(16)
“मैं इसे जल्द से जल्द होश में लाना चाहता हूँ ।” हमीद ने कासिम की ओर संकेत कर के कहा ।
“बेहोशी का कारण मालूम हुये बिना मैं क्या कर सकूँगी ।”
“किसी ने मेरे चेहरे पर कोई तरल पदार्थ फेंका था ।” हमीद ने कहा और मैं बेहोश हो गया ।
“मैं इसकी बेहोशी का कारण पूछ रही थी ?”
“इसके साथ भी वही किया गया होगा ।”
रीमा के चेहरे पर चिंता के लक्षण और गहरे हो गये ।
“क्या सोचने लगी ?” हमीद ने टोका ।
“अब मेरी भी बुध्धि भी काम नहीं कर रही है – मैं नहीं समझ रहीं हूँ कि वह क्या करना चाहते है ।”
अचानक किसी ने बाहर से काल वेल का बटन दबाया ।
हमीद ने आगे बढ़ना चाहा ।
“ठहरो ।” रीमा ने उसे रोका “मैं देखती हूँ ।”
फिर जब उसने दरवाज़ा खोला तो चौंक पड़ी, सामने वही ड्राइवर खड़ा था जो उन्हें यहाँ लाया था ! वह रीमा के संकेत पर अंदर आ गया, हमीद ने उसे घूर कर देखा, फिर पूछा ।
“क्या बात है ?”
“मेम साहब किदर ए ?” उसने पूछा ।
“कौन मेम साहब ?”
“जो तुम को इदर लाया ।”
“यहाँ तो नहीं है ।”
“फिर किदर ए ?”
“शायद पैदल चली गई....क्या तुम उसे नहीं ले गये थे ?”
“अम दूसरा काम को गया था !”
“तुम किस के ड्राइवर हो ?”
“मेम साहब का ।”
“हो सकता है कि वह किसी दूसरी गाड़ी से चली गई हो ।”
ड्राइवर कुछ नहीं बोला ।
“मैं तुम्हारी मेम साहब से मिलना चाहता हूँ ।” हमीद बोला ।
“अम बोल देगा ।”
“गाड़ी लाये हो ?”
“हाँ !”
“क्या तुम मुझे अपने साथ नहीं ले चल सकते ।”
“नहीं साब....अम पहले मेम साहब से पूछे....फिर ले जाये ।”
इतने में कासिम कराह कर उठ बैठा और सब उसकी ओर देखने लगे । ड्राइवर बाहर चला गया ।
“हांय...फिर वहीँ ।” कासिम बौखला कर चारों ओर देखता हुआ बोला ।
फिर जैसे ही सुमन पर नजर पड़ी – वह उठकर दरवाज़े की ओर भागा ।
“ठहरो ।” हमीद ने उसे ललकारा ।
“नाहीं ।” कासिम भागता गया ।
“बाहर निकले तो जान से हाथ धोना पड़ेगा....।” हमीद चीखा ।
इस बार कासिम रुक गया और उसकी ओर मुडा ।
“इस बार तुम भी मर कर जिन्दा हुये हो ।” हमीद उसकी आँखों में देखता हुआ बोला !
“अल्ला कसम ?” कासिम ने घुटी घुटी सी आवाज में पूछा ।
“हां बे ।” हमीद ने कहा “और यूँ कि अब थोड़ी थोड़ी देर बाद मरते ही रहोगे और फिर जिन्दा भी होते रहोगे.....इसलिये मरने से डरने की जरुरत नहीं है ।”
“देखो ! मुझे डराओ नाहीं ।”
“शठ अप....।” हमीद कंठ फाड़ कर दहाड़ा ।
“इससे क्या लाभ....वह भयभीत मालूम होता है ।” रीमा ने आगे बढ़कर उसका कंधा थपकते हुये कहा ।
मगर हमीद ने बड़ी निर्दयता से उसका हाथ झटक दिया और कासिम को घूँसा दिखा कर बोला ।
“तू औरतों के चक्कर में मरेगा ।”
“तत.....तुम भी तो मरोगे ।”
“अबे तो क्या मैं औरतों से डरता हूँ.....औरत चाहे मुर्दा हो चाहे जिन्दा...हर हाल में औरत है ।” हमीद ने कहा “लेकिन यह तो मानने के लिये तैयार ही नहीं कि यह मर गई थी – उल्लू के पठ्ठे ।”
“ए....गलियाँ नाहीं दो ।” कासिम आँखें निकल कर बोला ।
सुमन खिलखिला कर हँस पड़ी और रीमा मूर्खों के समान एक एक का मुँह देखने लगी ।
किसी ने फिर दरवाज़े पर आवाज दी !
