Regum Wala - 4 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | रीगम बाला - 4

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रीगम बाला - 4

(4)

“हां –मैं कैप्टन हमीद को दिलो जान से चाहती हूं –उसके बिना जिन्दा नहीं रह सकतीं। मैंने उसे वह सब कुछ बता दिया है जो मैं जानती थी। मैंने उसे यह भी बता दिया है कि मुझे संस्था से घृणा हो गई है।कल के सुंदर संसार के लियेमैं आज की बरबरता सहन नहीं कर सकती। आज का रक्त कल के फूलों की लालिमा बने –मैं इसे पसंद नहीं करती ..संस्था के बड़ों ने मेरे पंगुल बाप को इसलिये मार डाला कि वह उनके काम का नहीं रह गया था—तुम लोग आदमी को मशीन समजते हो –मैं तुम सब पर धिक्कार भेजती हूं...मैं कर्नल विनोद से मिल कर संस्था को रसातल में मिला दूँगी-”

वह मग्न हो गई और सामने वाली दिवार से आवाज़ आई ।

“स्थानीय कार्य अध्यक्ष के बारे नें तुमने कैप्टन हमीद को क्या बताया है? -”

अचानक हमीद अपनी कुर्सी से उठा और उन दोनों पर टूट पड़ा जो रीमा की कुर्सी के निकट खड़े थे। एक के जबड़े पर उसका घूंसा पड़ा था और दुसरे के पेट पर ठोकर लगी थी। पेट पर ठोकर खाने वाला तो फिर उठ ही न सका, मगर घूंसा खाने वाला हमला कर बैठा। हमीद ने महसूस किया कि वह शक्ति शाली भी है। वह उससे लिपट पड़ा थाज़ अचानक फिर दिवार से आवाज आई।

“क्या हो रहा है ...वह मौन क्यों हो गई! -”

हमीद के प्रतिद्वंदी ने कुछ कहना चाहा मगर हमीद ने उसका मुह दबा दिया और पेट पर ठोकर खाने वाला तो फर्श पर शिथिल पड़ा हुवा था। ऐसी चोट तो मौत का कारण भी बन सकती थी और हमीद दुसरे का मुह दबाये उसका गला घुटने की भी कोशिश कर रहा था। दिवारसे फ़िर आवाज आई।

“कमरा नंबर तेरह में क्या हो रहा है? -”

“टेप रेकार्डर ख़राब हो गया है।-” हमीद ने भर्राई हुई आवाज में उत्तर दिया।

“जल्दी करो ।” आवाज आई ।

“बस एक मिनिट ।” हमीद ने कहा ।

हमीद के प्रतिद्वंदी की निवारण शक्ति हीन पड़ती जा रही थी । और फिर वह भी गति हीन होकर उसके बंधन से फिसिल गया ।

हमीद बड़ी फुर्ती से रीमा की कुर्सी के तस्मे खोलने कल लिये झुका, रीमा ने रवरवार कर उसे अपनी ओर आकृष्ट किया और जब हमीद ने उसकी ओर देखा तो उसने आँखों से संकेत किया कि पहले वह सामने वाली दीवार पर लगे हुये स्विच बोर्ड के सारे स्विच आफ कर दे ।

हमीद ने इसमें देर नहीं लगाईं फिर रीमा को आजाद किया और रीमा उससे लिपट कर किसी नन्ही बच्ची के समान रोने लगी ।

“ओ हो अरे भाई बस ।” हमीद नर्वस होकर बोला “अब यहाँ से निकल भागने की फ़िक्र करो, कहीं फिर न फँस जायें ।”

“इस कमरें में इन इन दोनों की आज्ञा के बिना कोई नहीं आ सकता ।” रीमा हिचकियाँ लेती हुई बोली ।

“तो फिर इनके उठ बैठने की संभावना ही समाप्त कर दी जाये ।” हमीद ने कहा और उन दोनों की ओर बढ़ा, फिर पाँच ही मिनिट के अंदर उसने उन दोनों को उन्हीं दोनों कुर्सियों से जकड़ दिया । इतनी देर में रीमा भी संभल चुकी थी । उसने उसके निकट आकर कान में धीरे से कहा ।

