स्वास्थ्य थोड़ा खराब है.... मगर आप लोगों का स्नेह खींच लाया लैपटॉप तक.... 34वां भाग आपके सामने है.....
मेजर विश्वजीत की मौत पर दुखी हूं..... विक्रम के खान की तरह यह किरदार भी आपको लंबे वक्त तक याद रहेगा...
यकीनन वह आसमां था और सर झुकाए बैठा था...
श्रद्धांजलि मेजर विश्वजीत...!
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वह आसमां था
“एक जासूस की तरह सोचा करो। पुलिस वालों की तरह नहीं।” सोहराब ने सवीम को टोकते हुए कहा, “अबीर को अगर उसे मारना होता तो वह यह काम उसके घर की जगह कहीं बाहर करता। बाहर उसके लिए मेजर आसाना टार्गेट होता। वैसे मेजर विश्वजीत को कत्ल करना इतना आसान भी नहीं था। चूंकि वह खुद हथियारों का दलाल था, इसलिए सिक्योरिटी को लेकर हमेशा बहुत सतर्क रहता था।” सोहराब ने बताया।
“जहर भी तो दिया जा सकता है?” सलीम ने दोबारा शक जाहिर किया।
“तुम यह शक पहले भी जाहिर कर चुके हो। मैंने इस एंगल से भी तहकीकात की। उसे जहर दे कर मारने के लिए उसके स्टॉफ को शामिल करना पड़ता। मैं इस बारे में भी चेक कर चुका हूं।” सोहराब ने कहा, “उसका स्टॉफ बहुत पुराना और वफादार है। इसकी एक वजह यह भी है कि सभी को बहुत अच्छी सैलरी मिलती है। एक बात सुन कर तुम भी ताज्जुब में पड़ जाओगे?” सोहराब ने रुक कर सिगार सुलगाते हुए कहा।
“वह क्या?” सलीम ने तुरंत ही पूछ लिया।
“उसके स्टॉफ के हर आदमी की.... यहां तक कि माली तक के बच्चों की सारी फीस मेजर विश्वजीत जमा करता था। स्टॉफ के बच्चों की शादी का सारा खर्च मेजर खुद उठाता था। ऐसे में कोई भी स्टॉफ उससे गद्दारी नहीं कर सकता है!” सोहराब ने कहा।
“शानदार आदमी था फिर तो।” सलीम ने कहा, “मैंने अपनी जिंदगी में ऐसा कोई आदमी नहीं देखा। लोग सिर्फ पैसे कमाते हैं जरूरतमदों पर कोई भी खर्च नहीं करता है।”
सोहराब ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और आगे बताने लगा, “मैं उसके वकील से भी मिला। मेजर विश्वजीत ने वसीयत तैयार कराई थी। वसीयत के मुताबिक उसकी मौत के बाद उसकी सारी जायदाद और बैंक बैलेंस अनाथालाय और ओल्ड एज होम को दिया जाएगा। एक ट्रस्ट इसकी देखरेख करेगा। इसके अलावा वह ट्रस्ट उसके पर्सनल स्टॉफ के बच्चों की फीस भी जमा करता रहेगा, जब तक कि वह पढ़ना चाहेंगे। उसने स्टॉफ की पेंशन का भी इंतजाम किया है। एक अनुमान के मुताबिक उसने अपने पीछे तकरीबन 225 करोड़ रुपये का बैंक बैलेंस और प्रापर्टी छोड़ी है। नब्बे करोड़ तो सिर्फ बैंक बैलेंस है।”
“काफी पैसा छोड़ा है फिर तो!” सलीम ने कहा।
कुछ देर रुक कर सोहराब ने फिर कहा, “मेजर विश्वजीत की पार्टियां शाही मिजाज की हुआ करती थीं। वह लड़कियों पर पानी की तरह पैसे बहाया करता था। लड़कियों को महंगे गिफ्ट देना उसका खास शगल था। अब उसका यह नया रूप देख कर तो मैं भी उससे मुतास्सिर हुए बिना नहीं रह सका। यकीनन मैं उसे कभी नहीं भूल पाऊंगा।”
“किसी को हो न सका उसके क़द का अंदाज़ा
वह आसमां था और सर झुकाए बैठा था”
सलीम ने गमगीन लहजे में यह शेर पढ़ा तो सोहराब उसका चेहरा बड़े ध्यान से देखने लगा।
होटल सिनेरियो के अपने रूम में रायना और अबीर अब भी मौजूद थे। सोहराब के जाने के बाद रायना उससे भिड़ गई, “तुम्हें क्या जरूरत थी सोहराब के सामने यह एक्सेप्ट करने की, कि तुम मेजर से नफरत करते थे!”
