Regum Wala - 8 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | रीगम बाला - 8

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रीगम बाला - 8

(8)

“तुम झूठ बोल रहे हो ।” हमीद ने कहा “मुझे हर हाल में मरना है – फिर मैं अपने चीफ का जीवन क्यों खतरें में डालूँ – नहीं नहीं मैं अपने चीफ का पता नहीं बता सकता – तुम शौक से मुझे मार डालो ।”

विदेशी किसी सोच मैं पड़ गया, फिर कबालियों की ओर मुड़ कर किसी प्रकार का संकेत किया । दो आदमी आगे बढ़े और उन्होंने हमीद को खोलना आरंभ कर दिया ।

पल भर में वह आजाद था, रीमा जहाँ रुकी थी वहीँ अब भी खाड़ी थी और कटार उसके हाथ में थी ।

“लड़की ! कटार धरती पर डाल दो ।” विदेशी ने रीमा की आँखों में देखते हुये कहा ।

कटार के गिरने की आवाज गुफा में गूंजी, फिर विदेशी ने हमीद से कहा ।

“कैप्टन हमीद – अगर तुम ने इस गुफा से बाहर निकलने की कोशिश की तो तुम्हारा शरीर छलनी होकर रह जायेगा ।”

“मैं समझता हूँ ।” हमीद बोला ।

“क्या तुम भी इस लड़की को चाहते हो ?” विदेशी ने पूछा ।

“मैं अभी निर्णय नहीं कर सका ।”

“क्या मतलब ?”

“मेरे साथ एक ट्रेजडी है ।”

“पहेलियों में बातें न करो – मेरे पास समय कम है ।”

“मैं लड़कियों को चाहने की कोशिश तो करता हूँ – मगर वह मेरे दिमाग से निकल जाती है ।”

“तुम अब भी खुल कर बात नहीं कर रहे हो ।”

“वह कुछ दिनों तक तो सचमुच मुझे चाहती है – फिर मूर्ख बनाने लगती है ।”

“क्या तुमने इस लड़की के बारे में यही महसूस किया है ?”

“कुछ कुछ !”

“तुम भ्रम में पड़े हो कैप्टन – इसने तुम्हारे प्रेम में संस्था से गद्दारी की है....और संस्था से द्रोह की सजा मौत है ।”

“कुछ भी हो...मैं संसार की किसी भी लड़की पर विश्वास नहीं कर सकता ।”

“यह ऐसी बनाई जा सकती है कि तुम इस पर विश्वास करने लगो ।”

“वह किस प्रकार मेरे दोस्त !”

“यह मत पूछो – मैं पंद्रह दिन के अंदर इसे ऐसा बना सकता हूँ कि यह तुम्हारे लिये एक खरीदी हुई दासी साबित हो ।”

“आखिर मैं क्या चाहता हूँ ।” हमीद ने इस भाव मैं कहा जैसे अपने आप से पूछ रहा हो ।

“मैं मालूम कर सकता हूँ ।”

“मुझे खुशी होगी अगर तुम मेरी मानसिक स्थिति का अन्वेषण कर सको ।”

“हो सकता है – लेकिन इसके लिये तुम्हें अपनी संकल्प शक्ति को मेरे अधीन करना होगा । मैं तुम्हें ट्रान्स में लाकर मालूम कर लूँगा ।”

“मैं तैयार हूँ मेरे अपरिचित दोस्त ।” हमीद ने कहा । वह दिल में खुश हो रहा था यह सोच कर कि चलो अच्छा है......यह उसे ट्रान्स में लाकर विनोद का पता पूछेगा और फिर संतुष्ट हो जायेगा कि मैं सचमुच कर्नल विनोद का पता नहीं जानता – इस प्रकार कम से कम इनकी यातनाओं से तो बचा रहेगा । रही क़त्ल करने बात....तो यह उसे क़त्ल कर ही नहीं सकते ।

फिर विदेशी ने उसे लेट जाने का परामर्श दिया और उसे ट्रान्स में लाने के लिये आदेश देने लगा । हमीद ने अपने मस्तिष्क को ढील दे दी और धीरे धीरे तन्द्रा का शिकार होता गया ।

