Regum Wala - 13 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | रीगम बाला - 13

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रीगम बाला - 13

(13)

“हाँ – वह उसी समय कमरे में दाखिल हुआ होगा जब हम दोनों डाइनिंग हाल में थे ।”

“एक बात समझ में नहीं आती ।”

“और यहाँ तो कोई भी बात समझ में नहीं आती ।” हमीद ने टालने वाले भाव में कहा ।

इतने में दरवाज़ा फिर खुला और बाथ रूम वाला अंदर दाखिल हुआ ।

“मुझे दुख हाई कैप्टन कि वह निकल गया – क्या आप मुझे कुछ समय दे सकते है ?” उसने कहा ।

“हाँ हाँ ।” हमीद उसे टटोलने वाली नजरों से देखता हुआ बोला ।

“तो फिर जरा डाइनिंग हाल तक ।”

हमीद ने रीमा की ओर देखा ।

“क्या कह रहा है ?” रीमा ने पूछा ।

“हम दोनों थोड़ी देर के लिये डाइनिंग हाल में जा रहे है ।”

“यह असंभव है – तुम मुझे अकेली नहीं छोड़ सकते ।” रीमा ने कहा ।

“क्या यह हिंदुस्तानी समझ सकती है ?” उस आदमी ने हमीद से पूछा ।

“नहीं ।”

“तो फिर कहां जाने की आवश्यकता नहीं – हम यहीं बातें करेंगे ।”

“जैसी तुम्हारी इच्छा ।”

“मैं रामगढ़ से तलब किया गया हूँ – नाम नामवर सिंह है ।”

“ओह – अच्छा ।”

“आप लोगों की देख भाल का काम मुझे सौंपा गया था ।”

“सुमन नागरकर ने मुझे अपने कमरे में बुलाया था ।” हमीद ने कहा ।

“ओह – तो वह उसकी चाल थी ।”

“हाँ...मगर तुम बाथ रूम में क्यों जा छिपे थे ?”

“मुझे पता था कि कोई यहाँ आकर आप लोगों को डिस्टर्ब करेगा ।”

“अच्छा ।” हमीद ने चुमते हुये स्वर में कहा ।

“गलत न समजिये कैप्टन – उनके कई आदमी यहाँ ठहरे हुये है । मैंने उनकी बातें सुनी थी....और विश्वास कीजिये कि सुमन नागरकर की काल एक धोखा थी ।”

“क्या तुम यह कहना चाहते हो कि उन्हीं लोगों ने सुमन की ओर से काल की थी ?” हमीद ने पूछा ।

“जी हाँ – मैं यही कहना चाहता हूँ....।” नामवर ने कहा “मेरे अतिरिक्त और किसी से भी सुमन संबंध स्थापित नहीं कर सकती – कर्नल साहब ने उसे यही आदेश दे रखा है ।”

“अच्छी बात है – मैं देखता हूँ ।” हमीद कहता हुआ फोन की ओर बढ़ा ।

उसने फोन सुमन से कमरे से संबंध स्थापित किया । उत्तर फौरन मिला, मगर आवाज कासिम की थी । हमीद ने महसूस किया कि वह कुछ घबडाया हुआ है ।

“क्या बात है कासिम...तुम कुछ परेशान मालूम होते हो...मैं हमीद हूँ ।”

“ओह...हमीद भाई – वह मर गई....खुदा के लिये कुश करो ।”

“कौन मर गई ?”

“सुमन नागरकर....अभी नर्स ने मुझे बताया है ।”

“क़त्ल ?”

