Jurm - 3 - last part in Hindi Thriller by Pragati Gupta books and stories PDF | जु़र्म - 3 - अंतिम भाग

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जु़र्म - 3 - अंतिम भाग

3.

अपरा अपनी बेटी के लाड़ में खोई-खोई, कॉलेज के समय में पहुंच गई| उसने अपना हाथ अनुष्का के हाथ से छुड़ाकर उसके बालों में उंगलियों से शुरू कर सहलाना शुरू कर दिया| और बोली...

‘अनुष्का! तुम्हें तो पता ही है, तुम्हारे नाना-नानी मुरादाबाद में रहते थे| उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई के लिए मुझे दिल्ली भेज दिया था| मुझे हॉस्टल में रहना पड़ा| कॉलेज का फाइनल ईयर था| हम चार दोस्तों का बहुत अच्छा ग्रुप था| उस शाम बहुत तेज़ बारिश हो रही थी| हम दोस्तों ने योजना बनाई कि बारिश में कहीं दूर किसी थड़ी पर बैठकर चाय पीते हैं| मैं और आभास एक मोटरसाइकिल पर थे| कहीं भी जाना होता मैं हमेशा आभास की मोटर साइकिल पर ही बैठती थी |’

मां को अचानक ही चुप होकर ख्यालों में खोया हुआ देख, अनुष्का ने सिर उठाकर मां की आंखों में कुछ टटोलने के लिए झांका| मानो वो कुछ पूछना चाहती हो| मां की आंखों में तैरती हुई नमी को देखकर अनुष्का खुद को पूछने से नही रोक पाई...

“मां! आपने कभी किसी को प्यार किया था?”

बच्चे कितनी जल्दी बातें पकड़ते हैं,अपरा को अनायास ही एहसास हुआ| अपनी बेटी के इतनी मासूमियत से पूछे गए प्रश्न पर अपरा इनकार नहीं कर सकी| और उसने अपनी आंखों की नमी को पोंछते हुए कहा...

‘मैं आभास से बहुत प्यार करती थी| कॉलेज के समय ही हमारा प्रेम परवान चढ़ा| हम पूरी तरह परिपक्व थे| अपना अच्छा-बुरा सोच सकते थे| सेटल होने के बाद हमारा विवाह करने का भी विचार था क्योंकि वह भी प्रबुद्ध परिवार से संबंध रखता था| मगर... वह जीवित रहता तभी तो ऐसा होता न? जब तक कोई किस्मत में नहीं लिखा हो, हमें कभी नहीं मिलता अनुष्का|’

“जीवित नहीं? क्या हुआ था उन्हें मां?”

मैं आभास के कंधों से चिपकी हुई मोटरसाइकिल पर बैठी हुई थी| मेरी बाहें उसकी छाती पर कसी हुई थी| अनायास ही न जाने मुझे क्या सूझा कि मैंने उससे लिपटे-लिपटे हुए कहा.....

‘इतनी तेज बारिश है आभास... जी चाहता है तुम्हारे साथ इस बारिश में भीगते रहूँ| बारिश की हर गिरती बूंद मुझे तुम्हारे स्पर्श का अनूठा अनुभव करवा रही हैं| तुम्हारे साथ इस पल को पूरी तरह जी लेना चाहती हूं|’

अपनी बात बोलकर ज्यों ही मैंने उसे अपनी बाहों में कसकर, कानों में कहा...

‘थोड़ी और तेज मोटरसाइकिल चलाओ न आभास! तेज हवाओं के संग शरीर पर गिरती हुई बूंदे मुझे पागल कर रही हैं| मैं तुम्हारे साथ इस पागलपन को जीना चाहती हूं|’

अपनी अंतिम पंक्ति तक पहुंचते-पहुंचते अपरा फूट-फूट कर रोने लगी| अनुष्का ने कमरे पड़ी हुई दूसरी कुर्सी को मां की रॉकिंग चेयर के पास खींचा और क़रीब जाकर बैठ गई| फिर मां के आंसू पोंछते हुए बोली...