पता नहीं कितनी देर तक अचेत रहा था – दुबारा जागा तो सर रीमा की जांघ पर था और वह ह्रदय ग्राही मुस्कान के साथ उसकी आँखों में देख रही थी । अलाव पहले ही के समान जाल रहा था....मगर रीमा के अतिरिक्त अब वहाँ कोई भी नहीं था ।

“सो जाओ ।” वह उसका गाल सहलाती हुई भर्राई सी आवाज में बोली “मैं सारी रात इसी तरह बैठी रहूंगी ।”

हमीद जल्दी से उठ बैठा और धीरे से पूछा ।

“वह सब कहां गये ?”

“कौन सब ?” रीमा ने आश्चर्य के साथ पूछा ।

“जिन्होंने हमें इस हाल को पहुँचाया है !”

रीमा कुछ सोचने लगी । उसकी आँखों में उलझन के लक्षण थे ।

“तुम क्या सोचने लगी – मेरी बात का उत्तर दो ?”

“मम....मैं यह सोच रही हूँ कि हम लोग कहाँ है ?” रीमा ने कहा ।

“तो क्या तुम ने यहां किसी को नहीं देखा ?”

“नहीं ।” रीता ने कहा “हम लोग तो हेली काप्टर में सोये थे.....फिर यहाँ कैसे ?”

हमीद उसे चकित द्रष्टि से देखने लगा और रीमा भयभीत नजरों से चारों और देखने लगी । अलाव का प्रकाश फैला हुआ था – फिर उसने हमीद को पूछा ।

“मम....मुझे डर लग रहा है ।”

“दरो नहीं....पहले मैं मरूँगा......फिर तुम पर कोई आँच आयेगी ।”

“तुम अपने मरने की बात मत करो ।” वह उसके गले में बाहें डाल कर रोने लगी ।

हमीद उसकी पीठ थपकता हुआ तसल्ली देने लगा । उसे उस समय तक का होश था जब विदेशी उसे ट्रान्स में लाने के लिये आदेश दे रहा था....फिर नींद में क्या बीती थी....इसका उसे कोई पता नहीं था । उसने मस्तिष्क पर जोर देना आरंभ किया की शायद कुछ याद आ जाये – मगर कुछ याद नहीं आया ।

कुछ देर बाद उन्होंने गुफा का मुख तलाश करना आरंभ किया और इसमें उन्हें सफलता मिल गई ! हमीद ने घडी देखी । रात के तीन बजे थे । वह सोचने लगा कि अब वह लोग पूरी तौर पर उस पर नजर रखेंगे....और यही एक रास्ता विनोद तक पहुँचने में लाभ दायक सिध्ध हो सकता था । उसने लम्बी सांस खींची और रीमा को लिये हुये अलाव की ओर पलट आया ।

“अब क्या होगा ?” रीमा ने उदासीनता के साथ पुछा ।

“देखा जायेगा ।” हमीद ने झल्ला कर कहा ।

रीमा ने उसे आश्चर्य से देखा, फिर उसकी आँखों में दुख की परछाई नजर आने लगी ! उसने दर्द भरे स्वर में कहा ।

“तुम तो ऐसा व्यहार करो....अब तुम्हारे अतिरिक्त और कौन है इस संसार में मेरा ।”

“तुम गलत समझी ।” हमीद ने कोमल स्वर में कहा “मैं वास्तव में इन परिस्थितियों से परेशान हो गया हूँ ।”

“मगर इसमें मेरा क्या दोष है....मैं तो यथा शक्ति तुम्हारी सहायता ही करती रही हूँ....मैं ख़ुद भी नहीं जानती कि यहां तक कैसे पहुँची ।”

“तुमने यहां किसी को भी नहीं देखा था ?” हमीद ने पूछा ।

“नहीं....मैं जागी थी तो तुम मेरे निकट ही सो रहे थे....मैंने तुम्हें उठाना चाहा था मगर तुम्हारी नींद तो बेहोशी मालूम हो रही थी फिर मैं तुम्हारी होश में आने की प्रतीक्षा करती रही थी ।”

“अच्छा आओ बैठो ।” हमीद ने कहा ।

दोनों अलाव के पास ही बैठ गये । रीमा फिर हमीद की ओर देखने लगी ।

“सवेरा होने तक हम यहीं ठहरेंगे ।” हमीद ने कहा ।

“यह सोचो कि हम यहां पहुंचे कैसे....हेली काप्टर कहां गया – यह वह गुफा नहीं है जहाँ हमने हेली काप्टर उतरा था ।” रीमा बोली ।

“इससे तुम किस नतीजे पर पहुँची ?”