“अब हमें यहाँ दे निकल चलना चाहिये वर्ना वह.....” उसने दीवार की ओर संकेत किया और मौन हो गई फिर हमीद का हाथ पकड़ कर दरवाजे की ओर बढ़ी ।

दरवाज़ा खोल कर वह एक कारीडर में दाखिल हुये जिसके दोनों ओर कमरे बने हुये थे । अंतिम कमरे के सामने पहुंच कर रीमा ने कहा ।

“इस कमरे में ऊपर जाने के लिये सीढ़ियाँ बनी हुई है ।”

“ऊपर जाकर हम क्या करेंगे ?”

“ऊपर दो हेलीकाप्टर हर समय मौजूद रहते है – हम हेलीकाप्टर द्वारा ही कहीं जा सकते है – उसके अतिरिक्त यहाँ से निकल भागने का और कोई साधन यहाँ नहीं है.....।” रीमा ने कहा और दरवाजे    का हेंडिल घुमाने ही जा रही थी कि हमीद ने उसे रोका ।

“क्या बात है ?” वह चौंक पड़ी ।

“यहाँ कितने आदमी होंगे ?” हमीद ने पूछा ।

“ऊपर दो सशस्त्र रक्षकों से सामना होने की संभावना है ।”

“मेरे पास तो कुछ भी नहीं है कम से कम एक रिवाल्वर ही होता ।”

“कोई उपाय किया जायेगा, वैसे पूरी तरह सावधान रहना ।”

“क्या उन रक्षकों को इसका ज्ञान होगा कि अब तुम्हारी हैसियत एक कैदी की सी है ।”

“हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता ।” रीमा ने कहा और हेंडिल घुमा कर दरवाज़े को धक्का दिया, मगर दरवाज़ा थोडा सा खुल कर दूसरी ओर किसी वस्तु से टकराया था, फिर तत्काल ही ऐ आदमी दरवाज़े के पीछे से प्रकट हुआ ।

इन दोनों को देखते ही उसका मुँह आश्चर्य से खुल गया, मगर हमीद दुसरे ही क्षण उस पर झपट पड़ा और वह दूसरी और सीढ़ियाँ पर उलट पड़ा । हमीद उसके ऊपर था और उसकी गर्दन उसके बंधन में थी, वह उस पर दबाव डाल रहा था ताकि वह बेहोश हो जाये ।

वह शीघ्र ही बेहोश हो गया । हमीद ने होल्स्टर और कारतूसों की पेटी उसके शरीर से अलग कर ली ।

“तुम सचमुच जियाले हो ।” रीमा ने कहा “अब चुपचाप ऊपर चलो ।”

अठ्ठारह सीढ़ियाँ तै करने के बाद वह छत पट पहुँचे । यह इमारत चारों ओर से ऊँची ऊँची चट्टानों के मध्य घिरी हुई थी और उन चट्टानों से भी अधिक उचाई से देखी जा सकती थी ।

यहाँ दो हेलीकाप्टर मौजूद थे अगर कोई आदमी नहीं देखाई दे रहा था ।

“क्या तुम इन्हें पायलट कर सकोगे ?” रीमा ने पूछा ।

“अगर यह साधारण प्रकार के होंगे तो अवश्य.....।”

“साधारण ही है....कोई नवीनता नहीं है ।”

“बस यही दो है यहाँ ?”

“हाँ !”

“तो फिर एकको मैं इस योग्य न रहने दूँ कि हमारा पीछा किया जा सके ।”

“क्या तुम ऐसा कर सकोगे ?” रीमा ने उत्साह भरे स्वर में पूछा ।

“क्यों नहीं....।” हमीद ने कहा और एक हेलीकाप्टर की ओर बढ़ा । फिर दो ही तीन मिनिट में उसके इंजिनों में दोष उत्पन्न कर दिया ।

“तुम सचमुच मुझे आश्चर्य में डालें दे रहे हो ।”

फिर दोनों दुसरे वाले हेलीकाप्टर में जा बैठे और जब वह ऊपर उठने लगा तो रीमा कहकहा लगा कर हँस पड़ी ।

“किधर ?” हमीद ने कम्पास पर नजरें जमाये हुए पूछा।

“पूर्व ओर ..?”

