Regum Wala - 1 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | रीगम बाला - 1

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रीगम बाला - 1

(1)

उत्तरीय पूर्वीय पहाड़ों का सबसे अधिक सुंदर शहर रीगम बाला था ।

एक और यह आधुनिक नगर था और दूसरी और प्राचीन गुरुकुलों और मठो का संसार था । आधुनिक आबादी उन प्राचीन मठों के सामने ऐसी ही लगती थी जैसे किसी नइ नस्ल ने पिछलों से नाता तोड़ कर अपनी दुनिया अलग बसा ली हो ।

आधुनिक आबादी में वह सब कुछ था जो एक मार्डन नगर में होना चाहिये – और सच्ची बात तो यह है कि आधुनिक आबादी उन यात्रियों पर ही निर्भर करती थी जो रीगम बाला की प्राचीन दुनिया का दर्शन करने के लिये आते है ।

आधुनिक आबादी में एक ऐसी पाठशाला भी थी जिसमें देशीय और विदेशीय विध्यार्थीयों को पुरातत्व संबंधी शिक्षा दी जाती थी । विदेशीय विध्यार्थीयों के लिये एक उत्तम बोर्डिंग हाउस भी बनाया गया था – मगर उसमें देशीय विध्यार्थी भी ठहरते थे ।

निलनी कारमाउन्ट वेलजियम से आई थी और बौध्ध दीक्षा पर रिसर्च कर रही थी । वेलाजियम के पुरातत्व विभाग ने उसे यहाँ स्कालर शिप पर भेजा था । अपने साथ वह कई परिचय पत्र भी लाई थी और उन तमाम लोगों से मिली थी जिनके नाम पत्र लिखे गये थे । विलियम लेकरास नाम के आदमी ने उसे बहुत प्रभावित किया था । वह बहुत ही हमदर्द और निर्मल स्वाभाव का आदमी साबित हुआ था – उसका संबंध फ़्रांस के पुरातत्व विभाग से था और वह भी यहाँ बौध्ध मूर्तियों पर रिसर्च कर रहा था, मगर उसका संबंध पाठशाला से नहीं था । अपने रिसर्च में उसे किसी की सहायता लेनी थी – इस सहायता के लिये उसने निलनी ही को चुना था ।

और इस सहायता के लिये वह निलनी को एक उचित रक़म हर महीने दिया करता था ।

सप्ताह में दो बार दोनों एक जगह बैठ कर काम लिया करते थे ।

आज भी पाठशाला की पुस्तकालय में निलनी उसकी प्रतीक्षा कर रही थी, मगर नियत समय से आधा घंटा बीत गया मगर वह नहीं आया । यह पहला अवसर था जब उससे इस प्रकार की गलती हुई थी, वर्ना साधारण स्थिति में उससे अधिक समय का पालन करने वाला कोई दूसरा निलनी की नजरों से नहीं गुजरा था ।

आधा घंटा बाद वह पुस्तकालय से उठ गई – बोर्डिंग हाउस में पहुँची और जैसे ही अपने कमरे का दरवाज़ा खोला – अंदर एक लिफ़ाफ़ा पड़ा हुआ मिला जिस पर उसी का नाम लिखा हुआ था ।

लिफ़ाफे से लेफरास का टाइप किया हुआ पत्र बरामद हुआ ।

“मिस कारमाउन्ट !