“जाकर देखो....कौन है ।” हमीद ने कासिम से कहा ।
कासिम भयभीत नजरों से सुमन की ओर देखता हुआ दर्वे की ओर बढ़ा ।
दरवाज़ा खोलते ही बौखला कर पीछे हट आया, दो आदमी अंदर दाखिल हुये ! दोनों में से एक के हाथ में टामी गन थी ।
“तुम दोनों ।” उनमे से एक ने हमीद और रीमा की ओर संकेत कर के कहा “हमारे साथ चलोगे ।”
“इन दोनों को ले जाओ ।” हमीद ने कासिम और सुमन की ओर संकेत कर के कहा “हम दोनों को यहाँ कोई कष्ट नहीं है ।”
“चलो ।” टामी गन वाला गुर्राया ।
“चलो भाई ।” हमीद लम्बी सांस लेकर रीमा से बोला ।
“अरे तो फिर मुझे भी लेते चलो....मैं अकेले यहाँ नाहीं रहूँगा ।” कासिम भर्राई हुई आवाज में बोला ।
“नाहीं ।” हमीद कंठ फाड़ कर उसी के भाव में बोला “तुम नाहीं जा सकते ।”
“मैं यहाँ नाहीं रहूँगा ।” कासिम उससे भी तेज आवाज में चीखा....आवाज क्या थी....पूरा मेघ नाद था – पूरी इमारत झनझना कर रह गई ।
ठीक उसी समय हमीद ने झुक कर कासिम के पेट पर टक्कर मारी और वह “अरे बाप रे” कह कर उस आदमी से जा टकराया जो खली हाथ था ।
कासिम की टक्कर थी इसलिये खाली हाथ नहीं गई – वह आदमी उछल कर दीवार से जा टकराया ।
यह सब इतनी जल्दी हुआ था कि टामी गन वाला बौखला गया । उसने सोचा था कि हमीद ने जिद के कारण कासिम पर वार किया था...और जब उसका साथी उछल कर दीवार से टकराया तो उसकी नजर उधर ही उठ गई थी ।
इस अवसर से लाभ उठा कर हमीद ने उसके टामी गन पर हाथ डाल दिया ।
उसी समय दरवाज़े की ओर से एक फायर हुआ और गोली उन दोनों के सरों पर से होती हुई सामने वाली दीवार से टकराई – साथ ही किसी ने कहा ।
“खबर्दार – कैप्टन हमीद – पीछे हटो – हट जाओ ।”
तीसरा आदमी दरवाज़े में नजर आया । उसके हाथ में दश्मलव चार पांच का रिवाल्वर था ।
हमीद गड बड़ा गया, क्योंकि उसी समय कासिम ने भी उसे झंझोड़ कर रख दिया ।
“बताओ – मेरा कसूर बताओ – साले तुमने टक्कर कियुं मारी ?”
सारांश यह कि हमीद की चेष्टा निष्फल हो गई । उसे और रीमा को बाहर निकलना पड़ा । कासिम और सुमन इमारत ही में रह गये ।
बाहर एक बड़ी सी बंद वान खड़ी थी ।
तीनों में से एक उनके साथ बैठा और वान चल पड़ी ! अंदर अंधेरा था ।
“रीमा ?” हमीद बोला ।
“हां ।” रीमा ने उत्तर दिया ।
“अगर उत्तर देना पसंद करो तो एक प्रश्न करूँ ?”
“कहो !”
“तुम्हें अपनी जन्म तिथि याद है ?”
“क्यों....इसकी क्यों आवश्यकता पड़ी ?”
“अंधेरे में तुम दिखाई नहीं दे रही हो ।”
“मैं पूछ रही हूँ कि तुमने जन्म तिथि के बारे में क्यों पूछा ?” रीमा के स्वर में झल्लाहट थी ।
“अरे...ती इसमें बिगड़ने की क्या बात है ?”
