Regum Wala - 14 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | रीगम बाला - 14

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रीगम बाला - 14

(14)

“सुनो कैप्टन ...मेरा बाप मार डाला गया और मैं प्रतिशोध की आग में जाल रही हूं ..कर्नल ने अभी तक मुझे रोके रखा है वर्ना कभी का वीरान किले में पहुंच गई होती।”

“वीरान किले में क्या है ?” हमीद ने पूछा।

“तुम नहीं जानते ?”

“नहीं ..” हमीद ने कहा।

इतने में दूसरा बखेड़ा खडा हो गया। असिस्टेंट मैनेजर एक स्थानीय पुलिस इन्स्पेक्टर के साथ कमरे में दाखिल हुआ। कमरे में क़दम रखते ही दहाड़ने लगा।

“यह है फ्राड लोग .पता नहीं क्या चाहते है। मैं अब इन्हें यहाँ नहीं ठहरने दूंगा।”

“क्या बात है ?” इन्स्पेक्टर ने पूछा।

“यही है वह मामिला जो थिदी देर पहले मर गई थी।” उसने सुमन की ओर संकेत करके कहा।

“बकवास मत करो ...” हमीद झल्ला कर बोला “उस डाक्टर को बुकाओ जिसने इनकी मौत का समर्थन किया था।”

फिर बात बढ़ गई ! पूरे होटल में चर्चा होने लगा! असिस्टेंट मैनेजर ने सिमित प्रवेश के अधिकार के अंतर्गत उन सब को अतिशीघ्र होटल खाली करने की नोटिस दे दी।

_____

रात के नौ बजे थे कि अचानक किसी ने निलनी कार माऊंट के दरवाजे पर आवाज दी! वह अभी सोई नहीं थी ! उठ कर दरवाजा खोला ! लेकरास का असिस्टेंट मैथूज़ सामने खडा विसुर रहा था।

“आप इस समय ?” निलनी ने आश्चर्य से कहा।

“मैं क्षमा चाहता हूं मिस ...लेकिन !”

“अंदर आ जाइए ।”

“समय बहुत कम है ।” वह कमरे में दाखिल होता हुआ बोला “जो कुछ कहना है वह थोड़े शब्दों में कहूंगा! आपके नये दोस्त अड़ल्फी से निकाले जा रहे हैं ..अगर आप समय सर न पहुँची तो वह इधर उधर की ठोकरें खाते फिरेंगे।”

“क्यों निकाले जा रहे हैं ?”

“मैं नहीं जानता ।”

“लेकिन मैं इस संबंध में क्या कर सकती हूं?”

“उनकी सहायता कर सटी हैं –यह कार्ड लीजिए –इस पर जिस इमारत का पता लिखा है उसे आप प्रयोग कर सकती हैं ..अपने दोस्तों को वहाँ ले जाइए, जल्दी कीजिए ।”

निलनी इस समय बाहर नहीं जाना चाहती थी मगर यह काम तो उसे करना ही था। उसने कार्ड ले लिया।

“बाहर एक गाड़ी मौजूद है!”

“मोटे आदमी से आप मित्रता कर चुकी है ! इससे कहियेगा कि वह अपने मित्रों सहित आपके मकान में ठहर सकता है—इस प्रकार उन्हें उस इमारत में ले जाइएगा।”

“लेकिन मैं तो उनके साथ वहाँ न ठहर सकूंगी क्योंकि --।”

“चिंता न कीजिये --” उसने बात काट कर कहा “इसका प्रबंध कर दिया जायेगा कि आपके वहाँ ठहरने पर आपके पाठशाला को कोई आपत्ति नहीं होगी।”

निलनी विवश हो कर बाहर निकली। सचमुच एक बड़ी सी गाड़ी खाड़ी थी। ड्राइविंग सीट पर कोई बैठा था।

निलनी को पिछली सीट पर बैठाने के बाद मैथूज़ ने खिड़की में सर डाल कर कहा।

“ड्राइवर आपको एडलफ़ी तक ले जाएगा और वहाँ से आपके मित्रों को उस इमारत तक पहुंचाएगा। इस संबंध में आपको किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होगी—मैं आपके साथ न जा सकूंगा।”