मुझे अत्यंत दुख है कि आज मैं न आ सकूंगा और कदाचित दो महीने तक न मिल सकूं – सुदूर पूर्व की यात्रा पर रवाना हो रहा हूँ – इन दो महीनों की रक़म तुम्हें दो तीन दिन के अंदर चेक द्वारा मिल जायेगी । तुम कहोगी कि जब काम ही नहीं तो फिर पारिश्रमिक कैसा । इसलिये काम भी बता रहा हूँ । आज कल एक आदमी मेरे पीछे पड़ गया है, वह मेरे रिसर्च में रोड़े अटका रहा है, अगर तुम संबंध में मेरी सहायता कर सकीं तो उसे नीचा देखना पडेगा । तुम्हें इस संबंध में केवल इतना करना है कि दो स्थानीय आदमी से मिल बैठो । यह काम तुम इसलिये अच्छी तरह कर सकती हो कि हिंदुस्तानी अच्छी तरह बोल और समझ सकती हो । तुम्हें उनसे मित्रता करके उनके मिलने जुलने वालों पर नजर रखनी है । मेरा आसिस्टेंट मैथून तुमसे बराबर संबंध स्थापित रखेगा । जिन दोनों आदमियों से मित्रता करने के लिये मैं कह रहा हूँ वह मेरे उन प्रतिद्वंदी के नौकर है और एडल्फी के कमरा नंबर २७ में ठहरे हुये है । मर्द का नाम कासिम है और उसके साथ जो लड़की है उसका नाम सुमन नागरकर है । तुम बहुत विवेकी हो – इसलिये मुझे पूरा विश्वास है कि यह काम तुम बहुत ही उत्तम ढंग से कर सकोगी । अगर तुम यह काम करना चाहो तो मैथून को बता देना । न करना हो तब भी उसे सूचित कर देना ।”

निलनी ने कागज़ तह करके फिर लिफ़ाफे में रख दिया और लम्बी साँस लेकर आगे बढ़ गई । यह काम अपनी नवैयत के विचार से दिलचस्प भी था और संदिग्ध भी । निलनी सीधा साधा जीवन व्यतीत करती आई थी ।

वह बड़ी देर तक इसके बारे में सोचती रही, फिर इसने निर्णय किया कि मैथून से संबंध स्थापित करके कम से कम स्थिति तो समझनी ही चाहिये – अगर मामिला खतरनाक नहीं है तो फिर इस रक़म को क्यों गंवाया जाये ।

इस निर्णय के बाद वह अपने कमरे से निकल कर कामन रूम में आई । यहाँ टेली फोन भी था और वह लेफरास का फोन नंबर भी जानती थी – उसे यह भी मालूम था कि मैथून लेफरास ही के साथ रहता है ।

उसने उस पत्र के बारे में फोन पर मैथून को बताया ।

“हाँ मिस कारमाउन्ट ।” दूसरी ओर से आवाज आई “मोसियो लेफरास ने इस संबंध में मुझे बताया है । कल आपको चेक मिल जायेगा ।”

“मगर मामिला क्या है – मेरा साहस तो नहीं पड़ता ।”

“कोई खास बात नहीं है – मैं यह काम ख़ुद इसलिये नहीं कर सकता कि मांसियो लेफरास का प्रतिद्वंदी मुझे जानता पहचानता है ?”

“मैं वास्तव में यह जानना चाहती कि मामिले की नवैयत क्या है ।”

“मिस्टर लेफरास को प्रतिद्वंदी का विषय भी वही है जो मिस्टर लेफरास का है – अर्थात दोनों आदमी एक ही विषय पर रिसर्च कर रहे है- मगर मिस्टर लेफरास उससे काफ़ी आगे बढ़ चुके है – उन्होंने वीरान किले के आस पास एक समाधिस्थ बस्ती का पता लगाया है जो आधुनिक पुरातत्व से भी बहुत पहले की है – उनका अनुमान है कि विद्यामान पुरातत्व का निर्माण – उस बस्ती के मसधिस्थ हो जाने क्व लगभग एक हजार वर्ष बाद हुआ है – ओ हो – ठहरिये – आप कहीं और मिलिये – फोन पर मैं पूर्ण रूप से न बता सकूंगा ।”

“आप पाठशाला के पुस्तकालय में आ जाइये – मैं वहाँ आपकी प्रतीक्षा करूंगी – कितनी देर में आप वहां पहुंच जायेंगे ?”

