(11)
“तुम्हें गालियाँ देता है ?”
“हाँ...उर्दू में ।”
“मुझे भी सिखा दो उर्दू की गालियाँ ।”
“अरे जियाओ....ही ही ही ।” तुम से तो बनेगी भी नाहीं ।”
“बताओ भी तो !”
“नाहीं – मुझे शरम लगती है ।”
“तब तो सिखानी ही पड़ेगी नहीं दोस्ती ख़त्म ।”
“अरे नाहीं नाहीं....अच्छा ।” एक हलकी सी गाली बताता हूँ – पता नाही कि कह भी सकोगी....सुनो, हराम जादा ।”
“हराम जादा.....हराम जादा....हराम जादा ।” वह रटती रही और कासिम ही ही ही करता रहा ।
“अब यह बताओ कि यह गाली किस वक्त दी जाती है ?” निलनी ने पूछा ।
“जब भी....जिस तरह चाहो – कोई पाबन्दी नाहीं है ।”
“कासिम हराम जादा ।” निलनी कह बैठी ।
“देखो देखो – यह ठीक नाहीं है – वाह वाह....मुझे ही कह दिया ।” कासिम बोला ।
“यह गाली कहने और सुनने दोनों में मुझे अच्छी लगी है – इसलिये मैं प्यार से तुम्हें हराम जादा कहा करूंगी ।”
“अच्छा अच्छा....कह लेना – मगर अकेले में ।”
“वह उर्दू नहीं समझती प्यारे हराम जादा ।”
“ही ही ही ही.....नाहीं – देखो यह नाहीं ।”
“तो फिर हराम जादा का मतलब बताओ ?”
“मुझे हराम जादा की अंग्रेजी नाही मालुम ।” कासिम भन्ना कर बोला ।”
“अच्छा हराम जादा ।”
“देखो....हमीद के सामने मुझे हराम जादा ना कहना ! अकेले में कोई हरज नाही ।”
“मगर तुम ने तो कहा था कि यह हलकी सी गाली है ।”
“इससे किया होता है – तुम तो बहुत परेशान करती हो ।” कासिम ने नखरे के साथ लचक कर कहने की कोशिश की, मगर तत्काल ही उसे संभल जाना पड़ा, क्योंकि हमीद चट्टान की ओर से बाहर निकला था और सीधा जीप ही की ओर आ रहा था । अकेला था ।
जब पिछली सीट पर बैठ गया तो निलनी ने कासिम के कंधे पर हाथ मार कर कहा ।
“अच्छा....अब चलो हराम जादा !”
“क्या मतलब – अबे यह मैं क्या सुन रहा हूँ ।” हमीद ने पीछे से कासिम की पीठ पर हाथ मार कर कहा ! कासिम ढिटाई से हँसकर बोला।
“मुझ से महुबत करती है ..सब चलता है।”
“तो तुम मुहब्बत में हराम जादा हो क्यूं ?”
“कुत्ते का पिल्ला भी हूं –तुम से मतलब--” कासिम झल्ला कर बोला।
“उस बाप को तो तुम छोड़ चुके हो अब मुझ से मतलब न होगा तो फिर !”
“बस अब बकवास बंद कर दीजिए वर्ना, मैं तो इन खातून की वजह से चुप हूं वर्ना कभी का आपको धक्का दे चुका होता” कासिम बोला।
“अच्छा अच्छा ...बड़े भाई --” हमीद जल्दी से बोल उठा “मैं आप की बहुत इज्ज़त करता हूं । अब जल्दी से हमें शहर पहुंचा दीजिए ।”
“तो किया शहर चलें ?” कासिम ने निलनी से पूछा।
“हां तफरीह कल करेंगे ! आज यही जरुरी है ।”
“जैसी तुम्हारी मर्जी” कासिम ने बड़े प्यार से कहा।
फिर जीप ने ऊँचे नीचे मार्गों पर हिचकोले खाना आरंभ किया, हमीद बिलकुल मौन हो गया था और रीमा उसके कंधे पर सर रखे शुन्य में घुर रही थी।
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बड़ी उबड़ खाबड़ चट्टानें थीं मगर विनोद किसी अभ्यस्त पहाड़ी के समान तेजी से चला जा रहा था। उसके पीछे विमल था। वह बार बार रुकता और फिर गिरता पड़ता चलने लगता था !