गाड़ी चल पड़ी और निलनी सोचने लगी कि अगर वह इस झमेले में न पड़ी होती तो अच्छा था –पता नहीं यह लोग क्या करना चाहते है—मगर अब तो तीर कमान से निकल चुका था..हर बात माननी थी...हर काम इस प्रकार करना था जैसे वह ख़ुद उसे खुशी से करना चाह रही हो ।

थोड़ी देर बाद गाड़ी एडलफ़ी के सामने रुकी और ड्राइवर उन्हें समझाने की कोशिश कर रहा था कि वह होटल छोड़ दें ।

“नाही --” कासिम पैर पटक कर बोला “इन सभों को तुम होटल से निकाल सकते हो ---मैं तो नाही जाऊँगी --”

कासिम की पीठ निलनी की ओर थी ..मगर रीमा और हमीद ने उसे देख लिया था और हमीद ने मुस्कुरा कर सर भी हिलाया था।निलनी ने हमीद के निकट पहुंच कर धीरे से कहा।

“क्या बात है –शायद किसी बात पर झगड़ा हो रहा है ।”

“अस्ल बात तो मुझे भी नहीं मालूम ..चूंकि हम इसी के साथ यहाँ आये थे, इसलिये इसी के साथ साथ हमें भी होटल छोड़ देने की नोटिस मिल गई है” हमीद ने भी धीरे ही से कहा।

उधर पुलिस इन्स्पेक्टर से कासिम कह रहा था।

“पूछो इन सालों से कि अपने होटल का किया दाम लेंगे—मैं ख़रीद लूंगा..अपने को किया समझते हैं साले ।”

अचानक निलनी ने कासिम की भुजा पकड़ कर अपनी ओर आकृष्ट कर लिया।

“तत ..तुम ..इस वख्त ..” कासिम बौखला कर उर्दू ही में बोल पड़ा।

“क्या बात है –कैसा झगड़ा है?” निलनी ने अंग्रेजी में पूछा।

“यह चाहते है कि हम अभी होटल छोड़ दें --” कासिम बोला।

“मगर क्यों ?” निलनी ने पूछा।

“किया बताऊँ ..कुश समझ में नाही आ रहा है।”

“बताओ ..शायद मेरी समझ में आ जाए ।”

“वह मर गई ...फिर जिन्दा हो गई --”

“कौन मर गई ?”

“जिसका मैं सेकरेटरा हूं।”

“तुम्हारी बात मेरी समझ में नहीं आई।”

इतने में हमीद आगे बढ़ कर धीरे से बोला।

“मेरे दोस्त की मोटी सी अक्ल ...कभी कभी खुबसूरत शरारतें ।”

“अमे तुम चुप रखो --” कासिम बीच ही में उर्दू में दहाड़ा।

“आप लोग कान खोल कर सुन लीजिए --” पुलिस इन्स्पेक्टर ऊँची आएअज में बोला “अगर आप लोगों ने पंद्रह मिनिट के अंदर अंदर होटल न छोड़ दिया हमें शक्ति प्रयोग करनी पड़ेगी।”

“यह क्या कह रहा है?” निलनी ने हमीद से पूछा।

“पंद्रह मिनिट के अंदर अंदर होटल छोड़ देने की नोटिस दे रहा है.” हमीद ने कहा।

“चिंता की कोई बात नहीं ..तुम लोग मेरे साथ चलो” निलनी ने कहा “यह तो बड़ा अच्छा हुआ कि इस समय मुझे पनीर की आवश्यकता आ पड़ी और मैं इधर आ निकली..बस उठाओ अपना! इन लोगों का अपमान जनक व्यवहार कम से कम मेरे लिये असहनीय है।”

“अच्छी बात है --” कासिम तड से बोला “तुम बस खाली मुझे ले चलो,,वह लोग अपनी अपनी मुसीबत आप भुगतेंगे ।”

“यह तो इंसानियत नहीं होगी मिस्टर कासिम ?” हमीद बोला।

“अब मैं उस भूतनी के साथ नाही रह सकता ..” कासिम ने कहा।

“नहीं नहीं तुम चलो...” निलनी ने कहा।

“तब मैं कहीं ओर चला जाऊँगा ...” कासिम गुर्राया।

“दोस्तों से इतनी नफ़रत नहीं करनी चाहिये ..” निलनी ने उसका कंधा थापक कर कहा।

“तुम इस आदमी को नाही जानती..मुझे खुदखुशी पर मजबूर कर देगा।”