“उन लोगों के अतिरिक्त और कोई नहीं हो सकता मगर यहाँ इस प्रकार छोड़ देने का क्या ध्येय हो सकता है ?”

“हमारी निगरानी....उस समय ताज – जब तक कि मेरा चीफ उनके हाथ न लग जाये ।”

“बिल्कुल यही बात है – वर्ना हमारे भाग निकलने पर वह हमें जीवित न छोड़ते ।”

हमीद ने अपनी जेबें टटोली ! तमाखू की पाउच और पाइप मौजूद थे । उसने संतोष की सांस ली ।

सवेरा होते ही दोनों गुफा से बाहर निकले । ठंडी हवा हड्डियों में घुसी जा रही थी ।

“हम कहाँ जायेंगे—“ रीमा ने पूछा और हमीद को फिर ताव आ गया। वह जैसे चीख पड़ा।

“जहन्नुम में –“

“तुम फिर मिझ पर नाराज होने लगे।“

“आखिर तुम इतनी निराश क्यों हो रही हो”

“मैं नहीं जानती---कुछ भी तो समझ में नहीं आता –पता नहीं क्यों दिल यह चाह रहा है कि तुम्हारे कदमों पर सर रख दूं।”

हमीद चलते चलते रुक कर उसे घूरने लगा और वह सचमुच उसके कदमों पर झुकती चली गई।

“यह क्या पागलपन है” वह उसकी भुजा पकड़ कर उठाता हुआ बोला।

“मैं कुछ नहीं जानती --” वह उसके सीने से सर टिका कर बच्चों के समान सिसकियाँ लेने लगी।

“अब क्या मैं गधे की बोली बोलना आरंभ कर दूं ...देखो औरतों को रोता देख कर मुझे बड़े जोर का गुस्सा आता है।”

“ऐसी बातें न करो कि मेरा दिल टुकडे टुकडे हो जाए ।”

“हाय !” हमीद ने कहा और अचानक उसे यह याद आ गया कि उस विदेशी ने उसे इसी का तो विश्वास दिलाने की कोशिश की थी कि वह रीमा को ट्रान्स में ला कर इस प्रकार बना देगा कि उसकी वह दासी हो जाएगी—कहीं रीमा की इस बहकी हुई मानसिक स्थिति में उसी का हाथ तो नहीं है।”

“रीमा !” वह भर्राई हुई आवाज में बोला “मुझे अपने व्यवहार पर दुख है—आगे ऐसा नहीं होगा।”

“चुन कि मैंने ख़ुद तुमसे मुहब्बत की भीख मांगी थी –इसलिये तुम मुझे ठुकरा रहे हो ।”

“अब ऐसे सस्ते डायलोग भी न बोलो ...मुहब्बत ...भीख ..ठुकराता हूं ...बकवास है।”

“चलो बकवास ही समझ करमेरी दशा पर दया करो--”

“कर दी दया –अब चुप रहो ।”

“मै तुम्हारी ही जाती की किसी लड़की के समान तुम्हारे कदमो में पड़ी रहूंगी।”

“ओह ..” हमीद अपने कानों में उंगलियाँ ठूंस कर बोला “क्या तुम यह चाहती हो कि मैं किसी चट्टान से छलाँग लगा दूं।””मैं समझ गई ...”रीमा ने उसके हाथों को पकड़ कर कानों से अलग करते हुए कहा “बिलकुल यही बात है।”

“क्या बात है ?”