एक जगह विनोद रुक कर उसकी प्रतीक्षा करने लगा! इस समय वह मेक अप में थाऔर विमल के लिये एक अपरिचित । अपने ठिकाने से रवाना होने से पहले उसने विमल से कहा था कि वह उसके एक खास आदमी के साथ वीरान किले तक जाए और फिर थोड़ी देर बाद ख़ुद ही उस खास आदमी के रूप में उसके साथ हो लिया था! विमल उसके निकट पहुंच कर हांफता हुआ बोला।
“भाई! मैं तुम्हारे समान पैदल चलने का आदी नहीं हूं और फिर वह भी पहाड़ी रास्तों पर –जरा धीरे धीरे चलो!”
“क्या तुम थक गये हो ?” विनोद ने कोमल स्वर में पूछा।“हां दिल चाहता है की कुछ देर बैठ कर दम ले लूं !”
“तो फिर बैठ जाओ –वास्तव में चीफ यह चाहता है कि एक बार तुम्हारे साथ भी कोई वीरान किले तक जाये! क्यों चाहता है, यह मैं नहीं जानता ! चलो बैठ जाओ।”
दोनों बैठ गये! कुछ देर बाद विमल ने पूछा।
“क्या तुम चीफ को पसंद करते हो ?”
“नौकरी ठहरी .पसंद या ना पसंद का क्या सवाल !”
“तुम ने कभी उससे घृणा नहीं महसूस की ?” विमल ने पूछा।
“घृणा?” विनोद ने कहा “जब कभी वह कारण बताए बिना कोई अनोखी आज्ञा देता है तो ज़रूर नफ़रत होती है।”
“तुम्हारा नाम क्या है?”
“दारा खां ---” विनोद ने कहा।
“तुम बहुत अच्छे मालूम होते हो दारा खां-”
“पता नहीं --”
“क्या तुम कभी चीफ को धोखा दे सकते हो ?”
“क्या है तुम्हारे दिल में --” विनोद रिवाल्वर की मुठ पर हाथ रख कर गुर्राया “क्या उसने इसीलिये तुम्हें मेरे साथ भेजा है कि तुम मेरे दिल का भेद लो।”
“नहीं दारा खां --” विमल ने कहा, “ऐसी कोई बात नहीं वास्तव में उससे मुझे बड़ी नफ़रत है ।”
“तुम्हारा अपना मामिला है नफ़रत करो या मुहब्बत मुझसे क्या मतलब ।”
“मुझे एक हमदर्द चाहिये खान” विमल ने दर्दनाक स्वर में कहा “यहाँ सब मेरे शत्रु हैं यहाँ तक कि चीफ भी इतनी नफ़रत करता है कि किसी भी समय गोली मार सकता है”
“क्यों ?”
“मैं नहीं जानता लेकिन नहीं, मैं अच्छी तरह जानता हूं वह मेरी प्रेमिका का दुश्मन है हाय वह प्यारा चेहरा –उसकी याद अर्थी तक मेरे साथ जायेगी –धुँआ सुगन्धित धुँआ और वह प्यारा चेहरा ।”
विमल मौन हो गया । आंखें खुली हुई थीं, मगर जगता हुआ, नहीं मालूम हो रहा था। कुछ देर बाद वह भर्राई हुई आवाज़ में कहने लगा।
“मैं देख रहा हूं कि मेरा चीफ घात लगाये बैठा है । उसके हाथ में तेज़ाब की बोतल है, वह सुंदर चेहरे को बिगाड़ देना चाहता है –हे भगवान,नहीं,नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगा” बात समाप्त करते ही वह इस प्रकार उठ आकर झपटा जैसे किसी पर आक्रमण करना चाहता हो –मगर एक पत्थर से टकरा कर रह गया।
विनोद मौन बैठे उसे देखता रहा था।
विमल उसकी ओर मुडा। उसके चेहरे पर लज्जा के लक्षण थे । ऐसा लग रहा था जैसे अभी अभी जगा हो ।
“चोट तो नहीं आई ?” विनोद ने अपने स्थान से उठते हुये कोमल स्वर में पूछा।
“नहीं कभी कभी यह घृणा इतना उग्र रूप धारण कर लेती है कि मैं सपना देखने लगता हूं – मैं उस सुंदर चेहरे को तलाश करना चाहता हूं मगर वह हंस कर टाल देता देता है, आज भी देख लो ।ख़ुद साथ नहीं आया तुम्हें भेज दिया मगर मैं नहीं जानता ।जब वह साथ होगा तभी जाऊँगा क्या विचार है तुम्हारा ?”