“फिर क्या हुआ माँ?”... अब माँ की आवाज़ का कंपन अनुष्का की आवाज़ में भी आ गया था|

‘उसके बाद... आभास के कानों में कही हुई मेरी पंक्तियों ने उसका ध्यान ड्राइविंग से हटा दिया| बगैर हैडलाइट्स का एक ट्रक सामने से आ रहा था| बरसते हुए पानी की धुंध में कब मोटरसाइकिल ट्रक से टकराई, उस क्षणांश कुछ भी समझ नहीं आया| एक जोरदार आवाज़ सारे वातावरण में गूंज गई थी| जब मुझे अस्पताल में होश आया तब पता चला| हमारा भयंकर एक्सीडेंट हुआ था| मैं सड़क के दूसरी ओर गिरी थी| मगर आभास उछलकर ट्रक के सामने ही गिर गया|... और... और... आभास! मेरा पहला प्यार था| मेरी ही गलती की वज़ह से उसकी जान चली गई|.....यह जुर्म मैंने किया है बेटा| मैंने उसके जाने के बाद न जाने कितनी बार खुद को ईश्वर से बुलाने की प्रार्थना की| अगर मेरे जीवन पर जल्दी विराम लग जाता तो, अपने जुर्म को कैसे भुगतती|...

जब उसके मम्मी-पापा देह लेने आए, उनकी आँखें न जाने कितने प्रश्न मेरे से पूछ रही थी| मैं जिनके उत्तर कैसे और क्या देती?... अनुष्का तू ही बता बेटा| उनकी आँखें....बारिश.....मेरे कहे हुए शब्द सब उस दिन बाद मेरे भीतर ठहर गए थे| हर बारिश मेरे लिए सज़ा है... अनकही पीड़ा है| यह मेरे मरने के बाद ही खत्म होगा बेटा| कोई डॉक्टर इसका इलाज़ नहीं कर सकता| मेरी वज़ह से मेरे प्यार की जान गई,... यह छोटी बात नहीं|’

अपरा के फूट-फूट कर रोने और बिखरने से अनुष्का को भी रोना आ गया था| अनुष्का भी मां की बातों के संग कॉलेज लाइफ में पहुंच गई थी| मां का कष्ट उसे अपने बहुत क़रीब महसूस हुआ| अनुष्का को माँ की कोई भी बात असामान्य नहीं लगी| अनुष्का ने ज्यों ही उठकर अपरा को अपने गले से लगाया| वह बस रोती ही गई| बरसों पुराना घाव बेटी के सामने खुलकर, आज फिर हरा हो गया था|

बेटी ने मां को खूब रो लेने दिया| बाहर बारिश भी थम चुकी थी और अपरा भी रो लेने से काफ़ी हल्की हो गई थी| अनुष्का ने मां से पूछा...

“मां! क्या यही वज़ह थी आप हमेशा तेजस को मोटरसाइकिल दिलवाने के विरुद्ध रही?”

अपना सिर सहमति से हिलाकर अपरा ने स्वीकृति जताई| आज अपरा ने अपने मन की व्यथा उस युवा बेटी को सुनाई थी, जो उसके प्रेम होने और उसके जाने को दर्द को समझ सकती थी| तभी अनुष्का ने मां से कहा...

“मां आप ही तो कहती हैं हर घटित के पीछे एक वज़ह होती है| कॉलेज लाइफ में प्रेम होना कोई गुनाह नहीं है| ऐसा सभी के साथ होता है| मेरे साथ भी हुआ तभी मैं और अतुल, आप और पापा की सहमति से विवाह कर रहे हैं|... अंकल के जाने की वज़ह सिर्फ़ आप नहीं है?... हम सबकी मृत्यु का कारण कोई न कोई वज़ह बनती है| कुछ पूर्व जन्म के संस्कार भी वज़ह बनते हैं|...

माँ! धीमे-धीमे सब भूलने की कोशिश करिए| आपकी बेटी हमेशा साथ है और रहेगी|.. कभी मन अच्छा हो तो अपने स्कूल-कॉलेज की और भी ढेर सारी बातें हमें जरूर बताइएगा| आपको पता है जिस तरह माँ को अपने बच्चों की बातें सुनना अच्छा लगता है उसी तरह बच्चों को माँ की यादों को सहेजना अच्छा लगता है| पापा की जाने के बाद तेजस और मैं आपके दोस्त भी हैं| इस बात का हमेशा ख्याल रखिएगा|”

अनुष्का की बातें सुनकर अपरा कुछ इस तरह मुस्कुराई मानो बरसों से उसकी मुस्कुराहट पर रखा हुआ बोझ अचानक ही हट गया हो।।

प्रगति गुप्ता

58 सरदार क्लब स्कीम जोधपुर -342011