(3)
इस पर कासिम ने शरमा जाने की एक्टिंग आरंभ कर दी।
इतने में नर्स आ गई । उसके साथ असिस्टेंट मैनेजर भी था। उसने कहा।
“अब आप लोग अपने कमरों में जा सकते हैं ।”
“जी हां –जी हां --” कासीम भन्ना कर बोला “ मैं अब ख़ुद भी यहाँ नाही रुकना चाहता ।”
निलनी उसे आश्चर्य से देखने लगी और सोचने लगी कि आखिर किस बात पर इसे क्रोध आ गया। वह उठा था और दरवाजे कि ओर बढ़ गया था –उसके बाद निलनी और असिस्टेंट मैनेजर भी कमरे से निकले थे।कासिम करीदार में खड़ा मिला।मैनेजर तो उस पर नजर डालता हुआ आगे बढ़ गया ।मगर निलनी वहीँ रुक गई ।
“आखिर तुम्हें किस बात पर क्रोध आ गया था ?”
“बाद सूरत नर्सों को देख कर मुझे हमेशा गुस्सा आ जाता है।”
“क्यों?”
“बदसूरत थी तो नर्स क्यूं बनी –किसी स्कुल में टीचरी कर ली होती ।”
“तुम विचित्र आदमी हो ।”
“मैं डाइनिंग हाल में जाना चाहता हूं ।”
“तो चलो !”
दोनों डाइनिंग हाल में आये ! यहाँ कासिम वाली मेज अब भी खली थी –और वह उस पर जो कुछ भी छोड़ गया था ज्यों का त्यों मौजूद था। एक वेटर पास ही खड़ा कदाचित उसकी निगरानी कर रहा था।
कासिम ने निलनी के लिये कुर्सी खिसकाई और वह शुक्रिया अदा करके बैठ गई ?
अचानक वह विदेशी फिर दिखाई दिया जिसको उसने सुमन के कमरे में देखा था । वह निकट जा कर सुमन के बारे में कासिम से पूछने लगा ।
“नर्स है उसके पास –इस से जियादा मैं कुश नाहीं जानता --” कासिम ने बुरा सा मुंह बना कर कहा और फिर वेटर की ओर मुड़ कर बोला “अमे यह सब ठंडी हो गई है –फिर से गरम कर लाओ ।”
“बहुत अच्छा साब --” वेटर ने कहा ।
“जरा ठहेरो --” कासिम ने उसे टोका, फिर निलनी ओर देख कर बोला “आप किया खायेंगी ।”
“शुक्रिया –सिर्फ़ काफ़ी ..” निलनी ने उससे कहा ।
“तुम इतने दिलचश्प आदमी हो कि तुम से मित्रता करने को दिल चाहता है !”
“ज़रूर करो ..मुझे खुशी होगी --” कासिम ने चहक कर कहा ।
कासिम का शुष्क व्यवहार देख कर वह विदेशी वहाँ से जा चुका था ।
“तुम लोग बड़े विचित्र हो ..” निलनी ने कहा “यहाँ लड़कियां भी प्रास्पेक्टिंग कराती हैं .मेरे देश की लड़कियां तो केवल आर्टिस्ट बनना चाहती हैं ।”
“मुकद्दर है अपने अपने मुलुक का --” कासिम ठंडी सांस ले कर बोला :मेरे मुलुक की लड़कियों का तो जवाब ही नाही है सूखी साखी मरफुल्ली.अब मरीं और तब मरी”
“क्या मतलब?” वह उसे आश्चर्य से देखती हुई बोली।
“अब मतलब किया बताऊँ ..तुम नाही समझ सकोगी।”
“कोशिश करूंगी ।”
“यह किया कह डिया मैंने --” कासिम अपनी भाषा में बडबडाया “कहीं भड़क ना जाये ।” “क्या कह रहे हो?”
“कुश नाही ---कुश नाही --” वह खिसियानी हंसी के साथ बोला।
“कुछ तो –क्या तुम अपनी भाषा में मुझे गालियाँ दे रहे हो।”
“अरे ..नाही तौबा –लाहौल बिला कूबत ।”
“इसका क्या मतलब हुआ?”