“मगर यह हुआ कैसे था ?” हमीद ने उसे पूर्व ओर मोदते हुए पूछा।

“मैं क्या बताऊँ –मैं तो तुम्हारे साथ ही थी—शायद हमें चाय में बेहोशी की दवा पिला दी गई थी –फिर जब चेतना लौटी थी तो ख़ुद को कनफेशन चेयर पर पाया था । उन कुर्सियों की विचित्र विशेषता है ...यह मानव स्नायु को झूठ बोलने के योग्य ही नहीं रहने देतीं ।”

“तुम एरे बारे में उन्हें बहुत कुछ कह रही थी उसे सुन भी रही थी और यह समज भी रही थी कि मैं जो कुछ कह रही हूं वह हम दोनों के लिये खतरनाक है –मगर मैं सच्ची बात कहने से अपने को रोक नहीं सकती थी –और यह उन कुर्सियों का प्रभाक था। तुमने ठीक समय पर उन दोनों पर हमला कर डिया था—वरना मैं वह बातें भी बता देती जो मैंने तुम्हें बताई थी—फिर जानते हो क्या होता।”

“क्या होता ?”

“वह तुम्हारे द्वारा कर्नल विनोद पर हाथ डालने की योजना बदल देते..”

“क्या मतलब !”

“तुम्हें मार डालते और शायद मुझे भी क़त्ल कर डालते ....मगर अब वह शायद ही मुझ पर हाथ डाल सकें ।”

“क्या तुम ऐसी ही हो !” हमीद ने पूछ।

“देख लेना ...” रीमा मुस्कुराई ।

“तो तुम मेरे बारें में सच बोल रही थी ?” हमीद ने मुस्कुरा कर पूछा ।

“तुम्हें इसमें संदेह न होना चाहिये ।”

“आखिर यह औरतें इतनी जल्दी चाहने क्यों लगती है ।”

“हर औरत अपने आइडियल की तलाश में रहती है ।”

“ओह –तो क्या मैं किसी का आइडियल बनने की योग्यता भी रखता हूं ।”

“बहुत अधिक कैप्टन ---” रीमा ने कहा “अच्छा यह बताओ कि तुम्हें अब तक कितनी औरतें चाह चुकी हैं ।”

“संख्या तो याद नहीं –मगर यह अवश्य बता सकता हूं कि बड़ी तेजी से चाहने लगती हैं और फिर एक दिन उतनी ही तेजी से बोर हो कर चल देती हैं।”

“मैं विश्वास नहीं कर सकती ...संसार की कोई औरत तुमसे तो नहीं बोर हो सकती ।”

“हर औरत आरंभ में मुझे इसी बात पर विश्वास दिलाने की कोशिश करती है।”

“तुम झूठे हो ।”

“मत विश्वास करो ..एक दिन ख़ुद ही देख लोगी।”

रीमा मौन हो गई। हमीद भी अब बोलना नहीं चाहता था क्योंकि कराठ फाड़ कर बोलना पड़ रहा था। हेलीकाप्टर की आवाज कान फोड़ डाल रही थी, मगर अभी एक प्रश्न बाकी था इसलिये उसे बोलना ही पड़ा।“

“तुम मुझे अब कहाँ ले जाना चाहती हो ?”

“बस चलते रहो ..कम्पास पर मेरी नजर है –जहां लेंड करने को कहूं उतार देना। इस प्रकार एक हेलीकाप्टर भी हमारे अधिकार में आ जायेगा।

“तो क्या तुम इसे खुल्लम खुल्ला प्रयोग भी कर सकोगी?”

“देखा जायेगा –यह तुम हर बात में बहस क्यों करने लगते हो ?”