“नाहीं – गर्दन वर्दन नाहीं कटी है...बस मर गई है ।”

“तुम वहीँ ठहरो मैं आ रहा हूँ ।” हमीद ने रिसीवर रख कर नामवर की ओर मुडा और कासिम से सुनी हुई बात उससे कही । नामवर का मुंह आश्चर्य से खुल गया ।

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सुमन की लाश बिस्तर पर पड़ी थी.....प्रकट में कोई ऐसा लक्षण नजर नहीं आया था जिसके आधार पर उसे क़त्ल समझा जा सकता । नर्स के बयान के अनुसार कुछ देर पहले उसने फोन पर किसी से बात की थी, फिर कासिम को उसे बुलाने के लिये भेजा था, क्योंकि कासिम के कमरे के फोन पर उससे संबंध स्थापित न हो सका था – और फिर जब वह कासिम को लेकर वापस आई तो सुमन मर चुकी थी ।

हमीद ने कासिम के कमरे का फोन चेक किया । इक्स्चेंज से संबंध स्थापित न हो सका । लाइन सचमुच खराब थी ।

नामवर उसके साथ ही था । खासा फुर्तीला और स्मार्ट आदमी था । उसने बताया कि वह रामगढ़ में ए. एस. आई. है और कर्नल विनोद को अपना गुरु मानता है । उसकी कार्य प्रणाली का अवलोकन ही उसे मार्ग दिखता है । उसने हमीद से कहा ।

“कैप्टन साहब ! यह मालूम करना बहुत ही आवश्यक है कि नर्स को कासिम के पास भेजने से पहले सुमन के फोन पर किससे बात की थी ।”

“मैं भी यही सोच रहा था ।” हमीद ने कहा “चलो ।”

दोनों होटल के इक्स्चेंज के आपरेटर से पूछ गच्छ करने गये । उसने कहा ।

“रूम नंबर ग्यारह से कासिम के कमरे के आपरेटर के बारे में शिकायत की गई थी कि वहां से उत्तर नहीं मिल रहा है – इसके अतिरिक्त रूम नंबर ग्यारह से कोई काल नहीं हुई थी ।”

फिर हमीद ने अपने फोन के बारे में पूछा ।

“नहीं श्रीमान....आपके कमरे की लिये तो कोई काल ही नहीं हुई ।” उत्तर मिला ।

आपरेटर का बयान चकित कर देने वाला था । आश्चर्य इस पर था कि अगर वह काल होटल के अतिरिक्त कहीं और से आई थी तो उसका ध्येय क्या था, वह वापस लौटे ।

“बड़ी विचित्र बात है ।” हमीद ने नामवर से कहा “आपरेटर के बयान के अनुसार सुमन ने कासिम के लिये एक काम करनी चाही मगर उस कमरे का आपरेट्स ख़राब होने के कारण काल नहीं हो सकी थी काल न हो सकने के कारण ही सुमन ने कासिम को बुलाने के लिये नर्स को भेजा था....फिर जितनी देर में नर्स वापस आई सुमन की मौत हो चुकी थी ।”

“प्रश्न यह है कि अगर आपकी काल कहीं बाहर से आयी थी, तब भी आपरेटर को मालूम होना चाहिए था। यहाँ तीन लाइने हैं और कोई भी डाईरेकट नहीं है...तीनों लाइनें इसी एक एक्सचेंज से सम्बन्ध रखती हैं --” नामवर ने कहा।

“यहाँ के बारे में बहुत कुछ जानते हो !” हमीद उसे घूरता हुआ बोला।

“आप अभ तक मेरी पोजीशन से संतुष्ट नहीं हुए --” नामवर ने अपनी कोट की भीतरी जेब से कुछ कागज़ निकालते हुए कहा “लीजिये –देखिए –यह मेरे कागजात ।”

हमीद कागजों को देखता रहा, फिर बोला।

“प्रश्न तो यह है कि अगर वह सुमन को क़त्ल ही करना चाहते थे तो क़त्ल कर डालते .मुझे छेड़ने की क्या आवश्यकता थी ..चुपचाप उसे क़त्ल कर डालते। अगर मेरे लिये वह काल सुमन की नहीं थी तो फिर उन्ही लोगों में से किसी की रही होगी—फिर एक आदमी मुझे बाहर निकलने से रोकने को कोशिश करता है जरा ठहरो, क्या वह आदमी उन्हीं लोगों में से था जिनकी निगरानी तुम यहाँ करते रहे हो?”