“मुझे ...तौबा और लाहौल बिला कूबत की अंग्रेजी नाही मालूम” कासिम दयनीय सूरत बनाकर बोला।
“यह तो बड़ी मुसुबत है –मैं तुम्हारी बहुत सारी बातें न समझ सकूंगी ।”
“क्या तुम मेरी बातें समझना चाहती हो ?”
“क्यों नहीं ...हम दोस्त बन गये हैं ना।”
“मैं इस खाबिल नाही हूं --” कासिम का कराठ भर आया।
“क्यों ....क्यों ?”
“आज तक किसी लड़की ने मेरी बातें समझने की कोशिश ही नाही की...मैं ऐसा ही उल्लू का पट्ठा हूं।”
“सन ऑफ एन आउल।”
“ओह –तो क्या तुम्हारा गोत्री नाम आउल है?”
“नाही तो !”
“कुछ जातियों में उल्लू को पवित्र समझा जाता है –क्या तुम ऐसी ही जाति से संबंध रखते हो।”
“अरे बाप रे –यह तो जान को आ गई --” कासिम फिर अपनी भाषा में बडबडाया ।
“क्या कहा ?”
“कुश नाही –कुश नाही --” कासिम जल्दी से बोला “तुम बहुत अच्छी हो ।”
“शुक्रिया –तुम भी बहुत अच्छे हो और मैं यह किसी प्रकार मानने को तैयार नहीं कि तुम उल्लू के बेटे हो।”
“मैं तो यही समझता हूं--” कासिम झल्ला कर बोला।
“यह तुम्हारा अपना मामिला है –तुम समझते रहो।”
“तो किया हम हमेशा दोस्त रहेंगे?” कासिम ठंडी सांस ले कर बोला।
“बिलकुल –हमेशा --” निलनी ने उसके हाथ पर हाथ रखते हुए कहा।
इसके बाद कासिम वेटर की ओर देखने लगा जो उसके लिये बकरे की भी रान गर्म कर के लाया था और मेज पर काफ़ी का सामान लगा रहा था रान हाथ में आयी तो कासिम निलनी के अस्तित्व ही को भूल बैठा। वह भी चुपचाप काफ़ी पीने लगी।
मन ही मन सोच रही थी कि विचित्र आदमी है—इतने डीलडौल का आदमी सचमुच उसने प्रथम बार देखा है—बुद्धि नाम की कोई वस्तु कदाचित उसके समीप से भी नहीं गुजरी—भला यह किसी के लिये क्या काम कर सकेगा-शायद मोसियो लेकरास को भ्रम हुआ है-जो भी हो –समय अच्छा कटेगा....मगर अब उठ ही जाना चाहिये..हो सकता है कि यह जान बुझ कर अपने को मुर्ख प्रकट कर रहा हो।
फिर कासिम रान समाप्त भी नहीं कर पाया था कि वह उठ गई ।
“कल --” उसने कहा “कल संध्या को हम फिर मिलेंगे।”
कासिम के मुख में एक बड़ी सी बोटी थी इसलिये वह कुछ न कह सका और निलनी चली गई ।
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हमीद और रीमा एडलफ़ी छोड़ कर टुरेस्ट हेबेन में चले गये थे ..जाने से पहेले हमीद ने अपने साथ साथ रीमा का भी मेकअप बदल दिया था।
अपना मेकअप देख कर रीमा ने बुरा सा मुंह बनाया ।
“क्यों –क्या हुआ ?” हमीद उसे घूरता हुआ बोला।
“मैं कोई जापानी लड़की मालूम होती हूं ?”
“एंग्लो जापानी --” हमीद ने कहा “तुम्हारा बाप अंग्रेज था और माँ जापानी ।”
“आखिर इतने ख़राब मेकअप की क्या आवश्यकता थी ?”
“मुझे ऐसे ही चेहरे वाली लड़कियाँ पसंद है –उभरी हुई आंखों और चिपटी नाक वालियां ।
“अब मेरा क्या नाम ?”
