Regum Wala - 2 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | रीगम बाला - 2

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रीगम बाला - 2

(2)

“अरे बाप रे ---“ हमीद बौखला कर बोला।

“मगर मैं ऐसा नहीं होने दूँगी!” रीमा ने धीरे से कहा।

हमीद को उसकी आंखों में पूर्ण संकल्प की ज्योति दिखाई दी।वह चुपचाप उसे देखता रहा। वह अत्यंत गंभीर नजर आ रही थीं। होंठ मींचे हुये थे और भवें सिकुड़ गयी थीं।

“सुनो..”थोड़ी देर बाद वह हाथ उठा कर बोली “ किसी प्रकार कर्नल तक सूचना भिजवा दो कि अब अगर विमल हाथ आये तो वह उस पर बिलकुल विश्वास न करे।“

“ क्या मतलब ?” वह संभल कर बैठ गया।

“अब वह कर्नल से दगा करेगा।“

“साफ साफ़ कहो।”

“इस बार तुम दोनों चारों ओर से जकडे जा रहे हो –नातूना से जो भूल हुई थी वह भूल तीसरी नागिन से नहीं होने पाएगी—विमल को प्राप्त करके फिर उसे कर्नल के हाथों में दे देना लेक्रस की योजना में शामिल है—उसकी स्मरण शक्ति वापस आ जायेगी और वह कर्नल विनोद को उस स्थान तक ले जायेगा जहां मैं एक प्राचीन आत्मा के रूप में उससे मिला करती थी – वहाँ पहुंचते ही कर्नल विनोद एक बेबस चूहे के समान फांस लिया जायेगा।“

“ओह !” हमीद ने बिस्तर छोड़ दिया।

“अधिक बौखलाने की आवश्यकता नहीं –बैठ जाओ ।“रीमा ने कठोर स्वर में कहा।

“मेरे पास ऐसा कोई साधन नहीं जिससे कर्नल को इस खतरे की सूचना दूं ।” हमीद चिन्तित होकर बोला।

“चिंता न करो ?”

“क्या जान बुझ कर विमल कर्नल को फँसाएगा ।”

“यही समजो – इस बात का उसे विश्वास दिलाया गया होगा कि कर्नल विनोद ही मेरे और उसके मध्य दिवार बन गया है –उसे मार्ग से हटाये बिना वह मुझे प्राप्त नहीं कर सकेगा।”

“और विमल दिल में यह मैल रखे हुये कर्नल से वफादारी की बातें करता रहेगा—”हमीद बोला।

“हां ?”

“बहुत ही खतरनाक –या खुदा –मैं क्या करूँ!”

“अभी से हिम्मत हार बैठे!” रीमा व्यंगात्मक ढंग से मुस्कुराई।

“नहीं –मुझे कुछ करना चाहिए – हम लोग उसी के उटांग पटांग पथ प्रदर्शन से तो यहाँ तक पहुंचे हैं ।”

“इसीलिये कह रही थी कि इस बार शायद उनका वार खाली न जाये।” रीमा ने कहा “और हां सुनो ...वह तुम्हारा मोटा दोस्त भी इस होटल में मौजूद है।”

“नहीं ---” हमीद फिर बौखला गया।

“हां –और उसके साथ वह लड़की भी है जिसके बारे में मैंने कहा था।

“यह तो बहुत बुरा हुआ।”

“क्यों ?”

“मैं अपने आपको उस पर प्रकट नहीं करना चाहता ।”

“तुम मेकअप में हो ।”

“लेकिन मैं यकीन के साथ यह नहीं कह सकता कि वह मेरे इस मेकअप को नहीं जानता।हो सकता है कि कभी उसके साथ रहकर मैंने यह स्प्रिंग प्रयोग किये हो।”

“तब तो हमें फौरन यह होटल छोड़ देना चाहिए ।”

“जैसी तुम्हारी इच्छा ---” हमीद ने लापरवाही से कहा। उसे विनोद की चिंता पड़ गयी थी।

“और तुम्हारा यह मेकअप भी मुझे पसंद नहीं –चलो कहीं और चलते हैं –मेरे मेकअप में भी परिवर्तन कर देना।”

“और वह तुम्हारी पार्टी –लेरी करास इत्यादि ?”