“जी नहीं .वह मेरे लिये अपरिचित था ..उन लोगों में कभी नजर नहीं आया था जिनकी बातों से मुझे इस षडयन्त्र का पता चला थाकी आपके कमरे में कुछ होने वाला है।”

“और वह तुम्हें जुल देकर निकल गया।”

“मैं लज्जित हूं कैप्टन साहब।”

“क्या वह हवा में मिल गया होगा मिस्टर नामवर सिंह ?”

“विश्वास कीजिये –जब मैं बाहर निकला हूं तो कारीडर बिल्कुल् सुनसान पडा हुआ था ..फिर मैं दरवाजे तक दौड़ा चला गया था, मगर वह कहीं नजर नहीं आया।”

“खैर देखा जायेगा, अब हमें उस लाश के लिये कुछ करना चाहिये” हमीद ने कहा।

“मेरा विचार है कि डाक्टर उसके कमरे में पहुंच चुका होगा।”

नामवर का विचार सच निकला। होटल के मैनेजर के साथ वही डाक्टर सुमन के कमरे में मौजूद था जो सुमन का इलाज कर रहा था।

“हार्ट फेल्यर ही हो सकता है --” डाक्टर ने कहा।

कासिम की आँखे सूझी हुई नजर आई, शायद वह सुमन के लिये रोता रहा था और अब चुपचाप हमीद की ओर देख रहा था।

अचानक हमीद का वह कार्ड याद आया जो ब्लैक फ़ोर्स का आदमी उसके कमरे में फोन के निकट छोड़ गया था उसे देखने की लिये वह एकांत में चला गया और कार्ड निकाल कर देखा, लिखा था।

“इस आदमी के अतिरिक्त किसी पर भी विश्वास न करो ।”

“यह क्या चक्कर है ..व वह धीरे से बडबडाया और कार्ड को जेब में रख कर कमरे की ओर बढा। नामवर को वही छोड़ दिया।

कमरे में आ कर कार्ड को अग्नि कुंड में डाल दिया रीमा इस समय बाथ रूम में थी ! अचानक कोई कमरे का दरवाजा पीटने लगा।धड़ा धड़ ।

“कौन है ?” हमीद झल्ला कर दरवाजे की ओर बढ़ा।

“मैं हूं –दरवाजा खोलो --” बाहर से कासिम की आवाज आई।

हमीद ने दरवाजा खोला ..सामने कासिम खडा था। वह बुरी प्रकार हांफ रहा थामगर उसकी आंखों में विचित्र सी चमक नजर आई दांत निकल पड़ रहे थे।

‘ज़िंदा हो गई ...वह ज़िंदा हो गई।”

“क्या बक रहे हो –कौन ज़िंदा हो गई?” हमीद ने पूछा ।

“अरे वही सुमन नागरकर ..कुर्सी पर बैठी हुकुम चला रही है –मुझको भेजा है कि तुमको बुलाऊं ।”

इतने में रीमा बात रूम से बाहर निकली।

“अमे तो किया –तुम दोनों एक ही कमरे में रहते हो ज़/व कासिम ने धीरे से पूछा।

“हां हां ..बको नहीं –पूरी बात बताओ।”

“मै उसके बिस्तर के पास खडा था कि अचानक वह उठ बैठी..कहने लगी कि तुम यहाँ किया कर रहे हो – निकल जाओ कमरे से औए कैप्टन हमीद को यहां भेज दो –बस मैं दौड़ा चला आया।”

अचानक कासिम के चहरे पर भय के लक्षण नजर आये और वह हकलाने लगा।

“यानी कि आगे बाप रे ...भ भ भूत ।”

और फिर हमीद ने देखा कि उसकी आंखें बंद होती जा रही हैं, मगर होंठ हिल रहे थे।

“हटो हटो” हमीद ने रीमा से कहा” पीछे हटो –यह बेहोश हो कर गिरने ही वाला है।”

रीमा बौखला कर पीछे हटी और हमीद कासिम को संभालने के लिये उसकी ओर झपटा ! इस प्रयास में बस इतना हुआ कि कासिम का सर नहीं फूटा ...हमीद ने बड़ी सावधानी से ढेर हो जाने में सहायता दी थी।

“यह कहने आया था कि सुमन फिर जिन्द्दा हो गई है ! उसका एक संदेश भी लाया था-” हमीद ने रीमा से कहा।

“पता नहीं यह सब क्या हो रहा है--” रीमा बडबडाई ।

“मुझे सुमन के कमरे तक जाना पड़ेगा—तुम भी साथ चलो--” हमीद ने कहा।

“म म ..मैं अगर यह सच हुआ तो ?”