“अधिक से अधिक बीस मिनिट बाद ।”

“अच्छी बात है – मैं पुस्तकालय में चल रही हूँ ।” निलनी ने कहा और रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।

थोड़ी देर बाद वह अपने कमरे से निकल कर पुस्तकालय की ओर जा रही थी ।

ठीक बीस मिनिट बाद मैथून से मुलाक़ात हुई । वह छोटे कद और शक्ति शाली शरीर का आधेड आदमी था । उसने धीरे से कहा ।

“बात यह है कि मैं फोन पर पूरी बात नहीं बताना चाहता था ।”

“मैं समझ गई थी ।”

“मोसियों लेफरास ने उस समाधिस्थ बस्ती का पता तो लगा लिया है, मगर अभी यहाँ की सरकार को उसकी सूचना नहीं दी है ।”

“क्यों ?”

“मोसियों लेफरास का प्रतिद्वंदी बड़ा आदमी है । वह निश्चय ही कोई ऐसा चक्कर चला देगा कि मोसियों लेफरास अपनी इस कृति के पुरस्कार से वंचित कर दिये जायेंगे – अर्थात यह उनकी कृति न समझी जायेगी ।”

“ओह अच्छा ?”

“अब स्थिति यह है कि अपने अनुसंधान की सच्चाई के लिये वह चोरी छिपे खोदाई करवा रहे है । इसके लये उन्होंने कई स्थानीय आदमियों से सहायता प्राप्त की है ।”

“मेरे विचार से उन्होंने यह अच्छा नहीं किया ।”

“क्यों मिस कारमाउन्ट ?”

“स्थानीय आदमी अपनी सरकार को सूचित कर देंगे ।”

“नहीं....वह ऐसा नहीं कर सकेंगे । मोसियों लेफरास ने बड़ी चतुराई से काम लिया है । उन्होंने बताया है कि वह एक बहुत प्राचीन समाधिस्थ खजाने की खोज में है – और वह स्थान वही है, अगर सरकार को पता चल गया तो हम सब उस खजाने से वंचित रह जायेंगे – वैसे हम सब बराबर के हिस्सेदार रहेंगे ।” वह अपनी बाई आँख दबा कर मुस्कुराया । निलनी भी मुस्कुराई । कुछ देर तक सोचती रही, फिर बोली ।

“मुझे क्या करना पड़ेगा !”

“वही जो मोसियो लेफरास ने अपने पत्र में लिखा था – हाँ – उन पर आप यह प्रकट नहीं करेंगी कि आप हिंदुस्तानी बोल और समझ सकती है....उनसे सदैव अंग्रेजी में बात कीजियेगा ।”

“हूँ....अच्छा.....और कुछ ?”

“मैं आपको पूरी बात बता रहा हूँ ताकि आप अच्छी तरह समझ जायें – आप यह तो जानती है कि मोसियो लेफरास का संबंध फ़्रांस के पुरातत्व विभाग से है – लेकिन उनका प्रतिद्वंदी आरागान सरकारी आदमी नहीं है....बहुत ही धनवान आदमी है और पुरातत्व से दिलचस्पी रखता है । मिश्र में भी खोदाई कर चुका है – यहां भी उसकी बड़ी पहुंच है – इसलिय हर प्रकार से मोसियो लेफरास के मार्ग से रोड़े अटका रहा है – यहाँ का एक प्रसिध्ध आदमी उसकी सहायता कर रहा है – उसका नाम कर्नल विनोद है – और हमें वास्तव में कर्नल विनोद ही के कामों को जानते रहना है । जिन दो आदमियों के बारे में पत्र में लिखा गया था वह कर्नल विनोद के खास आदमी है, आपको उन दोनों की वह बातें खास तौर से नोट करनी होंगी जो वह हिंदुस्तानी ने करेंगे । उन्हीं बातों से हमें कर्नल विनोद के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकेगी ।”

“तो सारांश यह है कि मुझे उस आदमी कर्नल विनोद ही के बारे में जानकारी प्राप्त करनी पड़ेगी ।”

“जी हाँ ....।” मैथून ने कहा और कासिम तथा सुमन नागरकर की हुलिया बताने लगा ।

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कैप्टन हमीद वाला काफिला एडलफी में दाखिल हुआ । हमीद को लेरी फरास और उसके साथियों के साथ ही सफ़र करना पड़ा था, क्योंकि उसकी गाड़ी तो गयाब हो चुकी थी ।