विनोद कुछ नहीं बोला । चुप चाप उसकी आंखों में देखता रहा ।
“क्या तुम इतनी दया करोगे मुझ पर ?” विमल ने पूछा ।
“क्या, कुछ कहो भी तो ?” विनोद ने पूछा।
‘यहीं से वापस चलो और कर्नल से कह दो कि हम वीरान किले तक हो आये।”
“अच्छी बात है मैं तुम्हाऋ यह इच्छा पूरी करूँगा” विनोद ने कहा।
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हमीद रीमा के साथ उसी होटल में ठहरा था जिसमे सुमन नागर कर औए कासिम ठहरे हुए थे । इस समय रीमा अग्नि कुंद के पास बैठी थी और चिंता भरी नज़रों से दहकते हुए कोयलों को घूरे जा रही थी । हमीद ड्रेसिंग टेबिल के सामने खडा अपने बाल ठीक कर रहा था।
अचानक रीमा उठ खाड़ी हुई और हमीद के निकट पहुंच कर बोली।
“तुम मुझे बताते क्यों नहीं कि वह आदमी कौन था जो तुम्हें चट्टान की ओर में ले गया था ?”
मेरे चीफ का एक आदमी था” हमीद ने कहा।
“तुम्हारे चीफ का आदमी?” रीमा ने चकित हो कर पूछा।
“हां तुम्हें संदेह क्यों हो रहा है ---व हमीद ने कहा “अगर वह मेरे चीफ का आदमी न होता ओ इस समय हम इस होटल में ठहरने के बजाय
रीगम बाला की सड़कों पर भीख मांगते होते।”
“मुझे आश्चर्य है --”
“किस बात पर ?”
“अगर तुम्हारा चीफ इसी प्रकार तुम्हारी निगरानी कर रहा है तो फिर”
“हां हां –रुक क्यों गईं कहो क्या कहना चाहती हो ?”
“कुछ नहीं मेरी समझ में नहीं आता कि मैं क्या कहना छः रही हूं—मष्तिस्क पर जोर देती हूं तो सर चकराने लगता है ।”
“और मेरी अक्ल घास चरने गई है.”
“आखिर तुम इतने क्रोधी क्यों हो गये हो --” वह रोहांसी हो कर बोली।
“बस क्या बताऊँ उन शैतानों ने तुम्हें मेरे लिये एक मुसीबत बना कर रख दिया है –बिलकुल बीबियों के से भाव में बातें करने लगी हो।”
“क्या मतलब –उन अहैतानों की बात कर रहे हो ?”
“तुम्हारे साथियों की ।उन्हों ने तुम्हें ट्रान्स में ला कर तुम्हारा व्यक्तित्व ही बदल दिया है अब मैं तुम्हें शहद लगा कर चाटू या रद्दी की टोकरी में फेंक दूं।”
‘बेवकुफो की सी बातें न करो” वह रो पड़ी और हमीद उसे रोता छोड़ कर वहाँ से भाग खड़ा हुआ।
रात के आठ बज रहे थे । डाइनिंग हाल में अधिक भीड़ नहीं थी। कासिम एक मेज पर अकेला था, हमीद को देखते ही उसने बुरा सा मुंह बनाया मगर कुछ बोला नहीं। हमीद ने भी कुछ नहीं कहा।चुप चाप कुर्सी खींच कर उसके सामने बैठ गया।
“जी ---फरमाइए ?” कासिम ने जहरीले स्वर में कहा।
“वह कहाँ गई?” हमीद ने मुस्कुरा कर पूछा।
“आप से मतलब ?”