उधर इन्स्पेक्टर बराबर वार्निंग दिये जा रहा ...अन्त में उन्हें होटल छोड़ना ही पडा ।

सुमन के साथ कासिम गाड़ी पर बैठने के लिये तैयार नहीं हो रहा था मगर उस समय कहाँ कोई टैक्सी भी नहीं थी इसलिये विवश हो कर उसी गाड़ी में बैठना पडा ।

गाड़ी एक इमारत के सामने रुकी, यह चार कमरों वाली इमारत थी। निलनी कासिम को अलग ले गई, और उस से पूरी कहानी सुनने के बाद बोली।

“ऐसा हो सकता है .कभी कभी बड़े बड़े डाक्टर भी धोखा खा जाते हैं।”

“नाही ..याखिन करो ..वह भूत हो गई है ..मुझे उससे डर लगता है -” कासिम ने बड़ी विवशता के साथ कहा।

_______

रीमा और हमीद को भी एक कमरा मिला था, मगर वो दोनों ही परेशान नजर आ रहे थे।

“तुम क्या सोच रहे हो ?” रीमा ने उसे सम्बोधित किया।

“मैं क्या सोच रहा हूं !” हमीद ने अपने आप से प्रश्न किया और रीमा की ओर देख कर मूर्खों के समान मुस्कुराने लगा।

“आखिर वह लड़की अचानक वहां किस प्रकार पहुंच गई थी?”रीमा ने पूछा।

“लड़की नहीं ...औरत कहो और औरत सब कुछ कर सकती है ..जिस समय जहां चाहे पहुंच सकती है ! कभी कभी तो वह कब्र में घुस कर मुर्दा भी उखाड़ लाती है और उससे इतनी बातें करती हैं कि वह भी बोल उठाता है ...अच्छा, अब बिलकुल चुप हो जाओ ..वर्ना मैं पागल हो कर जींदा हो जाऊँगा ।”

“पता नहीं तुम कैसे होते जा रहे हो ...मैं तो केवल यह चाहती हूं कि किसी भी समय असावधान न रहो ।”

“क्या मैं असावधान नजर आ रहा हूं ?” हमीद भन्ना कर बोला।

“अच्छा अब कुछ नहीं पूछूंगी।”

“बहुत बहुत शुक्रिया ..अब मैं जरा सुमन के पास जा रहा हूं।”

“मैं तुम्हें अकेली नहीं जाने दूँगी।”

हमीद भन्ना कर कुछ कहने ही वाला था कि किसी ने दरवाजे पर आवाज दी । हमीद ने आगे बढ़ कर बोल्ट गिरा दिया –फिर दरवाजा खुला और कासिम अंदर आया, पीछे निलनी भी थी।

“चलो देखो --” वह भर्राई हुई आवाज में बोला।

“का देखूं ?” हमीद ने झल्ला कर उसकी नक़ल उतारी।

“सुमन फिर मर गई है --” कासिम ने कहा।

“मरने दो –मुझे कोई दिलचश्पी नहीं है --” हमीद ने बुरा सा मुंह बना कर कहा।

“आखिर बात क्या है मिस्टर हमीद ?” निलनी ने पूछा ।

“मैं क्या जानू मुझसे तो कुछ देर पहले ही मुलाक़ात हुई थी ...उसके सेक्रेटरा से पूछो।”

“मिस्टर कासिम का विचार है कि आप ही इस मामिले पर प्रकाश डाल सकेंगे?”

“मिस्टर कासिम भी मर चुके हैं इसलिये उनकी बात की कोई कीमत नहीं !”

“अमे तुम साले ख़ुद मर गये हो ...बल्कि खुदा करे कि मर जाओ ..” कासिम ने उर्दू में कहा।

“तुम समझ ही नहीं सकते इस बात को मेरे दोस्त ! मुझे भूत अफ़सोस है --” हमीद ने दुखी स्वर में कहा।

“किया कहना चाहते हो ?” कासिम बोला।

“यही कि तुम्हारे कफ़न दफ़न का भी इंतज़ाम अब हो जाना चाहिए । एक बार मर कर फिर ज़िंदा हो जाने का यही मतलब है कि वह दूसरी दुनिया में भी अपने सेक्रेटरा को अपने साथ ही रखनाचाहती है, मतलब यह कि तुम्हारी मौत का इंतज़ाम करके वह फिर मर गई ..समझ गये ना?”