“आखिर बोर होना आरंभ हो गई ना --” हमीद हंस कर बोला।“

“ठहरो ...हां ..हमें यहीं उतरना है ।”

“अच्छी तरह इत्मीनान कर लो --” हमीद ने कहा।

हेलीकाप्टर वायु मंडल मीम थम गया था। रीमा ने हंस कर कहा ।

“मैं इतनी अनाडी नहीं हूं ...चलो नीचे उतारो ।”

अन्त में वह एक जगह टिक गया। हमीद डर गया था कि कहीं वह किसी असमतल जगह से टकरा जाये।

“तुम ने देखा --” रीमा उसके चहरे के निकट अंगुली नाचा कर बोली “चलो ..नीचे उतरो ।”

हमीद ने इन्जिन का स्वीच आफ कर दिया और जब नीचे उतारा तो रीमा की योग्यता का क़ायल हो गया।चट्टान का यह भाग इतना सपाट और समतल था जैसे विशेष रूप से इसी काम के लिये तराशा गया हो ।

“मैं ऐसे कई स्थानों को जानती हूं जिनका पता मेरे साथियों को नहीं --” रीमा ने मुस्कुरा कर कहा “मैं समझ रही थी कि कभी न कभी मुझे संस्था से अलग होना पड़ेगा इसलिये मैं ऐसे स्थानों कि तलाश में रहा करती थी।”

“क्या यह समझती हो कि हेली काप्टर यहाँ उनकी नज़रों से बचा रहेगा?” “बिलकुल नहीं... मैं अभी इसको ऐसी जगह ले जाउंगी जहां चिड़िया भी नहीं पहुंच सकती ।”

हमीद लम्बी सांस ले कर चारों ओर देखने लगा ।

“मेरे साथ आओ --” रीमा ने उसका हाथ पकड़ा और उसे उसी समतल चट्टान के सिर पर ले आई, फिर बोली “अब नीचे देखो ।”

हमीद नीचे देखने लगा। एक गहरा गढ़ा था –इतना गहरा कि उसकी तह तक नहीं दिखाई दे रही थी ।

“मैं इसे न केवल नीचे उतार ले जाउंगी बल्कि दस मिनिट बाद फिर यहीं तुम्हारे पास मौजूद रहूंगी।”

“अब मेरे चकित होने की बारी आई है --” हमीद ने कहा।

“अच्छा ...तुम भी चलो मेरे साथ ...मगर इस बार मैं पाइलट करूंगी --” रीमा ने कहा और उसे लिये हुए फिर हेली काप्टर की ओर बढीं।

हमीद उस समय उसके अभ्यास पर दांग रह गया था जब वह हेली काप्टर को उसी गधे में उतार रही थी । चुन कि गधे में अंधेरा था इसलिये उसने हेली कापता के सारे बल्ब जला दिये थे । अन्त में हेली काप्टर का निचला भाग धरती से लगा और उसका इन्जिन बंद कर दिया गया।बल्ब अभी भी जल रहे थे।

“अब इसके बाद हम कहाँ जायेंगे ?” हमीद ने पूछा।

“हम यहीं काफ़ी दिनों तक रह सकते हैं --” रीमा ने कहा “यह हेली काप्टर इमर्जन्सी के लिये है । इसमें आवश्यकता की सारी वस्तुएं मौजूद हैं ...डब्बों में सुरक्षित खाद्य पदार्थ...पानी ..शराब और इंधन...काफ़ी .चाय.. दूध के डिब्बे –सभी कुछ ।”

“और तुम लोग इन हेली काप्टरों को खुल्लम खुल्ला प्रयोग करते रहे हो ?”

“हां ..दिन के उजाले में भी ।”

“आश्चर्य ही कि किसी ने भी इनका नीतिस नहीं लिया ।”

“तुम्हें यह सुन कर आश्चर्य होगा कि बहुधा तुम्हारे यहाँ के उच सरकारी आफिसर भी मौजूद होते हैं ।”

“यह बात मेरी समझ में नहीं आई ?”

“आखिर हमारी वाह्य पोजीशन भी तो कुछ होगी वर्ना हम यहाँ तुम्हारे देश में ठहरते कैसे ?”

“वाह्य पोज़ीशन का क्या मतलब हुआ ?”

“हम लोग तुम्हारे देश के लिये सम्मानित लोग है.....हम यहाँ धरती के अंदर तेल तलाश कर रहे है । गैस से एक बड़े भण्डार के अनुसंधान का सेहरा भी हमारे ही सर है ।”

“ओहो....तो यह बात है ?”