“बड़े प्यारे लहेजे में हराम जादा कहती है”
“जी फिर आप भी सिखा दीजिए अपनी कट्टा को।”
“वह तो मेरी उस्तानी है --।”
“उस्तानी नहीं बताशा है”
“क्या तुमने पी रखी है ?”
“बोर मत करो बस यहाँ से चले जाओ” कासिम हाथ उठा कर बोला।
‘सुनने में आया है कि तुमने किसी मरीज़ औरत की नौकरी कर रखी ही ?”
“मैंने सब कुश कर रखी है ..आप से मतलब ?”
“अबे होश में है या नहीं ?”
“देखो देखो जबान संभाल के हां नाहीं तो ।”
“आखिर किस बात का घमंड हो गया है तुम्हें ..पल भर में मुंह काला हो जायेगा तुम्हारा चट्टानों से फिर टकराते फिरोगे ..लम ढग कहीं के .तुम्हें इसकी भी फिक्र नहीं है कि तुम ख़ुद ही सब कुछ उसे बता चुके हो।”
कासिम ठुक निगल कर रह गया । धीरे धीरे बेबसी के लक्षण उसके चेहरे पर उभरते आ रहे थे।
इतने में रीमा दिखाई दी ..वह तीर के समान उनकी मेज पर आई।
“क्या है ?” हमीद ने झल्ला कर पूछा।
“मुझे अकेले में उलझन होती है ..” रीमा ने कहा।
“होनी ही चाहिये ..” कासिम बोल पड़ा।
हमीद मौन रहा ..न केवल मौन रहा, बल्कि दूसरी ओर मुंह फेर कर बैठ गया । अचानक कासिम को शरारत सूझी और उसने रीमा से कहा।
“बहुत बुरे आदमी को चाहने लगी हो तुम...”
हमीद के अधरों पर मंद सी मुस्कान नजर आई। उधर रीमा चकित द्रष्टि से कासिम को घूरने लगी।
“मैं गलत नाही कह रहा हूं ..दर्जनों औरतें इसके पीछे बर्बाद हो गई है .अच्छा आदमी नाही है”
“शट अप --” रीमा इतनी कोर से चीखी कि पूरा हाल गूंज उठा। लोग चोंक कर उनकी ओर देखने लगे।
कासिम के मुंह पर हवाइयां उड़ाने लगीं और उसने बौखला कर हमीद की ओर देखा। हमीद बायीं आंख दबा कर मुस्कुराया और रीमा का कंधा थापक कर बोला।
“चलो चलो इतना गुस्सा अच्छा नहीं यह बिलकुल बेवकूफ आदमी है, मेरा मेरा दोस्त भी है माफ़ कर दो।”
“इसे तुम दोस्त कहते हो जो तुम्हें बुरा कह रहा था..” रीमा बोली ।
“इसको तो इसकी गर्ल फ्रेंड भी हराम जादा कह रही थी ...” हमीद बोला।
“हराम जादा क्या ?” रीमा ने पूछा।
“इसके सामने नहीं बताऊंगा --”
“बता कर देखो ..तोड़ मरोड़ कर रख दूंगा....”
“अब यह क्या कह रहा है?” रीमा ने हमीद से पूछा।
“अरे ख़त्म करो ..आओ चलें ..”
“ख़त्म करो ..आओ टलें..” कासिम मुंह चिडा कर बोला साले मेरी वाली होती तो पता चलता। खैर देखा जायेगा।”
“यह कुछ कह रहा है और इसका लहजा भी अच्छा नहीं है ...” रीमा ने हमीद से कहा और फिर कासिम को घूरने लगी।
कासिम बुरी प्रकार गड़बड़ा गया और फिर बौखला कर उठ गया अब्वः रहाइशी कमरों की ओर जा रहा था।
हमीद रीमा को अपने कमरे की ओर लाया और धीरे से बोला।
“मेरा ख़याल है कि कर्नल उससे मिल चुके हैं मैं उससे बातें करना चाहता हूं ।”
“मुझे अपने और तुम्हारे अतिरिक्त अब किसी वस्तु से दिल चस्पी नहीं रही ।” वह बुरा सा मुँह बना कर बोली ।