“ मैं अपने तौर पर काम कर रही हूं –उसे केवल अपनी स्कीम बता दूँगी, यह कह दूँगी कि मैं उचित नहीं समजती कि मोटा फिलहाल हमीद को पहचान सके ।”

1. “लेकिन वह दोनों यहाँ क्यों ठहरे हैं।”

“मैं नहीं जानती –और मैं किसी ऐसी बात के बारे में किसी से कुछ पूछ भी नहीं सकती जिसका संबंध मुझसे न हो।”

फिर रीमा उठ कर चली गयी। कदाचित अपने स्कीम के परिवर्तन के बारे में सूचना देने और हमीद चिंता में डूब गया। स्प्रिंग वाला मेकअप भद्दा भी था और कष्ट दायक भी । वह सोचने लगा कि चलो अच्छा ही हुआ-अब इससे पीछा छूट जायेगा।

*****

निलनी कारमाऊँफ़ एडल्फी होटल के डाइनिंग हाल में दाखिल हुई । आज वह उन दोनों को दूर से देखने आयी थी जिनसे मिल बैठने का आदेश मिला था।

लेकरास उसे पसंद था ।उसके लिये वह यह काम अच्छी तरह कर सकती थी –और करना ही क्या था –केवल दो आदमियों से मित्रता –वैसे भी वह स्थानीय आदमियों से मिलना चाहती थी। पाठशाला में अधिकतर ज्यादा उम्र वाले लोग थे जिन्हें केवल पढ़ने की लगन थी । उनमें से किसी ने भी उसकी ओर मित्रता का हाथ नहीं बढाया था।

वह दरवाजे के पास ही रुक कर हाल का निरिक्षण करने लगी और फिर उसे एक मेज पर सुमन नागर कर और कासिम दिखाई पड़ गये। उनको पहचानने में उसे इसलिये कठिनाई नहीं हुई कि मैथुज ने उन दोनों की फोटो भी उसे दिखा दी थी। वह धीरे धीरे चलती हुई उनके पास वाली मेज पर जा बैठी। उसने बचपन में देवों परिओं की कहानियां पढ़ी और सुनी थी –मगर किसी देव को देखने का संयोग आज ही प्राप्त हुआ था। एक विचित्र सा भय उसके दिमाग में समा गया।

और फिर जब उसने उस देव को भोजन करते देखा तो सोचने लगी कि यह अवश्य पैशाचिक शक्तियां रखता होगा।

सुमन उसे सुंदर नजर आयी थी –यह भी महसूस कर रही थी कि हाल के सरे लोग उन्हीं दोनों में दिलचश्पी ले रहे हैं... दोनों अपनी मिसाल आप थे।लड़की अत्यंत सुंदर थी और मर्द ..उसका तो पूछना ही क्या.मांस का पहाड़ मालूम दे रहा था और बकरे की एक पूरी रान ऐसी लग्न और बेदर्दी से उधेड़ रहा था जैसे यह निश्चय कर लिया हो की उसमें एक रेशा भी न लगा रहने देगा।

अब निलनी सोच रही थी कि आखिर वह उनसे मित्रता कैसे करे, उसे उस भीमकाय आदमी से बहुत डर लग रहा था। एक रान समाप्त करने के बाद उसने दूसरी की ओर हाथ बढ़ाया ही था कि लड़की बोली।

“अब मेरी आर्थिक दशा ऐसी नहीं रही कितुम इस तरह जी छोड़ कर खा सको ।”

“इसकी परवाह नाही कीजिये मैं अपना एक आध एकाउंट यहाँ ट्रांसफर करा लूंगा – अल्लाह करे –आप भी मेरी ही तरह खाने लगें...।”

“ऐसा शाप मत दो कि जीने के लाले पड़ जायें ।“

“लाले पड़ जायें चाहे काले पड़ जायें –अल्ला मियाँ ने आदमी को खाने ही के लिये तो पैदा किया है।”

“अच्छा –चुपचाप खाओ ?”