“इन्हों ने मेरे विरुद्ध भड़काने की कोशिश की है ।”

“तुम बीबियों जैसी बातें करने लगी हो ..और मुझे इस भाव में की जाने वाली बातों से दिली नफ़रत है ।”

“वह बर्बाद हो जाएंगे ...खुदा उनको कहीं का न रखेगा--”रीमा बोली।

हमीद दांत पीस कर रह गया। ठंड इतनी थी कि क्रोध भी ठंडा हो गया। गुफा में तो अलाव की गर्मी थी ..फिर इतने सवेरे सर्दी में निकल आने की आवश्यकता ही क्या थी .आखिर वहाँ क्या मुसीबत थी।

“वापस चलो ...” उसने रीमा से कहा।

रीमा बिना कुछ पूछे गुफा की ओर मुड़ गई।

दोनों फिर अलाव के पास जा बैठे और अचानक हमीद फिर अपनी जेबें टटोलने लगाज़ उसके बाद लम्बी और ठंडी सांस खींची ।

“क्या बात है?” रीमा ने पूछा। मेरा पर्स ग़ायब है ।”हमीद बुरा सा मुंह बना कर बोला “अब हम शायद इन्हीं चट्टानों से टकराते फिरेंगे।”

“यह तो बहुत बुरा हुआ....मेरे पास भी कुछ नहीं है ।” रीमा बोली ।

“अगर इस बार इस चक्करों से निकल गया तो ।”

“तो क्या करोगे ?”

“आवश्यक नहीं कि तुम्हें हर बात बताई जाये ।”

“जो दिल चाहे करो...मैं तो अपने आपको तुम पर बलिदान ही कर चुकी ।”

“फिर वहीँ घटिया बातें !”

“मैं निश्चय कर लिया है कि तुम्हारे दास दसियों का सा जीवन व्यतीत करूंगी ।”

“कुछ देर मौन रहो...कुछ सोचने दो ।”

“मेरे कारण तुम्हें कभी कोई कष्ट नहीं होगा ।”

“अच्छा अच्छा कुछ देर मुंह बंद रखो ।” हमीद ने कहा । उसे विश्वास हो गया कि विदेशी ने ट्रान्स में लाकर इसे कुछ इसी प्रकार का आदेश दिया है...मगर इसका ध्येय ? उसने संस्था से गद्दारी की थी । उसे तो मार ही डालना चाहिये था । प्रकट है कि विनोद की तलाश में वह किसी प्रकार की सहायता नहीं कर सकती थी......फिर उसे जिन्दा क्यों रखा गया है...उसके सर पर क्यों सवार कराया गया है ?

वह सोचता रहा और अन्त में इसी निष्कर्ष पर पहुंचा कि इस प्रकार वह अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहते है....यह समझाना चाहते है कि उन्होंने संस्था की एक विद्रोही सदस्य को खुल्लम खुल्ला छोड़ रखा है....लेकिन उसकी सहायता भी कर्नल विनोद के किसी काम नहीं आ सकती...बस इतना ही हो सकता है कि वह उन स्थानों को छोड़ दें जिनको रीमा जानती हो...बस ।

उसने रीमा को देखा । वह अलाव कुरेद रही थी, फिर उसने उठ कर उसमें कुछ सूखी लकड़ियाँ डाल दीं । उसके भावों में इतना घरेलू पण नजर आ रहा था कि हमीद होठ सिकोड़े बिना न रह सका ।

“मुझे भूख लग रही है ।” हमीद ने उसे सम्बोधित कर के कहा ।

“मेरी बेटियाँ काटो और भून कर खाओ...मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी ।” रीमा ने बिना उसकी ओर देखे हुये कहा ।

“अच्छी बात है....अब मेरी किसी बात का उत्तर न देना ।”

“बस नाराज हो गये ।” वह उठती हुई बोली और उसके निकट आ बैठी । हमीद ने एक ओर खिसक जाना चाहता । लेकिन रीमा ने उसकी भुजा पकड़ कर कहा “जरा जरा सी बात पर रूठ जाते हो ।”

“मैं रूठने की योग्यता नहीं रखता, मेरी भुजा छोडो ।”

“नहीं छोडूंगी ।” वह उसकी आँखों में देखती हुई मुस्कुराई ।

“अगर पेट खाली हो तो मुझे लड़कियों की मुस्कुराहट जहर लगती है ।”

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