“मैं घबरा गया था।” अबीर ने डरे से लहजे में कहा।
“अगर मेजर की मौत अननेचुरल हुई तो तुम्हारा फंसना तो तय है अबीर! तुम पहले ही डॉ. वरुण वीरानी के कत्ल को ले कर शक के दायरे में हो। तुम लटकना अकेले फांसी के फंदे पर! मैं तुम्हारा साथ नहीं देने वाली!” रायना ने उसे घूरते हुए कहा।
“वीरानी के कत्ल का शक मुझ पर क्यों होगा भला। मैं क्यों करने लगा उसे कत्ल?” अबीर ने घबराए हुए लहजे में कहा, “और यह तुमसे किसने कहा कि मुझ पर शक किया जा रहा है?”
“मेजर सही कहता था कि तुम लौंडे हो! मैं भी कहां तुम्हारे चक्कर में फंस गई! अबे गदहे! मेरे और तुम्हारे रास्ते में जो भी आ रहा है वह मारा जा रहा है। पहले डॉ. वरुण वीरानी और अब मेजर की मौत। इसका क्या मतलब निकाला जाएगा भला?” रायना ने तेज आवाज में कहा। इसके बाद उसने बड़बड़ाते हुए कहा, “पता नहीं कत्ल हुआ या खुद ही मर गया?”
“सॉरी बेबी! अब तो गलती हो गई है। उसे सुधारा नहीं जा सकता है। अब तुम ही बताओ क्या करना है। चलो कहीं भाग चलते हैं। जब सब ठंडा हो जाएगा तो लौट आएंगे। पैसे की तुम फिक्र मत करो।” अबीर ने तजवीज पेश की।
“ताकि सारा शक हम पर ही आए। कभी तो बेवकूफों वाली बातें न किया करो।” रायना ने उसे घूरते हुए कहा।
“तुम ही बताओ अब मुझे क्या करना चाहिए?” अबीर ने घिघियाते हुए पूछा।
“अपनी चोंच बंद रखो और नार्मली जैसे जीते हो वैसे ही रहो।” रायना ने कहा। फिर जैसे उसे कुछ याद आया और उसने पूछा, “कहीं मेजर को तुम ने तो नहीं मार दिया है?”
“मुझे यह काम बहुत पहले कर डालना चाहिए था। उसने तुम्हें खराब कर दिया है।” अबीर ने गुस्से से कहा।
मेजर विश्वजीत का इस दुनिया में कोई नहीं था, इसलिए सभी दोस्तों ने मिल कर उसका अंतिम संस्कार कर दिया। वह बहुत यारबाश आदमी था और खुशमिजाज भी था, लिहाजा अंतिम संस्कार में बहुत ज्यादा भीड़ थी। उसके स्टॉफ के लोग इस तरह रो रहे थे, मानो वह उनका सगा रिश्तेदार रहा हो। सुबह भी उसके तमाम दोस्त कोठी पर पहुंचे थे। अलबत्ता तब तक पुलिस मेजर की लाश को पोस्टमार्ट के लिए भेज चुकी थी।
राजेश शरबतिया की कोठी पर इस वक्त उसके तमाम दोस्त जमा थे। वहां एक बड़े से हाल में मेजर विश्वजीत की बड़ी सी पेंटिंग रखी हुई थी। उस पर सभी आने वाले फूल अर्पित करके उसे खराजे अकीदत पेश कर रहे थे। मेजर विश्वजीत की मौत पर यकीनन सभी लोग दुखी थी। अजीब बात यह थी कि इस शोक सभा में न तो रायना आई थी और न ही अबीर ही मौजूद था।
“डॉ. वीरानी के बाद मेजर की मौत ने यकीनन हम सब को गहरे सदमे में डाल दिया है। वह बहुत शहरयार किस्म की शख्सियत थे। उन्हें भुला पाना मुश्किल होगा।” डॉ. दिनांक ठुकराल ने गम का इजहार करते हुए कहा।
डॉक्टर श्याम सुंदरम ने ठुकराल की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “मैंने अपनी जिंदगी में उन जैसा शख्स नहीं देखा। हमेशा जोश और उमंग से भरे हुए। मैंने कभी उन्हें परेशान नहीं देखा। मैं अकसर उनसे कहता भी था, कि आप जैसी जिंदगी अगर जी जाए, तो हार्ट की दिक्कत किसी को हो ही नहीं सकती!”