लेरी फरास की हँसने हँसाने वाली बातों पर हमीद रास्ते पर कुर्बान होता आया था और रीमा उसे टोकती रही थी । कभी कभी यह भी कह देती कि – इतनी जोर से न हँसो – कहीं नाक से स्प्रिंग न निकल जायें, लेकिन वह लेरी फरास में दिलचस्पी लेता रहा था ।

एडलफी में उन्हें कमरे मिल गये और संध्या तक वह अपने कमरों में आराम करते रहे । रीमा और हमीद एक ही कमरे में थे और वह बात बात पर हमीद को बोर करती रही थी । अन्त में हमीद थकी थकी सी आवाज़ में कराहा था ।

“मुझे तो ऐसा महसूस हो रहा है जैसे चमत्कारिक ढंग से मेरी शादी हो गई हो ।”

“नारी बिना नर अपूर्ण है ।” रीमा ने कहा ।

“हाँ हाँ – अब दुम निकल आई है मेरे....।” हमीदे बोला ।

“बच्चों की सी बातें न करो – तुम्हें ऐसा अभिनय करते रहना है जैसे भविष्य निकट में हम विवाह कर लेंगे ।”

“इसके लिये मुझे क्या करना पड़ेगा ?”

“मेरी हाँ में हाँ मिलाना होगा – अगर किसी अवसर पर मैं चप्पल भी खींच मारू तो तुम्हें बुरा नहीं मानना होगा ।”

“ध्येय ?”

“लेरी फारस को यह विश्वास दिलाना कि तुम पूरी तरह मेरी मुठ्ठी में हो ।”

“लाभ !”

“फिर वहीँ मूर्खो जैसा प्रश्न ?”

“चप्पल खींच मरो – शायद समझ में आ जाये ।”

“यह बात मैंने मिसाल के तौर पर कही थी ।” रीमा झल्ला कर बोली ।

“एक बात मेरी समझ में अब तक नहीं आई ।”

“कौन सी बात ?”

“तुम उस संध्या से मुक्ति चाहती हो न ।”

“हाँ ?”

“तो क्या लेरी फरास या लेफरास की मृत्यु से यह ध्येय पूरा हो सकता है !”

“बिलकुल नहीं ।”

“फिर तुम क्या करना चाहती हो ?”

“यही तो समझ में नहीं आता कि अब मुझे क्या करना चाहिये, तुमसे गठ जोड़ कर बैठी हूँ ।”

“इस संस्था में किस प्रकार सम्मिलित हुआ जा सकता है ।”

“यह संस्था के कर्मचारियों पर निर्भर करता है – वैसे वह ख़ुद जिसे सम्मिलित करना चाहते है उसे जबरदस्ती सम्मिलित कर लेते है ।”

“यह किस प्रकार !”

”जबरदस्ती उठा ले जाते हैं, फिर ब्रेन वाशिंग करके एक सप्ताह के अंदर ही अपना बना लेते हैं। आदमी हमेशा के लिये भूल जाता है कि वह कौन था—वह अपना नाम तक भूल जाता है –फिर वह धीरे धीरे उसकी योग्यताओं को उभरते हैं—कभी कभी ऐसा भी होता है कि वह केवल द्रष्टिकोण बदल देते है आदमी का पिछला व्यक्तित्व वही रहेता है –मिसाल के तौर पर – अगर वह चाहे तो तुम्हारे हाथों कर्नल विनोद को क़त्ल करा सकते हैं- तुम पूरी तरह होश में रहोगे –यह जानते रहोगे कि तुम केप्टन हमीद हो और वह तुम्हारा चीफ कर्नल विनोद है—मगर तब तुम्हें कर्नल विनोद वह नजर नहीं आयेगा जो पहले नजर आता रहा था।तुम उसे एक अच्छा आदमी समजने के बजाय बहुत ही बुरा समजने लगोगे – वह एक हिंसक नजर आयेगा—ऐसा हिंसक जिसे मर डालने में तुम्हें मानव और मानवता की भलाई नजर आयेगी।“