की ओर हाथ उठा कर पूछा।

“हां ..यह वही औरत है ...और यह सच है कि इस पर हाथ डालने के बाद ही अनुमान हो सका था कि इस टीम की अध्यक्षता कौन कर रहा है।”

“कैप्टन हमीद ...मैंने सचमुच तुम्हें चाहा है ..व रीमा फिर बोली। उसके चेहरे पर भय के तनिक भी लक्षण नहीं थे। चेहरा खिला हुआ था। यह मालुम ही नहीं हो रहा था कि थोड़ी देर पहले वह किसी कष्ट में रही थी ...यातना भुगत रही थी ।

“मैं अच्छी तरह जानती हूं कि अब आसपास मेरा कोई आदमी आज़ाद न होगा। मैं लेकरास को इतना मूर्ख नहीं समझती थी।”

“लेकिन मुझे तुम अवश्य मूर्ख समझती रही थी .” विनोद हँस कर बोला “मगर तुम तो नातुना का शतम भाग भी साबित न हो सकीं ।”

“लेकिन यह सच है कि अब इस संस्था से दिल भर गया है ..” रीमा ने कहा, फिर मुस्कुरा कर बोली “तुम्हारी कैद में रहना वहीँ अच्छा रहेगा ।”

“और कुछ ?” हमीद बोल उठा।

“यह भी चाहूंगी कि तुम दोनों मेरी इस बात पर भी विश्वास कर लो कि उन्हों ने मेरे पंगुल बाप को मार डाला था।”

“मुझे विश्वास है ।” हमीद ने कहा।

“और कुछ ?” विनोद ने पूछा ।

“मैं ज़िंदा रहना चाहती हूं ..” रीमा ने कहा।

“नातुना भी ज़िंदा है ...” विनोद बोला ।

“बस ...अब और कुछ न कहूंगी ।”

“आखिर वह कब तक इसी प्रकार पडा रहेगा ?” हमीद ने कासिम की ओर संकेत करके पूछा ।

“घबड़ाने की कोई बात नहीं है ..जब चाहूँगा ..इसे होश आ जायेगा...” विनोद ने कहा।

“लेकिन ...मैं अभी चाहता हूं ...” हमीद ने कहा “दिल खोल कर हंसना चाहता हूं ..और यह उसी समय हो सकता है जब कासिम साथ में हो ..”

“अच्छी बात है ...इसे यहाँ से ले जाओ ...” विनोद ने रीमा की ओर संकेत कर के कहा।

“क्यों ?” हमीद ने पूछा।

“मैं नहीं चाहता की यह तीसरी नागिन देख सके कि मैं किस विधि से इसे होश में लाता हूं..।”

“और यह ?” हमीद ने लेकरास कि ओर संकेत किया।

“यह ?” विनोद हँसा “यह बुद्धू है ..इसकी चिंता न करो।”

“चलिए मादाम ?” हमीद ने परिहास जनक स्वर में रीमा से कहा।

“मेरी हँसी उड़ा सकते हो कैप्टन मगर मेरे प्यार की नहीं, चलो ...” रीमा ने कहा और दरवाजे की ओर बढ़ गई ।

-----------

उसी दिन लगभग तीन बजे हमीद ने विनोद को विचित्र दशा में देखा।

विनोद लेकरस ही के मेकअप में था और एक उद्दंड घोड़े पर सवार था।घोड़ा इस प्रकार उछल रहा था और बार बार अलफ हो रहा था जैसे अपनी पीठ से गिरा कर रौंद डालना चाहता हो !

थोड़ी देर बाद वह घोड़े से नीचे उतर गया और अपने आदमियों से कहा।

“इसकी जिन उतार डालो”

आदमियों ने उस घोड़े की जिन उतार ली । पास ही में दो घोड़े और थे, मगर उनकी जिने नहीं उतारी गईं ।

“क्या प्रोग्राम है ?” हमीद ने पूछा।

“कुछ देर हम घोड़ों की सवारी करेंगे ...” विनोद ने कहा।

“हमसे क्या मतलब ?” हमीद ने पूछा।

“मैं ..तुम और बिमल ।”

“यह घोड़ा किस के लिये है ?” हमीद ने उस घोड़े की ओर संकेत किया जिस पर से जिन उतारी गई थी।

“|बिमल के लिये ?”

“बिमल के लिये ?” हमीद ने आश्चर्य से दुहराया ।

“हां ..”

“यह तो बहुत सरकश मालुम होता है .. क्या विमल की हड्डियां तुडवाना चाहते हैं आप !”

“नहीं हमीद ...यह तुम्हारा भ्रम है ..” विनोद ने मुस्कुरा कर कहा। “बिमल इस पर बैठ कर वह वह करतब दिखाएगा कि तुम दांग रह जाओगे।”

“मगर आपके इस पर से जिन क्यों उतरवा दी ?”

“अभी लगाम भी निकलवा दूंगा ...” विनोद मुस्कुराया ।

“अब मैं पागल हो जाउंगा ।”

“क्यों ?”

“घोड़ा सरकश ..लगाम भी नहीं और जिन भी नहीं.. सवारी करेगा बिमल जैसा पागल आदमी ..आखिर आप करना चाहते है ...”

“बस देखते रहो !”

“और हम लोग ?” हमीद ने पूछा ।

“हम लोग भी अपने अपने घोड़ों पर उसके साथ ही रहेंगे ।”

“मेरा घोड़ा कौन सा है ..जरा मैं उसे पहले ही से देख लूं ।”

“चिंता न करो ..तुम्हारा घोड़ा तुम्हें किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाएगा।”

“आखिर कुछ तो बताइये ?” हमीद झल्ला गया।

“मेरी वास्तविक समस्या बिमल था।”

“क्या मतलब !”

“फिर बताऊंगा ..” विनोद ने कहा, फिर अपने आदमियों से कहा “ विमल को लाओ ।”

तीन आदमी वहां से चले गये।

थोड़ी देर बाद वह विमल को पकडे हुए वापस आये।

“इस घोड़े पर बैठा दो ...”