“मेरी कोई भी पार्टी मेजर के बिना नहीं होती थी और उनकी मेरे बिना।” राजेश शरबतिया ने कहा, “वह अपनी पार्टी में सिर्फ मुझे बुलाते थे, मेरी वाइफ को नहीं। इसकी मेरी बीवी को हमेशा उनसे शिकायत रहती थी। कल रात भी मैं उनके साथ पार्टी में था और आज यह दुख भरी खबर सुनने को मिली।”
“वह मुझसे उम्र में बड़े थे, इसके बावजूद वह मुझे भाभी कहते थे।” राजेश शरबतिया की वाइफ ने कहा, “वह बहुत दिलदार आदमी थे। यह सच बात है... वह मुझे अपनी पार्टीज में नहीं बुलाते थे। शिकायत करने पर जोर का ठहाका लगाते और कहते कि, वह शरीफों की पार्टी नहीं है।”
“उनसे मेरी मुलाकात वनिता ने कराई थी।” संदीप सिंघानिया ने कहा, “कुछ ही मुलाकात में हम ऐसे दोस्त हो गए, जैसे बचपन का याराना हो। लाजवाब पर्सनाल्टी थे। इस उम्र में भी जवानों का सा जोश था।”
वनिता भी बोलने के लिए उठी, लेकिन उसका गला रुंध गया और वह कुछ बोल नहीं सकी। शोक सभा में मौजूद सभी ने मेजर विश्वजीत के लिए गम का इजहार किया। इसके बाद देर रात तक सभी ने मेजर की याद में शराबनोशी की और फिर कोठी से विदा हो गए।
खुफिया महकमे के अपने ऑफिस में सोहराब बहुत गंभीर मुद्रा में बैठा हुआ था। उसने अपने दाहिने हाथ की उंगली होठों पर कुछ यूं रख छोड़ी थी मानो चुप रहने को कह रहा हो। वह आज भी जल्दी ही ऑफिस
आ गया था। उसने सलीम के सो कर उठने का इंतजार नहीं किया था।
सोहराब काफी देर यूं ही बैठा सोचता रहा। उसके बाद उसने डॉ. वरुण वीरानी की फाइल खोल ली। थर्टी फर्स्ट नाइट की पार्टी में शामिल लोगों के नाम वह देखता रहा। उसने एक बार फिर से लॉर्ड एंड लैरी टेलर्स के यहां से मिली लिस्ट पर नजर डाली। कुछ नाम डायरी में नोट किए और फिर लैपटॉप पर मेल चेक करने लगा।
मेजर विश्वजीत की पोस्टमार्ट रिपोर्ट आ गई थी। रिपोर्ट को ध्यान से पढ़ने के बाद सोहराब मेजर के बाल की डीएनए रिपोर्ट देखने लगा। रिपोर्ट पढ़ चुकने के बाद उसने बेल बजाई। तुरंत ही पियून अंदर दाखिल हुआ।
“ब्लैक कॉफी!” सोहराब ने कहा।
तभी सार्जेंट सलीम अंदर आ गया। उसने पियून को रोकते हुए कहा, “मेरे लिए व्हाइट कॉफी।”
पियून बाहर चला गया। सलीम ने सोहराब से पूछा, “आज आप बड़ी जल्दी ऑफिस आ गए!”
“सलीम ‘मौत का खेल’ अब खत्म होना चाहिए!” सोहराब ने हर शब्द में वजन पैदा करते हुए कहा। उसका चेहरा एकदम सपाट था। सलीम उसका चेहरा देखकर सिहर उठा। बहुत कम ऐसा मौका आता था जब सोहराब इस तरह से नजर आया था।
क्या इंस्पेक्टर सोहराब कातिल तक पहुंच गया है?
आखिर क्या है इंस्पेक्टर सोहराब का प्लान?
क्या मेजर विश्वजीत भी कत्ल कर दिया गया?
अबीर का इस मामले में क्या है रोल?
इन सारे सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का सनसनीखेज जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का आखिरी भाग....