“वही जो होटल के रजिस्टर में दर्ज है ।”
“मैं नहीं जानती की तुम ने क्या लिखवाया है ।”
“मायो कू यूकी।”
“मुझे याद नहीं रहेगा ।”
“मैं केवल यूकी कहूँगा ।”
“तुम्हारा नाम क्या है – तुमने अपना मेकअप जापानियों जैसा क्यों नहीं किया?”
“मुझे जापानी नहीं आती ।” रीमा ने कहा।
“तुम्हारी माँ बचपन ही में मर गईं थी और तुम्हारा बाप तुमको इंगलैंड ले गया था।वहीँ तुम पली बढीं –इसलिये अंग्रेजी के अतिरिक्त कोई दूसरी भाषा तुम्हें नहीं आती।”
“और तुम्हारा पालन पोषण किसी रींछ की गुफा में हुवा था –क्यों ?”
“मेरी शक्ल ऐसी तो नहीं --।”
“बकवास बंद करो –मैं तुम्हें किस नाम से पुकारूंगी?”
“होटल के रजिस्टर में मेरा नाम ---” हमीद वाक्य पूरा किये बिना मौन हो गया । उसे अपना सर चकराता हुआ महसूस हुआ था ।
“क्यों क्या बात है ।”
रीमा उसे ध्यान पूर्वक देखती हुई बोली।
“मम...मेरा सर --” हमीद ए वाक्य पूरा करने का असफल प्रयास किया। उसकी जबान ऐंठी जा रही थी –और फिर उसने यह महसूस किया कि वह कुर्सी से उठ भी नहीं सकता। अपलक चाय के खली बर्तनों को देखने लगा। कुछ देर पहले उसने रहाइशी कमरे में चाय तलब की थी –तो क्या चाय में कोई नशा लाने वाली वस्तु थी।
और फिर उसने रीना की ओर देखा ...वह कुर्सी पर झूम रही थी और फिर कुर्सी से नीचे लुढ़क गई।
उसने उसे आवाज़ देनी चाही मगर उसके कंठ से स्फुट सी आवाज़ निकल कर रह गई। रीमा फर्श पर शिथिल पड़ी हुई थी –और अब हमीद भी अंधकार में डूबता चला जा रहा था –अंधेरा ---गहरा –अंधेरा। न कुछ दिखाई दे रहा था न कुछ सुनाई दे रहा था।
पता नहीं कितना समय इसी दशा में व्यतीत हुआ था –लेकिन होश में आने के बाद उसे महसूस हुआ कि न तो वह टुरेस्ट हेवेन के डाइनिंग हाल में है और न अपने कमरे नें –और फिर उसे वह स्थिति याद आ गई जो वहाँ थी।“रीमा ...रीमा पर क्या बीती –वह भी तो बेहोश होकर गिरी थी --” वह उठ बैठा। बड़ा आराम दह बिस्तर था और ऐसा महसूस हो रहा था जैसे पूरी नींद लेने के बाद तारो ताजा हो। दिमाग शीशे के समान साफ़ था।
वह सामने वाले दरवाजे की ओर बढ़ा। कुछ क्षण तक रुक कर हैन्डिल घुमाया और धीरे से धक्का दिया।दरवाजा खुलता चला गया –वह बाथरूम था जहां आवश्यकता की सारी वस्तुएं मौजूद थीं।
थोड़ी देर बाद जब बात रूम से बाहर निकाला तो मेज पर नाश्ते की ट्रे भी रखी हुई दिखाई दी। काफ़ी पाट से भाप निकल रही थी।गर्म गर्म अर्ध टेल अंडे –तथा एक गिलास में ताजा फलों का रस भी था। वह बैठ कर नाश्ता करने लगा और सोचने लगा कि यह सामान यहाँ किस प्रकार पहुंचे, क्यूंकि उस बात रूम के अतिरिक्त यहाँ अब कोई दरवाजा नजर नहीं आ रहा था।
फिर वह रीमा के बारे में सोचने लगा। पता नहीं उस पर क्या बीती –वह लोग निश्चय उसके विचारों के परिवर्तन को जान गये थे वरना उस पर भी वहीँ क्यों बीतती जो ख़ुद उस पर बीती थी।