“ए –खुदा की कसम ...ऐसा नाही कहो ..” कासिम बोला।

“अगर ज़िंदा रहना चाहते हो तो इस लड़की को मेरे पास छोड़ कर बाहर चले जाओ ।”

“नाही ...यह नाही हो सकता ...” कासिम फिर बिगड़ उठा।

“नाही हो सकता तो फिर जहन्नुम में जाओ ..मैं कुछ नहीं कर सकता।”

“द द ...देखो !”

“जिन्दगी प्यारी है या लड़की ?” हमीद ने पूछा।

“जिन ..जिन्दगी ।”

“शाबाश मेरे दोस्त ...जाओ ?”

कासिम दरवाजे की ओर मुदा ही था कि निलनी तेजी से बाहर निकल गई! हमीद हँस पडा मगर बड़ी जहरीली हँसी थी ।

उसके बाहर निकल जाने पर कासिम हमीद की ओर मुड़ कर बे बसी से जल्दी जल्दी पलकें झपकाने लगा।

हमीद निलनी के क़दमों की दूर होती हुई आवाज़ें सुन रहा था, उसने रीमा से पूछा ।

“हम लोगों ने आपस में क्या बातें की थीं ?”

“पता नहीं...तुम लोग शायद अपनी भाषा में शायद बातें कर रहे थे और तुम्हारी भाषा मेरी समझ में नहीं आती – जानती ही नहीं तो समझ में क्या आयेगी !”

“मगर यह हमारी भाषा समझती है ।” हमीद बोला ।

“नाहीं नाहीं....।” कासिम बोल पड़ा “उसे उर्दू नाहीं आती ।”

“उर्दू तो तुम्हें भी ठीक से नहीं आती – चले जाओ यहाँ से ।”

“मुझे यहीं रहने दो हमीद भाई – मैं और उर्दू पढ़ लूँगा......अच्छा कसम पियारे भाई, मुझ पर रहम करो ।” कासिम धिधियाया ।

“मैं कुछ नहीं समझ सकती, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है.....आखिर यह सब क्या हो रहा है ।” रीमा हाथ मालती हुई बोली ।

“समझाता हूँ ।” हमीद ने कहा “इस प्रकार हमें एक जगह एकत्रित कर दिया गया है ताकि जिस समय भी चाहे हमें ख़त्म कर दें, होटल में उत्पात मचाना या हमें क़त्ल करना उन्होंने उचित न समझा होगा ।”

“अगर वह तुम्हारी भाषा समझती है तो फिर इस दौड़ धूप और ड्रामे का यही मतलब हो सकता है ।” रीमा ने बड़ी गंभीरता से कहा “संस्था के पास उच्च कोटि के मस्तिष्क मौजूद है । मेडिकल सायन्स भी आश्चर्य जनक रूप से प्रगति की ओर बढ़ती जा रही है, जिसके अंतर्गत इस प्रकार की मौत और जिन्दगी संभव है ।”

अचानक कासिम “अरे बाप” का नारा लगा कर हमीद के पीछे छिपने की कोशिश करने लगा ।

सुमन दरवाज़े में खाड़ी उन्हें घूरे जा रही थी ।

“यह क्या भांड पना फैलाया है तुमने ।” अचानक रीमा कासिम की ओर देख कर गरजी और हमीद को ऐसे लगा जैसे एकदम से रीमा के व्यक्तित्व ही बदल गया हो । विचित्र रूप था...हमीद के लिये बिलकुल नया । उसने यह भी देखा कि कासिम अब सुमन के बजाय रीमा को भयभीत नजरों से देखे जा रहा है ।

इतनी देर में सुमन कमरे में दाखिल हो चुकी थी ।

“तुम दोनों ही बाहर जाओ ।” रीमा ने हमीद से कहा ।

“चलो भाई.....।” हमीद ने मुड़ कर कासिम का हाथ पकड़ा और दरवाज़े की ओर बढ़ता चला गया ।

जैसे ही वह कमरे से निकले, दरवाज़ा बंद कर दिया गया । हमीद ने बोल्ट चढाने की आवाज भी सुनी ।