चु की निलनी बिलकुल उनके पास वाली मेज पर बैठी थी इसलिये उनकी बातें साफ़ सुन रही थी – सोचती भी जा रही थी कि आखिर वह इन दोनों से कैसे मिले –अगर यह देव खतरनाक साबित हुआ तो । अचानक उसने कासिम के साथ वाली लड़की को चीख मार कर कुर्सी से लुढ़कते देखा और ख़ुद भी बौखला कर खाड़ी हो गयी। दुसरे लोग भी दौड़ पड़े। लड़की फर्श पर तड़प रही थी और इसके कराठ से घुटी घुटी सी चीखें निकल रहीं थीं ।चीखों के मध्य एक आध शब्द भी उसके मुख से निकल जाता था।

“दर्द .....पेट ...दर्द ..पप...पेट..दर्द ।”

इस समय उस होटल में अधिकतर विदेशीय थे –और वहीँ वहाँ एकत्रित भी थे। निलनी भी उसी भीड़ में मिल गयी थी और कासिम के पास ही खाड़ी थी । वेटर देशीय ही थे। उन्हों ने बिदेशियों को इन शब्दों के अर्थ समझाए । निलनी ने सोचा कि जो भी हो –अब इससे अच्छा अवसर हाथ नहीं आयेगा।उसने कासिम की भुजा पकड़ी और अंग्रेजी में बोली।

“तुम्हारी साथी को क्या हुआ ?”

कासिम ने चुंधियाई हुई आंखों से उसकी ओर देखा, फिर अंग्रेजी ही में बोला।

“जरा रुक रुक कर बोलिए तो मैं भी उत्तर दूं। आप लोगों की बोली जल्दी मेरी समज में नहीं आती।”

निलनी ने रुक रुक कर अपना प्रश्न दुहराया।

“पता नहीं खाते खाते किया हो गया –वालेकुल ठीक थीं।“

“मुझे तुमसे हमदर्दी है।”

“होनी ही चाहिए –होनी ही चाहिये –“ कासिम ने बौखला कर कहा । कदाचित अब उसे यह एहसास हुआ था कि वह किसी औरत से बात कर रहा है—और औरत भी ऐसी तारो ताजा कि बस –ऐसी तगड़ी कि “किया कहना” अब वह सुमन की ओर से ध्यान हटा कर उसी से बातें करने पर उतारू हो गया।

“आपकी हमदर्दी का बहुत बहुत शुक्रिया –इनके पेट में दर्द बराबर उठा करता है और यह इसी तरह तड़फने लगती है।”

“तो फिर तुम खड़े खड़े मुंह क्या देख रहे हो—डॉक्टर को फोन करो।”

“हम लोग परदेसी है-आज ही यहाँ आये हैं—किसी डाक्टर को नहीं जानते ।”

लेकिन इतनी देर नें वहाँ स्ट्रेचर लाया जा चुका था। कासिम ने देखा कि दुसरे उसे उठाने जा रहे हैं तो जल्दी से आगे बढ़ा और दूसरों को हटा कर ख़ुद सुमन को उठाने लगा।

फिर सुमन अपने कमरे में पहुंचा दी गयी। होटल के जिम्मेदारों ने डाक्टर को फोन कर दिया।

इस समय कमरे में कासिम और निलनी के अतिरिक्त होटल का असिस्टेंट मैनेजर और एक विदेशीय भी मौजूद था। उसके अंग्रेजी बोलने के अंदाज़ से निलनी ने अनुमान लगाया था कि वह कोई फ्रांसीसी है-

फ्रांसीसी –ओह –कहीं यह लेकरास का वही प्रतिद्वंदी तो नहीं है जिसका उल्लेख मैथुज ने किया था—उसे उसका नाम भी याद आ गया—आरागान –यह नाम उसके व्यक्तित्व से मिलता जुलता भी नजर आया—शारीरिक शक्ति नेत्रों से प्रकट हो रही थी और शरीर तो था ही कसरती ।

“क्या यह तुम्हारी बीबी है ?”निलनी ने मंद स्वर में मुमान की ओर संकेत करते हुए कासिम से पूछा । सुमन बिलकुल मौन थी। नेत्र बंद थे और चेहरे पर पूरी शांति छाई हुई थी।

“नन ..नहीं तो --” कासिम चोंक कर बोला “मेरी तो अभी शादी ही नाही हुई।”

“ओह –तो गर्ल फ्रेंड --।”

“अरे नाही जनाब—मैं इनका नौकर हूं ।”

“यह क्या करती हैं ?”