नाश्ता करने के बाद पाइप की इच्छा जाग उठी और उसे यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक ओर तमाखू की पाऊच और पाइप भी मौजूद है और उसी के निकट उसका सूट प्रेस किया हुआ रखा है।
“देखिए...यह अतिथि सत्कार क्या रंग खिलाता है ...”उसने मुस्कुरा कर सोचा फिर पिप भरने लगा, फिर उसे सुलगा कर बिस्तर के निकट पड़ी हुई आराम कुर्सी पर लेट गया और सोचने लगा ..मगर मगर सोचता भी क्या। वह तो विनोद की स्कीमो के बारे में कुछ जानता ही नहीं था –आखिर वह लोग उससे क्या मालूम कर सकेंगे।
कुछ ही देर बाद उसकी आंखें फिर बंद होने लगीं। उसने उन्हें खुले रखने की कोशिश की –मगर सफल न हो सका –आंखें बिलकुल ही बंद हो गईं –वह गहरी नींद सो गया।
आंख खुली थी किसी की चीख सुन कर –कोई औरत लगातार चीखे जा रही थी । उसने उठाना चाहा मगर उठ न सका ...वह तो एक कुर्सी में जकड़ा हुआ था। उसने चीखों की ओर सर झुकाया।
“रीमा --” वह भी जैसे चीख पड़ा।
वह भी थोड़ी ही दूर पर एक दूसरी कुर्सी जकड़ी नजर आई थीज़ दो आदमी उसके निकट खड़े थे और वह भी चीखे जा रही थी...प्रकट में चीखने का कोई कारण नजर नहीं आ रहा था।
दोनों में से एक स्वीच बोर्ड की ओर बढ़ा और एक स्वीच आफ कर दिया –फिर रीमा की चीखें मंद पड़ने लगीं और अन्त में वह बिलकुल ही मौन हो गयीं
। चूं कि उसका चेहरा दूसरी ओर था इसलिये हमीद यह न देख सका कि उसकी आंखें खुली हुई हैं या वह चेतना कहो बैठी है।
वह दोनों आदमी आपस में धीरे धीरे बातें कर रहे थे, फिर उनमें से एक हमीद को घूरने लगा और दूसरा आदमी फिर उसी स्वीच बोर्ड की ओर बढ़ा और उसने एक दूसरा स्वीच आन कर दिया—और एक ट्राली ढकेल कर रीमा के निकट आने लगा। उस पर एक बड़ा सा टेप रेकार्डर रखा हुआ था।
· “ओ हो....तो यह शैतान रीमा की बातों को रेकार्ड करना चाहते है-” -हमीद ने सोचा “ कुछ करना चाहिए –अगर यह रीमा से कुछ उगलवाने में सफल हो गये तो दोनों का कुशल नहीं।”
उसने चमड़े के तस्मों पर शक्ति लगाना आरंभ कर दिया और फिर उसे ऐसा लगा कि वह बाईं ओर वाले तस्मों से अपना हाथ आसानी से अब निकाल सकेगा। उसने कनखियों से उन दोनों की ओर देखा। वह टेप रेकार्डर पर झुके हुए थे। उनका पूरा ध्यान उसी ओर था। उसने बांया हाथ तस्मों से निकाल लिया और बायें पैर का तस्मा खोलने लगा जो पाये से कसा हुआ था।
वह दोनों अब भी टेप रेकार्डर ही पर झुके हुए थे –फिर उनमें से एक उसका पाईप टेस्ट करने लगा ...और इतनी देर में हमीद ने अपने आप को पूरी तरह स्वतंत्र कर लिया था।
रीटा की आवाज़ सुन कर हमीद ने उसकी ओर सर धुका दिया ..मगर दोनों हाथ अभी तस्मों के अंदर ही रख छोड़े थे। रीमा बोल रही थी ।