“यह लोग हमें कहाँ ले जा रहे है ?” रीमा ने पूछा ।
“तुम दोनों मौन रहो तो अच्छा है ।” अंधेरे में तीसरी आवाज गूंजी ।
“यही मालूम करना था कि तुम मर गये या जिन्दा हो ।” हमीद ने कहा ।
“मैं कहता हूँ कि खामोश रहो ।”
“अधिक देर तक चुप रहना मेरे लिये कठिन कार्य है – खोपड़ी में औरत का भेजा रखता हूँ ।”
“क्या बात है ?”
“यह कह रहा है कि तुम दोनों शादी क्यों नहीं कर लेते ।” हमीद ने कहा ।
“ठीक तो कह रहा है ।” रीमा ने झट से कहा ।
हमीद ने ठंडी सांस ली और उर्दू में अपनी और उसकी शादी के बारे में विचार प्रकट करने लगा ।
“क्या कह रहे हो ?” रीमा ने पूछा ।
“तुम्हारे कान बज रहे होंगे.....मैं तो बहुत देर से खामोश हूँ ।”
“कहीं इस मर्माघात से तुम्हारा दिमाग तो नहीं उलट गया ।”
“मेरा दिमाग उलटने से क्या होता है – यह गाड़ी उल्टे तो एक बात भी हो ।”
“शट अप ।” तीसरी आवाज फिर गूंजी ।
और ठीक उसी समय एक जबरदस्त धमाका हुआ – गाड़ी उछलने कूदने लगी – फिर उसके ब्रेक चड चडाये ।
“क्या बात है ?” उनके निकट बैठे हुये आदमी ने ऊँची आवाज में पूछा ।
“टायर ब्रस्ट हुआ है ।” ड्राइवर की सीट से आवाज आई “सावधान हो जाओ ।”
“क्यों ?”
“टायर यूँ ही ब्रस्ट नहीं हुआ है – किसी ने फायर किया था ।”
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गाड़ी तो रुक ही चुकी थी – इंजिन भी बंद कर दिया गया ।
फिरर अचानक टामी गन अट्टहास लगाने लगी....मगर आवाज़ कुछ दूर की थी । शायद अगली सीट वालों ने गाड़ी से उतर कर कहीं और पोजीशन ले ली थी ।
“यह क्या हो रहा है दोस्त ?” हमीद ने तीसरे आदमी को सम्बोधित किया जो उनके साथ ही पिछले भाग में बैठा था । अंधेरा होने के कारण वह हमीद को दिखाई नहीं दे रहा था ।
मगर हमीद को उत्तर नहीं मिला ।
“क्या सो गये दोस्त – यह क्या हो रहा है ?”
“धीरे बोलो ।” रीमा की आवाज सुनाई दी मगर उस तीसरे की आवाज़ इस बार भी सुनाई नहीं दी ।
हमीद का रिवाल्वर पहले ही छीना जा चुका था – और वह सोच रहा था कि उसके साथ बैठने वाला भी अवश्य सशस्त्र होगा....मगर अंधकार में वह किसी प्रकार का ख़तरा मोल लेने को तैयार नहीं था ।
अब टामी गन की फायरिंग की आवाज भी बंद हो चुकी थी और गहरा सन्नाटा छा गया था ।
थोड़ी देर बाद वान का पिछला दरवाज़ा खोला गया ।
“चलो – नीचे उतरो ।” तीसरे आदमी ने कहा और दोनों से पहले ख़ुद ही नीचे उतरा ।
जब वह दोनों भी नीचे उतर गये तो एक आदमी बोला ।
“कैप्टन हमीद । अगर तुमने तनिक भी चालाक बनने की कोशिश की तो तुम्हारा शरीर छलनी हो जायेगा – बाईं ओर मुड़ कर ढलान में उतर चलो ।”
सर्दी से दांत बज रहे थे । रीमा से आगे चलने को कहा गया और उसने चुपचाप आज्ञा का पालन किया । हमीद उसके पीछे था ।
ढलान से इस प्रकार उतरना खतरे से खली नहीं था, हमीद की नजर रीमा पर थी । अचानक वह चलते चलते रुक गया ।