“तो मैं उससे पूछूंगा कि दूसरी दुनिया में प्रिन्स हेनरी का तमाखू मिलता है या नहीं --” हमीद ने झल्ला कर कहा।

कासिम को उसी दशा में छोड़ कर दोनों कमरे से निकले और जब सुमन के कमरे के निकट पहुंचे तो वहाँ फिर नामवर दिखाई पडा।

“तुम बाहर ही ठहरोगे --” हमीद ने उससे कहा।

“आप अंदर क्यों जा रहे हैं, कोई खास बात ?” नामवर ने पूछा।

“वापस आ कर बताउंगा --” उसने दरवाजे का हैन्डिल घुमाते हुए कहा।

दरवाजा खुल गया और दोनों अंदर दाखिल हुए! सुमन बिस्तर के निकट पड़ी हुई आराम कुर्सी पर पड़ी हुई थी, इनको देखते ही सीधी हो कर बैठती हुई बोली।

“तुम लोग बिना आज्ञा लिये अंदर कैसे आये?”

“मैं कैप्टन हमीद हूं --” हमीद बोला।

“ओह अच्छा--” वह उठाती हुई बोली “बैठिए-बैठिए।”

फिर वह बिस्तर पर जा बैठी, क्योंकि कमरे में दो ही कुर्सियां थी, हमीद ने रीमा की ओर देखा ! वह बुरी प्रकार भयभीत थी, हाथ काँप रहे थे।

“यह कौन है ?” सुमन ने रीमा को घूरते हुए पूछा।

“मेरी एक दोस्त --” हमीद बोला।

“जो भी हो ..कर्नल कहाँ है – मैं उनसे इसी समय मिलना चाहती हूं।”

हमीद उत्तर में कुछ कहने ही जा रहा था कि असिस्टेंट मैनेजर दरवाजा खोल कर कमरे में दाखिल हुआ। उसके पीछे कई आदमी और थे। स्ट्रेचर भी साथ था। शायद लाश को कमरे से हटाने के लिये आये थे। असिस्टेंट मैनेजर का मुंह खुल गया।

चीख मारने का विचार दिल से निकाल दो --” हमीद हाथ उठा कर बोला “यह भूत नहीं है ..शायद इनको अचेतना हो गई थी ..अब ठीक है।”

“अर्थात ...यानी कि --” वह और कुछ न कह सका।

“अब आप लोग बाहर जाइए औए केवल उस डाक्टर को अंदर भेज दीजिए जो इनका इलाज कर रहा था।”

वह सब बाहर निकल गये ।

“मामिला क्या है ?” सुमन ने आश्चर्य से पूछा “कैसी अचेतना...कैसा भूत?”

“कुछ देर पहले हमने आपको मुर्दा हालत में देखा था। डाक्टर ने कहा कि ह्रदय की गति बंद हो चुकी है। यह लोग शायद अब लाश उठाने के लिये आये थे..कासिम मेरे कमरे में बेहोश पडा है।”

“आप पागल बना देने वाली बातें कर रहे हैं...” सुमन ने कहा।

“ मैं ख़ुद नहीं समझ सकता कि यह सब क्या हो रहा है ...” हमीद उसकी आंखों में देखता हुआ बोला “लेकिन आपने मुझे क्यों बुलाया था?”

“मैं कर्नल से मिला चाहती हूं ..मगर उनका पता मुझे नहीं मालुम .” सुमन बोली।

“मिलना तो मैं भी चाहता हूं, मगर परेशानी यह है कि मुझे ख़ुद भी उनका पता नहीं मालूम।”