Hara hua aadmi - 40 in Hindi Fiction Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | हारा हुआ आदमी (भाग 40)

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हारा हुआ आदमी (भाग 40)

माया ने कहा तो दिया लेकिन उसे लगा।वह कुछ ज्यादा ही बोल गयी।अचानक बात करने का लहजा बदलते हुए माया बोली,"खून के रिश्ते के बीच शारीरिक संबंध से बचना चाहिए।औरत और आदमी के बीच खून का रिश्ता हो तो उन्हें शारीरिक सम्बन्ध जोड़ने से बचना चाहिए।निशा दुनिया की नज़रों में मेरी बेटी है।लेकिन हमारे बीच खून का रिश्ता नही है।इसलिए अगर हमारे बीच की दूरी मिटती है तो कोई बुराई नही है।हमारा मिलन पाप नही है।"
"मैं आपकी बातों,आपके तर्को से बिल्कुल सहमत नही हूँ।,"देवेन, माया की बातों का विरोध करते हुए बोला,"रिश्ता चाहे खून का हो या सामाजिक रिश्ता तो रिश्ता ही है।रिश्ते की कीमत भावात्मक और सामाजिक दोनो ही स्तर पर है।मनुष्य सामाजिक रिश्तो की कद्र करता है।इसीलिए श्रेष्ठ है।अगर मनुष्य भी जानवरो की तरह रिश्ते को नकार कर सम्बन्ध स्थापित करने लगे तो फिर मनुष्य और जानवर में क्या अंतर रह जायेगा।"
देवेन ने माया को समझाना चाहा था लेकिन माया पर इस समय वासना का भूत सवार था।वह देवेन की कोई भी बात सुनने के लिए तैयार नही थी।वह देवेन की कोई भी बात सुनने के लिए तैयार नही थी।।उसकी बातो और हरकतों से ऐसा लग रहा था।मानो वर्षो से प्यासी हो।वह आज की रात अपने तन की भूख हर सूरत में मिटाना चाहती थी।
देवेन, माया से हर सूरत में बचना चाहता था।माया ने देवेन को बातो से फुसलाना चाहा।जब वह उसकी बातों में नही आया टी उसने अंधेरे में अश्लील हरकत कर डाली।
माया की उलूल जुलूल हरकतों के बावजूद देवेन ने संयम नही खोया।देवेन, माया के समर्पन को स्वीकार नही करना चाहता था।इसलिए वह बिस्तर छोड़कर उठ गया।
औरत शर्मीली होती है।संकोची होती है।लज्जा उसका आभूषण होता हैं।वह सहनशील होती है।बर्दाश्त करने की शक्ति पुरुष के मुकाबले औरत में ज्यादा होती है।औरत हर बात सहन कर सकती है
लेकिन
औरत शर्म ह्या त्याग कर परपुरुष के आगे प्रणय निवेदन करे और वह पुरुष उस स्त्री के प्रणय निवेदन को अस्वीकार कर दे।इस बात को औरत कभी भी बर्दाश्त नही कर सकती।
आदमी औरत के प्रणय निवेदन को स्वीकार न करे तो औरत घायल नागिन की तरह फुंफकार उठती है।वह अपनी हार कभी बर्दाश्त नही कर सकती।औरत अगर हारने लगे तो अपने स्वाभाविक नारी स्वरूप को त्यागकर त्रिया चरित्र पर उतर आती है।अपनी हार को जीत में बदलने के लिए वह निम्न से निम्न और घिनोना तरीका अपनाना पड़े तो उसमें भी पीछे नही रहती।
माया ने अंधेरे में ही भांप लिया कि देवेन बिस्तर से उठ गया है।देवेन का यह व्यवहार माया को नागवार गुजरा।माया ने इसे अपना अपमान समझा।अंधेरे में ही उसने देवेन पर शब्दो का वार किया था।
"तुम शायद इस गलत फहमी में हो कि बिस्तर पर मुझे प्यासा तड़पता छोड़कर बचकर निकल जाओगे।"
अंधेरे बैडरूम में माया की कुटिल हंसी गुंजी थी।
"तुम अपने आप को आदर्शवादी समझते हो।पत्नीव्रत मानते हो।तुम सोच रहे हो मुझे नीचा दिखाकर तुम जीत जाओगे तो तुम बड़ी गलत फहमी मे हो।यह तुम्हारी बड़ी भूल है।,"
"क्या मतलब?तुम कहना क्या चाहती हो।साफ कहो"माया की बात सुनकर देवेन बोला।
माया के शब्दों ने जादू का सा असर दिखाया था।बैडरूम से बाहर जाते हुए उसके कदम जहां थे वही ठहर गए