“आगे बढ़ो ।” टामीगन की नाल उसकी कमर से लगा कर कहा गया ।
“मैं उसका हाथ पकड़ लूं – कहीं गिर न जाये ।” हमीद ने अपनी आवाज में गुर्राहट पैदा कर के कहा ।
“तुम उसे सहारा दे सकते हो ।” ऊँची आवाज़ में कहा गया, यह सबके पीछे चलने वाले की आवाज थी – और यह वही आदमी था जिसने इमारत में फायर करके हमीद को संघर्ष करने से रोका था, वह हमीद को कोई कबायली लगा था ।
फिर उन्हें रुकने को कहा गया, यह दो चट्टानों के मध्य एक संकुचित स्थान था ।
“तुम लोग आखिर चाहते क्या हो ?” हमीद ने उन्हें सम्बोधित किया ।
“कैप्टन हमीद.....मैं तुम्हें अपने अधिकार में रखना चाहता हूँ ।” एक आदमी बोला “कर्नल विनोद ने मेरे एक साथी को पकड़ लिया है....जब तक वह मुझे वापस नहीं मिलेगा तब तक तुम्हें भी छोड़ा नहीं जा सकता ।”
“यह तो हुई बदले की बात ।” हमीद ने कहा, फिर रीमा की ओर संकेत कर के बोला “इस बेचारी को किस के बदले में रखोगे ?”
“किसी के बदले नहीं....बस तुम्हारे साथ है, इसलिये तुम्हारे ही पास रहेगी ।”
“क्या तुम इसे पहचानते हो ?”
“हाँ – तुम्हारे ही साथ देखी जाती रही है ।”
“यह निर्दोष है – कर्नल विनोद से इसका कोई संबंध नहीं है ।”
“अच्छी बात है....तुम जहाँ कहोगे इसे वहाँ पहुँचा दिया जायेगा ।”
“शुक्रिया...।” हमीद ने कहा “और मुझे कहाँ ले जाओगे ?”
“आजाद इलाके में....मेरा साथी मुझे मिलना ही चाहिये ।”
“ठीक है.....अवश्य मिलना चाहिये ।” हमीद ने कहा, फिर पूछा “क्या तुम्हारा संबंध आजाद इलाके से है ?”
“हाँ !”
“तुम्हारा कबीला कौन सा है ?”
“यह नहीं बताऊंगा ।”
“न बताओ....लेकिन यह तो बताना ही पड़ेगा कि क्या हमें यहीं रहना होगा ?”
“नहीं.....मगर आप अब बातें बंद करो ।”
“यह भी मंजूर ...मगर अपनी साथी से तो बात कर ही सकता हूं।”
“कर सकते हो ...मगर आवाज ऊँची नहीं होनी चाहिए।”
“फिर शुक्रिया --” हमीद ने कहा,फिर धीरे से रीमा से पूछा “तुम्हें नींद तो नहीं आ रही है?”
“नींद ---तुम्हारा तो नहीं चला गया ---” रीमा बोली ।
“वह तो चलता ही रहता है ..चिंता न करो !” हमीद ने कहा।
“यह लोग क्या चाहते हैं ?” रीमा ने पूछा।
“यह कोई कबायली है और इसके किसी साथी को मेरे चीफ ने पकड़ रखा है ।”
“फिर ?”
“जब तक इसका साथी इसे वापस नहीं मिलेगा तब तक यह मुझे अपनी कैद में रखेगा।”
“मुझे भी ?”
“यह तुम्हारी इच्छा पर है ।”
“क्या मतलब ?”
“अगर तुम चाहो तो वापस जा सकती हो !”
“कहाँ ?”
“जहां कहोगी तुम्हें पहुंचा दिया जायेगा ..यह तो यही कह रहा था।”
“मगर मैं जाऊँगी कहां ?”
“सोचो !”
“मैं क्या सोचूं ..मैं तो तुम्हारी दया पर हूं ।”
“और मैं इसकी दया पर हूं ।”
“तो क्या तुम्हारा चीफ इसके साथी को वापस कर देगा?”
“मैं क्या बता सकता हूं ...”
“क्यों ..क्या तुम्हारा चीफ तुम्हें बचाना नहीं चाहेगा ?”
हमीद कुछ कहने ही जा रहा था कि किसी ओर से आवाज आई ।