“प्रास्पेक्टर हैं और मैं इनका असिस्टेंट हूं --”

निलनी कुछ और पूछने वाली थी कि डाक्टर आ गया और असिस्टेंट मैनेजर से बातें करने लगा।

कासिम चोंक कर उन दोनों की बातें सुनने लगा—फिर डाक्टर ने कासिम से पूछा।

“क्या पहले की कोई मेडिकल रिपोर्ट भी मौजूद है?”

“जी हां --” कासिम ने कहा और आगे बढ़ कर निलनी का सूट केस खोलने लगा—फिर एक फाइल निकाल कर डाक्टर की ओर बढ़ा दिया और बुरा सा मुंह बनाये हुए फिर निलनी के पास आकर खड़ा हो गया।

“फाइल में क्या है --”

“नकशे !”निलनी ने विस्मय के साथ दुहराया ।

“पता नाही किया है –जो कुछ भी है मैं अंग्रेजी भूल गया हूं --” कासिम ने कहा और निलनी मुस्कुरा पड़ी। कासिम कहता रहा “आज तक मैंने कोई औरत ऐसी नाही देखी जो आये दिन बीमार नाही रहती हो –ऐसा लगता है जैसे बीमारियाँ भी उन पर आशिक हो जाती है।”

“तुम बहुत परेशान मालूम होते हो ?”

“ठेंगे से ---” कासिम भन्ना कर बोला ।

“क्या?”

“मुझे ठेंगे की अंग्रेजी नहीं आती --”

उधर इत्निदर में डाक्टर फाइल देख कर असिस्टेंट मैनेजर से कह रहा था।

“इन पर ऐसे दौरे पड़ते रहते हैं ...कोई खतरनाक बिमारी नहीं है, इसलिये हास्पिटल में दाखिल करना बिलकुल बेकार होगा –हां –एक नर्स भेजी जा सकती है ।”

“ज़रूर ज़रूर--” कासिम बोल उठा “नर्स तो वालेकुल जरुरी होगी । आप खर्चे की फ़िक्र नाही करें।”

विदेशीय आरंभ से ही मौन था । डाक्टर के साथ वह भी बाहर चला गया ।

“अभी नर्स आ जाएगी --” असिस्टेंट मैनेजर ने कासिम से कहा “इसके अतिरिक्त और जो सेवा हमारे योग्य हो बिना हिचिक कह दीजिएगा ।”

“अच्छा अच्छा –शुक्रिया --” कासिम ने ऐसे भाव में कहा जैसे दिल ही दिल में कह रहा हो कि “आच्छा आच्छा—अब तुम भी चलते फिरते नजर आओ ।”

असिस्टेंट मैनेजर चला गया तो निलनी ने पूछा ।

“मैं क्या खिदमत कर सकती हूं ?”

“अब किया बताऊँ .यह बेहोश पड़ी हुई है –अगर कोई बातें कहने वाला ना हो तो मेरे पेट में भी दर्द होने लगता है । कासे खेखड में पडा हूं ...” कासिम ने कहा।

“खेखाड क्या ?”

“मुझे खेखाद की अंग्रेजी नाही मालूम--” कासिम में बड़े भोले पण से कहा।

“तुम्हारा कमरा किधर है ?”

“बराबर वाला --” कासिम ने बाईं ओर हाथ उठा कर कहा ।

इतनी देर में निलनी ने अनुमान लगा लिया था कि वह एक सीधा साधा और मुर्ख आदमी है, इसलिये उसके दिल डौल का भय भी उसके दिल से निकल गया था और वह सोचने लगी थी कि अब उससेकिस प्रकार की बात करनी चाहिये कि कासिम ख़ुद ही बोल उठा ।

“मैं पेट भर खाना भी नहीं खा सका था ।”

“फिर खा लेना।”

“कासे खा लूंगा – इनके पेट में तो दर्द हो रहा है।”

“तो क्या तुम इसी के पेट में खा रहे थे ?”

“आप तो मजाख करतीं हैं –ही ही ही ही --”

“बहुत भोले और प्यारे हो ।”